NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
रूस ने अमेरिका के सामने खींची लाल लकीर 
मान्यता देने से पहले हम कुछ क्षेत्रीय पहल की उम्मीद कर सकते हैं। मान्यता के लिए मानदंड आमतौर पर पूरे देश पर सरकार का प्रभावी नियंत्रण होना ज़रूरी होता है।
एम. के. भद्रकुमार
18 Oct 2021
Translated by महेश कुमार
Russia Draws Red Lines for US
उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुलअज़ीज़ कामिलोव (बाएं) को तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताकी (दाएं) और उप-प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुस सलाम (बाएं), काबुल, 7 अक्टूबर, 2021 का स्वागत करते हुए।

मॉस्को ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वह मध्य एशियाई क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति को स्वीकार नहीं करेगा। यह बयान रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव की तरफ से आया है जिन्होंने तास समाचार एजेंसी को बताया कि मंगलवार को मॉस्को में अमेरिकी विदेश मंत्री विक्टोरिया नुलैंड के साथ बैठक में अफ़गानिस्तान पर चर्चा हुई थी।

रयाबकोव ने ज़ोर देकर कहा है कि "हम मध्य एशियाई देशों में किसी भी रूप में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे।"

प्रथम दृष्टया, रयाबकोव ने वाशिंगटन के उस अमरीकी मीडिया दुष्प्रचार अभियान को खारिज कर दिया है जिसमें कहा जा रहा है कि जून में जिनेवा में रूस-अमेरिका शिखर सम्मेलन में, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति बाइडेन को पेशकश की थी कि पेंटागन भविष्य के ऑपरेशन के लिए मध्य एशियाई क्षेत्र में रूसी ठिकानों का इस्तेमाल कर सकता है यानि ("बाहर से") अफ़गानिस्तान में ऑपरेशन चला सकता है।

द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने पहले अपने स्रोतों का हवाला दिया था कि रूस और अमेरिका ने कथित तौर पर संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क जनरल के स्तर पर मिल कर चर्चा की और अमेरिकी सेना द्वारा मध्य एशिया में रूसी ठिकानों का इस्तेमाल करने की संभावना पर चर्चा की थी जिसमें कहा गया है कि इस बाबत 24 सितंबर को "राष्ट्रपति बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के स्टाफ के अनुरोध पर" हेलसिंकी में एक बैठक में रूसी चीफ ऑफ जनरल स्टाफ वालेरी गेरासिमोव से चर्चा की गई थी।

ऐसा लगता होता है कि वाशिंगटन की चाल मध्य एशियाई राष्ट्रों के बीच रूस के इरादों के बारे में गलत धारणाएँ पैदा करने की थी। यह सुनिश्चित करने के लिए, दो जनरलों की हेलसिंकी बैठक से ठीक पहले, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपने मध्य एशियाई समकक्षों के साथ "अफ़गानिस्तान पर समन्वय" पर चर्चा करने के लिए 22 सितंबर को तथाकथित सी5+1 मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की थी।

इस बाबत अपनी कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन 10 दिनों के बाद ताशकंद में नेतृत्व से मिलने के लिए मध्य एशियाई मैदान में दिखाई दिए, संभवतः वे यह पता लगाने गए थे कि क्या उज़्बेकिस्तान पेंटागन को अपने देश में कुछ बुनियादी सुविधाओं के इस्तेमाल के इज़ाजत देगा। ज़ाहिर है उन्हे खाली हाथ लौटना पड़ा। 

रयाबकोव ने इस बात को रेखांकित किया कि मध्य एशियाई मैदानों में अमेरिका के लिए "किसी भी किस्म की" सैन्य उपस्थिति की कोई गुंजाइश नहीं है।

निश्चित रूप से, रयाबकोव ने चीन और ईरान सहित क्षेत्रीय देशों के बीच बनी आम सहमति को ज़ोर देकर उठाया है। 

ऐसे दृष्टिकोण के मद्देनजर, अफ़गान स्थिति के संबंध में एक क्षेत्रीय सहमति लगातार विकसित हो रही है। तेहरान ने कल खुलासा किया है कि वह जल्द ही अफ़गानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्री स्तर की बैठक की मेजबानी करेगा और इस चर्चा में रूस को भी शामिल करने के लिए एक विशेष मामले के तहत प्रारूप का विस्तार किया जाएगा। यानी अब वार्ता में ईरान, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन और रूस शामिल होंगे। (इसमें भारत को बाहर रखा गया है!)

रयाबकोव की यह टिप्पणी सप्ताह के अंत में दोहा में सीआईए के उप-निदेशक के नेतृत्व में तालिबान अधिकारियों और एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई बैठक के बाद आई है, जहां तालिबान ने किसी भी बहाने अफ़गान धरती पर अमेरिका द्वारा एकतरफा सैन्य अभियानों के किसी भी रूप को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।

इस बीच, पाकिस्तान ने भी स्पष्ट रूप से अफ़गानिस्तान के खिलाफ होने वाली किसी भी अमेरिकी कार्यवाही को सुविधाजनक बनाने से इनकार कर दिया है। हालांकि भारत तेजी से क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अमेरिका के जूनियर भागीदार के रूप में काम कर रहा है, बावजूद इसके, इस बात की संभावना नहीं लगती है कि मोदी सरकार तालिबान सरकार को उकसाना चाहेगी।

