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पुतिन का रूस: क्या अर्थव्यवस्था का बुरा दौर शुरू हो गया है?
इस वर्ष रूस की विकास दर मात्र 1 प्रतिशत से थोड़ा ऊपर रहने की उम्मीद है और भविष्य में इसके बेहतर होने की गुंजाइश नहीं दिखती।
एम. के. भद्रकुमार
03 Jan 2020
russia
इस्तीफे की पेशकश करते रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन (दायें) ने तत्कालीन प्रधान मंत्री व्लादिमीर पुतिन (बायें) को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।

जब मैंने 1989 के अंत में दूतावास में अपने दूसरे कार्यकाल को खत्म कर मास्को से विदा ली थी, तो यह बात मेरे जेहन में कभी आई ही नहीं थी कि उस समय मैं आखिरी बार समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ को छोड़कर जा रहा था। मॉस्को की मेरी अगली यात्रा 1993 में जाकर हुई, तब मैंने पाया कि यह तो एक बिलकुल अलग ही देश बन चुका है। रूस अपने आप में अनिश्चितताओं वाला देश है।

यह 1999 में नव वर्ष की पूर्व संध्या का वक्त था, जब तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने अपने परम्परागत मध्य रात्रि के संबोधन में राष्ट्र के समक्ष यह विस्फोटक घोषणा की थी कि वह अपने पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं और उन्होंने अपने नव-नियुक्त प्रधान मंत्री व्लादिमीर पुतिन से "रूस की देखभाल करने" करने का अनुरोध किया है।

उसी रात देश के नाम अपने संबोधन में पुतिन ने कहा था “नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर सपने सच हो जाते हैं। खासतौर पर, इस नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर।” उस समय पुतिन की रेटिंग मात्र 2% थी, लेकिन मार्च में जब राष्ट्रपति चुनाव हुए उस समय यह बढ़कर 50% तक पहुँच गई, जिसमें उनको जीत ही हासिल नहीं हुई बल्कि यही वह आखिरी समय था जब रूस में निष्पक्ष चुनाव हुए थे। तब से सत्ता पर काबिज पुतिन की लोकप्रियता में इजाफा ही होता गया और 2014 तक तो, क्रीमिया पर कब्जे की उनकी पहल के बाद तो यह रेटिंग 90% से ऊपर पहुंच आसमान की बुलन्दियों को छूने लगी।

पुतिन वास्तव में एक पहेली हैं- एक ऐसा करिश्माई राजनेता, जिसकी लोकप्रियता को देखकर दुनियाभर में उनके समकक्ष राजनेताओं को ईर्ष्या ही हो सकती है। और मजे की बात यह है कि यह एक तरह के अधिनायकवादी शासन के शीर्ष पर बैठकर हो रहा है।

जिस रूस को उन्होंने येल्तसिन से विरासत में प्राप्त किया था और जिस रूस को उन्होंने बदलकर रख दिया है, वे एक दूसरे से बिलकुल अपरिचित हैं। इसमें कोई शक नहीं कि पुतिन ने पूर्ववर्ती सोवियत संघ का जिस प्रकार की भूराजनीतिक दबदबा था, उसे कुछ हद तक बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज मध्य पूर्व क्षेत्र में रूस एक बार फिर से प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है, जहाँ पुतिन की भूमिका आज किंगमेकर वाली है, और इसी तरह की उपलब्धि अफ्रीका में भी दोहराई जा सकती है।

चीन के साथ रूस के संबंधों को पुतिन ने ऐतिहासिक स्तर तक मजबूत बना डाला है। क्यूबा, सीरिया, मिस्र, लीबिया और वियतनाम के साथ सोवियत काल के रिश्तों को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने का काम किया गया है। तुर्की, ईरान और वेनेजुएला के साथ नई दोस्ती गांठी गई है और इतना ही नहीं, बल्कि सऊदी अरब, यूएई, दक्षिण कोरिया या सिंगापुर जैसे पुराने खिलाफ देशों के साथ सम्बन्धों को अच्छी-खासी दोस्ती में बदल डाला है।

पुतिन ने हाल ही में इस बात का बड़े गर्व के साथ इस बात का उल्लेख किया था कि शीत युद्ध के जमाने के विरोधी आजकल रूस के नव-निर्मित आधुनिकतम हथियारों के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। मास्को में सेना के उच्चाधिकारियों के साथ एक मीटिंग के दौरान पुतिन ने बताया। “एक दौर था जब सोवियत संघ पकड़ने की फ़िराक में रहता था” "आज हम एक ऐसी स्थिति में खड़े हैं जो आधुनिक इतिहास में अद्वितीय है: आज वे हमें पकड़ने की कोशिश में लगे हैं।" अमेरिकी पक्ष भी इस बात को स्वीकारता है कि यह एक नई सच्चाई है।

