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#सोशल_मीडिया : सत्ताधारियों से पूरी दुनिया में है फेसबुक की नजदीकी
सत्ताधारी दलों के साथ मिलकर राष्ट्रभक्ति के नाम पर विरोधियों को कुचलने के खेल में फेसबुक कई देशों के नेताओं का साथ दे रही है।
सिरिल सैम, परंजॉय गुहा ठाकुरता
22 Feb 2019
सांकेतिक तस्वीर

सिंतबर, 2017 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने फेसबुक पर यह आरोप लगाया कि वह उनके खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने इसका जवाब दिया।

जुकरबर्ग ने प्रतिक्रिया में कहा, ‘मैं राष्ट्रपति ट्रंप के ट्विट का जवाब देना चाहता हूं जिसमें उन्होंने दावा किया है कि फेसबुक ने हमेशा उनके खिलाफ काम किया है। हर दिन मैं काम करता हूं लोगों को आपस में जोड़ने के लिए और हर किसी के लिए एक समाज बनाने के लिए। हम हर तरह के लोगों को आवाज उठाने का मौका देना चाहते हैं। हम ऐसा मंच चाहते हैं जहां हर विचार के लोग कह सकें। ट्रंप कहते हैं कि फेसबुक उनके खिलाफ है। लिबरल कहते हैं कि हमने ट्रंप की मदद की। दोनों पक्ष उन विचारों और सामग्री से नाराज हैं जो वे पसंद नहीं करते। यह पहला अमेरिकी चुनाव था जिसमें उम्मीदवारों ने इंटरनेट के जरिए संवाद किया। हर उम्मीदवार का एक फेसबुक पेज था जिसके जरिए वह करोड़ों लोगों से हर दिन संवाद कर रहा था। इन अभियानों में ऑनलाइन संदेश पहुंचाने के लिए करोड़ों खर्च किए गए।’

अपने जवाब में वे आगे कहते हैं, ‘चुनाव के बाद मैंने कहा था कि यह सोचना पागलपन है कि फेसबुक पर फैली गलत सूचनाओं की वजह से चुनावों के नतीजे बदल गए। यह मेरी गलती थी। यह एक महत्वपूर्ण मसला है जिसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन जो आंकड़े हमारे यहां से निकले उनका चुनावों पर प्रभाव पड़ा। जो राष्ट्र गलत सूचनाएं फैलाने और चुनावों को बाधित करने की कोशिश कर रहे हैं, उनसे हम अपने ढंग से निपटेंगे। हम यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेंगे कि दुनिया में कहीं भी चुनावों की निष्पक्षता न प्रभावित हों और फेसबुक लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाला मंच साबित हो।’

जुकरबर्ग की नीयत कितनी अच्छी है? या फिर वे फेसबुक पर बने दबाव को कम करने के लिए ऐसा बोल रहे थे? कुछ महीने बाद दिसंबर, 2017 में ब्लूमबर्ग में एक रिपोर्ट छपी। इसमें बताया गया कि कैसे फेसबुक की राजनीति इकाई के जरिए इंटरनेट पर प्रोपगैंडा किया जाता है। इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि कंपनी और उसके कर्मचारी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर उनके विरोधियों को चुप कराने का काम करते हैं और कई बार तो गलत सूचनाएं फैलाने के लिए ट्रोल करने वाली फौजों का भी साथ देते हैं।

इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि फेसबुक के ग्लोबल पॉलिटिक्स ऐंड गवर्नमेंट आउटरीच के निदेशक केटी हरबर्थ की टीम ने पहले रिपब्लिकन पार्टी के साथ मिलकर उनके लिए डिजिटल रणनीति बनाई थी। साथ ही इन लोगों ने न्यूयॉर्क के मेयर रूडी गिलानी के साथ भी काम किया। इसके अलावा इन लोगों ने भारत, ब्राजील, जर्मनी, ब्रिटेन, अर्जेंटिना, पोलैंड और फीलिपिंस में भी नेताओं के साथ काम किया है। 

इन देशों में इस टीम ने देशभक्ति के नाम पर ट्रोलिंग को बढ़ावा देने और विपक्षियों की आवाज दबाने की कोशिशों में साथ दिया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के मीडिया और सांस्कृतिक अध्ययन के प्रोफेसर मार्क क्रिस्पिन मिलर को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि फेसबुक के कर्मचारी सत्ता के बेहद करीब हैं।

 

हमारे सोशल मीडिया सीरीज़ के अन्य आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :-

जब मोदी का समर्थन करने वाले सुषमा स्वराज को देने लगे गालियां!

फेसबुक पर फर्जी खबरें देने वालों को फॉलो करते हैं प्रधानमंत्री मोदी!

फर्जी सूचनाओं को रोकने के लिए फेसबुक कुछ नहीं करना चाहता!

#सोशल_मीडिया : क्या सुरक्षा उपायों को लेकर व्हाट्सऐप ने अपना पल्ला झाड़ लिया है?

#सोशल_मीडिया : क्या व्हाट्सऐप राजनीतिक लाभ के लिए अफवाह फैलाने का माध्यम बन रहा है?

#सोशल_मीडिया : क्या फेसबुक सत्ताधारियों के साथ है?

#सोशल_मीडिया : क्या नरेंद्र मोदी की आलोचना से फेसबुक को डर लगता है?

#सोशल_मीडिया : कई देशों की सरकारें फेसबुक से क्यों खफा हैं?

सोशल मीडिया की अफवाह से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा

 

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Real Face of Facebook in India
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Mark Zuckerberg
Donand Trump
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