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शिक्षा
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राजनीति
शिक्षकों को लगातार नियंत्रित करती दिल्ली सरकार!
लेखक कौशलेन्द्र प्रपन्न के जनसत्ता में छपे लेख के बाद सरकार की तरफ़ से उनका मानसिक उत्पीड़न किया गया, और उनकी कंपनी पर उन्हें काम से निकालने का दबाव बनाया गया, जिसके बाद वो कई दिनों से ICU में भर्ती हैं।
मुकुंद झा
12 Sep 2019
Kaushlendraprapanna

दिल्ली के स्कूलों में शिक्षक किस दबाव में काम कर रहे हैं? वहाँ के स्कूलों की में जो शिक्षक पढ़ा रहे हैं, उनकी मानसिक स्थिति क्या है? इन सभी विषयों को लेकर कौशलेंद्र प्रपन्न, जो एक लेखक हैं और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार को लेकर काम करते हैं, वो इन सभी विषयों को लेकर लिखते रहे हैं। उन्होंने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था “शिक्षा: न पढ़ा पाने की कसक” जिसे पिछले 25 अगस्त को जनसत्ता के संपादकीय पेज पर प्रकाशित किया गया था।

उस लेख के बाद पहले तो उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और फिर वो जिस संस्था(टेक महिंद्रा) के लिए काम करते थे, उस पर दबाव डालकर, उनसे उनका इस्तीफ़ा ले लिया गया। इस पूरी घटना से वो इतने आहत हुए कि उन्हें 5 सितंबर को दिल क दौरा पड़ा। अभी वो आईसीयू में है और बीते 7 दिनों से अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं।

आपको बताते चलें कि इस लेख में सरकार की कुछ हद तक आलोचना भी की गई थी। सबसे अधिक आलोचना दिल्ली सरकार और एमसीडी के स्कूलों की की गई थी।

kaushlendra.jpg

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि दिल्ली या देश की शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल है! ख़ासतौर पर प्राथमिक शिक्षा का! कौशलेंद्र प्रपन्न इस क्षेत्र में काफ़ी समय से काम कर रहे हैं। इसके लिए उनकी कई बार तारीफ़ भी हुई है यहां तक कई बार उनके काम को देखते हुए उन्हें विदेश से बुलावा आया है। लेकिन इस पूरी घटना ने हमारी शिक्षा व्यवस्था के उस डर को भी उजागर किया है कि कैसे वो अपनी ग़लत नीतियों पर बात भी नहीं करना चाहती है। इस तरह की कार्रवाई दरअसल एक संदेश होती है कि अगर आप बोलेंगे तो आपके क्या हश्र किया जाएगा!

इस पूरी घटना के बाद कई लोगो ने कौशलेंद्र के समर्थन में लिखा है और उन पर की गई प्रताड़ना की आलोचना की है। ऐसे ही एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दीपक कुमार हैं। इन्होंने इस पूरी घटना को लेकर अपनी एक विस्तृत टिप्पणी फ़ेसबुक पर लिखी है।

उन्होंने कहा है, "आज आप यह सुनकर दुख जताएंगे, शोक मनाएंगे या रुदाली गाएंगे! पेशे से शिक्षक, पत्रकार, शिक्षा में नए प्रयोग करने वाले व्यक्ति और चिंतक कौशलेंद्र प्रपन्न इस भ्रष्ट, निर्लज्ज और संवेदहीन सिस्टम का शिकार होकर हमारे शहर के एक अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच पिछले पांच दिन से जूझ रहे हैं, क़सूर जानिएगा? उनका क़सूर था एक लेख जिसे पिछले 25 अगस्त को उन्होंने जनसत्ता के संपादकीय पेज पर लिखा था... "शिक्षा: न पढ़ा पाने की कसक"।

आगे उन्होंने कहा, "उन्होंने यह लेख क्या लिखा, MCD के स्कूल प्रशासक और दिल्ली टेक महिन्द्रा फ़ाउंडेशन की मानो चूलें हिल गईं। इस लेख में उन्होंने नगर निगम के स्कूलों के क़ाबिल और उत्साही शिक्षकों की पीड़ा की चर्चा की थी। उनका कहना था कि आजकल शिक्षक चाह कर भी स्कूलों में पढ़ा नहीं पा रहे हैं। पठन- पाठन के अलावा, शिक्षकों के पास ऐसे कई दूसरे सरकारी काम होते हैं. इससे उनकी शिक्षा में कुछ नए प्रयोग करने की प्रक्रिया थम सी जाती है।"

