NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
भारत में चिकित्सा का निजीकरण कैसे कोविड-19 से हो रही मौतों में बढ़ोत्तरी का कारण बन रहा
स्वास्थ्य सेवाएं इस कोविड काल में अपनी मुनाफाखोरी में मशगूल हैं।
योगेश जैन
26 Nov 2020
कोरोना वायरस

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर होने वाले खर्चों में आसमान छूती वृद्धि हर साल 5.5 करोड़ से अधिक भारतीयों को गरीबी के दलदल में धकेलने का काम करती आ रही है। कोविड-19 ने अगहन सिंह जैसे परिवारों की स्थिति को सिर्फ और भी अधिक बदतर बनाने में ही अपना योगदान दिया है।

अपनी बीमार माँ के लिए सबसे बेहतर इलाज को सुनिश्चित करने के इरादे से छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में एक स्वरोजगार में लगे मोटर मैकेनिक, सिंह ने फैसला किया कि वह उन्हें पास के ही एक मशहूर निजी हस्पताल में इलाज के लिए ले जायेगा। उसकी माँ 7 जुलाई से बुखार से पीड़ित चल रही थी और 9 जुलाई से उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी थी। सिंह उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचा और जब वे आपातकालीन विभाग में करीब 8 बजे रात के आसपास पहुंचे, तो उनका ऑक्सीजन लेवल खतरनाक स्तर तक नीचे आ चुका था। अस्पताल ने कोविड-19 को देखते हुए कई टेस्टिंग कराने के आदेश दे डाले और झटपट उन्हें इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती कर ऑक्सीजन और दवाओं की डोज देनी शुरू कर दी थी।

अपनी माँ को अस्पताल में भर्ती कराने के आठ घंटों के भीतर ही सिंह को 34,000 रुपये (455 डॉलर) जमा कराने पड़ गए थे, और अगले चार दिनों में एक बार फिर से उसे 1.96,000 रुपयों (2,627 डॉलर) का बंदोबस्त करना पड़ा। माँ के इलाज के लिए सिंह को अपने पैतृक गाँव की स्वामित्व वाली ढाई एकड़ जमीन को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा था, लेकिन इन सारी कोशिशों के बावजूद उसकी माँ की हालत बिगड़ती ही चली गई और 16 जुलाई के दिन आख़िरकार उनकी मृत्यु हो गई। जहाँ एक तरफ वह अपनी प्यारी माँ को खो देने के गम में डूबा हुआ था वहीँ दूसरी तरफ उसे इस बात की चिंता खाए जा रही थी कि अगले महीने से उसका परिवार किस प्रकार से अपनी गुजर-बसर कर पायेगा, क्योंकि उसके पास जो भी संसाधन उपलब्ध थे, उनमें से अधिकांश तो माँ के इलाज में ही खत्म हो चुके थे।

छत्तीसगढ़ राज्य में ही धनोखर गाँव की 60 वर्षीया सावनी बाई में जब कोविड-19 के हल्के लक्षण नजर आने लगे थे तो उन्होंने राज्य हेल्पलाइन पर एक डॉक्टर से इस सम्बंध में बातकर सलाह ली, जिसने उन्हें अस्पताल में जाने की सलाह दी थी। चूँकि सभी सरकारी अस्पतालों में बेड पहले से ही भरे हुए थे, ऐसे में उन्हें भी बिलासपुर के उसी प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था, जहाँ सिंह की माँ को भर्ती कराया गया था। यहाँ पर उन्हें जनरल कोविड वार्ड में भर्ती कराया गया था। 10 दिनों तक अस्पताल में भर्ती कराये जाने के दौरान उन्हें एसिटामिनोफेन दिया जाता रहा, और यह सुनिश्चित करने के लिए उन्हें नियमित निगरानी के तहत अस्पताल में ही रखा गया कि कहीं उनकी तबियत बिगड़ न जाए। इस प्राथमिक स्तर के उपचार के लिए उन्हें 85,000 रुपये (1,137 डॉलर) तक खर्च करने पड़े, और अस्पताल के इन खर्चों की भरपाई के लिए उन्हें अपने एक एकड़ खेत को गिरवी रखना पड़ा था।

सिंह का कहना था “मैं अपनी माँ को घर के पास के एक निजी अस्पताल में ले गया था क्योंकि यहाँ पर साफ़-सफाई बेहतर है और दिन-भर मरीजों को बिना कोई देरी किये भर्ती कर लिया जाता है। सरकारी अस्पतालों में अपर्याप्त वित्त पोषण एवं गुणवत्ता पर नियंत्रण के अभाव के चलते भारत में भारी संख्या में लोग बहिरंग विभाग और कुछ हद तक इनपेशेंट सेवाओं के लिए निजी अस्पतालों की शरण में जाने के लिए मजबूर हैं। इसे एक क्रूर मजाक ही कहा जाना चाहिए कि लोगों के निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए जाने को उनकी मजबूरी के बजाय ‘विकल्प’ के तौर पर देखा जाता है।

