NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सबरीमाला प्रकरण से गायब होती नारी
नारियों के अधिकारों की समानता का मुद्दा हाशिए पर चला गया है और चर्चा धर्म पालन की स्वतंत्रता और आस्था के विषयों पर न्यायपालिका के हस्तक्षेप की हो रही है।
डॉ. राजू पाण्डेय
07 Jan 2019
sabrimala
Image Courtesy: ndtv

सबरीमाला (शबरीमला) प्रकरण धीरे-धीरे नारियों के हक की लड़ाई के स्थान पर नारियों के बहाने सत्ता तक पहुंचने के संघर्ष में परिवर्तित हो गया है। यह देखना दुःखद है कि सरकारें और कुछ समुदाय भी न्यायालय के न्यायोचित निर्णय को अपने मनोनुकूल न पाकर जब मानने से इनकार कर देते हैं तो लोकतंत्र का यह स्तंभ असहाय और निरुपाय हो जाता है। लोकतंत्र को भीड़ तंत्र में बदलते देखना पीड़ादायक है और उससे भी दुःखद है कि यह सब सुनियोजित रूप से संचालित हो रहा है। बहुसंख्यक की तानाशाही और जन भावनाओं की सर्वोपरिता के तर्कों में एक हिंसक आकर्षण होता है और इन्हें सहज ही स्वीकार कर लेने से स्वयं को रोकना मूल प्रवृत्तियों द्वारा संचालित मनुष्य के लिए अत्यंत कठिन होता है। किंतु मूल प्रवृत्तियों का परिष्कार ही मानव सभ्यता के विकास की बुनियाद रहा है और इनसे आधुनिक मानव को संचालित करने के षड्यंत्र को सफल होते देखना किसी आघात से कम नहीं।

यह कहना कि केवल धर्म का विमर्श पितृसत्ता की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए गढ़ा गया है, धर्म के साथ जरा सी ज्यादती है। दरअसल जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में – सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक- पुरुषवाद की निर्णायक छाप स्पष्ट अंकित है। जहां तक धर्म का संबंध है चाहे कोई भी धर्म हो वह नारियों के संबंध में एक जैसी रणनीति का अनुसरण करता है। एक ओर तो नारी के लिए अतिरंजना पूर्ण आदर, सम्मान और श्रद्धा का प्रदर्शन किया जाता है और यह जतलाने की चेष्टा की जाती है कि नारियां इतनी पवित्र हैं कि जरा सा भी बाह्य संपर्क उन्हें दूषित कर सकता है तथा वे इतनी कोमल हैं कि बिना शक्तिशाली पुरुष के संरक्षण के वे सुरक्षित नहीं रह सकतीं। बंधनों में आबद्ध रह कर कारागृह में बंदी का जीवन बिताना उनकी नियति है, इस कारागृह को मंदिर की संज्ञा दी जाती है और बंधनों को पवित्र परंपराओं के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस विमर्श में नारियों को तभी तक पूज्य और देवी स्वरूप माना जाता है जब तक वे इस कारागृह के नियमों का पालन करती रहती हैं। दूसरी ओर संस्थागत धर्म की रूढ़ियों पर आधारित धर्म का व्यवहारिक पक्ष है जो सामाजिक जीवन को नियंत्रित करता है, यहां नारियों को उनकी जैविक विभिन्नताओं के कारण दण्डित किया जाता है। रजस्वला होने पर और गर्भावस्था में उन पर अनेक प्रतिबंध लगाए जाते हैं। कर्मकांड में उनकी भूमिका बहुत सीमित होती है और यह दर्शाया जाता है कि उनके जीवन की सार्थकता पुरुष को संतुष्टि और आनंद प्रदान करने में है। यह धार्मिक विमर्श मरणोत्तर जीवन में भी नारी को पुरुष के मनोरंजन का साधन मानता है और हम जन्नत की हूरों तथा स्वर्ग की अप्सराओं से मिलते हैं। धर्म का दर्शन भी पुरुषवाद की भाषा पर आधारित है। ‘पुरुषार्थ’ पर पुरुषों का विशेषाधिकार है और ‘माया’ मनुष्य की मुक्ति के मार्ग में बाधक है। यह देखना रोचक है कि गॉड और  फादर पुल्लिंग में हैं। विश्व के विभिन्न धर्मों में परमात्मा पुरुषोचित गुणों से युक्त और भाषिक प्रयोग की दृष्टि से पुल्लिंग का आश्रय प्राप्त हैं। अनेक धर्मों में ईश्वर लिंगातीत और लिंग निरपेक्ष है या उभय लिंगी है। जेनेसिस 2 के अनुसार प्रथम स्त्री ईव का निर्माण प्रथम पुरुष आदम की पसली से उसकी सहायिका और सहयोगिनी के रूप में हुआ था। कुरान की अनेक आयतें यह दर्शाती हैं कि अल्लाह ने पुरुष का निर्माण पहले किया और इस प्रथम पुरुष से प्रथम स्त्री गढ़ी गई। यद्यपि इन आयतों की विविध प्रकार से व्याख्या की गई है। विश्व के अधिकांश धर्मों में स्त्री के लिए माता और पत्नी की भूमिकाएं निश्चित की गई हैं। कुछ धर्म स्त्री को वुमन और वर्जिन में वर्गीकृत करते हैं। भारतीय धर्म परंपरा में अर्धनारीश्वर की संकल्पना स्त्री-पुरुष की समानता का आधार बन सकती है और शाक्त परंपरा सृष्टि की संरचना,संचालन और संहार में नारी शक्ति की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करने में सहायक सिद्ध हो सकती है किन्तु सबरीमाला जैसे प्रकरण यह सिद्ध करते हैं कि हमारा धार्मिक विमर्श उदार धार्मिक सिद्धांतों से संचालित नहीं है अपितु इन समावेशी और उदार दार्शनिक आधारों को एक आवरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जिसके पीछे शोषण और असमानता का खेल जारी रखा जा सके। इनकी भूमिका शोषणमूलक और विभेदकारी समाज को बनाए रखने के पक्षधर विद्वानों के तर्कों को धार प्रदान करने तक सीमित हो गई है। अनेक देशों के सामाजिक अध्येताओं के शोध-अध्ययन यह दर्शाते हैं कि जिन देशों में धर्म का प्रभाव कम है वहां नारियों की स्थिति उन देशों से कहीं बेहतर है जो धर्म के द्वारा संचालित हैं या जहां धर्म केंद्रीय भूमिका में है। कुछ अध्ययनों के अनुसार बौद्ध और ईसाई धर्म का अनुसरण करने वाले देशों में हिन्दू और इस्लाम धर्मावलंबियों की बहुलता वाले देशों की तुलना में नारियों की स्थिति थोड़ी बेहतर है।(कामिला क्लिंगोरोवा व सहयोगी, जेंडर इनइक्वलिटी: द स्टेटस ऑफ वीमेन इन द सोसाइटीज़ ऑफ वर्ल्ड रिलिजन्स, मोरावियन ज्योग्राफिकल रिपोर्ट्स, फरवरी 2015)।

