NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
समझिये पूजा स्थल अधिनियम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां
पूजा स्थल अधिनयम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां तब खुलकर सामने आती हैं जब इसके ख़िलाफ़ दायर की गयी याचिका से जुड़े सवालों का भी इस क़ानून के आधार पर जवाब दिया जाता है।  
अजय कुमार
18 May 2022
masjid

6 दिसंबर सन् 1992 को जब बाबरी मस्जिद गिराई जा रही थी, उस वक्त एक नारा लग रहा था कि 'अभी तो बस यह झांकी है, मथुरा काशी बाकी है'। इस नारे की गूंज समय की कोख में बंद हो सकती थी। मगर इसके लिए शर्त यह थी कि शांति बनाने का रास्ता न्याय से होकर गुजरता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तकरीबन 100 साल से अधिक की लड़ाई लड़ने के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विवादित ढांचे पर अपना फैसला सुनाया तो तर्क की बजाए आस्था को ज्यादा तवज्जो मिला। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बहुत सारी तार्किक बातें लिखी लेकिन फैसला सुनाया कि मस्जिद की जगह पर मंदिर का निर्माण होगा।

इस फैसले पर कई जानकारों ने यह कहते हुए संतोष जताया कि इस फैसले से सबसे अच्छी बात यह हुई की एक गैर जरूरी भावनात्मक मुद्दा हमेशा के लिए बंद हो गया। लेकिन वहीं पर कई जानकारों ने यह भी कहा कि शांति की स्थापना बिना न्याय के नहीं होती है। इस फैसले के बाद वह नारा ' अभी तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है फिर से जीवंत होकर गूंजने लगा है।

आज की वास्तविक परेशानियों को मुद्दा बनाने की बजाए मुद्दा यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा कुछ भी मिलता है तो इस पर हिंदुओं का अधिकार होगा। मस्जिद की मिल्कियत बदल दी जाएगी।

पूजा या उपासना स्थल अधिनियम 1991 { Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991} इन्हीं सब गैर जरूरी मुद्दों को रोकने के लिए पहले से ही कानून की किताब में लिखा हुआ है। लेकिन इस अधिनियम के होने के बावजूद यह मामला निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। यही अफसोस की बात की है। सुप्रीम कोर्ट आने वाले दिनों में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जो फैसला सुनाएगी वह पता चल जाएगा। लेकिन उससे पहले एक सजग नागरिक होने के नाते हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 क्या है? क्यों इसके रहते ज्ञानवापी मस्जिद या किसी भी धार्मिक स्थल से जुड़े मिल्कियत का मामला विवाद का विषय नहीं बनना चाहिए था?

साल 1990 के दौरान राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। आलम यह था कि इसी दौरान राम मंदिर को लेकर हिंसा की घटनाएं भी घट रही थीं। उस समय भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष दो नेताओं में से एक लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा भी निकल रही थी। पूरा देश भावुक तौर पर आस्था की गिरफ्त में होता जा रहा था जिसमें दूसरे समुदाय के लोग और उनके धार्मिक स्थल दुश्मन के तौर पर नज़र आ रहे थे। इस माहौल में सभी धार्मिक मान्यता के लोगों की आस्था को सुरक्षित रखने के लिए साल 1991 में पी वी नरसिम्हा राव की सरकार पूजा स्थल अधिनियम { Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991 } लेकर आई।

इस कानून की प्रस्तावना, धारा दो, धारा तीन और धारा चार को मिलाकर पढ़ा जाए तो यह कानून कहता नहीं बल्कि इस कानून की भाषा है कि ऐलान करता है कि 15 अगस्त साल 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म के पूजा स्थलों की प्रकृति बदलकर किसी भी आधार पर उन्हें दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जाएगा। अगर ऐसा किया जाता है तो ऐसा करने वालों को एक से लेकर तीन साल तक की सजा हो सकती है। पूजा स्थल में मंदिर, मस्जिद, मठ, चर्च, गुरुद्वारा सभी तरह के पूजा स्थल शामिल हैं। अगर मामला साल 1947 के बाद का है तो उस पर इस कानून के तहत सुनवाई होगी। इस कानून के बनते वक्त बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि का मामला भी चल रहा था। इसलिए अयोध्या से जुड़े विवाद को इस कानून से अलग रखा गया।

यह कानून कुछ मामलों में नहीं लागू होता है। यह कानून उन प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों पर लागू नहीं होगा जो अन्सिएंट मोन्यूमेंट एंड आर्कियोलॉजिकल साइट अधिनियम 1958 के अंदर आते हैं। उन मामलों पर भी लागू नहीं होता है जिन मामलों के मिल्कियत से जुड़े दावों को साल 1991 से पहले सुलटा दिया गया है।  

भाजपा से जुड़े वकील अश्वनी उपाध्याय ने पिछले साल इस कानून को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई में दो जजों की बेंच ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। इस याचिका से जुड़े सवालों का जवाब दे दिया जाए तो इस कानून को और अच्छी तरह से समझा जा सकता है।  

याचिकाकर्ता का कहना है कि ये कानून देश के नागरिकों में भेदभाव करता है और मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।

याचिका में इस कानून की धारा दो, तीन, चार को रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि ये धाराएं 1192 से लेकर 1947 के दौरान आक्रांताओं द्वारा गैरकानूनी रूप से स्थापित किए गए पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता देते हैं।  इस कानून में साल 1947 का समय मनमाने तौर पर चुन लिया गया है। इसका कोई आधार नहीं है कि क्यों साल 1947 के पहले अस्तित्व में आए किसी भी तरह के पूजा स्थल को फिर से दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता?

याचिका में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है। उनके जिन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा, उसे वापस पाने के उनके कानूनी रास्ते को भी बंद करता है।

कानून के प्रावधानों को साथ में रखकर अगर एक तार्किक निगाह से देखा जाए तो साफ दिखेगा कि अश्वनी उपाध्याय की याचिका में कई तरह का झोल है? 15 अगस्त साल 1947 को देश आजाद हुआ। इस दिन के बाद भारत अपनी परतंत्रता खत्म कर एक स्वतंत्र मुल्क बना। स्वशासन लोकतंत्र और संविधान की राह पर आगे बढ़ चला। इसके बाद भारत ने जो कुछ भी किया उसकी सारी जिम्मेदारी एक आजाद मुल्क की संप्रभु सरकार को संभालनी पड़ी। भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण दिन को अगर कोई यह कहकर खारिज करने की बात कर रहा है कि पूजा स्थल अधिनियम में 15 अगस्त 1947 के दिन का चुनाव मनमाना है तो इसका साफ मतलब है कि वह सब कुछ जान कर अनजान होने का बहाना रच रहा है।

कानून में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि किसी भी धर्म के पूजा स्थल का जो अस्तित्व 15 अगस्त 1947 के पहले था, वही बाद में भी रहेगा। यानी ऐसा नहीं है कि किसी धर्म के साथ किसी तरह का भेदभाव किया जा रहा है। अगर मस्जिद है तो मस्जिद रहेगी उसे मंदिर में नहीं बदला जाएगा। अगर मंदिर है तो मंदिर रहेगा उसे मस्जिद में नहीं बदला जाएगा। सबके साथ एक ही नियम लागू होगा। ऐसा भी नहीं होगा कि वैष्णव संप्रदाय की मंदिर को शैव संप्रदाय में बदल दिया जाए। सुन्नी मत के मस्जिद को शिया मत की मस्जिद में बदल दिया जाए।

लेकिन बहुसंख्यक हिंदुत्व की राजनीति ने पूरे समाज के इतिहास बोध को इस तरह से रच दिया है जहां पर आम लोगों को यह लगता है कि मस्जिदों का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया है। इसलिए यह भावुक और गलत बात समाज में पसरी हुई है कि हिंदुओं के साथ नाइंसाफी हुई है, हिंदू इसका बदला लेंगे। मस्जिद टूटेंगी और फिर से मंदिर बनेंगे।

एक सिंपल सी बात समझनी चाहिए कि  जिस जमीन पर बैठकर मैं यह लेख लिख रहा हूं और जिस जमीन पर खड़े होकर आप इस लेख को पढ़ेंगे उस जमीन पर आज से छह सौ साल, हजार साल पहले कौन सा ढांचा था, यह पता लगा पाना नामुमकिन के हद तक मुश्किल है। लेकिन फिर भी हम मान लेते हैं कि यह पता लग गया कि जिस जमीन पर बैठकर मैं लिख लिख रहा हूं, वहां पर आज से हजारों साल पहले कृष्ण का मंदिर हुआ करता था या आज से दो सौ साल पहले बहुत महत्वपूर्ण मस्जिद हुआ करती थी, तो क्या इसका मतलब यह है कि मेरे घर को तोड़कर मंदिर या मस्जिद बना दी जाए। ऐसा करना तो बहुत दूर की बात सोचना भी संवैधानिक नैतिकता के हिसाब से बहुत अधिक गलत है। तो पता नहीं संविधान का कौन सा मूल अधिकार कानून के इन प्रावधानों से खारिज हो रहा है।