पुतिन ने 2000 के चुनावों में मतदाताओं से वायदा किया था कि वे रूसी राज्य को मजबूत करने का काम करेंगे, और सैन्य शक्ति और आयुध निर्माण को नवीनीकृत करेंगे, के अपने वायदे को निभाया है। आज रूस की सीमाओं की रक्षा पर किसी प्रकार के खतरे की कोई बात नहीं करता। रूस के दूर-दराज़ के इलाके अब सार्वजनिक तौर पर केन्द्रीय राज्यों के विघटन के मद्देनजर सपने में भी नहीं सोच सकते। इस बात को लेकर व्यापक वैश्विक और देश के भीतर आम सहमति है कि 2000 की तुलना में रूस आज बेहद शक्तिशाली देश है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पुतिन के राजकोषीय वित्तीय कुशलता को लेकर प्रशंसा की है, और उल्लेख किया है कि उनकी सरकार के पास दुनिया की सबसे स्वस्थ्य खाता-बही (बैलेंस शीट) है। आज के समय रूस के पास बजट से अधिक कोष है, विदेशी कर्ज न के बराबर हैं और विदेशी मुद्रा और स्वर्ण भण्डार के मामले में यह दुनिया के सबसे अग्रणी देशों में से एक है। और पुतिन ने अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व वाली वित्तीय प्रणाली से उत्पन्न होने वाली अनियमितता से निपटने के लिए रुसी अर्थव्यवस्था के लिए जो चारदीवारी बनाई है, वह अभेद्य हैं।

बहरहाल, बढ़ते असंतोष की पृष्ठभूमि में पुतिन सत्ता में अपने 20 साल पूरे करने जा रहे हैं। आज पुतिन की अनुमोदन रेटिंग 70% से नीचे चली गई है। साफ़ शब्दों में कहें तो नागरिकों के लिए एक बड़ी आर्थिक सफलता दिला पाने की अपनी बार-बार के वायदे को पूरा कर पाने में वे असफल रहे हैं। पिछले पाँच वर्षों में देखें तो वास्तविक आय में 10% तक की गिरावट दर्ज की गई है। पिछले महीने के एक सर्वेक्षण के अनुसार 18 से 24 वर्ष की आयु के आधे से अधिक रूसी नौजवान देश से बाहर जाकर बसने के बारे में सोचते हैं।

2000 में पुतिन के घोषित उदेश्य "पुर्तगाल की राह पर" लोगों की जुबान पर चढ़ गया है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में रूस 2013 में पुर्तगाल के करीब पहुँच गया था, लेकिन उसके बाद से रफ़्तार लड़खड़ाती गई है। पुतिन का लक्ष्य रूस को एक कच्चे माल के निर्यातक देश से कहीं अधिक व्यापक आधार पर उच्च तकनीकी उत्पादों और सेवाओं को प्रदान करने वाले देश के रूपान्तरित करने का था। लेकिन ये लक्ष्य फ़िलहाल दूर की कौड़ी साबित हुए हैं। उल्टा अर्थव्यवस्था आज विश्व बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बन चुकी है।

सबसे बड़ी समस्या देश के आर्थिक मॉडल के चलते है। शासन प्रणाली में लोच का अभाव और ऊपर से नीचे की प्रणाली ने, जिसकी बुनियाद पुतिन ने रखी थी। यह मॉडल एक ऐसे विशाल देश के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त है, जो कुछ नहीं तो कम से कम 11 टाइम ज़ोन में विस्तारित है। यह उद्यमशीलता कौशल, रचनात्मकता और नवीनता को अवरुद्ध बना डालता है, जबकि रूस मानव संसाधन के मामले में वास्तव में अद्वितीय है। सोवियत काल की तरह ही आयुध निर्माण क्षेत्र में, रूसी लोगों की अव्यक्त प्रतिभा की गवाही देता है, जिसका इस्तेमाल अभी भी बाकी है। कुल मिलकर कहें तो “राजकीय पूँजी” के आधार पर निर्मित अर्थव्यस्था अवरोधों और अक्षमताओं के चलते संकट में है।

इस साल रूस की विकास दर मात्र 1% से कुछ ऊपर रहने की ही उम्मीद है और भविष्य में इसके विस्तार की गुंजाइश भी न के बराबर है। जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था करीब 3.5% की दर से बढ़ रही है, और आईएमएफ के आँकड़े बताते हैं कि कि 2013 में कुल वैश्विक उत्पादन में रूस का हिस्सा जहाँ 3% था वह 2024 में घटकर करीब 1.7% के साथ आधी रह जाने वाली है।

