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“सफाईकर्मियों की हत्याएं बंद करो, मिस्टर मोदी!”
“हम सफाई कर्मचारियों की लाशों को नदी और नाले में बहाने के लिए छोड़ दिया जाता है। हम बिना सुरक्षा उपकरण यहां तक कि बिना मास्क व हाथ के दस्ताने के सीवर व नाले में उतरकर मरे हुए जानवर व गंदगी को साफ करते हैं, जिस कारण हमें कई तरह के बीमारी होती हैं। जिसके इलाज़ के लिए भी कोई प्रबंध नहीं होता है।”
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
16 Nov 2018
AICCTU

“जुमला नहीं जवाब दो!!”
“सफाईकर्मियों के अधिकारों का हिसाब दो!!”
“Stop Killing Sanitation Workers Mr. Modi !!”
कुछ ऐसे ही नारों के साथ आज दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (ऐक्टू) का खुला नेशनल कन्वेंशन (राष्ट्रीय सम्मेलन) हुआ। सम्मेलन में साफ तौर पर मोदी सरकार के “स्वच्छ भारत अभियान” को एक धोखा बताया गया और इसके लिए जाति के विनाश को एक ज़रूरी शर्त बताया गया। जाति का ऐसा विनाश जिसमें सफाई का काम सिर्फ दलित वर्ग के ही हिस्से न हो। इस वर्ग को भी पूरी गरिमा और अस्मिता के साथ जीने और अन्य काम करने का अधिकार और सुविधा हो। 

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बिल्कुल ऐसा ही नज़ारा दिल्ली ने पिछले 25 सितंबर को देखा था जब सफाई कर्मचारी आंदोलन के आह्वान पर जंतर-मंतर, संसद मार्ग पर ही अन्य लोगों के साथ सैकड़ों सफाईकर्मी और सीवर में मौत का शिकार हुए कर्मचारियों के परिवार जन शामिल हुए थे। 
आपको बता दें कि पिछले काफी समय से राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश में सीवर में मौतें काफी तेज़ी से बढ़ी हैं। जबकि देश में मैला प्रथा और सीवर या सैप्टिक टैंक में किसी भी व्यक्ति को उतारा जाना गैरकानूनी घोषित हो चुका है। बावजूद इसके ये काम धड़ल्ले से जारी है और सफाईकर्मियों को इसके लिए मजबूर किया जाता रहा है। 
ऐक्टू के राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा गया कि पूरे देश मे सफाई कर्मचारियों की हालत दिन-ब-दिन और खराब होती जा रही है। विडम्बना तो ये है कि 2014 में जब मोदी सरकार द्वारा 'स्वच्छ भारत मिशन' की घोषणा की तब से अब तक सैकड़ों मजदूर सीवरों और गटर की भेंट चढ़ चुके हैं। 'सफाई कर्मचारी आन्दोलन' द्वारा किये गये सर्वे के अनुसार, हर तीसरे दिन पर एक मजदूर की मौत होती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अकेले 2017 में 300 सफाई कर्मचारियों की जाने गयी। पिछले सितंबर-अक्टूबर में दिल्ली शहर के ही सीवर के अंदर सात मजदूर मारे गये। मोदीजी चाहे जितनी जुमला बाज़ी कर लें पर सच्चाई तो यही है कि मरने वाले इन मजदूरों के परिवारों को न ही कोई न्याय मिला न ही उचित मुआवजा।

