NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
रफ़ाल पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश और इसमें सुधार के लिए सरकार का आवेदन गलत क्यों?
क्या मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों को अंग्रेजी का व्याकरण सिखाने की कोशिश कर रही है?
रवि नायर, परन्जॉय गुहा ठाकुरता
18 Dec 2018
Rafale

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की खंडपीठ ने 14 दिसंबर को रफ़ाल मामले पर सुनवाई के दौरान सभी याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। ज्ञात हो कि इन याचिकाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय वायु सेना के लिए ख़रीदे जाने वाले रफ़ाल विमान की क़ीमत में हुई अनियमित्ताओं को लेकर अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत द्वारा याचिकाओं को ख़ारिज करने के बाद सरकारी प्रवक्ताओं और कुछ मीडिया वर्गों ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा था कि अदालत ने मोदी को क्लीन चिट दे दिया है, लेकिन अदालत का ये आदेश त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है। सरकार का आवेदन जो सुप्रीम कोर्ट में कुछ तथ्यात्मक त्रुटियों को "सही" करने की मांग को लेकर फैसले के एक दिन बाद आया है उसने इस मामले को औरसंदिग्ध बना दिया है।

सत्तारूढ़ सरकार का विरोध करने वाले कांग्रेस पार्टी के नेताओं सहित कई नेताओं, वकील, टिप्पणीकारों और सेवानिवृत्त सिविल सेवकों ने सरकार द्वारा अदालत के आदेश में तथ्यात्मक त्रुटि निकालने तथा इस त्रुटि को सही करने के लिए दिए गए आवेदन को लेकर सख्त आलोचना की है। वे कथित तौर पर कहते हैं कि जो हुआ वह न्याय की एक "असंगत"त्रुटि है I 

मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर संयुक्त संसदीय समिति से इसकी जांच कराने के लिए अपनी मांग को और तेज़ कर दिया है। वहीं मोदी सरकार ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया है।
अटकलें इस बात को लेकर है कि तीन जजों की खंडपीठ को ऐसा फैसला देने के लिए किस चीज ने प्रेरित किया। इसके बावजूद, क्षमा करना जो मुश्किल है वह ये कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्पष्ट तथ्यात्मक त्रुटियां निकालना। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस वाक्य के साथ समाप्त हुआ है "… भारत सरकार द्वारा36 रक्षा विमान की ख़़रीद के संवेदनशील मुद्दे पर इस अदालत के हस्तक्षेप करने का कोई कारण हम नहीं पाते हैं।"- और वहीं सरकार का आवेदन इसमें संशोधन करने का प्रयास कर रहा है।

यह इस ओर इशारा करता है कि सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण द्वारा किए गए शिकायत के मूल आधार पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कथित प्रक्रियात्मक उल्लंघनों और विमान की क़ीमत के मामले पर विचार नहीं किया। क़ीमत के निर्धारण पर अदालत के आदेश में कहा गया है:
"हालांकि, क़ीमतों के विवरण को नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक [(सीएजी) भारत] के साथ साझा किया गया है, और सीएजी की रिपोर्ट की जांच लोक लेखा समिति (पीएसी) द्वारा की गई है। इस रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया था, और सार्वजनिक है। "वायु सेना प्रमुख ने क़ीमत निर्धारण के विवरण का खुलासा करने के संबंध में अपने अधिकार क्षेत्र का हवाला दिया साथ ही कहा कि हथियार के मामले को उजागर करने से राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।लोकसभा में विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पीएसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शनिवार को मीडिया को बताया कि तथाकथित सीएजी रिपोर्ट अभी पीएसी के समक्ष नहीं आई है। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि मोदी ने सीएजी की रिपोर्ट शायद फ्रांस के पीएसी से साझा की है।
