NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रज्ञा ठाकुर के आइडिया ऑफ इंडिया में गांधी से पहले गोडसे !
भारतीय संविधान गांधी जैसे लोगों के विचारों से प्रभावित है। 
हिरेन गोहेन
03 Dec 2019
pragya thakur

प्रज्ञा ठाकुर ने फिर ऐसा ही किया है। उन्होंने एक सांसद को हस्तक्षेप करते हुए नाराज़गी ज़ाहिर की और कहा कि नाथूराम गोडसे की उनकी निंदा ग़लत थी। प्रज्ञा ने कहा कि वह एक सच्चे देशभक्त थें। विपक्षे के हंगामे और भारतीय जनता पार्टी के पल्ला झाड़ने के बाद अब वह कहती है कि उन्होंने गोडसे का उल्लेख नहीं किया था। तब माफी मांगने का सवाल ही नहीं था "भले ही उनके बयान ने किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई हो"।

लेकिन संसदीय कार्यवाही तो इलेक्ट्रॉनिक तरीक़े से रिकॉर्ड की जाती है और अध्यक्ष को शायद ही कोई ऐसी टिप्पणी को हटानी चाहिए जो वास्तव में नहीं की गई थी।

यह धारणा कि "आखिरकार, नाथूराम गोडसे एक सच्चे देशभक्त थें" उनकी इस पृष्ठभूमि को साझा करने वाले कई लोगों के लिए वास्तविक सत्य है। यह कोई आकस्मिक ग़लत धारणा नहीं है। एक बार दब जाने के बाद इस धारणा या मिथक ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान सामने आया। उसी अपराध में संलिप्तता के लिए कैद उनके भाई जेल से बाहर आ गए थे और उन्हें यह कहने की अनुमति दी गई थी कि उनके "शहीद भाई" एक सच्चे देशभक्त थे और यहां तक कि उन्हें अभी भी इस कृत्य के लिए कोई पश्चाताप नहीं हुआ था। यह सब बोलने की आज़ादी और "सिक्के के दोनों पहलू को देखने" की आवश्यकता के नाम पर हुआ। फ्रंटलाइन पत्रिका ने जनवरी 1994 में उनके विचारों का समर्थन किए बिना उनके साथ एक साक्षात्कार किया था। इसका अंश नीचे दिया गया है।

अदालत के समक्ष गोडसे के लंबे बयान वाली माफी को प्रकाशित किया गया था और एक पुस्तिका के रूप में व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था। मुंबई में एक नाटक, मैं नाथूराम बोल रहा हूं, का मंचन किया गया। यहां तक कि एक फिल्म भी थी। वे सारी घटनाएं अनायास सफल नहीं हो सकती थीं। देश भर में इसका आयोजन किया गया और मंचन किया गया। यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि किसने यह सब किया। और गांधीजी की वास्तविक स्मृति लुप्त होती गई।

इस ज़ोरदार प्रचार ने उन दिनों जानकारी के बिना भी आम लोगों पर अच्छा प्रभाव डाला होगा जब गांधीजी की हत्या की खबर से पूरा देश स्तब्ध था।

प्रज्ञा साधारण मासूम जनता से नहीं बल्कि इसे प्रचार करने वालों की चुनिंदा दलों से संबंधित दिखाई देती है। या गुजरते समय में वह उस दल में शामिल हुए हों।

इसलिए हम अपनी भावना नहीं दिखा सकते हैं जब एनडीटीवी जैसे चैनल पर भी हम कुछ लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं "जब गोडसे को देशभक्त कहा जाता है"। अगर इन लोगों ने 1950 या 1951 में भी सार्वजनिक रूप से इस तरह का बयान दिया होता तो वे गुस्साए भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिए जाते।

वास्तव में इसका क्या मतलब है जब यह कहा जाता है कि "नाथूराम एक देशभक्त थे?" इस बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि नाथूराम ने जो कुछ कहा वह आत्मरक्षा में कहा और गांधीजी के ख़िलाफ़ उनका तर्क "व्यक्तिगत" नहीं था। उनके पास गांधीजी के सीधे संपर्क या संघर्ष में आने का कोई अवसर नहीं था। लेकिन वह उन हलकों में गए जहां गांधीजी के ख़िलाफ़ नफरत सामान्य और गहरा था।

