NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन को लेकर किये जा रहे दावों की सच्चाई?
#श्रमिकहड़ताल: दिल्ली में पुरुष 6,000 रु और महिला 5,000 रु प्रति माह में कार्य करते है. दिल्ली के 95% मज़दूर इस न्यूनतम वेतन के लाभ से वंचित है|दिल्ली के सभी क्षेत्रो के मजदूर के साथ ही 8-9 जनवरी को देश के लाखों श्रमिक न्यूनतम वेतन और अन्य मांगों को लेकर ऐतिहासिक ऑल इंडिया स्ट्राइक में शमिल हो रहे हैं |
मुकुंद झा
03 Jan 2019
श्रमिक हड़ताल
8-9 जनवरी को देश के लाखों श्रमिक न्यूनतम वेतन और अन्य मांगों को लेकर ऐतिहासिक ऑल इंडिया स्ट्राइक में शमिल हो रहे हैं

दस ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाये गए 8-9 जनवरी को एक ऐतिहासिक ऑल इंडिया स्ट्राइक में देश के लाखों श्रमिक भाग ले रहे हैं ,न्यूज़क्लिक आपके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में श्रमिकों के अधिकार और जीवन से जुड़े पहलुओं को आपके सामने ला रहा हैं| इसी कड़ी में हम आपके सामने दिल्ली के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के हालात और सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन को लेकर किये जा रहे दावों कि सच्चाई को परखंगे |

दिल्ली में लाखों कि संख्या में मजदूर हैं जो विभिन्न क्षेत्रो में कार्य करते है परन्तु इनमे से अधिकतर श्रमिक गरिमापूर्ण जीवन लायक हालातों में नहीं रहते हैं| इसका सबसे प्रमुख कारण हैं उन्हें कम वेतन या मजदूरी का भुगतान किया जाना| इसलिए वे इस बाजरू दुनिया में अमानवीय दशाओं में जीनें के लिए मजबूर होते हैं|

देश की राजधानी दिल्ली में न्यूनतम वेतन की स्थिति लगतार बद से बदतर हो गयी है I 1980-90  से स्थिति और भी ख़राब हुई है, इससे पहले कम-से-कम न्यूनतम वेतन लागू होता था परन्तु इसके बाद न्यूनतम वेतन में कागज़ों पर बढ़ोतरी हुई पर वास्तविकता में कभी लागू नहीं हुआ| यहाँ तक कई सरकारी विभागों में भी न्यूनतम वेतन नही मिलता है बाकि निगम और नियोक्ता कि तो बात ही छोड़ दे|

कई संस्थानों में अजीब तरह की धांधलियां चल रही है. वेतन को बैंकिंग सिस्टम से जुड़ दिया गया है लेकिन वेतन देने के बाद नियोक्ता वेतन से कुछ राशि मजदूर या श्रमिक से लौटाने के लिए कहता है. और श्रमिक अपना नौकरी बचाने के चक्कर में विरोध नहीं करता है.  नियोक्ताओं द्वारा ऐसी धधालियाँ इसलिए की जाती है ताकि सरकारी फाइलों में तो न्यूनतम वेतन की कानूनी जरूरत को पूरा किया जा सके लेकिन हकीकत में अपने फायदें में कमी नहीं आये | 

ऐसे ही एक श्रमिक जो दिल्ली के पेट्रोल पंप पर कार्य करते है उन्होंने बतया कि किस तरह से पेट्रोल पंप पर उनका शोषण किया जाता है? कैसे वहाँ एक श्रमिक के वेतन में उनसे दो श्रमिक के बराबर कार्य कराया जाता है ? उन्हें किसी भी प्रकार कि कोई छुट्टी नही मिलती है, उनके  तो पीएफ के पैसे भी काट लिए जाते है पर यह पैसे जाते कहाँ है,इसके बारे में श्रमिको को कोई जानकारी नही दी जाती है. इस श्रमिक ने नाम उजागर करने से मना किया है. श्रमिक का डर था कि इस बेरोजगारी की हालत में उसके दवरा कहे गये बातों की वजह से अगर नौकरी छीन जाती है तो उसकी हालत बद से बदतर हो जाएगी.इसका शोषण के साथ साथ मजदूर में डर का माहौल भी जिन्दा रहता है |

