NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
स्नानघर न होने के दंश
सरकार को देश के सबसे उपेक्षित कोने में रह रही सबसे उपेक्षित महिलाओं के साफ सफाई से जुड़े मूलभूत दैनिक व्यवहार को भी समझने की कोशिश की जानी चाहिए।
अजय कुमार
23 Aug 2018
no bathing spaces for indian women
Image Courtesy: Down to Earth

साल 2011 की जनगणना के तहत यह बताया गया कि  तकरीबन 55 फीसदी ग्रामीण घरों में चार दिवारी से घिरा हुआ स्नानागार नहीं है। भारत के सबसे   ग़रीब जगहों की हालत इस मामले में और भी खराब है। तकरीबन 95 फीसदी गरीब इलाकों में घुसलखानों के नाम पर कुछ भी नहीं है।

ऐसे हालात में सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को सहन  करनी पड़ती है। हमारा समाज महिलाओं के रहन-सहन और चाल-चलन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाता है। ऐसे हालात में जरा सोचकर देखिए कि जिन इंलाकों के घरों में  नहाने के लिए ढके हुए जगह नहीं होते होंगे वहां कि महीलाओं के  जीवन में गरिमापूर्ण जिंदगी की क्या हालत होगी ? जब वह खुले में स्नान करने के लिए मजबूर होती होंगी तो उन्हें कैसी तकलीफों का सामना करना पड़ता होगा?

जिन इलाकों में ऐसी बदहाली है, उन इलाकों में महिलाओं को खुले स्थान पर नहाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। महिलाओं के पास और कोई विकल्प नहीं होता उन्हें कपड़े पहनकर नजदीकी नलकूप,कुएं ,तालाब और नदियों में नहाना पड़ता है। साफ-सफाई के आलावा उन्हें अपने स्त्रीत्व से भी समझौता करना पड़ता है। जिस पानी में वह नहाने जाती हैं ,वह पानी पूरे समुदाय की सार्वजनिक पानी की तरह इस्तेमाल होती है। इस पानी से  माल-मवेशी से लेकर बर्तन धोने और कपड़े धोने से लेकर नहाने तक के काम किए जाते हैं। यहां तक कि लोगों के अंत वस्त्र और मासिक धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े भी इसी पानी में धोया जाता है। साथ में मल-मूत्रों कचड़ों और वातावरण की गंदगी से पानी के जगहों का  चोली दामन का साथ  होता ही है।

ऐसे हालात से पानी में कई तरह के संक्रमण मौजूद रहते हैं। पानी के संपर्क में लगातार आने से कई तरह की बीमारियों का ख़तरा हमेशा बना रहता है। परेशानी तब और गंभीर हो जाती है जब इन  इलाकों में पानी की कमी हो जाती है और जाति व्यवस्था से ग्रस्त समाज में पानी की परेशानी को दूर करने की कोशिश की जाती है ।

मिनाज रंजीता सिंह और मेघना मुखर्जी की डाउन टू अर्थ में प्रकाशित  रिपोर्ट के तहत  इस समस्या के जांच के लिए सितम्बर 2016 से सितम्बर 2017 के बीच झारखंड,बिहार ,ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के साथ समूह चर्चाएं की गई  ।बिहार के गया में किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई कि अधिंकांश प्रतिभागियों को नहाने का निजी स्थान उपलब्ध न होने की वजह से परेशानियां आती हैं। हालांकि उच्च जाति के परिवारों के महिलाओं के लिए घुसलखाने हैं लेकिन बातचीत के लिए वे तैयार नहीं हुई। निचली जाति की महिलाएं आमतौर पर या तो खुले में स्नान  करती हैं या घर अथवा घर के पीछे साड़ी या प्लास्टिक का दायरा बांधकर खुद के लिए स्नानागार बना लेती हैं

कुल 55 महिलाओं से बात की गई जिनमें से 53 के पास अस्थाई इंतजाम थे । उन्हें घर में उस वक्त नहाना पड़ता था जब घर में कोई पुरुष मौजूद न हो। बाकी महिलाएं तालाब या नलकूप के पास नहाती हैं। लगभग सभी गांवों में महिलाओं के लिए नहाने के अलग स्नानागार होता है जहां पुरुषों के जाने की मनाही होती है।