अदालत को आदेश में संशोधन करने के लिए सरकार द्वारा दिए गए आवेदन को यहां उद्धृत करना उपयुक्त होगा:
"ये बयान दो सीलबंद लिफाफे में मूल्य निर्धारण विवरण के साथ भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत नोट पर आधारित प्रतीत होता है। इन सीलबंद लिफाफे को31/10/2018 के आदेश के अनुपालन में माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था जिसने अन्य विषयों के साथ निर्देश दिया था कि 'अदालत मूल्य निर्धारण/लागत के संबंध में ब्योरा भी जानना चाहती है, विशेष रूप से इसका लाभ, अगर कोई है, जो फिर से सीलबंद लिफाफे में अदालत में जमा किया जाएगा'
"उक्त नोट के प्रमुख बिंदुओं में दूसरे बिंदु में लिखा है: 'सरकार ने पहले ही मूल्य निर्धारण विवरण को सीएजी के साथ साझा कर दिया है। सीएजी की रिपोर्ट पीएसी द्वारा जांच की गई है। रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया है और यह सार्वजनिक है'
"यह ध्यान दिया जाए कि जो पहले हुआ है उसे भूत काल में शब्दों द्वारा वर्णित किया जाए, उदाहरण स्वरूप सरकार ने सीएजी से क़ीमत का विवरण'साझा कर लिया-(has already shared)' है। यह भूत काल में है जो तथ्यात्मक रूप में सही है। पीएसी के संबंध में वाक्य का दूसरा भाग 'सीएजी की रिपोर्ट पीएसी द्वारा जांच की गई है।' हालांकि, फैसले में, 'है-(is)' शब्द का संदर्भ बदलकर शब्द 'किया गया है-(has been)' कर दिया गया है और फैसले(पीएसी के संदर्भ में) का वाक्य इस तरह हैः 'सीएजी के रिपोर्ट की जांच (पीएसी) द्वारा की गई है-(the report of the CAG has been examined by the (PAC)'।
"भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत विवरण में कहा गया कि सीएजी के रिपोर्ट की जांच पीएसी द्वारा की जाती 'है-(is)', यह एक प्रक्रिया का विवरण था जिसका पालन सीएजी की रिपोर्ट के संदर्भ में सामान्य रूप में किया जाता है। तथ्य यह है कि वर्तमान काल ‘है-(is)’ का उपयोग किया जाता है जिसका मतलब यह होगा कि यह संदर्भ उस प्रक्रिया के लिए है जिसका पालन सीएजी रिपोर्ट के तैयार होने पर किया जाएगा।
इसी तरह यह बयान कि संसद के समक्ष इस रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा रखा गया 'है-(is)’ को इस फैसले में इस तरह उल्लेख किया जाता है कि'रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया था, और सार्वजनिक है- (only a redacted portion of the report was placed before the Parliament, and is in public domain)'
"दुर्भाग्यवश प्रतीत होता है कि सीलबंद लिफाफे में भारत सरकार की ओर से सौंपे गए वक्तव्य के प्रमुख बिंदु में लिखे गए वक्तव्य की गलत व्याख्या प्रभावित करने के लिए इसमें शामिल हो गई है। इसके परिणामस्वरूप विवाद पैदा हो गया जो जनता के बीच उठाया जा रहा है।
"इस पृष्ठभूमि में यह अनुरोध किया जाता है कि ऐसा होता कि माननीय न्यायालय निम्नलिखित सुधारों के लिए आदेश पारित करें... निर्णय ऐसा हो ताकि माननीय न्यायालय के फैसले में किसी भी संदेह और किसी गलतफहमी के होने की संभावना न हो। ये वाक्य, 'सीएजी की रिपोर्ट पीएसी द्वारा जांच की जाती है। रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया है और सार्वजनिक डोमेन में है, -(The words, ‘The report of the CAG is examined by the PAC. Only a redacted version of the report is placed before the Parliament and in public domain)’ को 'सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी द्वारा जांच की गई है.. -(and the report of the CAG has been examined by the (PAC)..)' के स्थान पर प्रतिस्थापित किया जा सकता है'। रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया था और सार्वजनिक डोमेन में है।"
