NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
फ़िलिस्तीन : इज़रायल के कब्ज़े में "राइट टू एजुकेशन"!
ग़ैर-क़ानूनी इज़रायली नियंत्रण के अधीन फिलिस्तीनियों को व्यवस्थित रूप से शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जाता है और और विश्वविद्यालय के छात्रों और प्रोफेसरों को निशाना बनाया जाता है और दोषी ठहराया जाता है।
ज़ोइ पीसी
25 Sep 2019
the right to education

फिलिस्तीनी मानवाधिकार संगठनों ने इज़रायली सेना द्वारा की जा रही गिरफ्तारियों, अपहरण और रात के समय अवैध छापे की बढ़ती संख्या को लेकर निंदा की है। यह तरीक़ा हमेशा से इजरायल के अवैध क़ब्जे का ज़रुरी हिस्सा रही है। इस तरीक़े का इस्तेमाल न सिर्फ फिलिस्तीनियों को हिरासत में लेने और क़ैद करने के लिए किया जाता है बल्कि परिवारों और समुदायों को आतंकित करने और डर का माहौल पैदा करने के लिए भी किया जाता है।

हाल के दिनों में यूनिवर्सिटी के छात्रों को ख़ास तौर से इज़रायली सेना द्वारा निशाना बनाया गया है। पिछले दो महीनों में सिर्फ बिरजीत यूनिवर्सिटी के कम से कम 18 छात्रों को गिरफ्तार किया गया है।

द राइट टू एजुकेशन कैम्पेन ने "वाक् तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन" के चलते इस हिरासत की निंदा की। इसने अंतरराष्ट्रीय संगठनों से इन कृत्यों की निंदा करने का आह्वान किया है और साथ ही फिलीस्तीनी युवाओं और उनके शिक्षा के अधिकार के खिलाफ इसके अपराधों के लिए इजरायल को ज़िम्मेदार बताने के लिए कहा है। संगठन ने कहा है कि फिलिस्तीनी छात्रों और शिक्षकों की शैक्षणिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस तरह के दमनकारी उपायों को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करें।”

द राइट टू एजुकेशन कैम्पेन गिरफ़्तारी और क़ैद का सामना कर रहे छात्रों और कर्मचारियों को क़ानूनी सहायता प्रदान करके फिलिस्तीनियों की शिक्षा के अधिकार की रक्षा करने के लिए लड़ता है। यह फिलिस्तीनी छात्रों, शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों और अकादमिक स्वतंत्रता पर अवैध इजरायली नियंत्रण के प्रभाव को लेकर रिकॉर्ड रखता है और जागरूकता बढ़ाता है। 1970 के दशक में फिलिस्तीन के रामल्लाह स्थित बिरजीत यूनिवर्सिटी में ये अभियान शुरू किया गया था।

फिलिस्तीन में अन्य विश्वविद्यालयों के साथ-साथ एक संस्था के रूप में बिरज़ीत में इजरायली सेनाओं द्वारा कठोर दमन किया गया है और पंद्रह बार सैन्य आदेश के बाद बंद किया गया है। प्रथम इंतिफादा के दौरान सबसे लंबी अवधि तक बंद हुई थी। इस दौरान विश्वविद्यालय को साढ़े चार साल (1988-1992) तक बंद रखने के लिए मजबूर किया गया था। इस संगठऩ के अनुसार इस अवधि के दौरान, "शिक्षा को प्रभावी रुप से ग़ैरक़ानूनी बनाते हुए इजरायल के सैन्य आदेशों के बाद फिलिस्तीन के सभी नर्सरी, स्कूल और विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया गया। सैन्य आदेश का उल्लंघन करके क्लास में शामिल होने वाले छात्र और शिक्षाविद गिरफ़्तारी का जोखिम उठाते और टेक्स्टबुक रखना पूछताछ और हिरासत के लिए पर्याप्त आधार बन जात।

पीपल्स डिस्पैच ने बिरज़ीत यूनिवर्सिटी में द राइट टू एजुकेशन कैम्पेन से जुड़े एक छात्र कार्यकर्ता और स्वयंसेवी ख़़लील शाहीन से फिलिस्तीनी छात्रों के सामने आने वाली मौजूदा चुनौतियों और उनके प्रतिरोध को समझने के लिए बात की।

पीपुल्स डिस्पैच: वर्तमान में इज़रायल की जेलों में बिरजीत के कितने छात्र हैं?