भारत जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद कोरोनावायरस संक्रमण के मामलो में “दूसरा सबसे बुरी तरह से प्रभावित देश” है, वह अपनी बेहद खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है। इस देश ने मार्च में दुनियाभर के सबसे क्रूर लॉकडाउन को झेला था, जिसके चलते लोगों में भय का माहौल व्याप्त हो गया था। यही वजह थी कि कई निजी अस्पतालों ने अपना काम-काज बंद कर दिया था और लॉकडाउन की अवधि के दौरान मरीजों का इलाज पूरी तरह से बंद कर दिया था।

“मैं 59 साल का हूँ और  पिछले 10 सालों से डायबीटीज और हाइपरटेंशन] से पीड़ित होने के कारण [दवाईयों के भरोसे] हूँ। मैं भला कैसे कोविड का खतरा अपने उपर मोल ले सकता था? इसलिए जब [भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी] ने लॉकडाउन की घोषणा की तो मैंने अपने अस्पताल को पूरी तरह से ताला जड़ दिया था” यह कहना है डॉक्टर अजय चंद्राकर का, जो उसी अस्पताल के मालिक हैं, जिसमें सिंह अपनी माँ को लेकर आये थे।

इसके परिणामस्वरूप महामारी के चलते लगाये गए लॉकडाउन के दौरान भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करने के लिए अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के भरोसे ही देश को निर्भर रहना पड़ा था। वहीँ दूसरी तरफ जिन निजी अस्पतालों ने नागरिकों को बीच मझधार में ही छोड़ दिया था उन्हें भारत की राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारों ने बिना कोई सवाल पूछे और सजा दिए ही छोड़ दिया था।

जबकि वास्तव में देखें तो सार्वजनिक प्रणालियों के लिए देश के भीतर प्रमुख स्वास्थ्य सेवाओं के प्रदाताओं के तौर पर एक बार फिर से अपनी सही जगह को हासिल करने का यह एक सुनहरा मौका था। लेकिन सार्वजनिक प्रणाली इस कार्यभार को लेने के लिए तैयार नहीं थे। केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से इस महामारी के दौरान देश में इलाज मुहैय्या कराने और मरीजों की बढती संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता में इजाफा करने को लेकर शायद ही किसी बढ़ी हुई वित्तीय धनराशि का इंतजाम किया गया था।

इसके बजाय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से प्राप्त आंकड़ों को इस्तेमाल में लाते हुए मिंट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि “महामारी के दौरान मार्च में भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में एक चिंताजनक व्यवधान देखने को मिला, क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने अपना सारा ध्यान कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने पर ही लगा रखा था।”

बिलासपुर के जिला अस्पताल के डॉ. गजानन फुटके अफ़सोस जताते हुए कहते हैं “मैं इस बात को लेकर चिंतित हूँ कि अगस्त माह में मेरे 50 प्रतिशत से अधिक तपेदिक के मरीज अपनी दवा की रिफिलिंग के लिए नहीं लौटे हैं, और मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि वे जिन्दा भी हैं या नहीं... । हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में टीकाकरण की दर में भी 50 प्रतिशत तक की गिरावट आ चुकी है।”

निजी सेवा प्रदाताओं ने भी इस बीच मरीजों से मनमाने दाम वसूलकर भारी मुनाफा बटोरने पर ध्यान केन्द्रित कर रखा है- और राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारें उन्हें ऐसा करने से नहीं रोक रही हैं। ज़ेवियर मिंज जिनका बिलासपुर में निजी लैब का सबसे बड़ा काम है, के अनुसार “यही वह समय है जिसमें मैं अपने नुकसान की भरपाई कर सकता हूँ, जो नुकसान मुझे [मार्च में लॉकडाउन के दौरान] ज्यादातर अस्पतालों के बंद रहने के कारण उठाना पड़ा था। मुझे कोविड रियल-टाइम पीसीआर लैब [टेस्ट] करने की अनुमति मिली हुई है और मैं एक परीक्षण में आने वाली 1,100 रुपये (14डॉलर) की लागत के बदले में 3,800 रुपये (51 डॉलर) वसूल सकता हूँ।”