वर्तमान में इस अवरुद्ध मार्ग पर चलते रहने के राजनीतिक दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं। यह भी सच है कि रूसियों को वास्तव में इससे बेहतर कभी भी हासिल नहीं हुआ है। पुतिन काल में प्रांतीय शहरों और कस्बों में जिस स्तर पर आय में वृद्धि हुई है और आवास से लेकर बुनियादी ढांचे और उपभोक्ता क्षेत्र में जो व्यापक सुधार हुए हैं, वे अभूतपूर्व हैं। लेकिन जीवन स्तर रुक सा गया है और इसका स्पष्ट उदाहरण मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग में देखने को मिल सकता है, जहां पर दौलत के मामले में गैर-बराबरी की रफ्तार काफी तीखी गति से बढ़ी है।

हाल के वर्षों में इन दो महान महानगरों में 2011 में हुए संसदीय चुनावों में धांधली को लेकर खुल्लम-खुल्ला राजनैतिक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं। दिमित्री मेदवेदेव के साथ पुतिन के 2012 के राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने को लेकर और 2019 के मॉस्को चुनावों में कथित हेरफेर की आशंका को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं। क्रेमलिन के लिए यह सौभाग्य की बात है कि इन विरोध प्रदर्शनों ने एकजुट होकर अभी तक राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप अख्तियार नहीं किया है।

हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि अगर कोई आज के रूस की तुलना 2000 से करे, जब पुतिन ने सत्ता की बागडोर संभाली थी, तो उसकी तुलना में आज चीजें बेहतर नजर आएँगी। यही कारण है आज भी रुसी समाज की पुरानी पीढ़ी, जिन्होंने 1991 के सोवियत संघ के पतन के बाद, येल्तसिन के दौर के पीड़ाजनक जीवन को भुगता है वे पुतिन को उस ढहते जाने की प्रक्रिया को उलट कर कानून-व्यवस्था को बहाल करने वाले रक्षक के रूप में देखते हैं।

लेकिन यदि अगले 10-15 वर्षों के रूस के भविष्य पर नजर डालें तो रक्तहीनता से पीड़ित रोगी की तरह यह अर्थव्यवस्था उत्तरोत्तर जीवन स्तर में सुधार के मामले में यह देश की आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकती। जहाँ पुतिन के समर्थन में रेटिंग अभी भी काफी है,  लेकिन "सत्तारूढ़ पार्टी" यूनाइटेड रूस की लोकप्रियता में काफी तेजी से गिरावट का रुख जारी है, और राष्ट्रपति ने बेहद चतुराई से इससे अपनी दूरी बना रखी है।

सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग का संकट इस बात को लेकर है कि पुतिन के कार्यकाल की समाप्ति पर, 2024 के बाद रूस के "दिखावे के लोकतंत्र" को किस प्रकार से लगातार जिन्दा रखने में कामयाबी मिले। "पुतिनवाद" का असर कहता है कि पुतिन सत्ता में बना रहे। और यहीं पर रूस की तुलना जर्मनी जैसे फलते-फूलते लोकतंत्र से होती है और उसके लोकतंत्र की खामियाँ साफ़ साफ़ नजर आने लगती हैं, जहां 2005 में एंजेला मर्केल चांसलर ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली थी।
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जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल 23 जनवरी 2019 को वर्ल्ड इकनोमिक फोरम, दावोस, स्विट्जरलैंड के मंच पर आती हुईं।

जिस वक्त देश गहरे उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था, और जर्मनी 1989 के बर्लिन दीवार को ढहाने के “उसके बाद को पचाने में” लगा हुआ था, ऐसे में मर्केल ने देश को सुरक्षित दिशा देने का काम किया था।

"यूरोप की महारानी" ने अक्टूबर में इस बात की घोषणा कर दी है कि वे न तो अपनी पार्टी के नेता के रूप में दोबारा खुद को पेश करने जा रही हैं और ना ही 2021 के राष्ट्रीय चुनाव में चांसलर के रूप में अपना दावा पेश करेंगी।

उनके प्रबंधन के तहत जर्मनी ने जो समृद्धि पाई है, ऐसा दूसरा उदहारण देखने को नहीं मिलता है। लेकिन इस प्रकार का कोई गुस्सा रुसी अभिजात्य वर्ग में देखने को नहीं मिलता जो उसे बिना पुतिन के “ज़ार” के रूप में क्रेमलिन की प्रेत-छाया में जकड़े हुए हो। यदि मर्केल की कमी महसूस की जायेगी, तो यह उनकी तर्कसंगतता और शान्तचित्तता होगी।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Putin’s Russia: Economy Takes a Turn for Worse?

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