यह सुझाव देने के बाद कि इन व्याकरण संबंधी त्रुटियों को सही किया जाए, सरकार ने अदालत से विनती की कि "न्याय के हितों और ... इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों- (the interests of justice and … the facts and circumstances of the case)" में फैसले में निम्नलिखित शब्द - "सीएजी की रिपोर्ट पीएसी द्वारा जांच की जाती है। रिपोर्ट का केवल एक संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया और सार्वजनिक डोमेन में है- (The report of the CAG is examined by the PAC. Only a redacted version of the report is placed before the Parliament and in public domain)"को "और सीएजी की रिपोर्ट (पीएसी) द्वारा जांच की गई है...। रिपोर्ट के केवल एक संशोधित हिस्से को संसद के समक्ष रखा गया था और सार्वजनिक डोमेन में है- (and the report of the CAG has been examined by the (PAC)… Only a redacted portion of the report was placed before the Parliament and is in (the) public domain)" से प्रतिस्थापित कर दिया जाए।
सरकार के आवेदन में विनती की गई है कि अदालत आदेश पारित करे जिसे "न्याय के उद्देश्यों और मामले की परिस्थितियों में" पूरा करने के लिए"निष्पक्ष और उचित" समझा जा सकता है।
इस अनुरोध की गंभीर समस्याएं हैं। सबसे पहले, ऐसा लगता है कि सरकार यह सुझाव दे रही है कि सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीश अंग्रेजी व्याकरण के बुनियादी चीज़ों को नहीं समझते हैं। दूसरा, सरकार दावा करती है कि सुप्रीम कोर्ट को मुहरबंद लिफाफे में सौंपा गया नोट एफिडएविट नहीं था। कोई नोट अहस्ताक्षरित हो सकता है लेकिन किसी एफिडएविट का तो कोई लिखने वाला होना चाहिए।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने स्पष्ट रूप से कहा: "भारत के संविधान में कोई प्रावधान नहीं है जो फैसले के 'सुधार' की अनुमति देता है। केवल अंक-संबंधी या लिपिक त्रुटियों को ही सही किया जा सकता है। वास्तव में यह आवेदन भारत सरकार द्वारा एक समीक्षा याचिका है। कोई वरिष्ठ विधि अधिकारी ने आवेदन को स्वीकार या तथाकथित सुधार के लिए जिम्मेदारी ली। यह भी दिलचस्प है कि मुहरबंद लिफाफे में नोट डालते हुए कोई एफिडएविट दाख़िल नहीं किया गया था। तो, ऑनरिकॉर्ड, किसी को भी झूठी गवाही का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। मुहरबंद लिफाफे की सामग्री पर भरोसा करने से पहले अदालत को कहना चाहिए था कि एक जिम्मेदार अधिकारी ही हलफनामा दाख़िल करे। नॉन-डिस्क्लोज़र के लिए विशेषाधिकार का दावा करने के लिए यह एक सामान्य प्रक्रिया है। जैसे चीजें स्पष्ट हुई हैं कि कोई भी नहीं जानता कि किसने नोट तैयार किया है और कौन इस भयंकर चूक की ज़िम्मेदारी ले रहा है। तथाकथित त्रुटि इन्हीं चीजों में से है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता है।"
सरकार दावा करती है कि उसने पहले ही रफ़ाल विमान के मूल्य निर्धारण विवरण का साझा सीएजी के साथ कर दिया था और सीएजी की ये रिपोर्ट पीएसी द्वारा जांच की जा रही थी और रिपोर्ट का केवल संशोधित हिस्सा संसद के समक्ष और सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था जो झूठ है।
कांग्रेस के सांसद और पीएसी के पूर्व अध्यक्ष के वी थॉमस ने कहा: "ये सरकार जब से सत्ता में आई है तब से देश के लोगों से झूठ बोली है। अब यह सुप्रीम कोर्ट से झूठ बोल रही है।"
उन्होंने प्रक्रिया को इस तरह बताया कि "एक बार जब सीएजी संबंधित मंत्रालय के परामर्श से कोई रिपोर्ट को अंतिम रूप दे देती है उसके बाद इसे संसद में पेश किया जाता है। सीएजी संसद के समक्ष किसी भी रिपोर्ट का संशोधित हिस्सा नहीं रख सकता है। इसे पूरा रिपोर्ट रखना होगा। संसद तब पीएसी को ये रिपोर्ट सौंपती है।"
लेकिन बड़ा सवाल जो थॉमस ने पूछा कि "पहला कैग रिपोर्ट कहां है?"
उनके विचार का समर्थन राज्यसभा सांसद और पीएसी सदस्य राजीव गौड़ा ने किया है। उन्होंने कहा कि सीएजी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है। "सरकार सुप्रीम कोर्ट को कैसे बता सकती है कि ये रिपोर्ट पीएसी के साथ साझा किया गया है जब कि इसे सीएजी द्वारा ही अंतिम रूप नहीं दिया गया है?"
