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राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
स्कॉटलैंड: जोकि लगभग देश बन गया था
डी. रघुनन्दन
26 Sep 2014

जैसे ही 19 सितम्बर 2014 को दिन का आगमन हुआ, एक आज़ाद स्कॉटलैंड काफी नज़दीक था, लेकिन इतना भी नज़दीक नहीं जितना कि सोचा था। अब यूनियन जैक में नीली पृष्ठभूमि के साथ साल्टायर या स्कॉटिश झंडा बनाने वाली सफेद विकर्ण धारियां होंगी। स्वतंत्रता के पक्ष में 45% ने हां कहा और 55% ने नहीं कहा जोकि जनमत सर्वेक्षणों की पूर्व संध्या पर किये गए  जनमत संग्रह के अनुमान की तुलना में एक बड़ा फांसला है। दूसरी तरफ आजादी के पक्ष में अभियान मध्य स्तर तक काफी नज़दीक पहुँच गया था जैसा कि व्यापक रूप से सभी ने कुछ महीन पहले तक विश्वास किया था। आखरी के कुछ हफ़्तों में अभियान हाँ के पक्ष में जयादा था लेकिन नतीजे बताते हैं कि काफी लोग आखिर तय नहीं कर पाए थे कि वे किस ओर जाएँ – शायद अघोषित कहना ज्यादा ठीक होगा – इन्हें आज़ादी थोड़ी महँगी लगी या वे इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते थे कि क्या सही है, इसलिए इस तबके ने ब्रिटेन के साथ रहने के लिए अपना वोट दिया।

बेचैनी ने इसे और हवा दी

32 में से 28 परिषदों ने न के लिए वोट किया और इनमे से बहुत ने बड़े बहुमत से न के लिए वोट दिया। स्कॉटलैंड के सबसे बड़े शहर ग्लासगोव जहाँ मजदूर वर्ग की तादाद सबसे ज्यादा है और बहुतायत बेरोजगारी है ने हाँ में वोट दिया, लेकिन वह भी काफी कम बहुमत से जबकि इस क्षेत्र में पर्याप्त मतदाता हैं जो पड़ोसी दुन्बर्तोंशिरे, लंकाशायर और डंडी के अधिक रूढ़िवादी ग्रामीण या मध्यम वर्ग के क्षेत्रों में न का मुकाबला कर सकते थे। राजधानी एडिनबर्ग, होल्य्रूद  जहाँ स्कॉटलैंड की संसद है ने संघ के पक्ष में आश्चर्यजनक 60% मतदान किया। स्वतंत्रता समर्थक और कई टिप्पणीकारों, ने आजादी की विफलता को  "परियोजना डर" बताया, इस तरह आज़ादी के अभियान के खिलाफ रणनीति का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि मतदाताओं को मौजूदा पेंशन और भविष्य की नौकरियों, यूरोपीय संघ और नाटो सदस्यता के बारे में अनिश्चितता, पौंड स्टर्लिंग की वापसी, के रूप में स्कॉटिश स्वतंत्रता के संभावित नकारात्मक प्रभावों के साथ मतदाताओं को डराया गया।

जबकि संघवादी पार्टियाँ और समर्थक भावी नतीजों के प्रति कुछ ज्यादा ही इतराए हुए थे, और आजादी के समर्थकों ने बड़े हिस्से की बैचैनी को समझने में भूल की और वे उन्हें परेशान कर सवालों का जवाब भी नहीं दे पाए। स्कॉटलैंड के प्रथम मंत्री अलेक्स साल्मोंड ने आजादी के पक्ष में काफी शानदार अभियान चलाया, लेकिन जनमत संग्रह के नतीजों के तुरंत बाद उनका स्कॉटिश सरकार और स्कॉटिश राष्ट्रीय पार्टी से इस्तीफा देना इस बात का सबूत है कि वे अपने अभियान में असफल रहे और जिसकी वजह से वे मतों के आधे प्रतिशत तक नहीं पहुंचे।

आज़ादी के पक्ष में आन्दोलन राष्ट्रवाद से कुछ आगे था

यद्दपि स्कॉटलैंड ने ब्रिटेन में रहने का फैसला किया है, लेकिन तथ्य यह है कि 5 स्कॉट नागरिकों में से 2 ने ब्रिटेन छोड़ने के लिए वोट किया है। जनमतसंग्रह के नतीजों ने दोनों तरफ के लोगों को परेशान करने वाले बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं, इसके लिए काफी सबक सिखने होंगें।

