NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
अंतरराष्ट्रीय
खेलने का अधिकार : महामारी का अनदेखा नुक़सान
युवा लोगों के लिए खेल आसक्ति का मामला होता है। उम्रदराज़ लोगों के लिए इसका मतलब किसी बीयर के साथ कोई मैच देखना है। इसमें निश्चित इन लोगों के लिए आनंद है। लेकिन खेल को बरक़रार रखने और समाज को स्वस्थ्य बनाने के लिए युवाओं की आसक्ति ज़रूरी है। लेकिन आज इस भयावह दौर में बड़े खेलों ने टीवी दर्शकों को बचाने को प्राथमिकता बनाया हुआ है, जबकि बच्चों के खेल मैदान ख़ाली पड़े हैं।
लेज़ली ज़ेवियर
11 May 2020
खेलने का अधिकार
बच्चे खेल के सबसे बुनियादी और प्राकृतिक उद्देश्य- खेलने के लिए मैदान पर पहुंच रहे हैं। वे या तो नियमों के हिसाब से खेलते हैं या खुद नियम बनाते हैं। इससे वो अपने आप में और आसपास की संभावनाओं की तलाश करते हैं। (फोटो-वैभव रघुनंदन)

कोच्चि क़िले में एक चौकोर ज़मीन का टुकड़ा, जिसके दो तरफ अंग्रेजों के जमाने के गोदामों में बदलाव कर क्लासरूम बनाए गए थे, उनके बीच का मैदान पूरी तरह सपाट था। जिस दिन बारिश नहीं होती, वहां फुटबाल, क्रिकेट या दौड़ लगाई जाती और एक धूल का एक तूफान सा खड़ा हो जाता था। वह हमारा स्कूल ग्राउंड था।

एक सात साल के बच्चे के तौर पर मैंने वहां की धूल खूब चखी। आज तीस साल बाद, जब साफ-सुथरे वातावरण में रहने के आदी हो चुके हम लोगों को कई तरह की एलर्जी हो चुकी हैं, तब स्कूल ग्राउंड में होने वाले उस अनुभव को सोचकर ही कंपकपी छूट जाती है।

मैदान पर मैंने और मेरे दोस्तों ने फुटबॉल में 'किकिंग-पासिंग' सीखी, हमने सीखा गोल कैसे किया जाता हैं, टैकलिंग कैसे होती है। मैदान पर ही हमने चौके-छक्के लगाना और तमाम दूसरी चीजों की क्षमता भी विकसित की, जिनमें भाग-दौड़ की से लेकर सामाजिक कौशल के बीच की चीजें शामिल थीं।  हम मैदान में साफ-सुथरी पोशाक में गेंद के साथ जाते और शरीर पर धूल की परत के साथ थोड़ी समझ और दूरदर्शिता लेकर वापस आते। हमने वहां जिंदगी को समझा। जीत-हार, उससे कैसे निपटा जाता है, हम सीख रहे थे। हम खेल तो गेंद के साथ रहे थे, लेकिन फुटबॉल के गोल, क्रिकेट के रन-विकेट के साथ-साथ वहां बनने वाली दोस्तियां भी हमारे खाते में जमा हो रही थीं। आज भी मैं नॉस्टेल्जिया में उस वक़्त की धूल को खूब याद करता हूं।

उदारवाद के पहले 1980 के दशक में हम एक फटी-चिथी फुटबॉल से खेलते थे, जिसमें कई जगह सिलाई होती थी। कभी यह मैच की बीच में ही फट जाती, तो कभी हवा में रहने के दौरान उधड़ जाती। वह धीमे-धीमे भागती थी, लेकिन उसका पीछा करने में हमें कभी ऊबन महसूस नहीं हुई।

डल (ऊबन) शब्द एक जमाने में अंग्रेजी में खूब इस्तेमाल होता था। लेकिन आज यह मुहावरा चलन से बाहर हो गया है। अब इस शब्द के बारंबार इस्तेमाल से 'डल' का मतलब खो चुका है।

जैसा अंग्रेजी में एक मुहावरा था- "ऑल वर्क एंड नो प्ले विल मेक जैक अ वेरी डल ब्वॉय!'' इसका हिंदी तर्जुमा कुछ यूं जाता है- सिर्फ काम में मशगूल रहने और खेलने से दूरी बनाने से जैक आलसी और कमजोर हो जाएगा।

इस मुहावरे में छुपी सच्चाई को सब जानते हैं, लेकिन सबने इसे नजरंदाज कर दिया है। इसलिए हमें आज जैक या जिल को मजबूत बनाने में रुचि नहीं है। दुनिया अब लीग, वर्ल्ड कप और ग्रांड स्लैम जैसी बड़ी तस्वीरों की दीवानी है। इस बीच जिंदा रहने के लिए खेल के मैदानों और इंसान जिंदगी के स्तर को नजरंदाज कर दिया गया है। बच्चों से उनके खेलने का अधिकार छीन लिया गया!

