NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
उत्पीड़न
कानून
फिल्में
समाज
मनोरंजन का कारोबार बनाम पॉर्न का बाज़ार
आखिर हम कैसे फर्क करें कि राज का धंधा इरोटिका से जुड़ा था या पॉर्न उद्योग से? हम कैसे समझें कि वह अपनी टीम के साथ जो कुछ कर रहा था वह समाज के लिए अस्वस्थ है या नहीं और कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं?
कुमुदिनी पति
28 Jul 2021
p

राज कुंद्रा की गिरफ्तारी को लेकर आज जितनी चर्चा हो रही है, शायद देश में महंगाई, महिलाओं पर बढ़ती हिंसा  कोविड से हुई मौतों पर उतनी चर्चा नहीं हुई हागी। फिर भी यह जानना जरूरी है कि इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के भीतर कितना कचरा भर चुका है, क्येंकि इससे हमारी  पीढ़ी बहुत अधिक प्रभावित होती है।

राज कुंद्रा एक जानी-मानी फिल्म तारिका शिल्पा शेट्टी के पति हैं। इन पर आरोप लगा है कि नए चेहरों को लेकर फिल्म बनाने के नाम पर पॉर्न का धंधा चला रहे थे। शिल्पा शेट्टी रियलिटी शोज़ पर आती है और भारत की एक फिटनेस गुरू भी मानी जाती है।

जानवरों के अधिकारों, स्वच्छ भारत मिशन और फिट इंडिया आन्दोलन तथा नारीवादी विचार से वह जुड़ी रही है। आज जब पति पर गाज गिरी शिल्पा का बयान आया कि उसके पति निदोर्ष हैं और उनकी फिल्में ‘पॉर्न’ नहीं ‘इरोटिका’ परोसती रही हैं।

आखिर हम कैसे फर्क करें कि राज का धंधा इरोटिका से जुड़ा था या पॉर्न उद्योग से? हम कैसे समझें कि वह अपनी टीम के साथ जो कुछ कर रहा था वह समाज के लिए अस्वस्थ है या नहीं और कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं?

विश्व की जानी-मानी महिला आन्दोनकर्ताओं और नारिवादियों ने पॉर्न पर बातचीत की है। अमेरिका की प्रख्यात नारीवादी लेखिका आन्द्रीया ड्वोरकिन, जो 80 के दशक में पॉर्न-विरोधी आन्दोलन से जुड़ी रही हैं, का कहना है कि ‘इरोटिका’ उच्च वर्ग का पॉर्न है, उसकी परिकल्पना, उसका निर्माण, उसकी पैकेजिंग और उसका प्रदर्शन बेहतर है क्योंकि उसके उपभोक्ताओं का वर्ग बेहतर यानि उच्च है।

दूसरी ओर नारीवादी ग्लोरिया स्टीनेम का कहना है कि पॉर्न में पुरुष और औरत कभी बराबर नहीं होते। पुरुष या पॉर्न निर्माता का वर्चस्व होता है, और इसलिए पॉर्न उद्योग में काम करने वाले शोषण के शिकार होते हैं और शोषणकारी सेक्स संबन्धों को अभिव्यक्त करते हैं। वह कहती हैं कि ‘‘इरोटिका और पॉर्न में वही फर्क है जो प्रेम और बलात्कार में है, जो सम्मान और अपमान में है, जो साझेदारी और गुलामी में है और जो आनन्द और पीड़ा में है।’’

1980 के दशक में अमरीकी नारीवादियों के बीच पॉर्न की परिभाषा को लेकर विभाजन हुआ था। पॉर्न-समर्थक जहां इस उद्योग में काम करने को एक पेशा मानते थे, पॉर्न-विरोधियों, जिनमें सबसे मुखर कैथरीन मैक किनॉन और आन्द्रीया ड्वोरकिन थे, का कहना था कि पॉन महिलाओं के साथ हिंसा और उत्पीड़न के जरिये ही निर्मित किया जाता है। विपरीत परिस्थितियों में जी रही महिलाओं को लुभाकर फिर उन्हें ब्लैकमेल करके, यहां तक उनके साथ शारीरिक व मानसिक हिंसा के माध्यम से पॉर्न फिल्मों की शूटिंग होती है। भले ही ये महिलाएं मेक-अप लगाए हुए आधुनिक पोषाक पहने, मुस्कुराते हुए पोज़ करती दिखती हैं, वास्तव में उनका, और कई बार पुरुष मॉडलों और ऐक्टरों का आर्थिक, दैहिक व मानसिक शोषण होता रहता है।