बोफोर्स सौदे पर अपनी रिपोर्ट से पहले सीएजी उन कंपनियों के नामों का उल्लेख नहीं किया जिसने भारतीय सशस्त्र बलों को हथियारों की आपूर्ति की थी।1984 और 1990 के बीच सीएजी रहे टीएन चतुर्वेदी ने इस रिवाज को तोड़ दिया और नामों का उल्लेख किया। इस क्रम में स्वीडेन के निर्माता का नाम लिया। उन्होंने कहा: "... अधिकारियों के साथ चर्चा के बाद मैंने फैसला किया कि गुमनामी को दूर किया जाना चाहिए। यह प्रथा पहले मेरे द्वारा शुरू किया गया था और न केवल बोफोर्स के मामले में ही।"
टीएन चतुर्वेदी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और कर्नाटक के राज्यपाल बने। सीएजी बनने से पहले गृह सचिव रहे चतुर्वेदी ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा था कि ऐसी आशंकाएं थीं कि नामित कंपनियां सीएजी को अदालत में खींचने की कोशिश कर सकती हैं। उन्होंने कहा: "मेरा मानना था कि सीएजी संविधान के आदेश के तहत काम करता है। सीएजी को संसद की जानकारी में पूर्ण तथ्यों को लाया जाना चाहिए। हमें केवल तथ्यों और आंकड़ों से बहुत सावधान रहना चाहिए। सीएजी संवैधानिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति में है और नामित पार्टियां सर्वोच्च न्यायालय समेत किसी अदालत में जाने की हिम्मत नहीं करेंगे... मैंने सावधान किया (मेरे अधिकारी) कि रक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान से संबंधित संवेदनशील मामलों में हमें (अतिरिक्त) सावधान रहना होगा, ( और) (सभी तथ्यों) को डबल चेक करना होगा... (मेरे) अधिकारी मुझसे सहमत हुए। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि ये रिपोर्ट सीएजी की रिपोर्ट हैं - कोई संस्था का नेतृत्व एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है और वह ज़िम्मेदारी लेता है।"
पूर्व सीएजी ने कहा कि ड्राफ्ट रिपोर्ट में परिवर्तन केवल तभी किए जाते हैं जब सीएजी और उसके अधिकारी सरकार की स्पष्टीकरण से "संतुष्ट" हों और यदि वे आश्वस्त नहीं हैं तो सीएजी खंडन के माध्यम से अपनी टिप्पणियां जोड़ सकता है। ड्राफ्ट रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के बाद सीएजी रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करता है और इसे संसद में पेश किए जाने के लिए राष्ट्रपति को भेजता है। सरकार की सुविधा के लिए पांच प्रतियां भेजी जाती हैं।
चतुर्वेदी ने कहा कि एक परंपरा चल पड़ी है कि सीएजी तब तक अपनी रिपोर्ट का खुलासा नहीं करेगा जब तक सरकार संसद के समक्ष इसे पेश नहीं कर देती तब यह सार्वजनिक डोमेन में जाता है। "संसद को कोई रिपोर्ट सौंपने में सरकार की देरी के बारे में मुझसे एक सवाल पूछा गया था। मैंने कहा ... कि मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार तर्कसंगत हो ... मैंने कहा कि सीएजी के रूप में मुझे कार्यालय की शपथ का सम्मान करना होगा। (लेकिन) सीएजी की गोपनीयता की कोई शपथ नहीं है। तो ... (मेरा) विवेक और निर्णय ... संवैधानिक रूप से उपयुक्त सीएजी इसे सार्वजनिक डोमेन में रख सकता है और करना चाहिए... और इसके अलावा अगर उसे लगता है कि राष्ट्रीय हित में ऐसा करना आवश्यक है तो फिर परिणामों का सामना करें।"
महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्व सीएजी ने हमें बताया कि अगर सरकार को पेश किए जाने के बाद सीएजी की अंतिम रिपोर्ट में कोई संशोधन किया जाता है तो सीएजी इसके लिए ज़िम्मेदारी नहीं लेता है। चतुर्वेदी ने ज़ोर देकर कहा, "यह अतीत में कभी नहीं हुआ है।"
एक अन्य पूर्व सीएजी ने हमें नाम न छापने की शर्त पर कहा कि "यदि सरकार सीएजी की अंतिम रिपोर्ट में कुछ भी संशोधन करती है तो यह बड़ी परेशानी होगी।" उन्होंने कहा कि सरकार के पास कोई शक्ति या अधिकार नहीं है कि वह सीएजी की अंतिम रिपोर्ट से कुछ भी संशोधित करे।"
पूर्व केंद्रीय मंत्री और शिकायतकर्ता यशवंत सिन्हा जिनकी याचिका खारिज कर दी गई थी, उन्होंने कहा: "सरकार कैसे पहले ही सोच सकती है कि पीएसी इस रिपोर्ट और संशोधित हिस्से को मानेगी या नहीं?"
मोदी सरकार के कटु आलोचक सिन्हा ने कहा कि सीएजी की कौन सी रिपोर्ट आगे की जांच के लिए ली जानी है यह तय करना पीएसी का विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा: "समिति भी इस रिपोर्ट को भी छेड़ नहीं सकती है। यह पीएसी के अवमानना का स्पष्ट मामला है। पहले से ही सोचते हुए सरकार सुप्रीम कोर्ट को इस तरह का अनुरोध करते हुए कैसे लिख सकती है कि पीएसी उसकी इच्छा के अनुसार ही काम करेगी?"
याचिकाकर्ताओं जिनकी याचिका ख़ारिज कर दी गई उनमें वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण और सिन्हा के एक अन्य साथी अरुण शौरी ने कहा कि सरकार का आवेदन यह संकेत देता है कि वह "अदालत में सौंपे गए तथ्यात्मक रुप से अपूर्ण दस्तावेज के आधार पर दोषपूर्ण फैसले के बारे में लिख कर सुप्रीम कोर्ट के उलझन पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है।” उन्होंने इस प्रकरण को "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन तथा घोर कुप्रबंधन" और"निर्णय के सिद्धांतों के विपरीत" के रूप में बताया।
संक्षेप में मेरा मानना है कि मोदी सरकार ने जो स्पष्ट रूप से किया है वह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट को गुमराह नहीं करता है बल्कि कार्रवाई से छुटकारे के लिए किया गया है- पहले तो इसने सीलबंद लिफाफे में संभावित रूप से अहस्ताक्षरित नोट्स सौंपा और फिर, तीनों न्यायाधीश (भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित)को अंग्रेजी का बुनियादी व्याकरण सिखाने के लिए आवेदन जमा किया। क्या इसे माफ़ कर दिया जाना चाहिए?
(रवि नायर ने रफ़ाल घोटाले को उजागर किया था और वे इस विषय पर एक पुस्तक लिख रहे हैं। परंजय गुहा ठाकुरता वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

rafale scam
BJP
Modi
Dassault-Reliance deal
reliance defence

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • modi
    अनिल जैन
    खरी-खरी: मोदी बोलते वक्त भूल जाते हैं कि वे प्रधानमंत्री भी हैं!
    22 Feb 2022
    दरअसल प्रधानमंत्री के ये निम्न स्तरीय बयान एक तरह से उनकी बौखलाहट की झलक दिखा रहे हैं। उन्हें एहसास हो गया है कि पांचों राज्यों में जनता उनकी पार्टी को बुरी तरह नकार रही है।
  • Rajasthan
    सोनिया यादव
    राजस्थान: अलग कृषि बजट किसानों के संघर्ष की जीत है या फिर चुनावी हथियार?
    22 Feb 2022
    किसानों पर कर्ज़ का बढ़ता बोझ और उसकी वसूली के लिए बैंकों का नोटिस, जमीनों की नीलामी इस वक्त राज्य में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में गहलोत सरकार 2023 केे विधानसभा चुनावों को देखते हुए कोई जोखिम…
  • up elections
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव, चौथा चरण: केंद्रीय मंत्री समेत दांव पर कई नेताओं की प्रतिष्ठा
    22 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश चुनाव के चौथे चरण में 624 प्रत्याशियों का भाग्य तय होगा, साथ ही भारतीय जनता पार्टी समेत समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। एक ओर जहां भाजपा अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना चाहेगी,…
  • uttar pradesh
    एम.ओबैद
    यूपी चुनाव : योगी काल में नहीं थमा 'इलाज के अभाव में मौत' का सिलसिला
    22 Feb 2022
    पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि "वर्तमान में प्रदेश में चिकित्सा सुविधा बेहद नाज़ुक और कमज़ोर है। यह आम दिनों में भी जनता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त…
  • covid
    टी ललिता
    महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  
    22 Feb 2022
    दूसरे कोविड-19 लहर के दौरान सरकार के कुप्रबंधन ने शहरी नियोजन की खामियों को उजागर करके रख दिया है, जिसने हमेशा ही श्रमिकों की जरूरतों की अनदेखी की है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License