केवल स्कॉटलैंड ही नहीं बल्कि वेल्स, उत्तर आयरलैंड, इंग्लैंड और पूरे संघ को इसका रास्ता खोजना होगा। स्कॉटलैंड जनमत संग्रह की प्रक्रिया ने गौर से जिन अन्य अशांत क्षेत्रों ने देखा है वे हैं स्पेन में कातालुनिया, बेल्जियम में फ्लेमिश हिस्सा, पूर्वी यूक्रेन के रूसी बहुल क्षेत्र और नियंत्रण रेखा के दोनों और के कश्मीर शामिल हैं।

स्कॉटिश स्वतंत्रता के लिए अभियान की उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक उनकी अपील जिसमें उन्होंने  राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक अपवाद से परे हट कर बात कही या मतदाताओं से अपील की। निस्संदेह कुछ समर्थकों ने किल्ट्स, टैटन प्लेड, बैगपाइप और पारंपरिक स्कॉटिश हाइलैंड का अभियान के दौरान प्रदर्शन किया ज्यादातर अभियान बजाय पिछड़ी स्कॉटिश इतिहास की तरफ जाने के भविष्य में एक अलग ही भविष्य/समाज की तरफ जाने का था। प्रसिद्ध स्कॉट्स कुलीन परिवार जिनके कि करीब 500 परिवार हैं, के बीच स्कॉटलैंड की भूमि का 75% से अधिक इनके जमींदारों के पास है और इसीलिए इन्होने संघ के साथ रहने के लिए अभियान चलाया, और अद्वितीय स्कॉच व्हिस्की डिस्टिलरीज के मालिक भी न के पक्ष में थे। युवा मतदाता, निचले दर्जे के कर्मचारियों, और वंचित और बेदखल वर्गों, ने स्वतंत्रता का समर्थन किया। दोनों पक्षों का गहराई से चला अभियान सहभागी लोकतंत्र में चुस्ती प्रदान करने वाला अभियान था, जिसने उनके जीवन को छुआ और कई मुद्दों पर चर्चा करने के लिए (यहाँ 16 से अधिक के रूप में परिभाषित) लगभग सभी वयस्क नागरिकों को प्रेरित किया।

बाहरी लोगों ने स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी को गलती से राष्ट्रवादी ताकत मान लिया, जबकि इसने वास्तविक रूप से आज़ादी के अभियान को व्यापक सामाजिक-आर्थिक और राजनितिक मुद्दों जैसे मुक्त शिक्षा,(टोरी सरकार द्वारा टूशन फीस बढाए जाने के खिलाफ छात्रों के विरोध की रौशनी में) राष्ट्रीय स्वास्थ्य चिकित्सा को पुनर्जीवित करने और मज़बूत करने, कल्याणकारी राज्य को मजबूत बनाने, एक उपयुक्त सुधार वाला आयकर निजाम, और अन्य उपायों की मांग ताकि अत्यधिक असमान ब्रिटेन (यूरोप में सबसे आस्मां समाज) समाज में समानता को बढ़ावा दिया जा सके,की रौशनी में चलाया। हाँ के अभियान ने स्कॉटलैंड में ब्रिटेन के परमाणु पनडुब्बी आधारित निवारक के निष्कासन की मांग भी की। कई मायनों में यह दोनों का एक साथ बेहतर अभियान था जिसने लगातार ब्रिटिश राष्ट्रवाद को अपील की और "ब्रिटिश" होने की भावना को जगाया और 300 साल की उम्र के संघ को बनाए रखा।

आजादी के लिए समर्थक, SNP के अपने समर्थन आधार, के परे से भी आया, इसे देश के व्यापक हिस्से  ने अपनाया जो दो दशक पहले नगण्य था। एशिया की आबादी के बड़े हिस्से ने खासतौर पर सिखों ने और स्कॉटलैंड के अल्पसंख्यकों ने आज़ादी के पक्ष में वोट दिया ताकि वेस्टमिनिस्टर कुलीन वर्ग से उन्हें ज्यादा स्वायत्ता और फैसले लेने की प्रक्रिया में उनका योगदान बढ़ सके। जनमत संग्रह के अध्ययन के अनुसार 27% के आसपास परंपरागत श्रम के समर्थन वर्गों के बड़े वर्ग आज़ादी के पक्ष में आ गए। स्वतंत्रता समर्थक वोट स्पष्ट रूप से वेस्टमिंस्टर की नव उदारवादी परंपरावादी आम सहमति लिबरल डेमोक्रेट और न्यू लेबर को व्यापक अस्वीकृति मिली, यहाँ तक कि तेजी से बढ़ रही दक्षिण पंथी यूके इंडिपेंडेंस पार्टी भी इसे चुनौती नहीं दे पायी। मीडिया ने भी, लगभग सार्वभौमिक रूप से हेराल्ड को ग्लासगो से अलग आकर दिया , और संघ का पक्ष खड़ा हो गया और लगातार आज़ादी चाहने वालों के खिलाफ कहा कि ये तो अधिक सब्सिडी, हैंडआउट्स और खैरात मांगने वाले हैं जोकि एक रूढ़िवादी आलोचना थी।