ये  भी पढ़ें : निर्माण मज़दूर : शोषण-उत्पीड़न की अंतहीन कहानी

इस श्रमिक का कहना है  कि उन्हें वेतन के तौर पर मासिक 9 हजार रूपये दिए जाते है. जो कि न्यूनतम वेतन से बहुत कम है. साथ में इन्हें 12 से 14 घंटे प्रतिदिन काम करना पड़ता है. महीने में छुट्टी के तौर पर केवल दो दिनों की छूट होती है. इससे अधिक छुट्टी लेने पर पैसे कटते हैं. जबकि ऐसा संभव है की महीने में किसी भी व्यक्ति को दो दिनों से अधिक की छुट्टी की जरूरत होती है. इसका मतलब यह है कि इन्हें मासिक केवल 5 से 6 हजार रूपये ही मिलते होंगे. इस सच के साथ जब न्यूनतम वेतन की तरफ नजर फेरते हैं, जहां  केवल प्रातिदिन  आठ घंटे काम करने होते हैं  और मासिक चार छुट्टी मिलती है, तो यह सच और दर्दनाक दीखता है. लेकिन इसके आगे जो बतया वो और भी चौकाने वाला था उन्होंने कहा महीने के अंत में उन्हें वेतन के रूप में16 हज़ार का चेक दिया जाता है परन्तु इस शर्त के साथ की वो उसमे से 7 हज़ार अपने प्रबन्धक को वापस लौटा देगा.

ये सिर्फ पेट्रोल पंप कि ही कहानी नही है और न ही किसी एक श्रमिक की कहानी है, यह दिल्ली के हर उधोगों और कई सरकारी एजेंसियों के संचालन में लगी आउटसोर्स कंपनियां की भी यही कहानी है |

इसे सोमवार को दिल्ली सरकार द्वारा जारी एक एडवाइजरी में  दिल्ली श्रम विभाग ने भी माना है. इसके मुताबिक  सरकारी एजेंसियों के संचालन में लगी आउटसोर्स कंपनियां न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का गंभीर रूप से उल्लंघन कर रही हैं.इस एडवाइजरी में नियोक्ताओं को तत्काल प्रभाव से कानून लागू करने या फिर कानूनी परिणामों का सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा है|

दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय द्वारा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के उल्लंघन की  जाँच करने और इसे करने वालो के खिलाफ करवाई करने के लिए दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री गोपाल राय ने 10-दिवसीय अभियान चलाया.

इस दौरान, श्रमिकों और कर्मचारियों के बयानों से पता चला है कि सरकारी प्रतिष्ठानों या सरकारी अस्पतालों में ठेकेदारों द्वारा नियोजित आउटसोर्स श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी की अधिसूचित दरों का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जो 1 नवंबर, 2018से प्रभावी है.

ये भी पढ़ें : #श्रमिकहड़ताल : दिल्ली की स्टील रोलिंग इकाइयों में औद्योगिक श्रमिकों का जीवन

 पिछले साल दिल्ली सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना द्वारा मजदूरों को दी जाने वाली न्यूनतम मजदूरी में 34 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। वर्तमान में, अकुशल श्रमिक न्यूनतम मजदूरी 14,000 रुपये प्रति माह, अर्ध-कुशल श्रमिक, 15,400 रुपये प्रति माह और कुशल श्रमिक 16,962 रुपये के हकदार हैं।

 वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्त्ता अशोक अग्रवाल ने दिल्ली सरकार के न्यूनतम  वेतन को लेकर चलाए गए  अभियान पर कहा ये सब केवल मिडिया स्टंट था और कुछ नही आगे वो कहते है कि  दिल्ली सरकार न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948और दिल्ली के अन्य सभी श्रम कानूनों को लागू करने में पूरी तरह से विफल है, जो दिल्ली के 65 लाख मजदूरों को उनके मूल वैधानिक अधिकारों से वंचित करते हैं। जिस कारण दिल्ली में आज श्रमिक दयनीय स्थिति में रह रहा है | अगर सरकारे मजदूरों के लिए जितने कानून है उसका 50% भी लागू करा दे तो मजदूर स्थति काफी सुधर जाएगी |

