NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
'संवेदनशील डाटा निजी हाथों में देने के लिए नागरिकों को मजबूर किया जा रहा है'
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने आधार की अनिवार्यता को लेकर सुनवाई कर रही पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि न केवल डाटा संग्रह प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा का अभाव था बल्कि आधार परियोजना ने मौलिक अधिकारों का हनन भी किया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
19 Jan 2018
aadhar

सुप्रीम कोर्ट में आधार की संवैधानिक वैधता को लेकर 18 जनवरी यानी गुरूवार को भी बहस जारी रहा। आधार को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की तरफ़ से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि नागरिकों को सरकार द्वारा मजबूर किया जा रहा है कि वे अपने व्यक्तिगत जानकारी को निजी कंपनियों से साझा करें। ये मूल अधिकार के साथ- साथ ही नीजता के अधिकार का भी हनन करता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने दीवान अपना पक्ष रख रहे थें। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं।

दीवान ने पीठ के समक्ष तीन मुद्दों को उठाया। उन्होंने आधार या विशिष्ट पहचान (यूआईडी) परियोजना के लिए निजी और बायोमेट्रिक जानकारी संग्रह करने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा; इकट्ठा की गई जानकारी की सत्यनिष्ठा; और मौलिक अधिकारों का व्यापक उल्लंघन का मामला उठाया।

उन्होंने फिर से मूल अधिकारों से संबंधित तीन मुद्दों को उठाया। उन्होंने निजता, स्वयं के ऊपर व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वायत्तता और जानकारी देने के लिए मजबूर करने का मुद्दा उठाया।

दीवान ने आधार नामांकन फॉर्म अदालत को दिखाया जिसका इस्तेमाल आधार अधिनियम 2016 के पहले होता था। उन्होंने कहा कि इस फॉर्म में कुछ भी ऐसा नहीं लिखा है जिससे साफ हो सके कि नामांकन स्वैच्छिक था। इसी प्रकार बायोमेट्रिक जानकारी को लेकर भी फॉर्म में कोई ज़िक्र नहीं है। जब डाटा एकत्र किया जाता है तो व्यक्तिगत या किसी अन्य द्वारा सत्यापन के लिए कोई प्रावधान नहीं है। जानकारी के संग्रह के आधार को इंगित करने के लिए फॉर्म में कुछ भी नहीं है। और नामांकन के कारणों, फायदे और नुकसान के बारे में पता करने के लिए किसी व्यक्ति के पास सलाह लेने का प्रणाली नहीं है जो सूचित सहमति के बारे में प्रश्न खड़ा करती है। ये सब स्पष्ट रूप से प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा की कमी को दर्शाता है।

एक दिन पहले न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूड़ द्वारा पूछे गए प्रश्न कि क्या किसी याचिकाकर्ता को आपत्ति थी कि इकट्ठा की गई जानकारी का इस्तेमाल विशेष उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने कहा कि आधार परियोजना आरंभ से सामान्य प्रयोजन के साधन के रूप में था।

दीवान ने सवाल उठाया कि किस तरह सरकार किसी नागरिक को उनकी कोई निजी जानकारी किसी निजी कंपनी के साथ साझा करने को मजबूर कर सकती है?

दीवान ने कहा कि "यह स्पष्ट रूप से दोषपूर्ण और असंवैधानिक जानकारी आधार है जिसका उद्देश्य केवाईआर (नो योर रेसिडेंट) और केवाईसी (नो योर कस्टमर) सिस्टम को हटाना है। जब फॉर्म का इस्तेमाल आधार नामांकन के लिए किया गया था तो कोई कानून लागू नहीं था। मुझे अपना नाम, पता और लिंग नामांकन एजेंसी के साथ साझा करने को मजबूर क्यों किया जाना चाहिए जो एक निजी व्यक्ति है।"

उन्होंने कहा "फॉर्म के भाग बी में मोबाइल नंबर और बैंक खाता विवरण बताने की आवश्यकता होती है। ऐसी संवेदनशील जानकारी का संग्रह पूरी तरह से एक सार्वभौमिक कार्य है जिसे निजी एजेंसियों को नहीं सौंप जा सकता है। ऐसे डाटा का संरक्षक केवल सरकार हो सकता है।"

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या कोई फर्क पड़ेगा यदि निजी पार्टी सरकार की एजेंसी थी या नहीं। दीवान ने जवाब दिया कि किसी भी निजी एजेंसी को इस तरह के महत्वपूर्ण कार्य को सौंपने का कोई सवाल ही नहीं है।

दीवान ने एक न्यूज़ चैनल द्वारा किए स्टिंग ऑपरेशन का उल्लेख करते हुए कहा कि तीन नामांकन एजेंसियों को उनके द्वारा आधार स्कीम के तहत एकत्र किए गए जनसांख्यिकीय जानकारी देने को कहा गया था तो सभी पैसा लेकर जानकारी देने को सहमत हो गए थें।

दीवान ने कहा "इस परियोजना के तहत इकट्ठा की गई जानकारी मूल्यवान है और विपणन जैसे वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए है। ज़ाहिर है यह निजी पार्टियों के हाथों में सुरक्षित नहीं है।"