हां, IPL या भारतीय टीम की द्विपक्षीय सीरीज़ या उनके दूसरे मैचों का अनिश्चत समय के लिए टल जाना एक बड़ा नुकसान है। हां, यह सही है कि अगर लंबित मैच नहीं हुए तो प्रीमियर लीग या 'ला लीगा' को खून के आंसू बहाने पड़ेगे। टोकियो ओलंपिक रद्द होने से जापान की अर्थव्यवस्था और दूसरे खेलों के सपनों को गहरा झटका लगेगा। हां, यह सही बात है कि संगठित खेल अपने बनाए पैसे के पहाड़ के नीचे धंसने वाले हैं। इसकी वजह कोरोना वायरस होगा। लेकिन इन जरूरी टूर्नामेंट का नुकसान ही कोरोना वायरस से होने वाली सबसे बड़ी क्षति नहीं है।

सबसे बड़ा नुकसान बच्चों और उनके खेलने के अधिकार के साथ-साथ आज़ादी से खेलने की क्षमता का हुआ है।

महामारी और लॉकडॉउन ने बच्चों से उनके मैदान छीन लिए। अब हमें कार से बचते या  'हैंड स्कूटर' ढकेलते लड़के-लड़कियां नज़र नहीं आते। ना ही किसी क्रिकेट मैच में सही-गलत की बहस करते बच्चे दिखते हैं। अब हमें पीछे की गलियों में कोई फुटबॉल से करतब करना नज़र नहीं आता। न कोई पड़ोस में बॉस्केटबॉल मैच खेला जाता है, न कबड्डी की टक्कर होती है। पार्क में खेल की जगहें भी अब खाली हैं। 

कोविड-19 ने बच्चों को घरों में बंद कर दिया है। मां-बाप लॉकडॉउन में अपने चंचल बच्चों से परेशान नज़र आ रहे हैं, लेकिन वो बड़ी समस्या अब भी उनकी नज़रो से दूर है।

इसका पहला दोष मौजूदा वैज्ञानिक धारणा का है। इसे बड़े स्तर पर स्वीकृति मिली है। इसके तहत ऊर्जा खपत और कैलोरी खर्च को ही खेल और व्यायाम का पैमाना माना जाता है। हम अपने बच्चों को भी इसी तर्ज़ पर मापते हैं। 

किसी पार्क या सड़क पर खेल रहे बच्चे सिर्फ अपनी ऊर्जा खपत नहीं करते। यह शारीरिक क्रियाकलापों को लेकर हमारा नज़रिया है, जिसे हम अपने बच्चों पर थोप रहे हैं। अगर हम अपने व्यवस्त जीवन को थोड़ा रोककर बच्चों को खेलते हुए देखें तो पाएंगे कि पैदल चलना, हल्की-फुल्की दौड़ या पसीना बहाना किसी बच्चे का खेल के लिए मक़सद नहीं होता। कोई बच्चा किसी पार्क में कुछ खेलता है, तो उसका मकसद सबसे ज़्यादा प्राकृतिक ही होता है, मतलब बच्चा सिर्फ़ और सिर्फ़ खेलने के लिए ही जाता है। वह नियमों के तहत खेलता है, या अपने स्वविवेक से अनोखे नियमों को बनाता है, इस दौरान बच्चा अपने भीतर की और अपने आसपास मौजूद संभावनाओं को तलाशता है। चाहे वह पेड़ हो, कोई रस्सी कूदना, रबर की गेंद या फुटबॉल का खेल। खेल के दिग्गज बच्चों के मैदान पर ही पनपते हैं। पर सबसे अहम बात है कि इससे जीवन जीने के कौशल का विकास होता है, जल्द बड़े होने वाले बच्चों को जीवन की सीख मिलती है। साथ में शरीर और दिमाग़ भी उर्वर होता है।

खेल का मतलब, अलग-अलग लोगों के लिए भिन्न है। यह अलग-अलग उम्र के बीच बदलता है। युवा लोगों के लिए आसक्ति होती है। उम्रदराज लोगों के लिए इसका मतलब किसी बियर के साथ कोई मैच देखना होता है। इसमें निश्चित ही इनके लिए मजा है। लेकिन खेल को ईंधन और समाज को स्वस्थ्य रखने के लिए युवाओं की खेल में आसक्ति जरूरी है।