दिल्ली जल बोर्ड की एक हालिया शिकायत में दावा किया गया है कि हालांकि बोर्ड में काम करने वाली आउटसोर्स कंपनियां न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के हिसाब से अपने मजदूरों का भुगतान करती हैं, लेकिन उन्होंने पैसे वापस लेने के लिए गजब कि तरकीब निकाली है |

 जैसा कि हमने आपको ऊपर पेट्रोल पंप के कर्मचारी के बारे में बतया था कि कैसे पंप मालिक उनसे वेतन का एक बड़ा हिस्सा वापस ले लेते है थी उसी तरह "ये कंपनियां न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अनुसार मजदूरों के बैंक खातों में मजदूरी हस्तांतरित करती हैं | दिल्ली जल बोर्ड में नगरपालिका कर्मचारी लाल झंडा यूनियन के मुताबिक “ये कम्पनिया ऐसा केवल इसलिए करते हैं क्योंकि ये दिखा सके कि वो कानून द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन कर रहे हैं. फिर कुछ समय बाद ही उस पैसे का एक हिस्सा  वापस ले लेते है” |

यूनियन का कहना है की कई कंपनियां अपने साथ मजदूरों के डेबिट कार्ड रखती हैं, जिसका उपयोग वे उन पैसे का एक हिस्सा निकालने के लिए करती हैं जो श्रमिकों को भुगतान किया जाता है। "इस अत्याचार के परिणामस्वरूप, एक मजदूर को 9,000रुपये का भुगतान किया जाता है, जो कि न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है | "

आज भी दिल्ली जैसे शहर में पुरुष 6,000 रु और महिला 5,000 रु प्रति माह में कार्य करते है क्योंकि उनके पास इसके आलावा कोई चारा नहीं है | दिल्ली के 95% मज़दूर इस न्यूनतम वेतन के लाभ से वंचित है |

सत्य ये है कि सरकार निर्धारित न्यूनतम वेतन को भी लागू नहीं कर पा रही है| सरकारों की मज़दूरों को उनके हक़ देने की इच्छा ही नहीं | ये न्यूनतम वेतन तब लागू होगा न जब तंत्र के पास इसे लागू कर पाने के लिए पर्याप्त मानव शक्ति होगी | श्रम विभाग के पास कर्मचारियों की भरी कमी हैं | मजदूरों संगठनो का कहना है की “1975 की तुलना में आज केवल इस विभाग में25% ही कर्मचारी है जो कि सरकारों की मज़दूरों के अधिकारों के प्रति कितनी गंभीर है- और जो है भी वो भी भ्रष्टाचार में लिप्त है” |

ये भी पढ़े ;- 8-9 जनवरी की ऐतिहासिक हड़ताल के लिए उद्योग और ग्रामीण क्षेत्र तैयार 

 

 ये भी पढ़े : मजदूर हड़ताल: तेलंगाना में 8 और 9 जनवरी के हड़ताल की जबरदस्त तैयारी

 

#WorkersStrikeBack
भारतीय श्रमिक
#श्रमिकहड़ताल
Workers Strike
workers protest
Informal sector workers
Formal sector workers
minimum wage
delhi minimum wage
Labour Laws

Related Stories

पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

दिल्ली: बर्ख़ास्त किए गए आंगनवाड़ी कर्मियों की बहाली के लिए सीटू की यूनियन ने किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल को मिला कलाकारों का समर्थन, इप्टा ने दिखाया सरकारी 'मकड़जाल'

क्यों है 28-29 मार्च को पूरे देश में हड़ताल?

28-29 मार्च को आम हड़ताल क्यों करने जा रहा है पूरा भारत ?


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License