NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
सीएबी-एनआरसी : हमें नाज़ी जर्मनी से क्या सीख लेनी चाहिए?
नाज़ी निज़ाम में यहूदियों को अलग-थलग करने और अंततः उनका निशान मिटाने के लिए क़ानूनी परिवर्तन लाए गए थे, इसने आरएसएस के मुख्य विचारक एम.एस. गोलवलकर को बेहद प्रेरित किया था।
सुबोध वर्मा
11 Dec 2019
Translated by महेश कुमार
सीएबी-एनआरसी

कल रात, लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक (सीएबी), 2019 पारित हो गया, जो अब चर्चा और मत के लिए राज्यसभा के सामने आएगा। इसके साथ ही भारत अब नागरिकता के आधार में धर्म को शामिल करने वाला शायद एकमात्र देश बन गया है। बेशक, क़ानून केवल तीन पड़ोसी देशों के प्रवासियों के लिए है। लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने फिर से सदन में कहा कि नागरिकता साबित करने के लिए देशव्यापी कवायद की शुरुआत जल्द ही की जाएगी। और इसे नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) कहा जाएगा।

अगर एक साथ देखा जाए तो यह विशाल और हिंसक अभियान देश में भविष्य में धार्मिक अल्पसंख्यकों को होने वाले अत्यधिक नुक़सान की ओर इशारा करता है। 1933 में नाज़ियों के सत्ता में आने के बाद जर्मनी में जो हुआ उसकी भयावहता आँखों के सामने घूम जाती है। क्योंकि उन्होंने भी यहूदियों के साथ भेदभाव की शुरुआत क़ानून में बदलाव के ज़रीये की थी।

हालाँकि भारत आज 1930 और 1940 के जर्मनी की तरह नहीं है, फिर भी यह मानना भोलापन होगा कि नाज़ियों ने कैसे यहूदियों को निशाना बनाया था और अंततः लगभग 60 लाख यहूदियों का सफ़ाया कर दिया था। इसकी शुरुआत क़ानूनों में बदलाव के साथ हुई और फिर सड़कों पर हिंसा का तांडव चला।

नाज़ी जर्मनी में क्या हुआ था

1920 में नाज़ी पार्टी ने 25-सूत्रीय कार्यक्रम को परिभाषित करते हुए और यहूदियों को ‘आर्यन’ समाज से अलग करने और उनके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों को समाप्त करने के अपने उद्देश्य प्रकट किया था। 1933 में सत्ता में आने के बाद, नाज़ियों ने यहूदियों को अलग-थलग करने के लिए क़ानूनों और नियमों में बदलाव लाकर अपने उद्देश्य की ओर तेज़ी से बढ़ना शुरू कर दिया। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रांतीय तक, सभी स्तरों पर लगभग 2,000 ऐसे वैधानिक परिवर्तन लाए गए थे। इनमें से कुछ यहूदी विरोधी कानून नीचे सूचीबद्ध हैं (ब्रिटिश लाइब्रेरी और विभिन्न स्रोतों से लिया गया है):

    • 1933: यहूदियों को सरकारी सेवा से हटाने के लिए नया क़ानून लाया गया; यहूदियों को वकील बनने की मनाही की गई; पब्लिक स्कूलों में यहूदी छात्रों की संख्या को सीमित किया गया; देशीय यहूदियों और "अवांछनीय" यहूदियों की नागरिकता को रद्द किया गया; उन्हें संपादकीय पदों से प्रतिबंधित किया गया; 'कोषेर' पर प्रतिबंध लगाया गया जो पारंपरिक पशुओं का वध का रिवाज था।

    • 1934: यहूदी छात्रों को दवा चिकित्सा, दंत चिकित्सा, फ़ार्मेसी और क़ानून की परीक्षा में बैठने से रोका गया; साथ ही यहूदियों को सैन्य सेवा से भी बाहर कर दिया गया।

    • 1935: बदनाम नुरेम्बर्ग क़ानून: जर्मन यहूदियों को राईक की नागरिकता से बाहर करना और मतदान का अधिकार छिन लेना; उन्हें "जर्मन या जर्मन-संबंधित रक्त" वाले व्यक्तियों के साथ विवाह करने या यौन संबंध बनाने से रोका गया।

