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भारत
राजनीति
बंगाल में प्रस्तावित वित्तीय केंद्र को राजनीति ने ख़त्म कर दिया
2010 में वाम सरकार द्वारा प्रस्तावित इस परियोजना पर टीएमसी ने 2011 में अपना दावा किया। लेकिन अब तक यह परियोजना सुचारू नहीं हो पाई है।
रबीन्द्र नाथ सिन्हा
28 Sep 2021
Politics Grounds Proposed Financial Hub in Bengal
Image Courtesy: The Economic Times

कोलकाता: नई-नई विकसित हुई "सेटेलाइट सिटी न्यू टॉउन" में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र का दो बार आधारशिला कार्यक्रम हो चुका है, लेकिन यह अब भी पश्चिम बंगाल से दूर नज़र आ रही है। इस परियोजना का सपना ममता बनर्जी की पूर्ववर्ती वाम सरकार ने देखा था। इस पूरे घटनाक्रम को आप राजनीतिक असहिष्णुता या उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री की पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई अहम परियोजना से नफ़रत कह सकते हैं।

यहां पूर्ववर्ती कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट) मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य थे। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र की परियोजना का प्रस्ताव भट्टाचार्य और तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने साझा तौर पर 13 अक्टूबर 2010 को रखा था। उस वक़्त की यूपीए सरकार में रेल मंत्री रहीं ममता बनर्जी ने कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी थी। 

मुखर्जी ने आशा लगाई थी कि इस परियोजना से पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के विकास को गति मिलेगी। वहीं भट्टाचार्य ने दावा किया था कि परियोजना से 2 लाख नौकरियां पैदा होंगी। वहीं अप्रत्य़क्ष तौर पर भी बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मिलेगा। बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) से प्रेरित 100 एकड़ में फैली इस परियोजना को पांच साल में पूरा होना था। 

जब वाम सरकार को हटाकर 20 मई, 2011 को ममता बनर्जी सत्ता में आईं, तो उन्होंने परियोजना को जारी रखने का फ़ैसला किया, लेकिन नई अनुमतियों की बाध्यता कर दी और 10 मार्च, 2012 को फिर से परियोजना का आधार रखा। उनके वित्त मंत्री अमित मित्रा का दावा था कि एक बार अगर यह परियोजना पूरी तरह चालू हो गई, तो यह लंदन, सिंगापुर और दुबई जैसे बड़े वित्तीय केंद्रों से जुड़ जाएगा।  उन्होंने भी दावा किया कि इससे बड़े पैमाने पर रोज़गार पैदा होंगे, मित्रा ने भी इसके लिए BKC का उदाहरण दिया, जो प्रसिद्ध वित्तीय केंद्र बन चुका है।

अब तक नाबन्ना ने यह नहीं बताया कि बनर्जी ने इस परियोजना को नए कार्यक्रम के तौर पर प्रस्तावित क्यों किया। न्यू टॉउन में भूमि अधिग्रहण मुद्दा नहीं हो सकता था, क्योंकि इस इलाके को HIDCO (हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेल्पमेंट कॉरपोरेशन) ने विकसित कर रहा है और वहां पर्याप्त मात्रा में खाली ज़मीन उपलब्ध थी। बता दें सिंगूर और नंदीग्राम में ममता बनर्जी के विरोध प्रदर्शन में भूमि अधिग्रहण का मुद्दा ही केंद्र में था। 

उस समय की अपुष्ट रिपोर्टों से पता चलता है कि वाम सरकार की औद्योगिक कोशिशों में निजी क्षेत्र का रुझान बढ़ाने के लिए, प्रदेश सरकार ने अच्छे रिकॉर्ड वाले एक निजी क्षेत्र के संस्थान को इस परियोजना का काम दिया था। अपने पिछले दो कार्यकाल में निजी क्षेत्र को राज्य में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ममता बनर्जी ने कुछ निवेश सम्मेलन भी किए हैं। बनर्जी की मंशा HIDCO को वित्तीय केंद्र बनाने की जिम्मेदारी देने की थी। बल्कि ममता के विश्वासपात्र मंत्री फिरहाद हकीम और कुछ अधिकारियों ने आधारशिला कार्यक्रम में दावा भी किया था कि "हमारी परियोजना ही असली है।"

