NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राष्ट्रवाद का उन्माद और सांस रोके चुप बैठने को मजबूर सच
मीडिया के छात्रों को एक सिद्धांत के बारे में पढ़ना होता है- स्पाइरल ऑफ साइलेंस। पुलवामा हमला, एयरस्ट्राइक और उसके बाद की भी घटनाएं छात्रों के लिए इस विषय को समझने के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
प्रेम कुमार
09 Mar 2019
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक फाइल फोटो। साभार : Humsamvet

मीडिया के छात्रों को एक सिद्धांत के बारे में पढ़ना होता है- स्पाइरल ऑफ साइलेंस। यह सिद्धांत उस दबाव की स्थिति को बयां करता है जब प्रतिरोध की आवाज़ मजबूर होकर कुंडली मारने को विवश हो जाती है। जैसे-जैसे यह दबाव कम होता जाता है यह आवाज़ अनस्पाइरल होकर यानी दबी हुई स्प्रिंग के खुलते जाने के रूप में उभरने लगता है। पुलवामा हमला, एयरस्ट्राइक और उसके बाद की भी घटनाएं छात्रों के लिए इस विषय को समझने के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

पुलवामा में हमला हुआ। 40 से ज्यादा जवान इस आत्मघाती हमले में शहीद हुए। देश शोक में डूबा। रोष का माहौल बना। हर जगह एक ही शोर- बदला, बदला, बदला। इससे इतर कोई भावना थी भी, तो वह मुख्य धारा की आवाज़ के दबाव में स्पाइरल मोड (स्प्रिंग के रूप में) में दब गई।  

सरकार ने माहौल के अनुरूप आतंकवादियों और उन्हें पनाह देने वालों को सबक सिखाने का संकेत दिया। प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर कहा, हमलावर और उसकी मदद करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। एक और सर्जिकल स्ट्राइक की मांग भी एक सुर में उठने लगी। मीडिया समेत सबका स्वर एक हो गया। अमेरिका तक ने संकेत दे दिया कि भारत बड़ी कार्रवाई करने वाला है।

जब सवालों ने भी खो दी ‘मर्दानगी’ 

युद्ध सी स्थिति बनने लगी। पाकिस्तान की सीमा पर सैनिकों का जमावड़ा, आतंकी ठिकानों का हटना और भारत की सीमा में विरोध प्रदर्शन और गुस्सा दिखाने का सिलसिला शुरू हुआ। ये तय लगने लगा कि युद्ध हो सकता है। जो सवाल स्पाइरल मोड में चले गए वो ये थे कि क्या युद्ध ही आखिरी रास्ता है? क्या सैनिक कार्रवाई ही जवाब है? इन सवालों को उठाने की क्षमता कहीं खो गयी। किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे ‘गैर मर्दानगी’ वाले सवाल पूछ सके।

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सवाल उठाने का राजनीतिक खामियाजा भुगत चुका विपक्ष फूंक-फूंक कर कदम रख रहा था। पुलवामा हमले के बाद राष्ट्रवादी सियासत को लेकर विपक्ष इतना सुरक्षात्मक दिखा कि उसने एकतरफा राजनीतिक गतिविधियां रोक दी और सरकार व सेना के साथ खड़े होने का एलान कर दिया। मगर, सरकार और सत्ताधारी दल का रुख विपक्ष से बिल्कुल इतर और ‘परिस्थिति का आनन्द लेना वाला’ दिखा।

शोक में था देश, शौक पूरा कर रहे थे पीएम!

केंद्र सरकार ने कोई राजनीतिक गतिविधियां नहीं रोकी, शहादत को राजनीतिक रूप से भुनाने के लिए मंत्रियों-सांसदों को अपने-अपने इलाके में जाकर शहीदों से जुड़े कार्यक्रमों में रहने की ताकीद कर दी गयी। कुछेक मौको पर तो शव के सामने ही हंसी-ठिठोली करते कैमरे में कैद हुए सत्ताधारी दल के नेता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो शहादत वाले दिन भी जिम कार्बेट में अपने कार्यक्रम को स्थगित नहीं किया, राष्ट्रपति भी रूटीन के कार्यक्रम में व्यस्त रहे, कोई राष्ट्रीय स्तर पर शोक, युद्ध, आपात बैठक जैसी बातें देखने को नहीं मिली। जबकि, ऐसी घड़ी में नयी परम्परा शुरू की जा सकती थी। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक अगले दिन हुई। फिर भी स्पीड ट्रेन को हरी झंडी दिखाने का कार्यक्रम स्थगित नहीं किया गया। यहां पीएम मोदी ने शहीदों को याद करने के बाद उपलब्धियों का गान उसी तरीके से गाया जैसे अक्सर वे करते हैं। विरोधियों की आलोचना भी उन्होंने नहीं रोकी, जो हर हाल में सरकार का साथ देने का वादा कर चुके थे।

