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भारत
राजनीति
पत्थलगड़ी आन्दोलन की चर्चित एक्टिविस्ट बबिता कच्छप पर क्यों लगा राजद्रोह का मुकदमा?
बबिता कच्छप ने पिछले दिनों मोदी शासन के खिलाफ आदिवासियों से जुड़े संविधान की पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का उल्लंघन किये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की थी, जिस पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मोदी शाह सरकार से लिखित जवाब माँगा था।
अनिल अंशुमन
29 Jul 2020
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झारखण्ड में पत्थलगड़ी आन्दोलन की चर्चित एक्टिविस्ट रही बेलोसा बबिता कच्छप और उनके दो साथियों की गुजरात सरकार द्वारा गिरफ्तार किये जाने का मामला प्रदेश के आदिवासी एक्टिविस्टों  में काफी तूल पकड़ता जा रहा है। झारखण्ड आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के वरिष्ठ प्रवक्ता प्रेमचंद मुर्मू ने इसे मोदी सरकार की बदले की दमन कारवाई बताते हुए कहा है कि इसके पहले भी जब प्रदेश में इनका शासन था तो सारे आदिवासी एक्टिविस्टों और आम ग्रामीणों पर देशद्रोह का मुकदमा थोप दिया गया था।

जिनका अपराध सिर्फ यही था कि वे तत्कालीन झारखण्ड की भाजपा सरकार द्वारा पांचवी अनुसूची के सभी विशेष प्रावधानों के धड़ल्ले से उल्लंघन कर यहाँ के जल-जंगल-ज़मीन और खनिज की बेलगाम लूट के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे। यह मोदी शाह की जोड़ी और रघुवर राज को कत्तई बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। परिणामस्वरुप सारे आदिवासी इलाकों को इस क़दर पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया था कि हज़ारों आदिवासी परिवारों को लम्बे समय तक अपने घरों से पलायन करना पड़ गया था।  


ऑल इण्डिया पीपुल्स फोरम , झारखण्ड के युवा आदिवासी एक्टिविस्ट जेवियर कुजूर ने भी यही आरोप लगाते हुए कहा है कि मोदी-शाह शासन आदिवासी समाज की जागरूकता से बुरी तरह घबराता है। चूँकि बबिता कच्छप ने पिछले दिनों मोदी शासन के खिलाफ आदिवासियों से जुड़े संविधान की पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का उल्लंघन किये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की थी, जिस पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मोदी शाह सरकार से लिखित जवाब माँगा था।  

झारखण्ड की आदिवासी मूलवासी जनता ने भाजपा को सबक सिखाते हुए राज्य की गद्दी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है तो अब ये गुजरात में अपनी सरकार द्वारा वही सारे पुराने आरोप लगाकर गिरफ्तारियां कर आवाज़ कुचलने का पुराना हथकंडा लागू कर रहें हैं।                          

आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ एडवोकेट रशिम कात्यायन जी ने तो हैरानी प्रकट करते हुए कहा है कि पत्थलगड़ी आन्दोलन और मावोवाद प्रभावित इलाका जब झारखण्ड को ही प्रचारित कर रखा है तो फिर गुजरात में अचानक से ये दोनों मुद्दे कहाँ से आ गये ? क्यों इस मामले पर झारखण्ड भाजपा के वे सभी आदिवासी नेतागण चुप्पी मारे बैठे हैं जो हाल के दिनों में बात-बात पर हेमंत सोरेन सरकार पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप लगाकर सड़कों पर उतरा करते थे?

इस गिरफ्तारी के पीछे का असली मामला भाजपा सरकार क्यों नहीं बताना चाहती है?झारखण्ड आदिवासी महासभा ने बबिता व उनके साथियों की गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए ज़ोरदार विरोध किया है। महासभा ने मोदी शासन पर यह भी खुला आरोप लगाया है कि वह संवैधानिक जागरूकता को दबाने के लिए ही उसने ये गिरफ्तारी कराई है। जो देश के संविधान के साथ-साथ यहाँ के न्यायतंत्र के साथ भी खुला मज़ाक है। महासभा ने देश के सभी आदिवासी सांसद – विधायकों और झारखण्ड टीएसी सदस्यों से तत्काल संज्ञान लेने की विशेष मांग की है।  

उधर,गिरफ्तारी के दूसरे ही दिन भारतीय ट्राइबल पार्टी के गुजरात के विधायकों ने भी ट्वीट बयान जारी कर बबिता व उनके साथियों को अविलम्ब रिहा करने की मांग करते हुए सरकार से नक्सलवाद की परिभाषा मांगी है।  खबर यह भी है कि रघुवर शासन में इस मामले से जुड़ी खूंटी पुलिस द्वारा रिमांड पर लेने के सन्दर्भ में लीगल एक्सपर्ट से राय ली जा रही है।              
             
ज्ञात हो कि तीन दिन पहले जब गुजरात के महिसागर में आदिवासियों के समूह ने बबिता जी को बतौर गेस्ट वक्ता के रूप में बुलाया था।  जिसमें वे अपने दो साथियों के साथ शामिल होने गयीं थीं।  

जिसका पोस्ट खुद बबिता जी ने ही लगाते हुए ये जानकारी दी थी कि किस तरह उनके भाषण से पहले कुछ लोगों ने आकर उन्हें चेताया था कि आप यहाँ भाषण मत दीजिये पुलिस आपको खोज रही है तो उन्होंने कहा था कि पुलिस को आकर जो करना करे वे यहाँ से नहीं जायेंगी और भाषण दिया।
                     
अनुमान यही लगाया जा रहा है कि कार्यक्रम के तत्काल बाद ही गुजरात आतंकवाद निरोधी दस्ता ( ATS ) ने बेलोसा बबिता कच्छप व उनके दोनों साथियों को गुजरात के महिसागर जिले के संतरामपुर में गिरफ्तार कर लिया।  इनलोगों पर मावोवादी, नक्सली होने का आरोप लगाते हुए IPC – 124 A ( राजद्रोह से सम्बंधित ) और 120 ( B ) की संगीन धाराएँ लगाई गयीं हैं।  

फिलहाल बबिता कच्छप व उनके साथियों को जेल भेजा जा चुका है।  स्थानीय आदिवासी संगठन के लोग इनकी रिहाई के लिए कानूनी उपायों में जुट गए हैं।  इधर झारखण्ड के एक्टिविस्टों का मानना है कि गुजरात के साथियों की न्याय गुहार का परिणाम कबतक और कैसा निकलेगा, इसे लेकर भी बहुत मुगालते में नहीं हैं। क्योंकि जिस तरह से जेल में बंद कोरोना पीड़ित क्रांतिकारी कवि वरवर राव और साईंबाबा से लेकर देश के दर्जनों वरिष्ठ एक्टिविस्टों  की रिहाई को लेकर महीनों से डेट पर डेट ही दिए जा रहें हैं, चीजें साफ़ इशारा कर रहीं हैं।

बहरहाल , मोदी शासन और गुजरात सरकार ने भी अभी तक इस गिरफ्तारी को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है।  लेकिन सोशल मीडिया में तेज़ी से वायरल हुए इस खबर में कि बबिता कच्छप द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका ने जो मोदी सरकार को जवाब देने की नौबत में पहुंचा दिया है और जिससे वह काफी कुपित है , दम लगती है ! 

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