कोई खेल का मैदान बच्चों के लिए क्लासरूम के बराबर ही जरूरी होता है। ताकि वे एक पूर्ण और स्वस्थ्य व्यक्ति के रूप में बड़े हो सकें। अब पाठ्यक्रम में बच्चों (किंडरगार्टन से प्राथमिक स्कूल के अलग-अलग स्तर तक) में खेल के साथ सीखने पर जोर दिया जाता है। मानसिक विशेषज्ञों, शारीरिक विशेषज्ञों और शिक्षा विशेषज्ञों को महसूस हुआ है कि कैसे खेल, मस्तिष्क के किन्हीं कोऑग्निटिव केंद्रों का विकास प्रभावित करता है। जबकि शारीरिक गतिविधियां मांसपेशियों, शारीरिक ढांचे और प्रतिरोधक क्षमता का विकास तय करती हैं।

UNICEF ने अपने निर्देशों में खेल के अधिकार के संबंध में कई अहम बातों को रेखांकित किया। संगठन ने बताया है कि क्यों अलग-अलग समाजों में इस अधिकार को बरकरार रखना और इसके लिए लड़ना जरूरी है। कोरोना महामारी के दौर में तमाम मानवाधिकारों के साथ-साथ सबसे पहले इस अधिकार का नुकसान हुआ है। कुछ अधिकारों को नियंत्रित करना जरूरी था, तो कुछ पर सिर्फ़ राजनीतिक फायदों के लिए लगाम लगाई गई।

इस संकट में खतरों का हमें आभास है। कोविड-19 एक पेचीदगी भरी स्थिति है, साफ है कि इसमें बच्चों को सड़कों और पार्क में खेलने के लिए नहीं भेजा जा सकता। लेकिन घर में रटाई गई सीखों की अपेक्षा, खेल के मैदानों ने बच्चों को नई स्थितियो के लिए ज़्यादा तैयार किया है। अफ्रीका में इबोला संक्रमण से तो हमें यही सीख मिलती है। उस दौरान बच्चों की सुरक्षा निश्चित करना वैश्विक संस्थाओं और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती था। खेल के मैदानों ने ही इस चुनौती से निजात दिलाई। बच्चों को बेहद जरूरी सुरक्षा की सीखें सिखाई गईं। इससे व्यवहार और आदतो में बदलाव लाए गए, जिसमें साफ-सफाई के तौर-तरीके भी शामिल थे। इससे उन लोगों को भी जीवन में आगे बढ़ने में मदद मिली, जो महामारी से प्रभावित होने के चलते ट्रॉमा का शिकार हो गए थे। 

संक्रमण के स्तर पर कोरोना वायरस, इबोला से कहीं ज्यादा तेजी से फैलता है। लेकिन महामारी से ज़्यादा नुकसान बिना दूरदृष्टि वाले कमजोर तौर-तरीकों से हुआ। जैसा अमेरिका में देखा गया, वहां अपुष्ट 'हेल्थ प्रोटोकॉल' का पालन किया गया। भारत में भी बिना योजना के लॉकडॉउन लागू किया गया। इन सबसे लंबे दौर में ज़्यादा नुकसान हुआ।

इनमें अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ (IOC), पेशेवर फुटबॉल लीग और BCCI दुनिया की तमाम खेल संस्थाओं द्वारा उठाए गए कदम भी शामिल हैं। हम सब इसकी वजह समझते हैं। यह व्यापारिक फ़ैसले हैं, जो बड़े शो, सितारों और टीवी अधिकारों के ईर्द-गिर्द घूमते हैं। नई व्यवस्था में ढलती दुनिया में अब 'पे-पर-व्यू या हर शो पर पैसा देने-(PPV)' और स्पॉनसरशिप पर जोर दिया जा रहा है।

इस नए सामान्य में खेलने का अधिकार सिर्फ बड़े-बड़े एथलीट्स और बड़ी टीमों में कांट्रेक्ट पर खेलने वालों के लिए ही आरक्षित कर दिया गया है। अब भी बच्चों और खेल पर किसी तरह का प्रभावी विमर्श कोसों दूर है। खेल सत्ताओं द्वारा थोपे गए इस नए सामान्य में युवा और बुजुर्गों, लड़के और लड़कियों को घर पर रहकर चैनल पर खेल देखना है। मोबाईल और आभासी दुनिया के खेलों का यह नया ढर्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। किसी को इसके नुकसान बताने की जरूरत नहीं है।