सबरीमाला प्रकरण पितृसत्ता की उस रणनीति का एक आदर्श उदाहरण है जो नारी के आक्रोश को हानिरहित, अनावश्यक और महत्वहीन मुद्दों की ओर भटकाए रखती है जिससे कि नारी के स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक समानता जैसे बुनियादी मुद्दे चर्चा से बाहर बने रहें। 

न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध धर्म परंपरा की दुहाई देते कट्टरपंथी आंदोलन कर रहे हैं। न्यायालय के निर्णय का क्रियान्वयन एक चुनौती बन गया था। दो महिलाओं के प्रवेश के बाद मंदिर का शुद्धिकरण किया गया और इनके मंदिर प्रवेश के विरोध में हिंसक और उग्र प्रदर्शन हुए हैं। राज्य सरकार पर प्रदर्शनकारियों के दमन के आरोप लगाए जा रहे हैं और हिंसा को राज्य प्रायोजित बताया जा रहा है। एक नैरेटिव यह भी बनाया जा रहा है भगवान अयप्पा की वंचितों में लोकप्रियता के कारण धर्मांतरण करने वाली शक्तियां अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पा रही थीं इसीलिए मंदिर को लेकर यह विवाद उत्पन्न किया गया है। महिलाओं के मंदिर प्रवेश का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी हैं। नारियों के अधिकारों की समानता का मुद्दा हाशिए पर चला गया है और चर्चा धर्म पालन की स्वतंत्रता और आस्था के विषयों पर न्यायपालिका के हस्तक्षेप की हो रही है। धर्म को राजनीतिक विमर्श के केंद्र में लाने की इस चेष्टा में नारियों को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और कट्टरपंथियों का प्रगतिशील शक्तियों द्वारा उग्र विरोध न चाहते हुए भी इन कट्टरपंथियों के एजेंडे को न केवल जिंदा रख रहा है बल्कि इसे मजबूती भी दे रहा है।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में (विशेषकर नारियों के संदर्भ में) बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले केरल में जहां वामपंथी विचारधारा की लोकप्रियता का सुदीर्घ इतिहास रहा है और जहां सुस्थिर और परिपक्व गठबंधन की राजनीति का बोलबाला रहा है, जब जनसंख्या की धार्मिक संरचना की चर्चा होने लगे तो यह समझ लेना चाहिए कि मामला नारियों के अधिकार का तो बिल्कुल नहीं है। चर्चा यह हो रही है कि केरल की 54.7 प्रतिशत हिन्दू आबादी क्या एकजुट होकर 26.5 प्रतिशत मुस्लिम और 18.3 प्रतिशत ईसाई आबादी का मुकाबला कर पाएगी। प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या नायर समुदाय में व्याप्त आक्रोश को समग्र हिन्दू समाज में फैलाया जा सकता है और क्या सबरीमाला दक्षिण की अयोध्या का रूप लेने जा रहा है? केरल को यह गौरव प्राप्त है कि वह पुदुच्चेरी (पॉन्डिचेरी) के बाद सर्वाधिक बेहतर स्त्री-पुरुष अनुपात वाला राज्य है और यहां 1000 पुरुषों पर 1084 स्त्रियों की जनसंख्या है। यहां महिला साक्षरता की दर 92.7 प्रतिशत है। किन्तु इन महिलाओं और इनकी अपेक्षाओं की चर्चा विमर्श से गायब होती जा रही है।

