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भारत
राजनीति
बैंक और बीमा उद्योग के निजीकरण के ख़िलाफ़ कर्मचारियों का हड़ताल का ऐलान
बैंक कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियनों ने जीआईसी और एलआईसी के साथ मिलकर 15-16 मार्च को दो दिन की बैंक हड़ताल और 17 मार्च और 18 मार्च को बीमा उद्योग में एक-एक दिन की हड़ताल का आह्वान किया है।
रौनक छाबड़ा
08 Mar 2021
Translated by महेश कुमार
बैंक और बीमा उद्योग के निजीकरण के ख़िलाफ़ कर्मचारियों का हड़ताल का ऐलान

नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और एक जनरल बीमा कंपनी के निजीकरण और हुकुमत के स्वामित्व वाली सबसे बड़ी जीवन बीमा निगम कंपनी को निवेश के लिए आंशिक सूची में डालने के निर्णय को वापस लेने की कोई गुंजाइश नज़र न आने पर इन वित्त कंपनियों के कर्मचारियों ने अखिल भारतीय हड़ताल की तैयारी शुरू कर दी है जिसे महीने के अंत में अंजाम दिया जाएगा। 

इन कंपनियों के कर्मचारियों और बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार पर “खराब-मकसद” से “आम लोगों की कीमत पर कॉर्पोरेट समूहों को लाभ पहुंचाने के लिए लूट की छुट” देने का आरोप लगाया है। 

पिछले महीने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए 1.75 लाख करोड़ रुपये विनिवेश के माध्यम से उगाही का लक्ष्य रखा है- जिसमें विनिवेश से 75,000 करोड़ रुपये और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के शेयर की बिक्री से 1,00,000 करोड़ रुपये उगाए जाने की घोषणा की गई थी। वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की प्रारंभिक सार्वजनिक निवेश खोलने की पेशकश 2021-22 में पूरी हो जाएगी।

बैंक कर्मचारियों तथा जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (जीआईसी) और एलआईसी का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियनों ने सरकार के निर्णय की कड़ी आलोचन की है, इसके खिलाफ सभी बैंक यूनियनों ने 15 और 16 मार्च को दो दिवसीय हड़ताल और 17 मार्च को जीआईसी और 18 मार्च एलआईसी ने एक दिन की हड़ताल का आह्वान किया है। 

 “बैंक कर्मचारी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के निर्णय के साथ सरकार को आगे नहीं बढ़ने देंगे। यह एक ऐसा कदम है जिसका उद्देश्य आम लोगों की कीमत पर कॉरपोरेट समूहों को लाभ पहुंचाना है। उक्त बातें सौमया दत्ता, महासचिव, आल इंडिया बैंक ओफिसर्स कनफेडरेशन ने कही।   

एआईबीओसी यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) का एक धड़ा है जो नौ बैंक यूनियनों के संयुक्त मोर्चा से बना है, और जिसने हड़ताल का आह्वान किया है।

शनिवार को न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, दत्ता ने कहा कि बैंक यूनियनें मोदी सरकार देश द्वारा बैंकिंग क्षेत्र को "राष्ट्रीयकरण से पूर्व" के चरण में ले जाने के खिलाफ अपना प्रतिरोध पहले ही दर्ज़ कर चुकी हैं, क्योंकि निजीकरण “गलत इरादे” से किया रहा है। उन्होंने कहा कि इस बार रणनीति में बदलाव हुआ है।

देश के सबसे बड़े निजी बैंकों में से चौदह बैंकों का 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीयकरण कर दिया था- तब उनके पास वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी था- इस निर्णय के तहत अधिकांश बैंकिंग परिसंपत्तियाँ हुकूमत के नियंत्रण में आ गईं थी।

उन्होंने कहा, "यूनियनें अन्य वित्तीय कंपनियों के साथ-साथ सेल्फ-हेल्प-ग्रुप (एसएचजी) और बड़े पैमाने पर आम जनता से संपर्क साधने का प्रयास कर रही है जो कि बैंकों में प्रमुख हितधारक हैं।"

दत्ता ने कहा कि जन-संपर्क का उद्देश्य सबको यह संदेश देना है कि सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण से केवल कर्मचारी ही नहीं बल्कि आम लोग और उनमें पैसा जमा करने वाले सभी हितधारक गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। उन्हें डर है कि बैंकों के निजीकरण से "आम लोग बैंक सेवा का फाइदा उठाने से वंचित हो जाएंगे, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बुरी तरह से प्रभावित होंगे।"

इसी तरह की चिंता अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी यूनियन (एआईआईईए) के उपाध्यक्ष ए.के. भटनागर ने जताई और कहा कि केंद्र सरकार की "वैचारिक प्रतिबद्धता" नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर रही है।

“एक लाख से अधिक जीवन बीमा कर्मचारी- जो कर्मचारियों के चार वर्ग समूहों से संबंधित हैं- एक दिन के लिए हड़ताल पर जाएंगे; जीआईसी के कर्मचारी भी देश भर में हड़ताल को सफल बनाने की तैयारी कर रहे हैं, "भटनागर ने कहा, कि संदेश बहुत साफ है" न केवल कर्मचारी बल्कि पॉलिसी धारक भी आईपीओ के कारण पीड़ित होंगे।"

भटनागर ने कहा कि बीमा कर्मचारी हड़ताल के समर्थन में अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लिखित ज्ञापन के साथ संसद सदस्यों और विधायकों के पास उनका समर्थन हासिल करने के लिए जाएंगे। यह "विरोध केवल इस हड़ताल के साथ समाप्त नहीं होगा। हम भविष्य में संयुक्त कार्रवाई कार्यक्रम का आह्वान करने के लिए बैंक यूनियनों के साथ बातचीत कर रहे हैं।

दत्ता ने इस बात की भी पुष्टि की कि भविष्य में "सामूहिक कार्रवाई" योजना को अंजाम देने के लिए रक्षा उद्योग और रेलवे सहित अन्य क्षेत्रों की सक्रिय कर्मचारी यूनियनों से भी बातचीत चल रही है। 

केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की योजना के खिलाफ कर्मचारी यूनियनों की हड़ताल की पृष्ठभूमि में चर्चा करने के लिए 4 मार्च को बैठक करने का बुलावा दिया था।  दत्ता ने न्यूजक्लिक को बताया कि, "हम सब ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि जब तक वित्त मंत्री खुद सार्वजनिक रूप से सामने आकर बैंकों के निजीकरण के फैसले को वापस नहीं लेती हैं, हड़ताल को स्थगित नहीं किया जाएगा।"

यूनियनों और केंद्र सरकार के बीच 9 मार्च को बातचीत का एक और दौर होना तय पाया गया  है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

‘Privatisation to Hurt General Public the Most’: Finance Employees Prepare for Strike

Bank
LIC
GIC
United forum of bank unions
All India Insurance Employees Association
Privatisation
disinvestment
Narendra modi
Nirmala Sitharaman

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