कैथरीन ने एक फिल्म डीप थ्रोट में लिंडा लवलेस के नाम से काम की हुई अदाकारा का तब समर्थन किया था जब लिंडा ने बताया कि उसका पति उसके साथ हिंसा करके उसे वयस्क पॉर्न फिल्मों में काम करके पैसा कमाने को बाध्य करता था।

जहां तक इरोटिका की बात है, वह नारी-पुरुष के बीच स्वाभाविक व प्रेमपूर्ण यौन संबंधों को कला और साहित्य के जरिये चित्रित करता है। उदाहरण के तौर पर खजुराहो की मूर्तिकला या भारतीय शिल्पकला में ऐसे कई दृश्य हैं, जिन्हें हम इरोटिका की श्रेणी में रख सकते हैं। इसके अलावा राधा-कृष्ण के बीच प्रेम को नृत्य व संगीत में कई तरह से कामुकता के साथ चित्रित किया गया है। कुछ हद तक मृचकटिका नाटक या सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी फिल्मों में भी हम इरोटिका का प्रदर्शन देखते हैं। आचार्य चतुरसेन रचित वैशाली की नगर वधु में कई ऐसे प्रसंग आते हैं जिनका संबंध यौन प्रेम से है।

पर आज लोग राज कुंद्रा से जितने नाराज हैं, उससे कहीं ज्यादा शिल्पा पर भड़के हुए हैं और उसे ट्रोल भी कर रहे हैं क्योंकि इस पूरे प्रॉजेक्ट में ही नहीं, कुंद्रा के साथ धन-दौलत की साझेदारी में भी उसे बराबर की हिस्सेदार माना जा रहा है। यदि उनके छद्म नारीवाद पर कोई बहस चले तो साफ हो जाएगा कि आधुकिता और आज़ादी यदि पूंजीवादी रास्ते से हासिल हों तो वे नारी मुक्ति का द्वार नहीं खोल सकते। पर हमें यह भी समझना होगा कि जो महिलाएं मॉडलिंग करने के बाद बॉलीवुड में अपना करीयर बनाने के लिए आती हैं, वे क्यों मजबूर होकर पॉर्न इंडस्ट्री में फंस जाती हैं? क्या अपनी इच्छा से ? कहीं-न-कहीं पिछले दिनों जो बहस बॉलीवुड के दिग्गजों के चरित्र के बारे में सामने आई थीं, उनसे भी इस परिघटना का गहरा रिश्ता है। बॉलीवुड जिस भ्रष्टाचार के लौह चाहरदीवारी से घिरा हुआ है, उसे भेदना इन साधारण घरों से आने वाली महिलाओं के लिए नामुमकिन है। ऐसी स्थिति का फायदा उठाने के लिए राज कुंद्रा सरीखे अनेकों लोग गिद्ध की भांति आंख गड़ाए बैठे रहते हैं।

आज पॉर्न के ऑनलाइन ग्राहकों की संख्या भारत में सबसे अधिक हैं। और बच्चियों को इस उद्योग में धकेलने वाले चाइल्ड ट्रैफिकिंग व चाइल्ड पॉर्न मार्केट के भी सबसे अधिक व्यापारी भारत में ही हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कोविड महामारी के दौरान हमारे देश में वयस्क साइटों को देखने वालों में 95 प्रतिशत इज़ाफा हुआ। यह पॉर्नहब द्वारा किये गए एक सर्वे से पता चला।