उनकी पूरी टिप्पणी निचे है पढ़ सकते है।

पत्रकार-साहित्यकार प्रिय दर्शन ने अपनी टिप्पणी में कहा है, "यह बात और स्तब्ध करती है कि उनको टेक महिंद्रा ने नौकरी से सिर्फ़ इस बात के लिए निकाल दिया कि उन्होंने एक लेख लिखा था जिसमें सरकार की शिक्षा नीति के बारे में कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां थीं। जबकि शिक्षा के प्रश्नों पर काम कर रहे कौशलेंद्र जैसे संजीदा लोग कम हैं। टेक महिंद्रा के लिए उन्होंने बहुत सारे अनूठे काम किए थे और उनकी परियोजनाओं से हिंदी के लेखकों को जोड़ा था। उनके क़रीबी लोग बता रहे हैं कि यह लेख लिखने पर उनको बहुत अपमानित किया गया था।"

शिक्षाविद प्रो अनीता रामपाल ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "कौशलेन्द्र ने सिर्फ़ सीसीटवी को लेकर ही नहीं सवाल उठाए उन्होंने इससे पहले कई बार दिल्ली में शिक्षा और शिक्षकों की हालत पर लिखा है।  कोश्लेंद्र ने अपने सभी लेखों में यह बताया है कि कैसे शिक्षक अपने छात्रों को पढ़ाना चाहता है लेकिन उसपर अन्य कामों का इतना दबाव होता है कि वो आज चाहकर भी बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहा है।"

अनीता ने आगे एक और गंभीर सवाल उठाया कि कैसे दिल्ली सरकार लगातार शिक्षकों को एक डरा रही है, वो अगर कुछ बोलते हैं तो उन्हें सीधे संस्पेंड करने की धमकी दी जा रही है। उन्होंने कहा, "इसके अलावा उनपर लगातार निगरानी रखी जा रही है जिससे वो भरी तनाव में हैं। अभी कुछ समय पहले दिल्ली सरकार ने अपने सभी शिक्षकों को एक टैबलेट ख़रीदने का आदेश दिया था और कहा था कि वो सभी छात्रों की ऑनलाइन हाज़िरी लगाए। इसको लेकर कई शिक्षकों ने आपत्ति जताई थी; शिक्षकों ने कहा कि इसका पढ़ाई में क्या उपयोग है जबकि हर स्कूल में एक कंप्यूटर ऑपरेटर है जो हाज़िरी को अपलोड करता है तो फिर शिक्षकों को यह अतिरिक्त काम क्यों दिया जा रहा है? इस पर भी दिल्ली सरकार ने कोई जबाव नहीं दिया है।"

इसके अलावा दिल्ली सरकार की शिक्षा नीति को लेकर भी कई गंभीर सवाल हैं, एक तरफ़ तो दिल्ली सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था सबसे उत्तम है, और उसने इस क्षेत्र में क्रन्तिकारी बदलाव किये हैं। लेकिन क्या ये सच है? इसपर कई सवाल हैं क्योंकि अगर हम सिर्फ़ आधार-भूत ढाँचे की बात करें तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिल्ली सरकार ने अच्छा काम किया है। लेकिन क्या शिक्षा और शिक्षण में कोई क्रांतिकारी बदलाव किया गया है? शायद नहीं! 

बल्कि उसने कई क़दम ऐसे उठाए हैं जिसने हज़ारों की संख्या में छात्रों को स्कूल से बाहर किया है। जैसी कि दिल्ली सरकार की नीतियाँ हैं कि अगर कोई बच्चा फ़ेल होता है तो उसे स्कूल से बाहर कर दिया जाता है। जोकि उस बच्चे के शिक्षा के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ है। फ़ेल होना कोई जुर्म तो नहीं है कि उसके बाद उसके पढ़ने के अधिकार को छीन लिया जाए! सरकार ने फ़ेल होने वाले बच्चों को पढ़ाई से ही वंचित कर दिया है।

दिल्ली सरकार की कई नीतियों पर कई शिक्षाविदों ने आपत्ति जताई है लेकिन दिल्ली सरकार किसी को सुनने के लिए तैयार नहीं है। वो अपना एकतरफ़ा काम कर रही है। और प्रचार तंत्र कह रहा है कि दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की है! जबकि हक़ीक़त ये है कि उसने शिक्षा के क्षेत्र में पढ़ने वाले शिक्षकों पर भय और काम का दबाव क़ायम करने का काम किया है। उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, और शिक्षकों को उनके मौलिक अधिकार दिये बिना शिक्षा में सकारात्मक और गुणात्मक परिवर्तन संभव ही नहीं है।

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