सूत्रों के मुताबिक़, राजनीति, खासकर ममता बनर्जी की प्रणब मुखर्जी से नफ़रत ही, ममता बनर्जी के कदमों की वज़ह बनी। जब प्रणब मुखर्जी यूपीए की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने, तो उन्होंने गठबंधन में साझेदार होने के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव में अपना समर्थन नहीं दिया। आखिरकार 25 जुलाई, 2012 को मुखर्जी राष्ट्रपति बन गए।   

बनर्जी को मुखर्जी के वामपंथियों के साथ अच्छे संबंध सुहाते नहीं थे। ऐसी परियोजना जिसकी कल्पना भट्टाचार्य ने की थी और आधारशिला मुखर्जी ने रखी थी, वह इस परियोजना को ममता बनर्जी द्वारा शुरुआत में नकारने जाने और बाद में अपनी उपज बताए जाने की वज़ह बनी। 2011 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद ममता और भी ज़्यादा आक्रामक हो गईं और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थीं।

जब कलकत्ता के दक्षिणी हिस्से में मेट्रो एक्सटेंशन का आधारशिला कार्यक्रम रखा गया, तो उसमें बनर्जी ने भट्टाचार्य को बुलाया तक नहीं। भट्टाचार्य ने तब कहा था, "मुझे कोई न्योता नहीं मिला।"

वित्तीय केंद्र ख़बरों में क्यों है?

10 सितंबर को परियोजना स्थल (जिसे अब फिनटेक हब के नाम से जाना जाता है) पर भूखंड खरीदने के लिए हकीम ने पंजीकरण करवाने के लिए एक ऑनलाइन सुविधा चालू करवाई। आवास और परिवहन मंत्री ने इस दौरान अपनी सरकार द्वारा उद्योग और व्यापार को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता भी जताई। उन्होंने कहा, "हम इस फिनटेक परियोजना को हमारे राज्य के लिए वित्तीय क्रांति का उत्प्रेरक बनाना चाहते हैं।"

मी़डिया के साथ साझा की गई जानकारी के मुताबिक़, 70 एकड़ के प्रोजेक्ट में अब तक 48 एकड़ में आवंटन हो पाया है। वामपंथी सरकार ने 2011 विधानसभा चुनाव के 6 महीने पहले ही एसबीआई, यूको बैंक, तत्कालीन यूबीआई (बाद में पंजाब बैंक के साथ विलय) और यूटीआई म्यूचुअल फंड जैसे संस्थानों के साथ परियोजना में भागीदारी को लेकर बातचीत करना शुरू कर दिया था। 

आधारशिला रखे जाने के साढ़े नौ साल बाद ऑनलाइन प्लॉट रजिस्ट्रेशन सुविधा का चालू होना बताता है कि निवेशकों का परियोजना में ज़्यादा रुझान नहीं है। शायद यह बात परियोजना के पूरे होने की तारीख़ पर प्रशासन की चुप्पी को बयां करती है।  अब तक, बंधन बैंक ने ही परियोजना में रुझान दिखाया है। 

बीकेसी के बारे में

अंतरराष्ट्रीय स्तर की इस परियोजना को MRDA (मुंबई मेट्रोपॉलिटिन रीजनल डिवेल्पमेंट अथॉरिटी) ने बनाया था। इसका जिक्र 2005 के बजट में किया गया था, तब यह बजट पी चिदंबरम ने पेश किया था। अगले दो सालों में यह लगभग सुचारू रूप में आ गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, 370 एकड़ में फैली इस परियोजना 1.17 लाख वर्ग मीटर की ऑफ़िस बिल्डिंग तक हैं। यहां रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया, कई भारतीय और विदेशी बैंक व वित्तीय संस्थान, कुछ भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट संस्थान के साथ-साथ महंगी होटल भी मौजूद हैं।

लेखक कोलकाता आधारित वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Politics Grounds Proposed Financial Hub in Bengal

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