‘राष्ट्रवाद’ के साथ सत्ता का माउथपीस बन गया मीडिया

मीडिया पर ‘राष्ट्रवाद’ इतना हावी हो गया कि यहां भी सही बात बोलने-समझने वाले कुंडली मारकर बैठने को मजबूर रहे। ‘राजनीति नहीं होनी चाहिए’ का डंका पीटने वाली मीडिया ने सत्ताधारी दल और प्रधानमंत्री की गैर जिम्मेदाराना गतिविधियों पर उंगली उठाना तक जरूरी नहीं समझा। बल्कि, जब पुलवामा हमले के 8 दिन बाद जिम कार्बेट में पीएम मोदी की तस्वीर खींचने वाली ख़बर सामने आयी तब भी मीडिया यही कहता रहा ‘ये समय नहीं है राजनीति का’।

पुलवामा हमले के बाद जब देश शोक और रोष में था, तब एक सवाल छेड़ दिया गया कि क्या भारत को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विश्वकप मैच खेलना चाहिए? मीडिया मैच नहीं खेलने की भावना के साथ अपनी देशभक्ति दिखाने लगा। बीसीसीआई को भी लगा कि देशभक्ति दिखाने का यही मौका है। नैतिक-अनैतिक और सही-गलत को धत्ता बताते हुए बीसीसीआई ने आईसीसी से अपील कर डाली कि पाकिस्तान की टीम को विश्वकप क्रिकेट नहीं खेलने दिया जाए।

‘देशभक्ति’ पर जब सचिन तेंदुलकर को साधनी पड़ी ‘चुप्पी’

ऐसे में सचिन तेंदुलकर ने एक बात रखी कि पाकिस्तान के साथ नहीं खेलने पर नुकसान भारत को ही होगा। हम पाकिस्तान की मदद कर रहे होंगे। अब मीडिया ने सचिन से भी सवाल पूछना शुरू कर दिया। सचिन भी कुंडली मारकर बैठने को मजूबर हो गये। मगर, मीडिया तो हर हाल में सचिन से कुछ उगलवाना चाहती थी। वह सचिन से भी सवाल पूछने लगी। सचिन की हिम्मत जवाब दे गयी। वह चुप्पी मार गये। बेचारे क्रिकेटप्रेमी। पाकिस्तान को हराते हुए जिस सचिन से न जाने देशभक्ति के कितने पल क्रिकेटप्रेमियों ने हासिल किए होंगे, लेकिन सबके सब स्पाइरल ऑफ थिंकिंग की थ्योरी के ज़बरदस्त उदाहरण बनने को विवश हो गये। उन्हें भी कुंडली मारकर बैठ जाना पड़ा।

26 फरवरी को एयर स्ट्राइक होने के बाद तो मानो पुलवामा का ग़म जश्न में बदल गया। एयर स्ट्राइक में क्या हुआ, इस बारे में अभी जानकारी आनी बाकी थी मगर दुश्मन देश को अधिक से अधिक नुकसान दिखाने की मीडिया को हड़बड़ी थी। पता नहीं किस वायु सेना के सूत्र से मीडिया बताने लगा कि 300 से ज्यादा आतंकी इस एयर स्ट्राइक का निशाना बने हैं। जबकि, वायुसेना ने आगे यह बात साफतौर पर कही कि उसका काम स्ट्राइक को अंजाम देना है लाशें गिनना नहीं।