इन निजी स्वास्थ्य व्यवस्था प्रदाताओं को उनका मुख्य मुनाफा मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने और खासतौर पर इंटेंसिव केयर में रखने पर हासिल होता है। उनका यह मुनाफा, मरीजों के लिए भयावह स्वास्थ्य खर्चों में तब्दील हो जाता है। प्राइवेट अस्पताल मुनाफाखोरी के लिए उन्हीं हथकण्डों को अपना रहे हैं, जिन्हें वे कोरोनावायरस महामारी से पहले से अपना रहे थे - दैनिक बिस्तर शुल्क एवं इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में रोगियों को भर्ती कर बड़े पैमाने पर बिलों को बढ़ाने के जरिये।

पिछले 30 वर्षों से भारत में स्वास्थ्य सेवा सहित विभिन्न सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में निजीकरण को सक्रिय तौर पर बढ़ावा दिया जा रहा है। इनमें से प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल सबसे आम हो गया है, जिसमें निजी प्रणालियों के हाथ में उन जिम्मेदारियों को सौंपा जा रहा है जिन्हें कल तक सार्वजनिक अस्पतालों द्वारा सम्पन्न किया जाता था, जबकि ऐसे अभियानों के खर्चों को राज्य द्वारा वहन किया जा रहा है। भारत में सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले चिकित्सकों को अपने रोजगार के स्थान से बाहर जाकर निजी तौर पर मुफ्त में मरीजों के इलाज करने की छूट हासिल है।

“मैं अपनी माँ को एक निजी अस्पताल में ले गया जिसके मालिक डॉ. चंद्राकर हैं, जो मेरे शहर के सबसे बेहतरीन डॉक्टर माने जाते हैं। उन्होंने पिछले 25 सालों तक धरम अस्पताल [सरकारी अस्पतालों को यहाँ धरम कहा जाता है, जिसका अर्थ धार्मिक या नैतिक हुआ] में रहकर काम किया है।” सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों के लिए पीपीपी मॉडल अक्सर एक आकर्षण का कारण बनता है, जिससे कि वे सरकारी माध्यमों से स्वास्थ्य सेवाओं की अपनी प्राथमिक प्रतिबद्धता से समझौता करने लगते हैं। अब इस महामारी के दौर में जब डॉक्टरों और नर्सों का अकाल चारों तरफ बना हुआ है, इसके बावजूद राज्यों ने अपने कर्मचारियों को निजी तौर पर प्रैक्टिस करने की अनुमति देकर इस जटिल समस्या को और भी बदतर बनाने में मदद ही पहुँचाने का काम किया है।

कोविड से उबरकर वापस अपने घर लौट कर आई सावनी बाई अपने खेतों में काम पर जाते हुए खुद को कोसती हैं, जिसे उन्हें अपने इलाज के लिए गिरवी रखना पड़ा था। वे सोचती रहती हैं कि काश क्यों उन्होंने ठसाठस भरे हुए सरकारी अस्पताल में अपने लिए भी जगह दिए जाने की मांग नहीं की, जब उन्हें इसकी जरूरत आन पड़ी थी। वहीँ अगहन सिंह अपने अंधकारमय भविष्य के साथ किसी तरह समझौता करते हुए, इस सबके लिए सिर्फ अपने कर्मों को दोषी ठहराते हैं।
 
इस लेख को ग्लोबट्राटर द्वारा निर्मित किया गया था। योगेश जैन मध्य भारत में एक चिकित्सक एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के तौर पर कार्यरत हैं। जैन ग्लोबट्राटर/पीपल्स डिस्पैच से जुड़े साथी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

How the Privatization of Medicine in India Is Accelerating Its COVID-19 Death Toll

COVID-19
Coronavirus
COVID in India
COVID Deaths in India

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    18 May 2022
    ज़िला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए स्वीकृत पद 1872 हैं, जिनमें 1204 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं, जबकि 668 पद खाली हैं। अनुमंडल अस्पतालों में 1595 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 547 ही पदस्थापित हैं, जबकि 1048…
  • heat
    मोहम्मद इमरान खान
    लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार
    18 May 2022
    उत्तर भारत के कई-कई शहरों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चढ़ने के दो दिन बाद, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ रही प्रचंड गर्मी की मार से आम लोगों के बचाव के लिए सरकार पर जोर दे रहे हैं।
  • hardik
    रवि शंकर दुबे
    हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?
    18 May 2022
    गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। हार्दिक पटेल ने पार्टी पर तमाम आरोप मढ़ते हुए इस्तीफा दे दिया है।
  • masjid
    अजय कुमार
    समझिये पूजा स्थल अधिनियम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां
    18 May 2022
    पूजा स्थल अधिनयम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां तब खुलकर सामने आती हैं जब इसके ख़िलाफ़ दायर की गयी याचिका से जुड़े सवालों का भी इस क़ानून के आधार पर जवाब दिया जाता है।  
  • PROTEST
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा
    18 May 2022
    पंजाब के किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन राज्य की राजधानी जाने से रोके जाने के बाद वे मंगलवार से ही चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठ गए हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License