NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
संस्थागत भ्रष्टाचार का नव-उदार मॉडल
राजधानी दिल्ली के दो बड़े अस्पताल मैक्स और फोर्टिस से सबसे पहले मरीज़ों को लेकर नैतिक मानदंडों के घोर उल्लंघन की ख़बर आई। मरीज़ों की मौत के बाद भी परिजनों को लाखों के बिल थमाए गए और रिश्तेदारों से बदसलूकी की गई।
अमित सेनगुप्ता
05 Mar 2018
डॉक्टर

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र हाल के दिनों मे लगातार सुर्खियों में बना रहा। राजधानी दिल्ली के दो बड़े अस्पताल मैक्स और फोर्टिस से सबसे पहले मरीज़ों को लेकर नैतिक मानदंडों के घोर उल्लंघन की ख़बर आई। मरीज़ों की मौत के बाद भी परिजनों को लाखों के बिल थमाए गए और रिश्तेदारों से बदसलूकी की गई। कुछ दिन पहले नेशनल प्राइसिंग अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने प्राइवेट अस्पतालों के ऑडिट के आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया कि किस तरह प्राइवेट अस्पतालों द्वारा दवाओं और अन्य चिकित्सीय वस्तुओं की कीमतों में असामान्य वृद्धि कर करोड़ों लूटा जा रहा है। इसी बीच केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य सेवा जुड़े 'मोदीकेयर' की घोषणा की गई। इस योजना के तहत दिल्ली में स्वास्थ्य सेवा को आउटसोर्स करने का प्रावधान है।

 

 

ये घटनाएं देश की कोई अकेली नहीं हैं बल्कि ये भारत के स्वास्थ्य सेवा की अस्वस्थता को उजागर करती है। निजी अस्पतालों में बढ़ते भ्रष्टाचार के सबूत और बीजेपी सरकार की बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने के जुनून के बीच संपर्क वर्तमान समय में बेहद ही महत्वपूर्ण है। सरकार द्वारा उठाए गए आक्रामक नवउदार नीतियों के प्रभाव का पता लगाने के दौरान सामान्य भ्रष्टाचार तथा विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा में भ्रष्टाचार के पारंपरिक रूप से पहचाने जाने गए तरीके से परे देखने की ज़रूरत है। अपने मूल में नव-उदार नीतियों का मतलब सरकारी संस्थानों से निजी उद्यमों में शक्ति हस्तांतरण होता है। भ्रष्टाचार को 'निजी हित के लाभ के लिए सरकारी शक्ति के अवैध इस्तेमाल' के रूप में परिभाषित किया गया है और नवउदारवाद एक भ्रष्ट व्यवस्था का प्रतीक है। हम हर दिन ऐसा देखते हैं कि निजी उद्यमों के भलाई को ध्यान में रखते हुए सरकार सार्वजनिक सेवाओं को नज़रअंदाज़ कर देती है।

देश में नवउदारवादी आर्थिक नीतियां और वैश्विक आर्थिक और शासन प्रणाली के साथ एकीकरण स्वास्थ्य क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने में काम करता है। सैद्धांतिक क्षेत्र में मांग की जाती है कि सरकार की भूमिका को ऐसे तरीके से दोबारा परिभाषित करने की ज़रूरत है जो निजी हितों को लाभ पहुंचाते हैं। वैश्विक स्तर पर वैश्विक शासन के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप पूर्ववर्ती सरकार संचालित प्रक्रियाएं उन्हें स्थानांतरित की जाती है जहां सरकारी संरचना में निजी निगमों, फाउंडेशन और मैनेजमेंट कंसल्टेंसी कंपनियों को जगह मुहैया कराई जाती है। इस प्रकार यूएन सिस्टम का हिस्सा डब्ल्यूएचओ बिल गेट्स फाउंडेशन और मैककिन्से प्रबंधन परामर्श फर्म जैसे निजी फाउंडेशनों की तुलना में बहुत कम शक्तिशाली है। यह वही है जो विश्व स्तर पर नीतियों को संचालित करता है और भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम निजी क्षेत्रों का सरकार के नियामक संरचनाओं पर प्रभुत्व भी देखते हैं जो ऐसे विनियमन का विषय हैं।

 

चूंकि ये प्रक्रियाएं परिवर्तनकारी सार्वजनिक नीति द्वारा कार्य करती है तो उनके प्रभावों को शायद ही कभी 'भ्रष्टाचार' के रूप में पहचाना जाता है। इस तरह'मोदीकेयर' को एक नई नीति के पहल के रूप में देखा जाता है न कि सरकार द्वारा निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा सौंपने के लिए एक योजनाबद्ध प्रयास के रूप में और इस तरह निजी क्षेत्रों को लाभकारी बनाने के लिए बड़े अवसर प्रदान करता है। इस तरह की पहल को सरकारी निर्णयन निर्माण के रूप में स्पष्ट रूप से पहचान करने की ज़रूरत है जो निजी हितों के पक्ष में कार्य करते हैं। नीति बदलाव, जो कि राष्ट्रीय स्तर तथा वैश्विक स्तर पर निजी हितों समर्थन करते हैं, को भ्रष्टाचार के मूल श्रोत के रूप में स्पष्ट तरीके से पहचान करने की आवश्यकता है जो बाद में स्थानीय स्तर पर भ्रष्ट प्रथाओं में तब्दील हो जाते हैं। ये नीति बदलाव निजी उद्यमों के संचालन और शक्ति के पैमाने को व्यापक रूप से विस्तारित करते हैं, और इस प्रकार इसने भ्रष्ट प्रथाओं के नए रूप का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