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने पूछा कि क्या कोई ऑप्ट-आउट है। दीवान ने कहा कि एक ऐसे व्यक्ति का हलफ़नामा है जिसे आधार के नामांकन के लिए मजबूर किया गया था और साथ ही उसकी शादी के पंजीकरण के लिए जानकारी साझा करने के लिए अपनी सहमति व्यक्त करने को कहा गया और ऑपरेटर ने उसे बताया कि वह ऑप्ट आउट नहीं कर सकते है।

जनसंख्या के लिए आईडी प्रमाण प्रस्तुत करने के "उद्देश्य" के लिए आधार की आवश्यकता के इस तर्क का भी दीवान ने खंडन किया।

नामांकन पत्र सत्यापन के तीन पत्रों की अनुमति देता है। ये तीन पत्र दस्तावेज़-आधारित (कुछ अन्य आईडी प्रमाण), परिचयकर्ता की रीति (परिचित द्वारा सत्यापन की आवश्यकता,समाज में सम्मानित व्यक्ति होने के नाते), या परिवार के मुखिया द्वारा सत्यापन का आधार है।

उन्होंने कहा "2015 तक नामांकित किए गए 93 करोड़ लोगों में से केवल 0.03% लोगों को परिचयकर्ता सत्यापन का सहारा लेने की जरूरत पड़ी। इसका मतलब है कि भारत के लगभग प्रत्येक नागरिक के पास एक या अन्य पहचान प्रमाण है।"

उन्होंने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में सब कुछ असंवैधानिक था।

इसके बाद दीवान ने सरकार का मुद्दा उठाया "आपातकाल के अलावा किसी को बंधक बनने पर सरकार मजबूर नहीं कर सकती है।"

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने सवाल किया कि जब भी हम किसी बीमा पॉलिसी या मोबाइल कनेक्शन के लिए आवेदन करते हैं तो निजी बीमा एजेंट या मोबाइल सेवा प्रदाता को पते के सबूत की आवश्यकता होती है ऐसे में सरकार के साथ इस जानकारी को साझा करने में आख़िर क्या परेशानी थी।

न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा "बैंक खाते भी हैं जिसे शून्य बैलेंस के साथ खोला और रखा जा सकता है। यहां तक कि ऐसे खाते का स्टेटमेंट पते का प्रमाण का हो सकता है। इस मामले में गोपनीय जानकारी का खुलासा नहीं किया जाएगा।"

दीवान ने जवाब मे कहा कि "यहां निजी नामांकन एजेंसी आपके बैंकर या बीमा एजेंट या मोबाइल सेवा प्रदाता नहीं हैं। आपके पास पंजीकरण करने वाली एजेंसियों के साथ कोई अनुबंध नहीं है। हमें सरकार द्वारा इस तरह के संवेदनशील डाटा को निजी पार्टी से साझा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। अगर यह जनगणना अधिनियम के समान होता है जहां सरकार द्वारा जनसांख्यिकीय डाटा एकत्र किया जाता है तो यह स्वीकार्य होता।"

वरिष्ठ वकील ने इसके बाद रजिस्ट्रार का मुद्दा उठाया जो पदानुक्रम में नामांकन एजेंसी के ऊपर है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई के दस्तावेज़ के मुताबिक विधि के समक्ष रजिस्ट्रार को जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक डाटा एकत्रित करने के लिए ही नहीं बल्कि डाटा को सुरक्षित रखने के अधिकार भी दिए गए थे जो कि न्यासीय जिम्मेदारियों के अधीन हैं।

दीवान ने इसके बाद "सत्यापनकर्ता" की परिकल्पना का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार द्वारा कोई सत्यापनकर्ता नियुक्त किया जाता है और नामांकन दस्तावेजों को सत्यापित करता है। दीवान ने कहा कि क़रीब 49,000 नामांकन केंद्रों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है।

अंत में दीवान ने निजता के फ़ैसले के मुद्दे को उठाया। नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने फ़ैसाल सुनाते हुए निजता को मौलिक अधिकार बताया था। मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत संरक्षित है। नौ न्यायाधीशों की इस पीठ में न्यायमूर्ति चंद्रचूड भी शामिल थें।

दीवान ने कहा कि इस फैसले ने गरिमा, स्वायत्तता और पहचान के विचारों में निजता के अधिकार को स्थापित किया था जो हमारे संविधान में व्याप्त है। उन्होंने कहा कि निजता के फ़ैसले ने निजी स्वायत्तता के अधिकार को व्यक्त किया और कहा कि जो फ़ैसले किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं उसे व्यक्ति पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए।

दीवान ने तर्क दिया कि डिजिटल दुनिया में सरकार को नागरिकों का सहयोगी होना चाहिए न कि प्रतिद्वंद्वी। इसलिए यह सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है कि निजता के हितों को निगमों और अन्य ऐसे इच्छुक पार्टियों के विरुद्ध संरक्षित किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस फ़ैसले ने सूचना के आत्मनिर्णय और सूचनात्मक निजता के अधिकार को स्पष्ट किया है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि निजता के फ़ैसले किस तरह नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक अधिकार के पूरक हैं।

व्यक्तिगत अधिकार के संरक्षण के लिए न्यायिक समीक्षा के महत्व पर बल देने के निजता के फ़ैसले की तरफ़ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि निजता के फ़ैसले ने उस निजता को स्थापित किया था जो केवल अभिजात वर्ग का विशेषाधिकार नहीं था।

Aadhar card
Aadhar card data leak
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License