ख़लील शाहीन: पिछले दो महीनों में बिरज़ीत के कम से कम 18 छात्रों को गिरफ्तार किया गया। वर्तमान में, इजरायल की जेलों में बिरजीत से कम से कम 80 छात्र हैं और इनमें से 20 को प्रशासनिक हिरासत में रखा गया है।

[प्रशासनिक हिरासत इज़रायल द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाने वाली एक कार्यवाही है जिसके तहत कैदियों मुख्य रूप से फिलिस्तीनियों को गुप्त सूचना के आधार पर और औपचारिक आरोपों या मुक़दमा के बिना अनिश्चित काल के लिए रखा जाता है।]

पीडी: हाल में हुई छापेमारी में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को क्यों निशाना बनाया गया है?

केएस: सच कहें तो इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इतने छात्रों को क्यों गिरफ्तार किया गया है। हिरासत में लिए गए सभी छात्रों से अब भी पूछताछ जारी है। इज़़रायली सेना रेड क्रॉस या किसी भी वकील को छात्रों की मदद करने की अनुमति नहीं दी या यहां तक कि हमें या उनके परिवारों को उनकी अन्यायपूर्ण गिरफ़्तारी के पीछे का कारण नहीं बताया।

आम तौर पर छात्रों द्वारा उनके राजनीतिक दृष्टिकोण के चलते आरोपों का सामना करना पड़ता है। पिछले साल, इज़रायली सेना "प्रेस से होने" का बहाना बनाते हुए विश्वविद्यालय में आए और छात्र संगठन के अध्यक्ष उमर अल-किसवानी का अपहरण कर लिया। कैंपस के अंदर भारी गोलीबारी हुई!

हम जानते हैं कि डॉ. वेदाद अल-बरगौथी को हाल ही में गिरफ़्तार किया गया और उन पर मुक़दमा हुआ था क्योंकि उन्होंने "फेसबुक पर एक ख़ास राजनीतिक पार्टी की तस्वीर" पोस्ट की थी।

पीडी: फिलिस्तीनियों के मुक्ति संघर्ष में बिरजीत विश्वविद्यालय ने ऐतिहासिक रूप से क्या भूमिका निभाई है?

केएस: बिरजीत अकादमिक रूप से अपने इतिहास के लिए जाना जाता है और इज़रायल के कब्जे का विरोध करने में इसकी अद्वितीय भूमिका है। फिलिस्तीन में कुछ भी होने पर छात्रों को इकट्ठा करने में छात्र परिषद और विभिन्न छात्र नेतृत्व वाले आंदोलनों की प्रमुख भूमिका होती है। विद्यार्थी परिषद परिसर के अंदर और बाहर विरोध प्रदर्शन का आयोजन करती है। यह फिलिस्तीनी इतिहास को समृद्ध करने में छात्रों के महत्व के बारे में बताता है और बदलाव लाने के लिए मुख्य भूमिका निभाती है।

पीडी: फिलिस्तीनियों के शिक्षा के अधिकार को इज़रायली नियंत्रण कितना बाधित करता है? फिलिस्तीनी छात्रों के लिए मुख्य चुनौतियां क्या हैं?