इन सब तरीकों से ढले इंसान लॉकडॉउन हटने के बाद भी ऐसा ही जीवन जीने के लिए बदल चुके होंगे। कोरोना वायरस चला जाएगा, जैसे दूसरी महामारियां चली गईं। लेकिन सिर्फ एक पीढ़ी ही, जो आभासी क्लारूम में प्रशिक्षित हुई है, जिसके युवा वीडियो गेम ही खेलते हैं, वो एक नये सामान्य को जन्म देगी। लॉकडॉउन के तरीके किताबों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाएंगे। 

क्या किताबों की जगह डिजिटल डिवाइस ले लेंगी? मैं जब स्कूल में था, तब जिल्द चढ़ाई किताबें खेलने का एक ज़रिया हुआ करती थीं। हॉर्डबाउंड किताबें पेपर-बॉल क्रिकेट खेलने के लिए बिलकुल सही साबित होती थीं। किताबों को घुमाकर, पन्नों को पलटाया जाता था। जो संख्या बायें पेज पर होती थी, उसका आखिरी अंक आपका स्कोर बनता था। अगर चार, छ: आए तो वारे-न्यारे। अगर शून्य आया तो आउट। कुछ भी कहो, मैं शानदार बल्लेबाज था।

उन किताबों को घुमाते हुए मैनें क्या सीखा था, यह तो मैं नहीं बता सकता। लेकिन उसमें मजा था। हम विकेट और छक्कों का मजा लेते थे। ऐसा लगता था, जैसे हम वर्ल्ड कप जीत रहे हों। यही किसी खेल को खेलने का उद्देश्य होता है। प्रथामिक तौर पर हम जो महसूस करते हैं, पूरा खेल उसी के बारे में होता है। एक पल से दूसरे पल तक हमें जो महसूस होता है, वही हमारी मानसिकता तय करता है, यह बार-बार होने वाला अहसास एक बैंक की तरह काम करता है, जिसमें सबकुछ जुड़ता जाता है। यह हमारे व्यक्तित्व को एक अनोखी पहचान देता है, जो हमें बेहतरी की ओर ले जाता है।

हम किसी चीज के पीछे भागने और अपने सामर्थ्य तक पहुंचने के अधिकार के साथ पैदा होते हैं। खेलने का अधिकार किसी बच्चे को जीवन के बड़े खेल में पहुंचने के लिए तैयार करता है। तभी तो वो दुनिया के भविष्य के लिए बेहतर खेल सकेगा!

अंग्रेज़ी में मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें।

Right To Play: The Unsuspecting Casualty of a Pandemic | Outside Edge

Right to play
Right to play Covid-19
covid-19 and sports
Covid-19 and right to play
sports in lockdown
gully cricket
street football
COVID-19 lockdown
Outside Edge
cricket
bcci
IOC
International Olympic Committee
Indian Premier League
IPL 2020
Indian cricket
kids at play
Ebola Outbreak
Ebola virus
Ebola fightback
Ebola and playground
Ebola and sport
Ebola and right to play

Related Stories

भारतीय विमानों पर रोक के बाद बीसीसीआई ने विदेशी खिलाड़यों को सुरक्षित घर वापसी का भरोसा दिया

टोक्यो 2020: अगले साल इसी वक़्त शुरू होगा खेल

भारतीय अर्थव्यवस्था को तबाह करती बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ बढ़ता प्रतिरोध

शिक्षित बनें, आंदोलन करें और संवाद करें: माइकल होल्डिंग और सूचना युग पर फिर से पुनर्विचार की ज़रूरत

कोरोना के बाद, क्रिकेट की दुनिया में बेहतर प्रबंधन, प्रगतिशील सोच और तर्क से की ज़रूरत होगी

कोविड-19 लॉकडाउन : गुजरात में प्रवासी मज़दूरों पर दर्ज मामले ‘मानव अधिकारों का उल्लंघन हैं’

वेस्टइंडीज़ का इंग्लैंड दौरा : कोरोना में प्रतिरोध का साहसिक क़दम|आउटसाइड ऐज

ग्रामीण भारत में कोरोना-36: पूर्वी मेदिनीपुर में किसान धान को एमएसपी से भी नीचे दाम पर बेचने को मजबूर

ईआईए अधिसूचना 2020 : अभी नहीं, तो कभी नहीं !

ग्रामीण भारत में करोना-29: वर्धा के सेलू तालुका पर लॉकडाउन का प्रभाव


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License