किसान आंदोलन के आज पूरे एक महीने हो गये. शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की मांगों को देश हित के विरुद्ध बताया। किसानों ने उनकी स्पीच पर गंभीर सवाल उठाया और कहा कि यह सरकार कारपोरेट और बड़ी कंपनियों की प्रवक्ता बनकर देश के सामने आयी है। इस बीच, एनडीए से एक और घटक बाहर हो गया। किसानों ने कहा है कि वे सरकार से बातचीत करने को तैयार हैं। वह तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने का ऐलान करके 29 दिसम्बर को बातचीत करे। क्या वाकई सरकार और किसानों के बीच बातचीत हो पायेगी? वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का विश्लेषण: