NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम पर कुछ विचार
जब नेतृत्व जनता का आदर खो देता है, तो वह युद्ध भी हार जाता है।
एम. के. भद्रकुमार
17 Aug 2021
Translated by महेश कुमार
अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम पर कुछ विचार
Image Courtesy: AFP

1. अफ़ग़ान सेना का पतन

सोशल मीडिया में बताया गया है कि अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब जो शनिवार को जल्दबाजी में राष्ट्रपति अशरफ़ गनी के साथ ताजिकिस्तान भाग गए, के घर से तीन टोयोटा लैंडक्रूजर एसयूवी में बड़ी मात्र में अमेरिकी डॉलर पाए गए है। 

मोहिब अफ़ग़ानिस्तान का छुपा रुस्तम था। वह देश के रक्षा बजट को नियंत्रित करता था। आने वाले वर्षों में उन्हे 3 बिलियन से अधिक डॉलर का प्रबंधन करना था, जिसे अमेरिका ने अफ़ग़ान सशस्त्र बलों की सहायता के रूप में निर्धारित किया था। तालिबान ने उनकी एश-ओ-आराम पर पानी फेर दिया। 

अफ़ग़ान सशस्त्र बलों में लड़ने की कोई इच्छा न होने का रहस्य वास्तव में कोई रहस्य नहीं है। इसका मुख्य कारण रक्षा बजट का दुरूपयोग रहा है। गनी के ताम-झाम में, उनके भरोसेमंद चाटुकार मोहिब ही रक्षा मंत्रालय को नियंत्रित करते थे – न कि रक्षा मंत्री - और उन्होंने साफ तौर अपने लिए कुछ बेहतर किया - और शायद गनी के लिए भी। यह तो समय ही बताएगा कि अच्छा किया या नहीं।

सैनिकों को शायद ही कभी अपना पूरा वेतन मिलता था क्योंकि अधिकारी सारा पैसा अपनी जेबों में रखते थे, जो गनी के नुमाइंदों के परित्याग की व्याख्या करता है। सैनिक अक्सर अपने जीवन-यापन के लिए अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए हथियारों को काले बाजार में बेच देते थे।

सीधे शब्दों में कहें तो सेना ने एक जर्जर सरकार के लिए लड़ने की अपनी इच्छाशक्ति खो दी थी, जिसमें वैधता की भारी कमी थी, जो लोगों की जरूरतों और शिकायतों के प्रति अयोग्य और उदासीन थी - और उन्होने अपने नेतृत्व को अवमानना का भागी माना।  

1980 के दशक की शुरुआत में सोवियत यूनियन द्वारा बनाई गई अफ़ग़ान सेना के साथ ऐसा कुछ नहीं हो सकता था। सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद नजीबुल्लाह तीन साल तक सत्ता में रहे और केवल तभी सत्ता से नीचे उतरे जब मास्को ने सारी मदद बंद कर दी थी, यहाँ तक कि रोटी बनाने के लिए गेहूं का आटा भी बंद कर दिया गया था। सेना अनुशासित, अच्छी तरह से प्रशिक्षित और राजनीतिक रूप से प्रेरित थी, और सोवियत सैन्य अकादमियों में प्रशिक्षित अधिकारियों का काफी सम्मान था और उनके आदेश का पालन होता था।  

उस समय जलालाबाद की लड़ाई (1989) अपने बेहतरीन लड़ाई के रूप में जानी जाती है, जब पाकिस्तान ने मुजाहिदीन की अस्थायी सरकार को स्थापित करने और शहर पर कब्जा करने के लिए शहर की घेराबंदी की थी, लेकिन वह असफल रहा था।

ऐसा माना जाता है कि पिछले बीस वर्षों में, अमेरिका ने नाटो मानकों के आधार पर 300000  अफ़ग़ान सेना के सैनिकों और अफसरों को प्रशिक्षित किया था, लेकिन जब मई में वे लड़ाई में शामिल हुए, तो सेना तालिबान के दबाव में ढहने लगी।

जब भ्रष्टाचार किसी राष्ट्र के जीवन को खा जाता है, तो राज्य की संरचनाएँ टूट जाती हैं और ढह जाती हैं। और जब नेतृत्व लोगों का सम्मान खो देता है, तो वह युद्ध हार जाता है।

आज एमएसएनबीसी पर प्रसिद्ध मेहदी हसन शो में, वाशिंगटन में अफ़ग़ान राजदूत सुश्री एडेला रज़ ने कहा कि गनी और उनके साथियों ने बस अफ़ग़ान खजाना खाली किया है और लूट के साथ चले गए। 11 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान के वित्तमंत्री खालिद पायेंदा का इस्तीफा और काबुल से भागना इसी परिपेक्ष में आता है! गरीब आदमी को उस दिन का डर था जब हिसाब मांगा जाएगा। उसने यह भी नहीं बताया कि वह जा किधर रहा है।

भारत के नीति निर्माता इस बात से अनजान नहीं हो सकते थे कि अफ़ग़ानिस्तान पर एक कबीला शासन कर रहा था, लेकिन भरत ने जानबूझकर इसे अनदेखा किया। यह समझ से बाहर की बात है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मंच से खुद को अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने पेश करते हुए गनी की सरकार के लिए मंच तैयार करने के लिए हाल ही में पिछले सोमवार को अपनी गर्दन बाहर निकाली थी। इसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चर्चा में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के औपचारिक अनुरोध को नज़रअंदाज कर दिया ताकि गनी के लोगों को खुश किया जा सके!

सबसे अच्छी उम्मीद यह है कि भारतीय व्यवस्था के भीतर कोई हित समूह मौजूद नहीं था, जैसा कि अमेरिका में था। वाशिंगटन पोस्ट ने खुलासा किया है कि पेंटागन कमांडरों ने झूठ बोला और इसलिए 'हमेशा के लिए युद्ध' जारी रहा। जाहिर है, काबुल से एक लूट की ट्रेन चल रही थी।

ऐसी चीजें तब होती हैं जब देश की गुप्त एजेंसियां कानून से ऊपर खड़ी हो जाती हैं। एनएसए मोहिब जैसे काबुल के बड़े लोगों और अमेरिकी सेना के भीतर दुष्ट तत्वों का गठजोड़ था और उन्होंने इस युद्ध को समाप्त करने के सभी प्रयासों को विफल कर दिया। विचलित करने वाला तथ्य यह है कि भारत में भी, एक दृढ़ लॉबी थी जिसने सभी तर्कों के खिलाफ काम किया और 'हमेशा के लिए युद्ध' की वकालत की, और काबुल में भी मोहिब हमारा ही आदमी था। 

(इस लेख के अन्य भाग भी आएंगे)

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Reflections on Events in Afghanistan

Afghanistan
kabul
Ashraf Ghani
Hamdullah Mohib
United States

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी

डोनबास में हार के बाद अमेरिकी कहानी ज़िंदा नहीं रहेगी 

तालिबान को सत्ता संभाले 200 से ज़्यादा दिन लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पा रही शिक्षा

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

यमन में ईरान समर्थित हूती विजेता

काबुल में आगे बढ़ने को लेकर चीन की कूटनीति

भारत को अब क्वाड छोड़ देना चाहिए! 

यूक्रेन युद्ध: क्या हमारी सामूहिक चेतना लकवाग्रस्त हो चुकी है?

'सख़्त आर्थिक प्रतिबंधों' के साथ तालमेल बिठाता रूस  


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License