NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
काकेशस में ख़ूनी संघर्ष ख़त्म करने के लिए पुतिन ने तय कीं शर्तें
अर्मेनिया, अज़रबैजान और रूस का नागोर्नो-काराबाख पर 10 नवंबर को जारी किया गया संयुक्त वक्तव्य क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिये से बड़ा घटनाक्रम है।
एम. के. भद्रकुमार
14 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
पुतिन

अर्मेनिया, अज़रबैजान और रूस का नागोर्नो-काराबाख पर 10 नवंबर को जारी किया गया संयुक्त वक्तव्य क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिए से बड़ा घटनाक्रम है। राजनीतिक तरीके से प्रेरित एक नृजातीय संघर्ष को खत्म करने के लिए फिर से क्षेत्रीय सीमाओं को खींचने का साहस भरा काम किया जा रहा है।

इस समझौते को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा मान्यता प्राप्त है। पुतिन द्वारा अलग से जारी किया गया वक्तव्य इस बात की पुष्टि करता है। मोटे तौर पर, समझौते के तहत अज़रबैजान नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र पर कब्ज़ा बरकरार रखेगा। अज़रबैजान ने सात दिन के संघर्ष में इस क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल किया था। आर्मीनिया ने भी आसपास के कुछ इलाकों से अगले कुछ हफ़्तों में हटने पर सहमति जताई है। नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को अब छोटा कर दिया गया है। रूसी शांति वार्ताकारों ने अब संचार प्रभार ले लिया है।

यह समझौता अज़रबैजान के लिए जीत और आर्मीनिया के लिए हार है। सबसे अहम बात, यह रूस के लिए एक कूटनीतिक सफलता है। रूस अब ट्रांसकाकेशियन क्षेत्र की राजनीति के केंद्र में आ चुका है।

इस संघर्ष में एक अहम पड़ाव तब आया था, जब अज़रबैजान की फौज़ ने रणनीतिक तौर पर अहम, एक पहाड़ी कस्बे शुशा पर 9 नवंबर को कब्ज़ा करने में कामयाबी पाई। शुशा पहाड़ों में छुपा और तीखी खाइयों से घिरा एक प्राकृतिक किला है। यह ऊंचाई पर स्थित है, जहां से नागोर्नो-काराबाख की राजधानी स्टेपनकर्ट (केवल 10 किलोमीटर दूर) दिखाई पड़ती है। इस कस्बे को नागोर्नो-काराबाख के क्षेत्र पर सैन्य कब्ज़ा जमाने के लिए अहम माना जाता है।

कस्बे पर कब्ज़ा करने का मतलब था कि अज़रबैजान ने उस मुख्य सड़क (इसे लाशिन कॉरिडोर कहा जाता है) को काट दिया है, जो आर्मीनिया और नागोर्नो-काराबाख को जोड़ती थी। आर्मीनिया के लिए नागोर्नो-काराबाख में सैन्य साजो-सामान पहुंचाने को पहाड़ी दर्रों के साथ चलने वाला यह टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता बेहद अहम था।

साधारण शब्दों में कहें तो आर्मीनिया में प्रधानमंत्री निकोल पाशियान के युद्धोन्मादी नेतृत्व को समझ आ गया था कि स्टेपनकर्ट को बचाया नहीं जा सकता और उन्होंने तय किया कि बेहतर होगा कि रूस की मदद से युद्धविराम घोषित करवा लिया जाए।

रूस को इस स्थिति के बनने का अंदाजा था। इसकी पुष्टि 7 नवंबर को फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रां से पुतिन की फोन पर हुई बातचीत से होती है, इस बातचीत के बाद पुतिन ने दो बार तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन से भी बात की।

फ्रांस, मिंस्क समूह में रूस और अमेरिका के साथ शामिल है। इस संघर्ष में रूस के हस्तक्षेप को अंतरराष्ट्रीय वैधानिकता मिलना अहम है। वहीं काला सागर क्षेत्र में शक्ति बनने की महत्वकांक्षाएं और अज़रबैजान के साथ गहरे ताल्लुक रखने वाले तुर्की को "संभालना" जरूरी था।

एर्दोगन लगातार काकेशस में तुर्की को शांति के पैरोकार की तरह पेश करते रहे हैं (जिहादी समूहों को एर्दोगन के समर्थन के चलते, मॉस्को शायद ही तुर्की के इस दर्जे को मान्यता दे)। पुतिन द्वारा 10 नवंबर को एर्दोगन को लगाए फोन को बयां करने वाले दस्तावेज़ कहते हैं:

"प्रेसिडेंट एर्दोगन ने कहा है कि तुर्की संघर्षविराम पर नज़र रखने और इससे संबंधित गतिविधियों की निगरानी के लिए, रूस के साथ अज़रबैजान की ज़मीन पर एक साझा केंद्र बनाएगा। आर्मीनियाई कब़्जे से बचाई गई जगह में इस केंद्र की जगह अज़रबैजान ही तय करेगा। इस स्थिति में मौजूदा दौर में रूस के कंधों पर भी बड़ी जिम्मेदारी है।"

लेकिन रूस के दस्तावेज़ो में तुर्की की बात का जिक्र नहीं किया गया। केवल इतना कहा गया कि 9 नवंबर को हुए पूर्ण संघर्ष विराम समझौते और इससे जुड़े "प्रबंधों" के बारे में राष्ट्रपति पुतिन ने एर्दोगन को सूचना दी और "दोनों देश समझौते में बताई गई प्रक्रियाओं को लागू करवाने के लिए एक साथ काम करेंगे।" रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने शांति प्रक्रिया में रूस की तुर्की के साथ किसी भी तरह की साझेदारी से इंकार किया।

10 नवंबर के त्रिपक्षीय समझौते में ईरान की शांति योजना की बहुत सारी चीजें ली गई हैं ( इसके लिए मेरे अंग्रेजी में लिखे ब्लॉग "ईरान हेज़ अ प्लान फॉर नागोर्नो-काराबाख" पर नज़र डालें)। ईरान इस समझौते से उल्लास में है। ईरान के विदेश मंत्री ने समझौते का स्वागत किया और "संघर्षविराम समझौते के उपबंध 3 और 4 के तहत दोनों देशों की 'कांटेक्ट लाइन' पर रूसी संघ के साथ शांति सेना की तैनाती में सहायता का प्रस्ताव दिया।"

अब जब अमेरिका में जो बाइडेन का कार्यकाल आने वाला है, तब रूस को इस विवाद को जल्द खत्म करने और शांति प्रक्रिया का प्रभार लेने की आपात इच्छा थी। मॉस्को का मानना है कि बाइडेन प्रशासन, रूस के "पड़ोस और इससे जुड़े इलाकों" में अमेरिकी सक्रियता बहुत बड़े स्तर पर बढ़ाएगा, जिससे विवाद ज़्यादा जटिल हो सकता था, जिसके बड़े भूराजनीतिक परिणाम होते।

इस बात की ज़्यादा संभावना है कि बाइडेन पूर्व सोवियत संघ के क्षेत्रों में लोकतंत्र को प्रोत्साहन देने के मामले में अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप से ज़्यादा सक्रिय रहेंगे। बाइडेन पूर्वी यूरोप की राजनीति में गहराई तक उलझे हुए हैं। उन्होंने रूस और यूक्रेन के प्रति ओबामा प्रशासन की नीतियों की अगुवाई की थी। लोकतंत्र के मुद्दे पर बाइडेन के नेतृत्व वाले व्हॉइट हॉउस और क्रेमलिन में तीक्ष्ण टकराव वाले संबंध उपजने की संभावना है।

10 नवंबर को शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भी पुतिन ने इस मुद्दे पर चर्चा की थी। पुतिन ने कहा था, "संगठन की गतिविधियों में शामिल देशों के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष विदेशी हस्तक्षेप की बढ़ती संख्या भी हमारी साझा सुरक्षा के सामने खड़ी बड़ी चुनौती है। मैं यहां अखंडता का अंधाधुंध अतिक्रमण, समाज को तोड़ने के प्रयासों, देशों के विकास के रास्तों को बदलने की कोशिशों और कई सदियों में बनीं, मौजूदा राजनीतिक-आर्थिक और मानवीय संबंधों को तोड़ने की कोशिशों की तरफ इशारा कर रहा हूं।"

पुतिन ने आगे कहा, "इस तरह का एक हमला, बाहरी ताकतों ने बेलारूस के खिलाफ़ किया था, जो शंघाई सहयोग संगठन का एक ऑब्ज़र्वर देश है। राष्ट्रपति चुनावों के बाद हमारे बेलारूस के दोस्तों पर अभूतपूर्व दबाव डाला गया और उन्हें प्रतिबंधों, उकसावों से संघर्ष करना पड़ा। उनके खिलाफ़ एक सूचना और प्रोपगेंडा युद्ध छेड़ा गया, इससे भी उन्हें जूझना पड़ा।"

"बाहरी ताकतों को बेलारूस के लोगों पर अपनी मनमर्जी थोपने की कोशिशों को हम असहनीय मानते हैं। उन्हें चीजों को सुलझाने के लिए वक़्त दिया जाना चाहिए और जो भी कदम जरूरी हों, वो उठाने चाहिए। यही चीज हाल में किर्गिस्तान में हुआ और मॉलडोवा में चल रही आंतरिक राजनीतिक लड़ाई में भी यही हो रहा है।"

वाशिंगटन में सत्ता हस्तांतरण में मची उथल-पुथल से रणनीतिक तौर पर बेहद अहम ट्रांसकॉकेशियन क्षेत्र में रूस को मनमाफ़िक कदम उठाने की छूट मिल गई। पिछले सिंतबर से जारी नागोर्नो-काराबाख संकट में मैक्रां ने पुतिन के पश्चिमी वार्ताकार की भूमिका निभाई है।

तुर्की के मामले में, पुतिन ने एर्दोगन को सूचनाएं दीं और उनसे सुझाव लिए। यह चीज तुर्की की क्षेत्रीय ताकत बनने की महत्वकांक्षाएं और क्षेत्रीय सुरक्षा-स्थिरता बनाए रखने के क्रम में रूस के लिए उसके महत्व को बताती है।

क्षेत्रीय मुद्दों पर ईरान का रूस के साथ एका लगातार बढ़ता जा रहा है। आपसी समझ का बढ़ता स्तर उनके संबंधों को लगातार बदल रहा है और उसमें एक रणनीतिक गुण ला रहा है। तेहरान ने मुखरता के साथ नागोर्नो-काराबाख पर पुतिन की योजना का समर्थन किया था।

10 नवंबर को हुआ समझौता कम से कम कुछ वक़्त के लिए तो जारी रहने वाला है। अब सबसे बड़ा काम अज़रबैजानी मूल के उन एक लाख लोगों की वापसी करवाने काम है, जो 1990 के दशक में नागोर्नो-काराबाख के आसपास कब्जे वाले क्षेत्र से विस्थापित हुए थे। साथ ही उन एक लाख आर्मीनियाई लोगों की वापसी भी करवानी होगी, जो मौजूदा संघर्ष के चलते काराबाख क्षेत्र से विस्थापित हो गए हैं।

लेकिन अब यह देखना होगा कि कितने लोग वापस आने के लिए तैयार हैं। फिर विस्थापित अज़रबैज़ानी लोगों की वापसी ठीक तरीके से भी करनी होगी। शुशा को अज़रबैज़ानी संस्कृति का उद्गम स्थल माना जाता है, इस कस्बे को फिर से वापस बसाया जाना बहुत भावनात्मक और राजनीतिक अनुभव होगा।

यह समझौता एक खूनी और विध्वंसक युद्ध का खात्मा करता है, लेकिन इसका विवाद की राजनीति पर कोई असर नहीं है। दूसरी तरफ यह एक सुरक्षा तंत्र और संचार के तरीके तय करता है, जो मैदान पर स्थिति को काबू में रख सकें।

नृजातीय ध्रुवीकरण इस हद तक हो चुका है कि दोनों समुदायों में से कोई भी एक दूसरे को अपनाने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन यह पांच साल का समझौता है, जो पांच साल के लिए और बढ़ाया जाएगा। वक़्त बहुत से घावों पर मरहम लगा देता है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Putin Creates Conditions for Ending Bloodshed in Caucasus

Caucasus
Nagorno-Karabakh
vladimir putin
Armenia-Azerbaijan-Russia
Joe Biden
Turkey

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

नाटो देशों ने यूक्रेन को और हथियारों की आपूर्ति के लिए कसी कमर

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रूस को शीर्ष मानवाधिकार संस्था से निलंबित किया

बुका हमले के बावजूद रशिया-यूक्रेन के बीच समझौते जारी

रूस-यूक्रेन अपडेट:जेलेंस्की के तेवर नरम, बातचीत में ‘विलंब किए बिना’ शांति की बात


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License