विकास के केरल मॉडल की चर्चा हमेशा होती रही है। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स के पैमानों पर केरल कई विकसित देशों से भी आगे रहा है। स्वास्थ्य मानकों, शिक्षा, नारी के समग्र विकास आदि में केरल की उपलब्धियां शानदार रही हैं। यह प्रदेश राजनीतिक सक्रियता और राजनीति में जन भागीदारी के लिए विख्यात रहा है। ऐसे अग्रणी और प्रगतिशील राज्य में यदि कोई गठबंधन इसलिए अपनी सफलता बरकरार रख सकता है कि वह किसी धर्म विशेष का विरोधी है या कोई राजनीतिक दल इसलिए पहली बार सत्ता तक पहुंच जाता है कि वह किसी धर्म विशेष का समर्थक है तो यह बुनियादी मुद्दों और सरोकारों से जुड़ी विकास केंद्रित राजनीति की ही पराजय होगी भले ही चुनावों का परिणाम जो भी हो।

देश की आधी आबादी की नियति यह है कि वह पुरुष सत्ता से अपने लिए विशेष दर्जे और संरक्षण-आरक्षण की मांग करती रहे और उसके लिए अलग मंत्रालय और विभाग बनाए जाते रहें। उसे शिक्षा पाने, इलाज कराने, न्याय प्राप्त करने और लोकतांत्रिक सत्ता में अपना हिस्सा पाने के लिए कृपालु पुरुषों की अतिशय उदारता पर आश्रित रहना पड़े जो समय समय पर उसके उत्थान के लिए अनेक कार्य करते रहे हैं। कभी कभी वह आंदोलित भी होती है और उदार पितृसत्ता दया कर उसकी झोली में कुछ अधिकार डाल देती है। हो सकता है कि सबरीमाला मामले में भी कोई बीच का रास्ता निकले और नारियों के लिए कोई निश्चित दिन और समय तय कर दिया जाए जब वे मंदिर में प्रवेश कर भगवान के दर्शन कर सकें। किन्तु क्या इसे उपलब्धि कहा जा सकता है? दरअसल नारियों का मंदिर प्रवेश, धार्मिक असमानता की समाप्ति तथा शोषणमूलक धर्म तंत्र के नकार का उद्घोष कम अपितु असमानता पैदा करने वाली धार्मिक व्यवस्था में किसी तरह स्थान प्राप्त कर, जाने अनजाने उसकी सर्वोपरिता को स्वीकृति देने की नारी की चेष्टा अधिक प्रतीत होता है। दार्शनिक दृष्टि से भी मंदिर प्रवेश की यह लालसा, आस्था का अंत नहीं है न ही यह तर्क की विजय है। इसे आस्था को तर्क सम्मत बनाने की कोशिश अवश्य कहा जा सकता है। यह प्रयास आकर्षक अवश्य है किंतु दोषपूर्ण है क्योंकि तर्क की समाप्ति ही आस्था का प्रारंभ है। 

जब नारी यह मान लेती है कि उसका चरम विकास पुरुष बन जाने में है तो यह पुरुषवादी व्यवस्था के आधिपत्य का सूक्ष्मतम और सर्वाधिक परिष्कृत रूप होता है। नारी पुरुष को प्राप्त अधिकारों की प्राप्ति के लिए उसके पीछे दौड़ लगाती बिल्कुल पुरुष की छाया की भांति लगती है और यही पुरुष की गुप्त इच्छा भी होती है।

Sabrimala Temple
sabrimala temple issue
Women Rights
Gender Equality
Kerala
BJP-RSS
Hindutva Agenda
hindutva terorr

Related Stories

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

लखनऊ विश्वविद्यालय: दलित प्रोफ़ेसर के ख़िलाफ़ मुक़दमा, हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं!

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी

भारत में सामाजिक सुधार और महिलाओं का बौद्धिक विद्रोह

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License