 

सरकार और स्वास्थ्य सेवा की भूमिका में वैचारिक बदलाव

बीजेपी के 'स्वास्थ्य बीमा' मॉडल और उसकी प्रमुख योजना 'मोदीकेयर' स्वास्थ्य सेवा के वैश्विक नव-उदार मॉडल से जुड़ी है जिसे 'यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज' (यूएचसी)के रूप में पेश किया जाता है। यूएचसी सरकार की भूमिका में बदलाव को प्रोत्साहित करता है अर्थात स्वास्थ्य सेवा के प्रदाता से स्वास्थ्य सेवा के प्रबंधक तथा नियामक में परिवर्तित करता है। ऐसे मॉडल में स्वास्थ्य सेवा को निजी हाथों से आउटसोर्स किया जाएगा, जैसा कि 'मोदीकेयर' ऐसा करने का वचन देता है।

1990 के दशक के अंत तक अधिकांश विकासशील देशों के पास पारंपरिक कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणालियां थीं भारत में 1990 की दशक के शुरूआत में नव-उदार सुधारों के बाद स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सार्वजनिक सेवाएं व्यवस्थित रूप से धन से वंचित थीं। भारत की तरह दुनिया भर में आख़िरकार यह स्वीकार किया गया कि स्वास्थ्य तंत्र को बेहतर बनाने के लिए तत्काल उपाय करना जरूरी है। इस स्थिति को सुधारने के लिए सार्वजनिक प्रणालियों के पुनर्निर्माण और सुदृढ़ीकरण को प्राथमिकता देने के प्रयास किए जा सकते हैं। बजाय इसके सरकार की भूमिका सेवाओं के एक प्रदाता के बदले स्वास्थ्य सेवा के एक 'प्रबंधक' या 'नियामक' के रूप में बदल दी गई।

 

विनियामकीय कब्जा (REGULATORY CAPTURE)

चूंकि सरकारों की भूमिका एक 'नियामक' की सीमा तक सीमित की जा रही है, इसलिए सार्वजनिक नियामक एजेंसियों के सामने एक बड़ा खतरा है - जिसे 'रेगुलेटरी कैप्चर' के रूप में जाना जाता है। यह एक ऐसी घटना है जहां नियामकीय एजेंसियों को जन हित के लिए उद्योग को रेगुलेट करने के लिए गठित किया जाता है जिस पर उद्योग द्वारा कब्जा कर लिया जाता है। परिणामस्वरूप, रेगुलेटर उद्योगों को ऐसे तरीके से विनियमित करना बंद कर देते हैं जो आम लोगों की तुलना में विनियमित उद्योग को लाभ पहुंचाते हैं।

विनियामक कब्जा विभिन्न तरीकों से घटित होता है। रेगुलेटरी सिस्टम पर उनके द्वारा कब्जा जमा लिया जाता है जिन्हें माना जाता है कि उन्हें विनियमित किया जाना चाहिए क्योंकि वे नामित 'विशेषज्ञ' हैं जो सिस्टम को समझते हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवा में बड़े कॉर्पोरेट दिग्गज देवी शेट्टी, नरेश त्रेहान हैं। ये विशेषज्ञ हैं जो नीति लिख रहे हैं। इस तरह के विशेषज्ञों की अक्सर दोहरी वफादारी होती है, अर्थात उन लोगों के हितों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें विनियमित किया जा रहा है। 'हित के टकराव' के ऐसे मुद्दे 'परिक्रामी मार्ग' प्रथाओं द्वारा आगे बढ़ाए जाते हैं, जहां नियामक निकायों में ऐसे लोग शामिल होते हैं जिनके संगठन के लिए पूर्ववर्ती और हालिया रोक थे जो विनियमन का विषय हैं। इस प्रकार उदाहरण स्वरूप स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पूर्व सचिव नरेश दयाल 30 सितंबर2009 को सेवानिवृत्त हुए और जल्द ही एक ग़ैर-सरकारी निदेशक के रूप में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज़्यूमर हेल्थ केयर को ज्वाइन कर लिया।

विचारों को बढ़ावा देने के माध्यम से कैप्चर की घटनाएं हुई और 1990 के बाद के भारत में विनियमन हटाने सहित नवउदार सुधारों के गुणों का सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। 1990 के बाद से भारत में किए गए सुधारों ने निजी गतिविधि और अल्प विनियमन के दायरे का विस्तार किया है और राज्य और बड़े कारोबारियों के बीच संबंधों को मज़बूत किया है। रेगुलेटरी कैप्चर को अब "नीति निर्माताओं, विनियामक अधिकारियों, कॉर्पोरेट और बेहद अत्याधुनिक औद्योगिक लॉबी समूहों के एक परस्पर गतिशील संबंध" के रूप में वर्णित किया गया है।