चलने लगे ‘सेना से सबूत की हिमाकत’ के हंटर

ऐसे में यह जायज सवाल बनता था कि कैसे समझें कि कितना नुकसान हुआ है। मगर, सवाल पूछने की इजाजत नहीं थी। स्वयंभू जनरल बन चुका था मीडिया। सवाल पूछने से पहले ही मीडिया पूछने लगा कि क्या इस बार भी सर्जिकल स्ट्राइक की तरह एयर स्ट्राइक के बारे में ‘सेना से सबूत’ मांगे जाएंगे? जबकि सच ये है कि सेना सरकार के अलावा कहीं किसी को सबूत देने के लिए बाध्य नहीं होती और न कोई सेना से सबूत मांग रहा होता है। सत्ताधारी दल का माउथपीस बन चुका था मीडिया। विपक्ष की रही-सही हिम्मत भी जाती रही। हर प्रतिक्रिया से पहले विपक्ष सफाई देता रहा कि उसका मकसद सेना पर सवाल उठाना नहीं है, मगर वह जानना चाहता है कि...। और, मीडिया कहता रहा- देखो, देखो मांगने लगे सबूत। पाकिस्तानी हैं सबूत मांगने वाले। वगैरह..वगैरह।

एंटी क्लाइमेक्स लेकर आए सिद्धू, दिग्विजय, सिब्बल

ऐसी स्थिति में जायज बात बोलने के लिए मानसिक मजबूती भी चाहिए और प्रतिरोध को झेलने का माद्दा भी। आम लोगों से इस अवस्था में प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की जा सकती। बड़े नेताओं को भी अपनी राजनीतिक अवस्था के डांवाडोल होने का ख़तरा रहता है। ऐसी स्थिति में ही नवजोत सिंह सिद्धू, दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल सरीखे नेता एंटी क्लाइमेक्स पैदा करते हैं। खलनायक बनने के लिए खुद को पेश कर देते हैं। गालियां सुनते हैं। हमले झेलते हैं। उनकी देशभक्ति पर सवाल उठने लगते हैं। उन्हें पाकिस्तान परस्त कहा जाने लगता है। फिर भी जो देश में स्पाइरल थिंकिंग चल रही होती है उसका मौन समर्थन ऐसे नेताओं को रहता है और यह उनके लिए उम्मीद की किरण भी हैं। एक समय आएगा जब सच उभरेगा, समर्थन बढ़ेगा-यह विश्वास ऐसे नेताओं को रहता है।

वीके, राजनाथ ने दिखाया मुख्यधारा का अतिवाद

वहीं ऐसी प्रतिक्रियाओं के जवाब में भी मुख्यधारा की सोच का अतिवाद सामने आ जाता है जो स्पाइरल थिंकिंग पर और जबरदस्त दबाव बनाते हैं ताकि वे उभर ही न पाएं। केंद्रीय मंत्री व पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह जब कहते हैं कि विपक्ष के नेताओं को हवाई जहाज से लटकाकर एयर स्ट्राइक पर जाना चाहिए था, तो वह यही कर रहे होते हैं। गृहमंत्री सवाल पूछने वालों का मजाक उड़ाते हैं कि अब सेना आगे से एयर स्ट्राइक के बाद वहां लाशों की गिनती करेगी- वन, टू, थ्री, फोर...।

प्रधानमंत्री के यह कहने पर कि दुश्मन को ‘घर में घुसकर मारेंगे’ जो बदले का भाव पैदा होता है, जो दुश्मन को नेस्तनाबूत करने की कामना पूर्ण होती दिखती है उस पर संशय भी तत्काल पैदा हो जाता है। भावी कार्यक्रम का पूर्व कार्यक्रम से संबंध स्वाभाविक है। यही वजह है कि बीजेपी अध्यक्ष एयर स्ट्राइक में मरने वालों की संख्या 250 घोषित कर देते हैं जबकि यूपी के सीएम इस संख्या को 400 बता डालते हैं। अब किसी में हिम्मत है तो इस संख्या को गलत करके बताएं! हम तो घर में घुसकर मारने वाले हैं। चलो 400 नहीं मरे, कोई भी नहीं मरा। घर में घुसकर तो मारा। अब इस गलथेथरी का जवाब भी कोई नहीं दे सकता। आपको हर हाल में चुप रहना है क्योंकि यही बहुमत की सोच है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन दिनों मीडिया संस्थान में पढ़ाते हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

india-pakistan
Jingoism
War hysteria
pulwama attack
CRPF Jawan Killed
balakot
air strike
Mainstream Media
Narendra modi
BJP-RSS
SAY TO NO WAR

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License