उनके जैसे व्यक्ति के लिए ये विचारधारा व्यक्तिगत बन गया। और यह विचारधारा उस समय गांधीजी की हर बात पर नफरत फैलाने वाली थी। 1946 से 1948 के वर्षों में स्वतंत्र भारत के भविष्य के क्षेत्र को लेकर उग्र बहस की हवा को भड़काया गया था। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा दोनों ने दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया। जबकि मुस्लिम लीग के लिए यह असमान रूप से सांप्रदायिक तर्ज पर देश का विभाजन था, हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने स्पष्ट रूप से अविभाजित भारत को बनाए रखने की मांग की थी। मुसलमानों के लिए उनका विचार यह था कि “विदेशी” के तौर पर वे भारत में दूसरे दर्जे के नागरिकों के रूप में बने रहेंगे।

वर्ष 1965 में प्रकाशित आरएसएस के दूसरे प्रमुख एमएस गोलवलकर की पुस्तक 'बंच ऑफ थॉट्स' ने इस दृष्टिकोण को पर्याप्त रूप से कायम रखा कि मुस्लिमों को या तो भारतीयकरण होना चाहिए या विदेशी के तौर पर स्वीकार करना चाहिए।

यहां तक कि कांग्रेस को विचलित किया गया और विभाजनकारी दंगों की क्रूरता और पैमाने से विभाजित किया गया। इस तरह की विपरीत परिस्थितियों से इस नेतृत्व को हवा दी गई और विभाजन की ओर बढ़ा। गांधीजी अकेले स्वतंत्र भारत के ऐसे विभाजनकारी सांप्रदायिक विचारों के ख़िलाफ़ चट्टान की तरह खड़े थें। वह न केवल पूर्वी पाकिस्तान के नोआखली में असहाय हिन्दुओं के मुस्लिम नरसंहार को रोकने के लिए गए थें बल्कि यह सोचते थें कि दिल्ली में मुसलमानों का बड़े पैमाने पर कत्लेआम को रोकना और हिंदू चरमपंथियों व बदला लेने वाले लोगों से मुसलमानों की रक्षा करना उनका कर्तव्य था।

गांधीजी के ऐतिहासिक उपवास ने अंततः दंगे वाले क्षेत्र में शांति बहाल की और यहां तक कि आरएसएस को लिखित रुप से यह देने मजबूर कर दिया कि वह खुद मुसलमानों की रक्षा करेगा। भगवा समूहों के ज़ेहन में हिंदुओं के साथ विश्वासघात करने के जघन्य कृत्य के रूप में उनके द्वारा किए गए इस नेक काम ने उनके ख़िलाफ़ घृणा पैदा करना जारी रखा।

क्या इसे "देशभक्ति" कहा जा सकता है? इसका अब कोई मतलब नहीं है। न ही यह दलील दी जा सकती है कि देशभक्ति सभी आकार, प्रकार, क्षेत्र और रंगों में आए। किसी व्यक्ति को इन सवालों का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है: यह "देश" किसका है? क्या यह गांधी का भारत है या गोडसे का? हमारा संविधान, जब तक यह कमतर नहीं है, पूरे भारत में इसको स्वीकारा जाता है क्योंकि गांधीजी ने इसकी कल्पना की थी। और हम इसके लिए हमेशा उनके ऋणी हैं।

लेखक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के टिप्पणीकार और साहित्यिक आलोचक है। लेख में व्यक्त विचार निजी है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Pragya Thakur’s Idea of India Pits Gandhi Against Godse

Gandhi’s India
Godse
Hindu Mahasabha and the RSS
Constitution and communalism

Related Stories

'गोडसे के वारिसों ने चलाई गोली, अमित शाह जवाब दो'

प्रज्ञा, संदीप और शाह की बातों का मतलब!

दक्षिणपंथी हत्यारों को अपना आदर्श बनाते हैं !

गोडसे के भक्त अब गाँधी की शरण में !

डीयू में रातों-रात सावरकर और रविदास मंदिर ध्वंस!

दक्षिणपंथ क्यों नहीं मानता गोड्से को आतंकी?

गोडसे था आज़ाद भारत का पहला उग्रवादी : कमल हासन

गांधीजी से कितना डरती है हिन्दुत्वादी टोली, हत्यारों के वारिस आज भी गांधीजी के 'वध' का जशन मना रहे


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License