प्रमुख राजनीतिक दलों की उलझन 

चुनाव के लिए स्कॉटलैंड की लंबे समय से झुकाव को देखते हुए उदाहरण के लिए लेबर पार्टी के  2010 के पिछले चुनाव में वेस्टमिंस्टर के लिए कुल 60 में से 40 लेबर पार्टी के सांसद भेजे, थोड़ा आश्चर्य जनक है कि ब्रिटेन की सभी तीन प्रमुख दलों को मिलाकर एक साथ बेहतर अभियान चलाने के लिए प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन के तहत एलिस्टेयर डार्लिंग, जोकि राजकोष की पूर्व कुलपति थी की अध्यक्षता में चलाया गया था। केवल ब्राउन जिसने कि खुद को इस अभियान में, व्यापक रूप से आखिरी समय में परंपरागत श्रम मतदाताओं के  खास वर्गों को जीताने में कामयाब रहा और इसके लिए उसे जीत का श्रेय जाता है, बावजूद स्कॉटिश लेबर समर्थकों की अरुचि के और यह देखते हुए की अभियान में टोरी के साथ लेबर पूरा साथ दे रही है। टोरी का स्कॉटलैंड से केवल 1 सांसद (लिबरल डेमोक्रेट के 11 है) होने के साथ और प्रधानमंत्री डेविड कैमरून को व्यापक रूप से  वहाँ नापसंद किया जाता रहा है, अभियान को आगे बढाने के लिए और लेबर अभियान के मोर्चे पर लाने के लिए 10 डाउनिंग स्ट्रीट से धक्का दिया गया, डेविड कैमरून ने ठीक ही सफल अभियान के लिए डार्लिंग को बधाई दी। लेकिन संघीय जीत के लिए यह बधाई एक दोधारी तलवार है और लेबर को इसके लिए शायद 2015 में होने वाले आम चुनाव में स्कॉटलैंड में इसके लिए भारी कीमत चुकानी होगी। लेबर नेता एड मिलिबंद लगभग रूप से अप्रभावी है, और वे लगभग औसत मतदाता से पूरी तरह कट चुके हैं। डेविड कैमरून के रूप में स्कॉटलैंड में अभियान नए लेबर नेतृत्व की नई पीढ़ी के लिए शुभ संकेत नहीं देता।

लगभग यूनाइटेड किंगडम के टुकड़े होने जाने के साक्षी, प्रधानमंत्री डेविड कैमरून के तहत टोरी काफी परेशानी हैं। कैमरून का पहला कदम स्कॉटिश संसद को न केवल अधिक से अधिक शक्तियों को हस्तांतरण के अपने वादे पर इनकार कर दिया बल्कि उत्तरी आयरलैंड और वेल्स की सभाओं (कम से कम सशक्त) को भी मना कर दिया। बड़ी चालाकी से उसने जनमत संग्रह अभियान के दौरान इसका पता नहीं चलने दिया। कैमरून ने, इंग्लैंड में एक ही समय सीमा के भीतर तुलनीय हस्तांतरण को देवो मैक्स से जोड़ दिया, जबकि आज भी, वेस्टमिंस्टर में ब्रिटेन की संसद सीधे शासन चलती है, और संस्थागत तंत्र को विकसित करने के लिए "अंग्रेजी कानून के लिए अंग्रेजी वोट" के आधार पर चलती है। (यह तथाकथित पश्चिम लोथियन सवाल है, जिसे कि एडिनबर्ग में एक न्यागत सभा के प्रस्ताव पर चर्चा शुरू की थी और लेबर पार्टी के सांसद जब पहली बार 1977 में इस मुद्दे को उठाया था)

समस्या यह है कि देवो मैक्स ज्यादा वक्त लेगा जैसा कि स्कॉटलैंड में आज़ादी का विरोध करने वालों को उम्मीद नहीं थी, खासकर इंग्लैंड केंद्रित हस्तांतरण शायद अलिखित संविधान को फिर से लिखने में शामिल होगा!  कैमरन को महसूस हो सकता है कि उसने दक्षिणपंथी यूके इंडिपेंडेंस पार्टी को हरा दिया है और गलत रास्ते पर चल रही लेबर को भी सुधार दिया है। लेकिन टोरी अब, स्कॉटलैंड में और ब्रिटेन में एक प्रतिक्रिया और उससे भी अधिक अविश्वास उत्तेजक का जोखिम उठाया है। शायद एक और जनमत संग्रह के आह्वाहन को मांग को बढ़ा देगा। टोरी द्वारा अंग्रेजी राष्ट्रवाद और बहुमतवाद को भड़काने की अनुदारपंथी चाल, केवल आगे चलकर ब्रिटेन से अन्य राष्ट्रीयताओं को विमुख कर सकते हैं।