आखिर ऐसा क्यों है, जबकि हम अपने को सरस्वति और लक्ष्मी के पुजारी कहते हैं, सीता और सावित्री का महिमामण्डन करते हैं और कन्या की पूजा भी करते हैं? हमारे समाज में जो दोमुहापन है वह कभी-कभार ही उजागर हो पाता है। बाकी सब दबे-छिपे ढंग से जारी रहता है। परंतु, इसके बावजूद हम धर्म और महान भारतीय संस्कृति व परंपरा की दुहाई देते नहीं थकते।

कुन्द्रा कुछ ज्यादा बोल्ड हो गए और डिजिटल इंडिया का पूरा फायदा उठाते हुए ऐप के जरिये करोड़ों की कमाई घर बैठे करने लगे थे। पर क्या सच पूछा जाए तो अश्लीलता और मुनाफे के लिए महिलाओं के व्यवसायिक इस्तेमाल की कहानी इन्हीं से शुरू होती है और इनको जेल भेजने के बाद खत्म हो जाएगी? इससे पहले जब सुशान्त सिंह राजपूत और उसके मैनेजर की हत्या का मामला सामने आया था, लगा कि बॉलीवुड के भीतर की तलछट बाहर आ जाएगी और बड़े-बड़े प्रोड्यूसर डायरेक्टर फंसेगे। लगा था कि कइयों को तो सालों जेल में रहना पड़ेगा और भारी जुर्माने भरने पड़ेंगे। पर हुआ क्या?

सबसे पहले तो आप देखें कि हमारा दोमुहापन समय-समय पर कैसे प्रकट होता है। इससे पहले धर्मगुरुओं का खेल सामने आ चुका है। पर आज भी अनेकों ऐसे धर्मगुरू अपना धंधा जारी रखे हैं। आज सालों से चल रही चाइल्ड ट्रैफिकिंग के बाद अचानक हमें अपने देश के बच्चों की चिंता होती है। तो सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर होती है कि कैसे एक बच्ची के साथ उसके सहपाठी पॉर्न देखने के बाद सामूहिक बलात्कार करते हैं, तो देश के किशोरों और किशोरियों को बचाने के लिए पॉर्न पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये। कोर्ट भी बच्चों के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से कुछ उपाय करने को कहती है। ऑनलाइन पॉर्न परोसने वाले साइट्स पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश जुलाई 2015 को होता है। जैसे ही पॉर्न साइट्स पर प्रतिबन्ध लगा, इस उद्योग को चलाने वालों की ओर से और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स की ओर से भारी हंगामा मचने लग गया। बाद में केंद्र ने सफाई दी कि यह तो कोर्ट के आदेश के प्रतिक्रिया स्वरूप था और यह आदेश स्थायी तौर पर लागू नहीं किया जाना है। विशेषकर यह बच्चों के संदर्भ में लिया गया फैसला था। जो 857 पॉर्न साइट्स पर बैन लगा था उसमें से आधे से अधिक फिर चालू हो गए। यह है हमारे दोमुहेपन का एक और नमूना।

आज माता-पिता अक्सर अपने फोन बच्चों के हाथ में छोड़ देते हैं क्योंकि बच्चे उस ‘खिलौने’ को लेकर घंटों चुप रहते है-न घुमाने ले जाने को बोलते हैं, न रात जागकर लोरी सुनाने को और न खेलने को। माता-पिता पैसा कमाने की मशीन बन जाएं तो बच्चे भी मोबाइल, कम्प्यूटर और टीवी के भरोसे हैं। किशोरों और किशोरियों को तमाम मोबाइल ऐप्स, इंस्टाग्राम, फेसबुक से लेकर सेक्स परोसने वाले साइट्स का अपने अभिभावकों से अधिक पता होता है। कैसे ब्राउज़िंग हिस्ट्री को डिलीट किया जाता है और कैसे अलग-अलग ऐन्गल से संल्फी खींचकर उसे फिल्टर के माध्यम से वास्तव से ज्यादा सुन्दर बनाया जा सकता है, अपनी फेक आई डी बनाकर लडकों और लड़कियों को स्टाक किया जाता है, यह सब भी उनको सीखने में देर नहीं लगती। कहने का मतलब है कि हमरे बच्चे बचपन से सेक्स के बारे में गलत स्रोतों से जानकारी ले रहे हैं। तब स्वस्थ नारी-पुरुष संबंध और बलात्कार में उन्हें फर्क करना कैसे आएगा? पर हम स्कूलों में सेक्स एजुकेशन देने से घबराते हैं। माता-पिता भी लड़कियों को को-एड स्कूलों में भेजना नहीं चाहते।