केएस: छात्र के तौर पर हम शिक्षा को बाधित करने वाली कई चुनौतियों का सामना करते हैं। यह मनोवैज्ञानिक स्तर पर और दिन-प्रतिदिन होती है। आंदोलन के अधिकार का हर एक दिन उल्लंघन किया जाता है, इसलिए अधिकांश छात्र रामल्लाह के बाहर रहते हैं। इसलिए विश्वविद्यालय में जाने के लिए हमें कई चौकियों से गुजरना पड़ता है और हर एक चौकी पर ख़तरा होता है कि हम या तो गिरफ़्तार हो सकते हैं या इसे पार नहीं कर पाएंगे।

लगभग हर दिन इज़रायली सेना ने रात में विभिन्न शहरों में छापा मारा। व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए जब भी मैं यूनिवर्सिटी जाती हूं तो मेरे माता-पिता ख़ासतौर से मेरी मां काफी डर जाती हैं क्योंकि किसी भी समय किसी के साथ कुछ भी हो सकता है! वे बंदूक लेकर हमारे यूनिवर्सिटी में आते हैं और वह भी बिना किसी अनुमति के। इज़रायली सेना कई बंदिशें भी लगाती है, जैसे कि वे किसी को भी शहर में प्रवेश करने या छोड़ने से रोक सकते हैं। और यह दुर्भाग्य से आश्चर्य की बात नहीं है लेकिन हमारे विश्वविद्यालय के कई छात्रों की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। कुछ साल पहले, इस तरह की घटना हुई थी और यह वास्तव में बहुत मुश्किल था।

सौजन्य: पीपुल्स डिस्पैच

Administrative detention in Israeli prisons
Birzeit university
Human Rights
Israeli Occupation
Israeli occupation forces
Palestinian Political Prisoners
Palestinian prisoners
Right to education

Related Stories

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

दिल्ली : फ़िलिस्तीनी पत्रकार शिरीन की हत्या के ख़िलाफ़ ऑल इंडिया पीस एंड सॉलिडेरिटी ऑर्गेनाइज़ेशन का प्रदर्शन

इज़रायल को फिलिस्तीनी पत्रकारों और लोगों पर जानलेवा हमले बंद करने होंगे

अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की

एनआईए स्टेन स्वामी की प्रतिष्ठा या लोगों के दिलों में उनकी जगह को धूमिल नहीं कर सकती

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

लैंड डे पर फ़िलिस्तीनियों ने रिफ़्यूजियों के वापसी के अधिकार के संघर्ष को तेज़ किया

चिली की नई संविधान सभा में मज़दूरों और मज़दूरों के हक़ों को प्राथमिकता..

पुतिन को ‘दुष्ट' ठहराने के पश्चिमी दुराग्रह से किसी का भला नहीं होगा


बाकी खबरें

  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव
    30 May 2022
    जापान हाल में रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने वाले अग्रणी देशों में शामिल था। इस तरह जापान अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है।
  • उपेंद्र स्वामी
    दुनिया भर की: कोलंबिया में पहली बार वामपंथी राष्ट्रपति बनने की संभावना
    30 May 2022
    पूर्व में बाग़ी रहे नेता गुस्तावो पेट्रो पहले दौर में अच्छी बढ़त के साथ सबसे आगे रहे हैं। अब सबसे ज़्यादा वोट पाने वाले शीर्ष दो उम्मीदवारों में 19 जून को निर्णायक भिड़ंत होगी।
  • विजय विनीत
    ज्ञानवापी केसः वाराणसी ज़िला अदालत में शोर-शराबे के बीच हुई बहस, सुनवाई 4 जुलाई तक टली
    30 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद के वरिष्ठ अधिवक्ता अभयनाथ यादव ने कोर्ट में यह भी दलील पेश की है कि हमारे फव्वारे को ये लोग शिवलिंग क्यों कह रहे हैं। अगर वह असली शिवलिंग है तो फिर बताएं कि 250 सालों से जिस जगह पूजा…
  • सोनिया यादव
    आर्यन खान मामले में मीडिया ट्रायल का ज़िम्मेदार कौन?
    30 May 2022
    बहुत सारे लोगों का मानना था कि राजनीति और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के चलते आर्यन को निशाना बनाया गया, ताकि असल मुद्दों से लोगों का ध्यान हटा रहे।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिमाचल : मनरेगा के श्रमिकों को छह महीने से नहीं मिला वेतन
    30 May 2022
    हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में मनरेगा मज़दूरों को पिछले छह महीने से वेतन नहीं मिल पाया है। पूरे  ज़िले में यही स्थिति है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License