 मुख्य मुद्दे अब यूनियन को सताएँगे

नतीजो के बावजूद, स्कॉटलैंड जनमत संग्रह ने इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में उसके सहयोगी राष्ट्रवादियों की राजनीतिक संरचना के सन्दर्भ में “बिल्ली को कबूतरों” के बीच छोड़ दिया है। इंग्लैंड में वैसे ही स्कॉटिश हस्तांतरण को लेकर काफी विरोध है और कांसेर्वेटिव एवं यूकेआईपी पार्टियाँ इन विरोधो और मतभेदों को और हवा दे रही हैं।  कुछ सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें सर्वेक्षण के अनुसार 65 फीसदी जनता का समर्थन है। वे सवाल है कि आखिर क्यूँ स्कॉटिश सांसदों को वेस्टमिन्स्टर में इंग्लैंड के मुद्दों पर वोट डालने का अधिकार हो तब जब स्कॉटलैंड की अपनी संसद है?क्यों कुछ स्कॉटिश सांसद इंग्लैंड के मंत्रिमंडल में हैं? और क्यों वे उन मंत्रालयों को इंग्लैंड में सम्हालते हैं जो खुद स्कॉटलैंड में मौजूद हैं?अगर इन सवालों का जवाब संघवाद में छिपा है तो ये किस प्रकार का संघ है? क्या वेस्ट मिन्स्टर में अब भी केन्द्रीय सांसद की जगह बची है? और जब इंग्लिश संसद 85% जनसँख्या को अपने दायरे में लेती है तो क्या उसका अन्य १५ % पे वस्तुतः अधिकार नहीं होना चाहिए?

अब अगली समस्या तब कड़ी होगी जब २०१७ में जनमत संग्रह होगा कि इंग्लैंड को यूरोपियन यूनियन में रहना चाहिए कि नहीं।यूरोपियन यूनियन की सदस्यता आज़ादी के पक्ष में चल रहे प्रचार का एक प्रमुख हिस्सा था। हाँ के पक्ष में चल रहे अभियान ने यूनियन में रहने के फायदे का, जिसके कारण स्कॉटलैंड यूरोपियन यूनियन का हिस्सा रहेगा, का यह कह कर विरोध किया।स्कॉटिश सरकार ने इस पर स्वेत पत्र भी जारी किया। व्यावहारिकता के तौर पर आज़ाद स्कॉटलैंड की मांग करने वाले और हाँ के पक्ष में प्रचार करने वालो ने अन्य समान क्षेत्र वाले राष्ट डेनमार्क और अन्य ईएम सदस्यों का उदाहरन देते हैं।अब अगला मजेदार सवाल यह उठेगा कि 15 प्रतिशत स्कॉटिश जनता वाले इंग्लैंड ने अगर यूरोपियन यूनियन से बाहर जाने का फैसला लिया तो स्कॉटलैंड जैसे उन क्षेत्रो का क्या होगा जो ईयू में रहना चाहते हैं? लेबर, और इंग्लैंड के अन्य लेफ्ट के सामने ऐसे अनेक सवाल है।

अंततः स्कॉटिश जनमत संग्रह ने यूरोप और अन्य राष्ट्रों में एक बेहद ताकतवर लहर खड़ी कर दी है।स्पेन ने कातालुन्या में ऐसे किसी जनमत संग्रह को सिरे से नकार दिया है, जहाँ कई सालों से आज़ादी की मांग चल रही है। स्कॉटिश जनमत संग्रह से पहले स्पेन ने यह घोषणा कर दी थी कि स्कॉटलैंड को ईयू की तुरंत सदस्यता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और स्पेन उसका विरोध करेगा। बेल्जियम ने भी यही बात कही थी। पूर्व यूरोपियन यूनियन कमिश्नर मनुएल बारोसो ने भी कहा कि ईयू में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी एक राष्ट्र से टूट कर बने नए राष्ट को तुरंत ही सदस्यता दे दी जाए।

स्कॉटलैंड जनमत संग्रह के बाद अनेक देशों और समूहों के सामने चिंता की अनेक वजह खड़ी कर दी है। केवल आत्म संकल्प की ही नहीं बल्कि सहभागी लोकतंत्र की भी।

(अनुवाद- महेश कुमार)

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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जोएस मनुएल बारोसो

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