फिर भी सांप्रदायिक नजरिए के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को उन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को जिन्हें विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा उसे वापस पाने के उनके कानूनी रास्ते को बंद करता है। लोगो के मूल अधिकार की अवहेलना करता है।

इस याचिका में अनुच्छेद 49 का भी जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 49 भारतीय राज्य को धार्मिक स्थलों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौंपता है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि भारतीय राज्य ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की। पलटकर याचिकाकर्ता से पूछना चाहिए कि पूजा स्थल कानून 1991 यही काम करने की जिम्मेदारी लेता है कि किसी भी धर्म के पूजा स्थल के साथ नाइंसाफी नही होगी। यह कानून अनुच्छेद 49 का मकसद ही पूरा करता है। याचिकाकर्ता को केवल यह बात समझनी है कि भारत के इतिहास में 1192, 1526, 1857, जैसी तिथियां महत्वपूर्ण है लेकिन इतनी महत्वपूर्ण नहीं कि इन तिथियों पर साल 1947 का भार लाद दिया जाए। स्वतंत्र भारत को उन सभी कामों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए जो आजादी से पहले राजा महाराजाओं और अंग्रेजों के जमाने में हुए थे।

अनुच्छेद 49 के तहत भारतीय सरकार 6 दिसंबर 1992 में हुई घटना के लिए जिम्मेदार है। यहां पर भारतीय सरकार को अपने कर्तव्य की भूमिका निभानी चाहिए थी। इसकी आलोचना की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि के फैसले में इसे स्वीकार भी किया है कि 6 दिसंबर सन 1992 को बहुत बड़ी गलती हुई थी।

इस याचिका के खिलाफ सबसे बड़ा जवाब सुप्रीम कोर्ट के बाबरी मस्जिद मामले में दिए गए अंतिम फैसले के कुछ हिस्से हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद के अंतिम फैसले के पन्ने में यह भी लिखा था कि पूजा स्थल अधिनियम भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता का अभिन्न अंग है। राज्य की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार बरते। पूजा स्थल अधिनियम यह पुष्टि करता है कि राज्य भारतीय संविधान के आधारभूत ढांचे में शामिल धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

पूजा स्थल अधिनियम का एक मकसद है। ऐतिहासिक गलतियों को नहीं सुधारा जा सकता है। लोगों को अपने हाथ में कानून लेकर ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की इजाजत नहीं है। इतिहास और बीते हुए कल की गलतियों को आधार बनाकर वर्तमान और भविष्य की चिंताओं से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। यह संविधान का मूल दर्शन है। धर्मनिरपेक्षता का मूल है।

कानूनी मामलों के जानकारों का कहना है कि किसी एक समुदाय के लिए नहीं बल्कि सभी समुदायों के लिए इतिहास बहुत दर्दनाक रहा है। बीते हुए कल के नशे में डूब कर बहुत कुछ बर्बाद होता रहा है। लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की जा सकती है कि वह इतनी जल्दी अपने फैसलों से नहीं पलटेगा।

Places of worship Act 1991
Gyanvapi Masjid
provision of worship act
mandir- masjid debate

Related Stories

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक


बाकी खबरें

  • Modi
    अनिल जैन
    PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?
    01 Jun 2022
    प्रधानमंत्री ने तमाम विपक्षी दलों को अपने, अपनी पार्टी और देश के दुश्मन के तौर पर प्रचारित किया और उन्हें खत्म करने का खुला ऐलान किया है। वे हर जगह डबल इंजन की सरकार का ऐसा प्रचार करते हैं, जैसे…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    महाराष्ट्र में एक बार फिर कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। महाराष्ट्र में आज तीन महीने बाद कोरोना के 700 से ज्यादा 711 नए मामले दर्ज़ किए गए हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    चीन अपने स्पेस स्टेशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना बना रहा है
    01 Jun 2022
    अप्रैल 2021 में पहला मिशन भेजे जाने के बाद, यह तीसरा मिशन होगा।
  • अब्दुल अलीम जाफ़री
    यूपी : मेरठ के 186 स्वास्थ्य कर्मचारियों की बिना नोटिस के छंटनी, दी व्यापक विरोध की चेतावनी
    01 Jun 2022
    प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बिना नोटिस के उन्हें निकाले जाने पर सरकार की निंदा की है।
  • EU
    पीपल्स डिस्पैच
    रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ
    01 Jun 2022
    ये प्रतिबंध जल्द ही उस दो-तिहाई रूसी कच्चे तेल के आयात को प्रभावित करेंगे, जो समुद्र के रास्ते ले जाये जाते हैं। हंगरी के विरोध के बाद, जो बाक़ी बचे एक तिहाई भाग ड्रुज़बा पाइपलाइन से आपूर्ति की जाती…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License