भारत की पॉर्न इंडस्ट्री काफी बड़ी हो चुकी है और इंटरेट के जमाने में नई पीढ़ी को इससे बचाने के लिए सरकार में सही समझ और दृढ़ इच्छाश्क्ति की जरूरत है, ऐण्टी रोमियो स्क्वाड बनाने की नहीं। पॉर्न इंडस्ट्री में काम करने वालों की आय लॉकडाउन के समय बढ़ती गई। और, यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो पॉर्न में इजाफा का अर्थिक पहलू भी है। बहुत लोग जिनकी नौकरी महामारी की वजह से चली गई, घर से ही वयस्क सामग्री की लाइव स्ट्रीमिंग करने लगे। रिपोर्टें आईं कि पति-पत्नी भी अपने यौन संबंधों को लाइव स्ट्रीम कर रहे हैं-यह कितनी दयनीय स्थिति है। कुछ ने तो कानून से बचने के लिए अपने वीडियोज़ को दूसरे देशों के वयस्क साइटों पर अपने को पंजीकृत करने के बाद लगातार अपलोड करना शुरू कर दिया। ऐसे भी मामले आए जहां पत्नी की अनुमति के बिना पति ने वीडियो बनाकर साइट पर अपलोड कर दिया। पेमेंट भी क्रिप्टोकरेन्सी के माध्यम से ले ली जाती है। इन तरीकों से कमाई इतनी अधिक है कि दिन भर में कई हज़ार रुपए कमाए जा सकते हैं। कई कपल तो 10-15 लाख प्रति माह भी कमाने का दावा करते हैं। पर क्या ये कृत्य कानून के दायरे में नहीं आते?

जरूर आते हैं पर इनका पता कैसे चले? बात तो चली थी कि इंटरनेट पर देखी जाने वाली सामग्री पर एक लोकपाल बने जो निगरानी रखने का काम करे। पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ। हमारे देश में पॉर्न बनाना, बांटना या प्रकाशित करना व लोगों को इस काम में लगाना कानून जुल्म है। जहां तक हमारे संविधान के प्रावधान की बात है तो हमें बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी तो है पर उसके लिए कुछ शर्ते भी तय की गई हैं। एक शर्त है कि वह ‘‘नैतिकता और शिष्टता’’ के दायरे में हो। भारतीय दंड संहिता में इसे कुछ और विस्तार से परिभाषित किया गया है। किसी भी सामग्री को अश्लील तब माना जाएगा जब वह कामुक हो या उसमें वासना जगाने का उद्देश्य निहित हो या उसका प्रभाव ऐसा हो कि किसी की मानसिकता को विकृत करे अथवा भ्रष्ट करे’’। यह भारतीय दंड संहिता में धारा 292 है। धारा 293 के तहत ऐसी सामग्री का वितरण या प्रयोग 20 वर्ष से कम आयु के लोगों के बीच करने पर प्रतिबन्ध है और धारा 294 में किसी अश्लील हरकत को सार्वजनिक जगह पर करने पर रोक है।

