बीते पांच सालों के दौरान हिंसा और उग्रता-उपद्रव को राज्य और उसके तंत्र का जिस तरह संरक्षण मिलता दिख रहा है, उसने हमारे संवैधानिक लोकतंत्र के लिए अभूतपूर्व खतरा पैदा किया है। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का एक विश्लेषण :
हमारे समाज में उग्र राष्ट्रवादियों या सांप्रदायिक तत्वों की हिंसा कोई नयी बात नहीं है। लेकिन बीते पांच सालों के दौरान इस तरह की हिंसा और उग्रता-उपद्रव को राज्य और उसके तंत्र ( State and it's machinery) का जिस तरह संरक्षण मिलता दिख रहा है , उसने हमारे संवैधानिक लोकतंत्र के लिए अभूतपूर्व खतरा पैदा किया है। चिंता जगाने वाले हाल के कुछ अहम घटनाक्रमों की रोशनी में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का यह विश्लेषण :
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