हालांकि कुछ समुदायों में ऐसा भी नहीं है जिससे महिलाओं को छींटाकशी और भद्दी टिप्पणियों का समाना करना पड़ता है। महिलाएं उस वक्त भी असहज महसूस करती हैं जब वह गीले कपड़े पहनकर घर से लौटती हैं।वे अपने निजी अंगों को भी ठीक से साफ नहीं कर पाती जिससे त्वचा के संक्रमण का ख़तरा रहता है। मासिक धर्म में साफ सफाई की स्थिति पूछने पर उनमें से 49  महिलाओं ने यह बताया कि जब घर में कोई नहीं होता है,तब वह साफ सफाई का काम करती हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है महिलाओं के लिए रोजाना की जिंदगी कितनी मुश्किल भरी होती होगी।जब स्त्री रोग के बारे में बात की गई तो अधिकांश प्रतिभागियों ने पीठ दर्द ,पेट के निचले हिस्से में दर्द और योनि में स्त्राव की बात की।

ऐसे हालात में यह सोचने वाली बात है कि जब शौचलायों पर सबसे अधिक बात हो रही है,इस परेशानी की तरफ कोई ध्यान नहीं नहीं दे रहा है। महिलाएं इस परेशानी को जानाती है लेकिन समाज में अपनी स्थिति से भी परिचित हैं। इन सबके बाद गरीबी की मार तो उन्हें  और बदहाल कर देती है। उन महिलाओं के पास इतना समय और धन नहीं है कि अपने लिए घुसलखाना बनवा सकें। जब आमदनी इतनी कम हो कि किसी की भूख ही शांत न हो पाए ,उस हालात में घुसल खाना पर किसका ध्यान जाता है।

ऐसे समय में जब स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालयों की जरूरत पर सरकार जमकर डंका बजा रही है तब सरकार को देश के सबसे उपेक्षित कोने में रह रही सबसे उपेक्षित महिलाओं के साफ सफाई से जुड़े मूलभूत दैनिक व्यवहार को भी पढ़ने की कोशिश की जानी चाहिए।

भारतीय महिलायें
महिलाओं के अधिकार
महिलाओं के प्रति भेदभाव
गरिमापूर्ण जीवन
Swachchh Bharat Abhiyan

Related Stories

संकट: गंगा का पानी न पीने लायक़ बचा न नहाने लायक़!

खोरी पुनर्वास संकट: कोर्ट ने कहा एक सप्ताह में निगम खोरीवासियों को अस्थायी रूप से घर आवंटित करे

सेप्टिक टैंक-सीवर में मौतें जारी : ये दुर्घटनाएं नहीं हत्याएं हैं!

स्वच्छ होता भारत बनाम मैला ढोता भारत

क्या हो पायेगा मैला प्रथा का खात्मा ?

ट्रैकर बैंड और CAA-NRC : दलितों को गुलाम बनाए रखने की नई साज़िशें

कौन हैं स्वच्छ भारत के सच्चे नायक ?

स्वच्छता अभियान: प्रधानमंत्री की घोषणा और भारत की हक़ीक़त

तिरछी नज़र : ऐसे भोले भाले हैं हमारे मोदी जी...

मप्र के भावखेड़ी गई सीपीआई की जांच टीम की रिपोर्ट : शौचालय ; एक हत्यारी कथा !


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी
    26 May 2022
    अब्दुल सुब्हान वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेशक़ीमती आठ साल आतंकवाद के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए हैं। 10 मई 2022 को वे आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर अपने गांव पहुंचे हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा
    26 May 2022
    "इंडो-पैसिफ़िक इकनॉमिक फ़्रेमवर्क" बाइडेन प्रशासन द्वारा व्याकुल होकर उठाया गया कदम दिखाई देता है, जिसकी मंशा एशिया में चीन को संतुलित करने वाले विश्वसनीय साझेदार के तौर पर अमेरिका की आर्थिक स्थिति को…
  • अनिल जैन
    मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?
    26 May 2022
    इन आठ सालों के दौरान मोदी सरकार के एक हाथ में विकास का झंडा, दूसरे हाथ में नफ़रत का एजेंडा और होठों पर हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मंत्र रहा है।
  • सोनिया यादव
    क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?
    26 May 2022
    एक बार फिर यूपी पुलिस की दबिश सवालों के घेरे में है। बागपत में जिले के छपरौली क्षेत्र में पुलिस की दबिश के दौरान आरोपी की मां और दो बहनों द्वारा कथित तौर पर जहर खाने से मौत मामला सामने आया है।
  • सी. सरतचंद
    विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
    26 May 2022
    युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License