जहां तक इस कानून के प्रयोग की बात है, तो इसका इस्तेमाल अपराध को कम करने की जगह पैसा वसूलने के लिए अधिक होता है। मेरठ में कई ऐसी घटनाएं सामने आईं जिनमें वयस्क प्रेमियों को या जवान जोड़ों को पार्क में हाथ पकड़े देखकर पुलिस ने धारा 294 का दुरुपयाग किया और रिश्वत बटोर ली। पर जहां सचमुच ऐसी हरकतें महिलाओं को उत्पीड़ित करने के उद्देश्य से होती हैं, उन्हें संज्ञान में नहीं लिया जाता। दिल्ली के गार्गी कॉलेज में ऐनुअल फेस्ट में लम्पटों ने घुसकर जिस तरह की अश्लील हरकतें कीं उसपर भी कार्यवाही नहीं हुई, बल्कि पुलिस तमाशबीन बनी रही और लड़कियों पर हजार तरह की रोक लग गई। तो सवाल उठता है कि जब सामने घटनाएं घटती हों और उनका स्वरूप संगठित हिंसा तक जाने की संभावना रखता हो तब भी ये धाराएं क्यों नहीं लगाई जातीं? क्या हमारी पुलिस फोर्स महिलाओं के प्रति सही नज़रिया रखती हैं? क्या देश के कई नेता खुलेआम नग्न नृत्य या पॉर्न नहीं देखते? 

इंटरनेट के आने के बाद तो पॉर्न उघोग में ‘‘बूम’’ आ गया। जो कृत्य सामाजिक कारणों से खुलकर नहीं किये जा सकते थे या रंगे हाथों पकड़े जाने के डर से कम होते थे, उनके लिए द्वार खुल गया। अब अनजान लोगों द्वारा अनजान लोगों के समूहों को छिपकर या अल-अलग पहचान बनाकर टार्गेट करना आसान हो गया है। छोटे बच्चों को बड़ी संख्या में टार्गेट बनाया जाने लगा और मानव की जितनी किस्म की विकृतियां है, उन्हें अभिव्यक्ति मिलना आसान हो गया। बस एक वेबकैम हो और इंटरनेट कनेक्शन तो न किसी को कहीं जाने की जरूरत है न आसानी से पकड़े जाने का खतरा। नतीजा यह हुआ कि हमारे देश में मोबाइल फोन के जरिये आसानी से अश्लील वीडियों बनाए और बांटे जाने लगे। क्योंकि इस धंधे में केवल फोन से वीडियो बनाना और वॉट्सऐप ग्रुप तैयार करना आना चाहिये, जो कोई बच्चा भी कर सकता है।

हमारे देश में आईटी कानून के तहत ऐसी कार्यवहियां दंडनीय हैं, पर कानून बनाने भर से बात नहीं बनती। अपराध को पकड़ना, उसके स्रोत का पता लगाना, जो लोग शामिल हैं उनका पता लगाकर अपराध सिद्ध कर पाना, क्या हमारे देश में साइबर क्राइम विभाग इतनी क्षमता रखता है? हमारे देश में आईटी ऐक्ट की धारा 66 ई, 67 ए और 67 बी के तहत सज़ा हो सकती है यदि किसी की निजता का उलंघन हो, यदि किसी किस्म की पॉर्न सामग्री का निर्माण या वितरण किया जाए या बच्चों को शामिल किया जाए। पॉक्सो कानून के खण्ड 14 व 15 के तहत बच्चे या बच्चों का उपयेग पॉर्न सामग्री बनाने के लिए किया जाए या उनसे संबंधित पॉर्न सामग्री संग्रहित की जाए तो जुर्माने के साथ 3-5 साल का कारावास हो सकता है। दोबारा अपराध साबित हुआ तो 7 साल तक का कारावास हो सकता है।

पर अपराधी दूसरे देशों के वेबसाइट इस्तेमाल करके कानून के घेरे से बाहर रह पाते हैं, वे वर्चुअल पेमेंट या क्रिप्टोकरेंसी अथवा टोकन से पैसा लेते हैं। डार्क वेब का इस्तेमाल भी किया जाता है और जो अपराधी इसका प्रयोग करते हैं, उन्हें पकड़ना आसान नहीं होता। और भारत में जब पॉर्न साइट्स पर बैन लगा था, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स परेशान हो गए। उनका आंकलन था कि राजस्व में 30-70 प्रतिशत की कमी आ जाएगी। आखिर सरकार झुक गई। क्या सरकार इस बात के लिए तैयार है कि पॉर्न से आने वाले राजस्व में कमी को सह ले और इंटरनेट स्वच्छता अभियान चलाए?

porn industry
Child Porn
Raj Kundra
shilpa shetty
entertainment industry

Related Stories


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License