NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
शनि शिंगणापुर और हाजी अली के बाद महिलाओं ने सबरीमाला की लड़ाई भी जीती
सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दे दी है। इस पूरे अभियान को स्त्री-पुरुष के बराबरी के सवाल के तौर पर देखा और समझा जाना चाहिए।

न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
28 Sep 2018
सबरीमाला की लड़ाई

नई दिल्ली। महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर और हाजी अली दरगाह में प्रवेश के बाद महिलाओं ने सबरीमाला मंदिर में भी प्रवेश की लड़ाई जीत ली है।

सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दे दी है। अदालत ने अपने फैसले में हर उम्र वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश को लेकर हरी झंडी दिखा दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 4-1 के बहुमत से दिया। पांच सदस्यीय इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थे। जस्टिस इंदू मल्होत्रा का मत चार जजों से अलग रहा।  

मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, "शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।"

मिश्रा ने कहा, "सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता।" 

जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन ने अलग लेकिन समवर्ती फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी धर्मो के लोग मंदिर जाते हैं। 

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भी अलग लेकिन यही राय रखते हुए फैसले में कहा, "धर्म महिलाओं को उनके पूजा करने के अधिकार से वंचित नहीं रख सकता।

अदालत ने कहा कि सबरीमाल मंदिर किसी संप्रदाय का मंदिर नहीं है। अयप्पा मंदिर हिंदुओं का है, यह कोई अलग इकाई नहीं है।

आपको बता दें कि कोर्ट में दाखिल याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई थी जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी। इससे पहले केरल हाईकोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को सही ठहराया था।

आपको बता दें कि इससे पहले 2016 में महिलाओं ने शनि शिंगणापुर, महालक्ष्मी मंदिर और हाजी अली दरगाह में प्रवेश में भेदभाव को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।

महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में प्रवेश के मामले में अप्रैल, 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट फैसला देते हुए कहा कि मंदिर में पूजा करना सबका अधिकार है। ऐसा कोई कानून नहीं है जो महिलाओं को कहीं भी जाने से रोके।  यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण करे।

इसके साथ ही अप्रैल 2016 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी मंदिर में महिलाओं को गर्भगृह तक जाने का फैसला आया। कोर्ट ने कई सालों से चली आ रही परंपरा को खारिज करते हुए महालक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी।

इसी तरह का मामला महाराष्ट्र के हाजी अली दरगाह का था। यहां भी महिलाओं को दरगाह की मजार तक जाने की इजाजत नहीं थी। अगस्त, 2016 में हाईकोर्ट ने महिलाओं को दरगाह के भीतरी हिस्सों में प्रवेश का अधिकार दिया। इसके लिए भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने लंबी लड़ाई लड़ी थी। इस मामले में भी हाईकोर्ट ने यही कहा था कि महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।

हालांकि इन सभी जगह मंदिर और दरगाह के ट्रस्ट कोर्ट के इन फैसलों को सहज तौर पर स्वीकार नहीं कर पाए। और इसे आगे चुनौती देने की बात कही थी। आज सबरीमाला मंदिर में आए फैसले के बाद भीत्रावणकोर देवासम बोर्ड ने कहा है कि दूसरे धार्मिक प्रमुखों से समर्थन मिलने के बाद इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाएगी।

आपको बता दें कि ये सारे मामले सिर्फ मंदिर या दरगाह में महिलाओं के प्रवेश या पूजा से ही नहीं जुड़े हैं। ये आज 21वीं सदी में भी स्त्री और पुरुषों के बीच भेदभाव का मामला है। इस पूरे अभियान को स्त्री-पुरुष के बराबरी के सवाल के तौर पर देखा और समझा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद साफ हो गया है कि किसी भी स्तर पर लैंगिक असमानता को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

(इनपुट आईएएनएस)

Supreme Court
सबरीमाल मन्दिर
महिला
शनि शिंगणापुर मंदिर
हाजी अली दरगाह

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License