सार्वजनिक वित्त पोषित बीमा योजनाओं में आउटसोर्स सेवा

सरकार के विचार में बदलाव निजी क्षेत्रों द्वारा लाभ अर्जित करने के लिए संस्थागत रास्ता तैयार करने में भारत सरकार पर भी लागू होता है। साल 2009 में भारत सरकार ने आंध्र प्रदेश के राजीव गांधी आरोग्यश्री योजना से प्रेरित होकर राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) नामक योजना की शुरूआत मरीज़ों के जेब से अधिक ख़र्च से भायवह प्रभाव की रक्षा के लिए की गई। आरएसबीवाई को पूर्ववर्ती तथा वर्तमान सरकार द्वारा एक प्रमुख उपलब्धि के रूप में गिनाया गया। यह ऐसा मॉडल है जिसे अब 'मॉदीकेयर' के ज़रिए अगले स्तर तक ले जाने के लिए प्रयास किया जा रहा है।

बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियां पिरामिड की तरह होती है: सबसे ज्यादा मरीज़ों का इलाज प्राथमिक स्तर पर की जा सकती हैं जहां लोग रहते हैं और काम करते है। कुछ मरीज़ों को माध्यमिक स्तर जैसे कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर करने की आवश्यकता होगी, और कुछ को तृतीयक अस्पतालों में विशेष इलाज की आवश्यकता होगी। बेहतर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर का स्वास्थ्य केंद्र यह सुनिश्चित करता है कि कम संख्या में मरीज़ों को अधिक महंगे विशेष अस्पतालों में महंगे इलाज के लिए जाने की ज़रूरत होती है। भारत में स्वास्थ्य बीमा प्रणाली ने इस पिरामिड को उलट दिया है और प्राथमिक सेवा केंद्र खाली पड़े हैं।

इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि ये सामाजिक स्वास्थ्य बीमा योजनाएं निजी प्रदाताओं के साथ साझेदारी के माध्यम से बड़े पैमाने पर चलाई जाती हैं। ऐसे में कई राज्यों में सरकार के साथ धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं और दोषी पाए गए हैं। कई रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि इन सरकारी योजनाओं के तहत कई निजी सुविधा केंद्रों ने ग़ैर ज़रूरी प्रक्रियाओं का सहारा लिया और लाभान्वित हुए। उदहारण स्वरूप दिल दहलाने वाली एक घटना सामने आई कि 22 वर्षीय एक महिला का बिना कारण ऑपरेशन कर यूटेरस निकाल दिया गया।

निष्कर्ष

हालांकि भ्रष्टाचार की पहचान करना अपेक्षाकृत आसान है, उदाहरण स्वरूप कोई सरकारी अधिकारी निजी अस्पताल का समर्थन करने के लिए रिश्वत लेता है,यद्यपि निजी उद्यमों के लाभ के लिए सरकार में निहित शक्ति के दुरुपयोग की मौलिक घटनाएं अभी भी अज्ञात हैं। उदाहरण स्वरूप स्वास्थ्य सेवाओं के आउटसोर्सिंग को बढ़ावा देने के लिए नीति में बदलाव पर प्रणाली का व्यापक प्रभाव है और निजी हाथों में सार्वजनिक परिसंपत्तियों का बड़ा स्थानांतरण शामिल है। फिर भी हम शायद ही कभी भ्रष्टाचार के किसी कृत्य के रूप में इसे पहचानते हैं। यद्यपि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने लगातार दावा किया है कि वह भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए प्रतिबद्ध है, जो आर्थिक मॉडल जिसे यह जुमलेबाजी के जरिए प्रोमोट करती है वह केवल भ्रष्टाचार के अभूतपूर्व स्तर को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया गया है। इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र के भ्रष्टाचार की घटना शामिल है जो लगभग रोज़मर्रा की घटना हो गई है।

Neo liberal policies
यूनियन बजट

Related Stories

आरएसएस की "चाणक्य नीति"

मई दिवस विशेष : तकनीकी क्रांति और मुक्त अर्थव्यवस्था के दौर में मज़दूर आंदोलन

दिल्ली चलो : किसान ,मजदूर ,महिलाओं , दलितों , और नौजवानों के बाद छात्र भी दिल्ली कूच करने को तैयार

आरबीआई के रिर्ज़व ख़जाने पर चर्चा नव-उदार तर्क के बीच क्यों उलझ गई है?

वेदांता को 41 तेल ब्लॉक का सौगात, जबकि ओएनजीसी को मिले सिर्फ दो ब्लॉक

इस बजट में गरीब तबकों से आने वालों के लिए कुछ नहीं है

क्या गोलियों से दबेगा आक्रोष

आरएसएस के हमलों के खिलाफ छात्र संघर्ष में शिक्षा के मुद्दे केंद्र में लाने होंगे

किसानों की ज़िन्दगी -2#

नव-उदारवाद और असमानता को एक दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License