    • 1935-36: यहूदियों का पार्क, रेस्तरां और स्विमिंग पूल में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था; बिजली/ऑप्टिकल उपकरण, साइकिल, टाइपराइटर या रिकॉर्डस के इस्तेमाल की अनुमति नहीं थी; जर्मन स्कूलों और विश्वविद्यालयों से यहूदी छात्रों को निरस्त कर दिया गया; यहूदी शिक्षकों को सरकारी स्कूलों से प्रतिबंध कर दिया गया था।

    • 1938: यहूदियों को विशेष पहचान पत्र जारी किए गए; यहूदियों को सिनेमा, थिएटर, संगीत, प्रदर्शनियों, समुद्र तटों और छुट्टी मनाने के रिसॉर्ट्स से बाहर कर दिया गया; उन्हें अपने नाम के साथ ’सारा’ या  ‘इज़रायल’ जोड़ने के लिए मजबूर किया गया; यहूदियों के पासपोर्ट पर लाल अक्षर 'जे' की मुहर लगाई जाती थी।

    • 9-10 नवंबर की रात को (जिसे क्रिश्चनल्चैट या फिर ब्रोकन ग्लास की रात कहा जाता है) यहूदियों के ख़िलाफ़ देशव्यापी हिंसा की गई और उनकी धार्मिक सभा स्थलों तथा दुकानों को नष्ट कर दिया गया।

    • 1939: कई यहूदियों को उनके घरों से बेघर कर दिया गया; यहूदियों के रेडियो ज़ब्त किए गए; यहूदियों को बिना किसी मूआवज़े के राज्य को सभी सोने, चांदी, हीरे और अन्य क़ीमती सामान को सौंपने को कहा गया; यहूदियों पर हर समय कर्फ़्यू बरपा रहता था। 

    • 1940: यहूदियों के टेलीफ़ोन ज़ब्त कर लिए गए; युद्ध के समय कपड़ों के लिए राशन कार्ड बंद कर दिए गए।

    • 1941: यहूदियों को सार्वजनिक टेलीफ़ोन के इस्तेमाल की मनाही थी; पालतू जानवरों को रखने की मनाही थी; और देश छोड़ने की भी मनाही थी।

    • 1942: यहूदियों के फ़र कोट, ऊनी आइटम ज़ब्त किए गए; उन्हे अंडे या दूध हासिल करने की अनुमति नहीं थी।

यह तो केवल कुछ क़ानूनी परिवर्तनों की कहानी है। लेकिन असलियत में, यहूदियों के साथ-साथ रोमा लोगों, यौन अल्पसंख्यकों, ट्रेड यूनियनवादियों, कम्युनिस्टों और सोसियल डेमोक्रेट, अश्वेतों तथा सभी ग़ैर-आर्यों को सबसे भयावह तरीक़े से प्रताड़ित किया गया था और उन्हें मार डाला गया था। अक्सर, इन क़ानूनों का इस्तेमाल हिंसा बरपाने के लिए किया जाता था। नाज़ी ज़ुल्मकारों ने उन नीतियों को लागू किया, जिन्हें फ़ासीवादी शासकों और इसके फुहेर यानी एडोल्फ़ हिटलर की पूरी तरह से मंज़ूरी थी। 

सीएबी और देशव्यापी एनआरसी की वैचारिक जड़ 

यह याद रखने की बात है कि आरएसएस ने हमेशा नाज़ियों के विचारों की सराहना की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सुप्रीमो और प्रमुख विचारक एम.एस. गोलवलकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "वी-एंड अवर नेशनहुड डिफ़ाइंड" में कहा है कि:

जर्मनी ने यहूदी नस्ल का शुद्धिकरण करके दुनिया को चौंका दिया है। उसने ऐसा कर अपनी नस्ल के उच्चतम गौरव को हासिल किया है। जर्मनी ने यह भी दिखाया है कि भिन्न नस्ल और संस्कृतियों के लिए यह कितना असंभव है, कि उनके जड़ों में अंतर होने के कारण उन्हें आपस में आत्मसात नहीं किया जा सकता है, हिंदुस्तान में हमारे लिए सीखने के लिए और इससे लाभ उठाने का एक अच्छा सबक है। (p.87-88)