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ऐक्टू, जेएनयू यूनिट की अध्यक्ष उर्मिला ने बताया कि ऐक्टू द्वारा चलाये लंबे आंदोलन के बाद दिसंबर, 2014 में हमने इस मामले में एक बड़ी जीत हासिल की थी और जेएनयू प्रशासन को मजबूर किया कि वो ये सर्कुलर लाये कि जेएनयू कैंपस में कोई मजदूर सीवर के अंदर नहीं घुसेगा। पर पूरे देश में अभी भी ये अमानवीय काम जारी है, इसके खिलाफ एकजुट होने की ज़रूरत है।
वरिष्ठ पत्रकार और सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़ीं भाषा सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में उनके कार्यक्रम की तैयारियों के लिए दो सफाईकर्मी गटर में उतारे जाते हैं लेकिन उनकी मौत पर प्रधानमंत्री दु:ख तक नहीं जताते हैं। दो शब्द नहीं कहते हैं। पुलिस एफआईआर तक दर्ज नहीं करती है और मुख्य धारा का मीडिया भी इस खबर को लगभग छुपा देता है।   
बनारस से ही आए सफाई कर्मचारी धर्मेन्द्र ने बताया वे किस तरह के नारकीय और अमानवीय स्थितियों में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “हम सफाई कर्मचारियों की लाशों को नदी और नाले में बहाने के लिए छोड़ दिया जाता है। हम बिना सुरक्षा उपकरण यहां तक कि बिना मास्क व हाथ के दस्ताने के सीवर व नाले में उतरकर मरे हुए जानवर व गंदगी को साफ करते हैं, जिस कारण हमें कई तरह के बीमारी होती हैं। जिसके इलाज़ के लिए भी कोई प्रबंध नहीं होता है। यहाँ तक की सरकारी अस्पताल में भी डॉक्टर हमारा इलाज नहीं करते क्योंकि हम निम्न जाति से होते हैं। हमें गंदगी समझ अस्पताल से बाहर कर दिया जाता है।”
यूपी से आए एक अन्य कर्मचारी ने बताया कि भाजपा सरकार अभी कुंभ में लाखों करोड़ रूपये खर्च कर रही है पर हम सफाई कर्मचारी जो रोज इस कुंभ परिसर की सफाई करते हैं, हमें कोई वेतन या मानदेय नहीं मिलता है। सरकार को हम से भी मानव की तरह बर्ताव करना चाहिए|

ऐपवा की महासचिव व सीपीएमएल के नेता कविता कृष्णन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कई चौंकाने वाले तथ्य बताए। उन्होंने बताया की कर्नाटक में एक अध्ययन किया गया जिसमें पता चला की अधिकतर सफाई कर्मचारी जो महिला हैं, उन्हें बहुत कम उम्र में मुँह का कैंसर हो रहा है जिससे उनकी बहुत ही कम उम्र में मौत हो जाती है। इस कैंसर का मुख्य कारण है कि वो जब सफाई का कम करती हैं तब वे शौचालय नहीं जा सकतीं, इसलिए वो पानी नहीं पीती हैं और उन्हें प्यास न लगे इसलिए वो पान मसाला खाती हैं जिससे उन्हें इस तरह की बीमरी का सामना करना पड़ता है।
इन सबके बीच कर्नाटक से आईं संगठन की नेता निर्मला ने बताया कि किस तरह से उन लोगों ने अपनी एकजुटता और निरंतर संघर्ष के बल पर अपने अधिकार को प्राप्त किया। पहले जहाँ उन्हें ठेकेदार के नीचे काम करना पड़ता था वो अपनी मनमानी से पैसे देता था परन्तु अब उन्हें सरकार द्वार सीधे काम दिया जाता है। पैसा भी ठीक समय पर मिलता है। साथ ही स्वास्थ्य के लिए ईएसआई कार्ड और पीएफ भी मिलता है।
पिछले 15 वर्षों भाजपा शासित छत्तीसगढ़ जहाँ अभी चुनाव हो रहे हैं वहाँ से आए सफाई कर्मचारी ने कहा कि वहाँ सरकार स्वच्छता अभियान का ढोल पीट रही है। उस पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, परन्तु वास्तव में जो राज्य व देश को स्वच्छ करते हैं उन्हें ये सरकार नरक में जीने के लिए छोड़ रही है। उन्होंने कहा की इसबार हम छत्तीसगढ़ में भाजपा के इस झूठ के ढोल को फोड़ देंगे। इसबार किसी भी कीमत पर भाजपा की सरकार को पुन: सत्ता में नहीं आने देंगे|
ऐक्टू की मांग
"सफाईकर्मियों की मौतें अब और नहीं" का नारा देते हुए सम्मेलन में ऐक्टू की ओर से सफाईकर्मियों के हक में कई मांगें की गईं। 

◆ सीवर में हो रही मौतों पर रोक लगाओ
◆ हाथ से मैला उठाने पर रोक लगाओ, वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करो
◆ जाति आधारित भेदभाव व हिंसा खत्म करो
◆ समान काम का समान वेतन लागू करो
◆ सफाईकर्मियों के अधिकार और सम्मान की गारंटी करो

सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने वाम दलों की ओर से सफाईकर्मियों के साथ पूरी एकजुटता जताते हुए उनकी मांगों का समर्थन किया और इस लड़ाई को आगे बढ़ाने का आश्वासन दिया। सम्मेलन में सांस्कृतिक टीम संगवारी की ओर जनगीत भी पेश किए। 

इसे भी पढ़ें:- सीवर में ‘हत्याओं’ के खिलाफ एकजुटता, संसद के भीतर और बाहर लड़ाई का ऐलान

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