कहने का तात्पर्य यह है कि अफ़गानिस्तान के ऊपर पेंटागन द्वारा "बाहर" से कार्यवाही चलाने  की बहुप्रचारित योजना एक सपना बन कर रह गई है। इसके अलावा, अमरीका शायद, पश्चिम एशिया में अपने पेंटागन के ठिकानों से इस तरह के ऑपरेशन का इरादा रख सकता है लेकिन इस तरह की कार्यवाही की प्रभावशीलता गंभीर संदेह के घेरे में है।

मास्को में रयाबकोव की टिप्पणी, अमेरिकी सेना या मध्य एशिया में उसकी खुफिया उपस्थिति के बारे में अत्यधिक सतर्कता इस बात की गवाही देती है जहां रूस को गहन सुरक्षा चिंताएं हैं। आईएसआईएस के साथ अमेरिका के गुप्त संबंधों और आतंकी समूहों को भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने के उसके इतिहास को देखते हुए, रूस को अतिरिक्त सतर्क रहना होगा।

तो क्या चीन और ईरान भी ऐसा करेंगे। मध्य एशियाई देश पूर्व सोवियत गणराज्यों में "शासन परिवर्तन" लाने के लिए रंग क्रांतियों को उकसाने की अमेरिकी रणनीति के प्रति भी सचेत हैं। अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित मीडिया संगठन मध्य एशियाई नेतृत्व को बदनाम करने के लिए निरंतर सूचना युद्ध छेड़ रहे हैं।

मोटे तौर पर, अफ़गानिस्तान के आगे बढ़ने के रास्ते के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एक मतभेद दिखाई दे रहा है। क्षेत्रीय देश वाशिंगटन के नेतृत्व का पालन करने से इनकार कर रहे  हैं। भारत शायद इसका अकेला अपवाद है, लेकिन यहां भी, पाकिस्तान और चीन के खिलाफ दिल्ली की दुश्मनी का असली विचार हो सकता है।

गौरतलब है कि पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मंगलवार को इटली की अध्यक्षता मे अफ़गानिस्तान पर जी-20 के असाधारण नेताओं की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। इतालवी पहल का उद्देश्य अमेरिकी नेतृत्व के लिए समर्थन जुटाना था। निस्संदेह मुख्य मुद्दा तालिबान सरकार की अंतरराष्ट्रीय मान्यता है। अमेरिका को उम्मीद है कि वाशिंगटन के तैयार होने तक कोई भी देश तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देगा।

कल की जी-20 बैठक के परिणाम का सारांश प्रस्तुत करने वाला दस्तावेज़ चतुराई से मान्यता के मुद्दे को दरकिनार करता नज़र आता है। इसके बजाय, यह वास्तव में तालिबान सरकार के साथ व्यापक जुड़ाव की हरी झंडी देता है।

सारांश में अन्य बातों के साथ-साथ कहा गया है कि: "बुनियादी सेवाओं के प्रावधान की गारंटी करने के लिए समाधानों की पहचान की जानी चाहिए - विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के संबंध में ऐसा किया जाना अत्यंत जरूरी है - जो आपातकालीन सहायता प्रदान करने से परे की बात हैं, बशर्ते वे सेवाएं सभी के लिए खुली हों। भुगतान प्रणाली के कामकाज और समग्र वित्तीय स्थिरता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जी-20 देश इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, बहुपक्षीय विकास बैंकों सहित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और मानवीय संस्थाओं के साथ सहयोग करेंगे।

"जी-20 देशों ने, विश्व बैंक को मानवीय प्रयासों के प्रति देश में उपस्थिति के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को समर्थन देने के संभावित तरीकों का पता लगाने के लिए आमंत्रित किया है।"

बड़ा सवाल क्षेत्रीय देशों द्वारा तालिबान सरकार की कूटनीतिक मान्यता को लेकर है। पाकिस्तान चाहता है कि क्षेत्रीय देश इस बारे में सामूहिक निर्णय लेना चाहिए।

दरअसल, तालिबान सरकार में सूचना और संस्कृति उप-मंत्री जबीहुल्लाह मुजाहिद ने सोमवार को तास एजेंसी को बताया कि, “हम रूस के साथ बातचीत कर रहे हैं, मुख्य रूप से हमारी सरकार की मान्यता और दूतावासों के काम को फिर से शुरू करने पर बातचीत जारी है। इन मुद्दों को हल करने से आगे सहयोग का मार्ग प्रशस्त होगा।"

मान्यता देने से पहले हम कुछ क्षेत्रीय पहल की उम्मीद कर सकते हैं। मान्यता के लिए मानदंड आमतौर पर पूरे देश पर सरकार का प्रभावी नियंत्रण होना होता है।

अफ़गानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी के बाद, जब अप्रैल 1992 में विजयी मुजाहिदीन के सरदारों ने काबुल में सत्ता हथिया ली थी, तो पश्चिम या पूर्व से किसी ने भी यह मांग नहीं की थी कि बुरहानुद्दीन रब्बानी को एक "समावेशी सरकार" बनानी चाहिए या अफ़गान महिलाओं को सरकार में समायोजित करना चाहिए। ऐसा जरूरी नहीं कि भारत जैसे देशों में भी कोई "समावेशी सरकार" हो।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Russia Draws Red Lines for US

Russia
USA
TALIBAN
Afghanistan
Taliban Crisis

Related Stories

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ

यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 

पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

अमेरिकी आधिपत्य का मुकाबला करने के लिए प्रगतिशील नज़रिया देता पीपल्स समिट फ़ॉर डेमोक्रेसी

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License