गोलवलकर हिंदू राष्ट्र को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि "वे सभी लोग जो राष्ट्रीयता से संबंध नहीं रखते हैं वे यानी जो हिंदू नस्ल, धर्म, संस्कृति और भाषा से संबंधित नहीं हैं, स्वाभाविक रूप से वास्तविक 'राष्ट्रीय' जीवन से बाहर हो जाते हैं।" (p.99) ऐसे लोगों को विदेशी माना जाएगा यदि वे "अपने नस्लीय, धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों को बनाए रखते हैं।" (p.101)

संघ विचारक तब इसे अधिक स्पष्ट शब्दों में यहाँ बताते हैं:

हिंदुस्तान में विदेशी नस्लों को या तो हिंदू संस्कृति और भाषा को अपनाना होगा, और हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा और सम्मान करना सीखना होगा, किसी अन्य विचार को अपनाए बिना सिर्फ़ हिंदू नस्ल और संस्कृति के गौरव को, यानी हिंदू राष्ट्र और हिंदू नस्ल में विलय करने के लिए अपने अलग अस्तित्व को खोना होगा, ऐसा कर वे देश में रह सकते हैं, हिंदू राष्ट्र के पूर्ण अधीन होकर बिना किसी भी तरह के दावे के, उनका  कोई विशेषाधिकार भी नहीं होगा, उन्हें बहुत कम तरजीह दी जाएगी - यहां तक कि उन्हें नागरिक अधिकार भी हासिल नहीं होंगे। (p.105)

अंतिम वाक्यांश पर ध्यान दें - यह वही है जिसे वर्तमान सरकार तैयार कर रही है। सीएबी इस विचार की आख़िरी कील है। एनआरसी एक व्यापक और गहरे विभाजन के लिए क़ानूनी आधार तैयार करेगा।

भारत इस समय, फ़िलहाल इसके कहीं नज़दीक नहीं है - और, इस तरह के सभी क़दमों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध होगा, जैसा कि वर्तमान में सीएबी के ख़िलाफ़ हो रहा है, देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ लग गई है। लेकिन, हमें इतिहास से सबक सीखने की ज़रूरत है - अन्यथा, हमें इसे दोहराने के लिए दोषी माना जाएगा।

Nazi Germany
Persecution of Jews
CAB/NRC
RSS
Golwalkar
Fascism
Nazi Party Legal Changes
Far right
Hindutva
Sangh Parivar
CAB Protests

Related Stories

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप

अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत
    14 May 2022
    देश में आज चौथे दिन भी कोरोना के 2,800 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। आईआईटी कानपूर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. मणींद्र अग्रवाल कहा है कि फिलहाल देश में कोरोना की चौथी लहर आने की संभावना नहीं है।
  • afghanistan
    पीपल्स डिस्पैच
    भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी
    14 May 2022
    आईपीसी की पड़ताल में कहा गया है, "लक्ष्य है कि मानवीय खाद्य सहायता 38% आबादी तक पहुंचाई जाये, लेकिन अब भी तक़रीबन दो करोड़ लोग उच्च स्तर की ज़बरदस्त खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। यह संख्या देश…
  • mundka
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?
    14 May 2022
    मुंडका स्थित इमारत में लगी आग तो बुझ गई है। लेकिन सवाल बरकरार है कि इन बढ़ती घटनाओं की ज़िम्मेदारी कब तय होगी? दिल्ली में बीते दिनों कई फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों में आग लग रही है, जिसमें कई मज़दूरों ने…
  • राज कुमार
    ऑनलाइन सेवाओं में धोखाधड़ी से कैसे बचें?
    14 May 2022
    कंपनियां आपको लालच देती हैं और फंसाने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के तौर पर कहेंगी कि आपके लिए ऑफर है, आपको कैशबैक मिलेगा, रेट बहुत कम बताए जाएंगे और आपको बार-बार फोन करके प्रेरित किया जाएगा और दबाव…
  • India ki Baat
    बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून
    13 May 2022
    न्यूज़क्लिक के नए प्रोग्राम इंडिया की बात के पहले एपिसोड में अभिसार शर्मा, भाषा सिंह और उर्मिलेश चर्चा कर रहे हैं बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून की। आखिर क्यों सरकार अड़ी हुई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License