NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
सरकारी पाबंदियों के बावजूद पंजाबी कर रहे हैं कश्मीरियों के हक़ में आवाज़ बुलंद
पंजाब देश का एकमात्र राज्य है जहां कश्मीर की स्थिति पर निरंतर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले पंद्रह दिनों से लगातार पंजाब के अलग-अलग कस्बों, शहरों में कश्मीरियों के हक में किसानों, मज़दूरों, विद्यार्थियों द्वारा बडे़ स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ रोष-प्रदर्शन जारी हैं।
शिव इंदर सिंह
17 Sep 2019
kashmir and Punjab

पंजाब के 11 किसान, मजदूर, विद्यार्थी, नौजवान और सांस्कृतिक संगठनों की ओर से केन्द्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 व 35ए को हटाने के फैसले के खिलाफ 15 सितंबर को मोहाली के दशहरा ग्राउंड में होने वाली रैली को पंजाब सरकार द्वारा रोके जाने के बावजूद पंजाब भर में कश्मीरियों के हक़ में जोरदार आवाज़ बुलंद हुई।

सुबह 3 बजे से ही पुलिस पूरे राज्य में सतर्क हो गयी, पुलिस ने रैली में पंजाब के अलग-अलग स्थानों से आ रहे लोगों को रोकना शुरू कर दिया। लोग भी उन्हीं जगहों पर धरनों पर बैठ गए जहां उन्हें रोका गया। गांव, शहर, रेलवे स्टेशन या राष्ट्रीय मार्ग जहां भी लोगों को रोका गया उन्होंने वहीं पर अपना रोष जाहिर करना शुरू कर दिया। ‘पंजाब लोक सभ्याचारक मंच’ के नेता अमोलक सिंह ने बताया, “लोगों को चुप करवाने की सरकार की कोशिश पूरी तरह फेल रही है। नतीजा यह निकला है कि पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में 45 जगहों पर विशाल रैलियां हुई हैं। हमें मोहाली में होने वाली इस रैली में 20,000 लोगों के आने की उम्मीद थी।”

image 1_3.png

“अलग-अलग स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के फैल जाने से पंजाब के लोगों को कश्मीरियों के साथ एकजुटता दिखाने का बढ़िया मौका मिला है। पंजाब के कोने-कोने से आई विरोध प्रदर्शनों की ख़बरों ने दिखा दिया कि पंजाब के अवाम ने कश्मीरियों के साथ की गई धक्काशाही को स्वीकार नहीं किया है।” रैली के लिए निर्धारित स्थान के साथ लगते गुरुद्वारा अम्ब साहिब के पास अपने साथियों के साथ खड़ी नौजवान भारत सभा की नेता नमिता ने यह बताया।

पंजाब के महलकलां, बरनाला, संगरूर, तरन तारन, बठिंडा, मानसा, मुक्तसर, पक्खोवाल जैसे स्थानों से सत्ता को आंखें दिखाते कुछ इस तरह के जोशीले नारों द्वारा कश्मीरियो के साथ एकजुटता जाहिर की गईः

‘असीं खड़े कश्मीरियां नाल, धारा 370 करो बहाल’,
‘कश्मीर कश्मीरी लोकां दा, नहीं हिंद-पाकि जोकां दा’,
‘शाह-मोदी की नहीं जागीर, कश्मीरी लोकां दा है कश्मीर’,
‘देश प्यार दे पा के परदे, कश्मीरियां उत्ते जबर ने करदे’

image 2_0.png
पंजाब सरकार द्वारा रैली पर पाबंदी लगाने की रैली प्रबंधकों ने कड़ी निंदा करते हुए इसे एकदम गैर-लोकतांत्रिक बताया। रैली प्रबंधकों ने कांग्रेस व भाजपा को एक ही सिक्के के दो पहलू बताते हुए कैप्टन सरकार पर दोष लगाया कि एक तरफ तो कैप्टन अमरिंदर सिंह कश्मीरियों के साथ अपनापन दिखाने का पाखंड करते है दूसरी तरफ उनके हक में होने वाली रैली पर पाबंदियां लगाते हैं।

नमिता द्वारा दी गई अनुसार, “रैली की इज़ाजत ली गई थी, प्रशासन द्वारा निर्धारित शर्तों को भी पूरा किया गया था लेकिन पिछले तीन दिनों से प्रशासन ने बोलना शुरू कर दिया कि कहीं भी रैली की इजाज़त नहीं दी जा सकती।” अमोलक सिंह ने कहा, “हम कैसे लोकतंत्र में तब्दील हो रहे हैं कि हमें असहमति के अधिकार को प्रकट करने के लिए भी इज़ाज़त लेनी पड़ रही है।”

इसी दौरान भरोसेयोग्य सूत्रों ने बताया कि सरकार ने विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए इतना जोर इसलिए लगाया कि सरकार को डर था कि पंजाब में होने वाली इस रैली को पाकिस्तान गलत ढंग से पेश कर सकता है और दूसरा कारण शांति और कानून व्यवस्था का था।
अमोलक ने पंजाब सरकार के अमन-कानून की व्यवस्था बिगड़ने वाले तर्क का जवाब देते हुए कहा, “विरोध करने वाले आम नागरिक हैं, वे किसान, विद्यार्थी और मजदूर हैं जो सदा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़े हैं।”

पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के स्टूडेंट अमन ने कहा, “हमने जब यूनिवर्सिटी में 13 अगस्त को धारा 370 को खत्म करने बारे विचार-चर्चा रखी तो यूनिवर्सिटी व चंडीगढ़ प्रशासन ने उसे रोक दिया था, हालांकि हम कुछ दिनों बाद यह विचार-चर्चा करवाने में सफल रहे।”

image 3_0.png
बाद में मोहाली में साहित्य, सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्र की नामवर हस्तियों ने पत्रकारों से बातचीत की। नामवर चिंतक और पंजाबी के मशहूर नाटककार गुरशरण सिंह की बेटी डॉ. नवशरण कौर ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, “केन्द्र सरकार ने कश्मीर मे ताकत का इस्तेमाल करके लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया है।” गांधीवादी हिमांशु कुमार ने कहा, “आज कश्मीरी लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो कल किसी भी और कौम के साथ ऐसा हो सकता है। इसलिए हमें सरकार की दमनकारी नीतियों का मिलकर विरोध करना चाहिए।”

पंजाब देश का एकमात्र राज्य है जहां कश्मीर की स्थिति पर निरंतर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले पंद्रह दिनों से लगातार पंजाब के अलग-अलग कस्बों, शहरों में कश्मीरियों के हक में किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों द्वारा बडे़ स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ रोष-प्रदर्शन जारी हैं।
जानने का विषय है कि पंजाबी कश्मीरियों के साथ अपनी एकजुटता क्यों प्रकट कर रहे हैं। इस सवाल को जानने के लिए जब हमने संगरूर में भारतीय किसान यूनियन (ऊगराहां) के जोगिन्दर सिंह से पूछा तो उन्होंने बताया, “इस बात का डर है कि सरकार द्वारा कश्मीर में जो किया गया है वह पंजाब में भी दोहराया जा सकता है। पंजाब के लोग इस बात को समझते हैं कि सरकार किसानों की समस्याएं दूर करने में नाकाम रही है। बढ़ रही बेरोजगारी व किसानी संकट से पंजाब में भी अशांति वाले हालात पैदा हो सकते हैं। ऐसे हालात में सरकार यूएपीए जैसे काले कानूनों का भी सहारा ले सकती है।”

विरोध प्रदर्शनों के दौरान वक्ताओं द्वारा जाहिर किए गए विचारों में यह आम भावना मिलती है कि धारा 370 को खत्म करना लोकतंत्र के साथ धोखा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपा सरकार अल्पसंख्यकों को दबा रही है। विरोध प्रदर्शनों व जनसभाओं में यह बात उभरकर लोगों के बीच आ रही है कि हथियारबंद फौजों ने कश्मीर को एक पिंजरे में बदल दिया है जहां उनके मानवीय व मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए हैं। पंजाबी किसान, मजदूर और विद्यार्थी कश्मीरियों के हक़ में खड़े होना अपना फर्ज़ समझते हैं क्योंकि कश्मीर के लोगों को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है उन्हें डर है कि कल को वे भी सरकार के निशाने पर होंगे।

किसान नेता गुरचेतन सिंह स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, “केन्द्र सरकार की कार्रवाई को केवल कश्मीर तक सीमित करके नहीं देखा जा सकता। मुझे डर है कि कल को पंजाब सूबे को भी माझा, मालवा, दोआबा क्षेत्रों में बांटकर कठपुतलिए मुख्यमंत्रियों को वहां तैनात किया जा सकता है। उन राज्यों में ऐसा कुछ होने की संभावना ज्यादा हैं जो संघीय ढांचे को मजबूत करने के पक्षधर हैं।”

पंजाब में किसानों, खेत-मजदूरों और विद्यार्थियों की नुमाइंदगी करने वाले लगभग 11 संगठनों ने ‘कश्मीरी कौमी संघर्ष हिमायत कमेटी’ का गठन किया है जो कश्मीर में केंद्र सरकार की कार्रवाई के खिलाफ रोष प्रदर्शन कर रही हैं।

तरनतारन ज़िला के किसान संघर्ष कमेटी के नेता कवंलप्रीत पन्नू कहते हैं, “पंजाब के किसान अनुच्छेद 370 व 35ए को खत्म करने के फैसले को गैर-कश्मीरियों के कश्मीर की जमीन पर ज्यादा से ज्यादा कब्ज़ा करने की इजाज़त के रूप में देखते हैं। 370 जैसे संघीय कानून स्थानीय आबादी को एक किस्म का विश्वास दिलाते हैं व राज्यों में किसानों व नौजवानों के हितों की रक्षा में मददगार साबित होते हैं। किसान चाहे किसी भी राज्य के हों हम उनकी ज़मीनों पर कब्जा किए जाने के खिलाफ खड़े हैं।”

मुक्तसर के पंजाब खेत मजदूर यूनियन के शीर्ष नेता लच्छमन सिंह सेवेवाला ने बताया, “सरकार वित्तीय स्रोतों का उपयोग हथियार खरीदने व राष्ट्रवाद के नाम पर अलग-अलग राज्यों में ज्यादा से ज्यादा फौजी बलों की तैनाती करके कर रही है। आर्थिक मंदी के समय में जब सरकार को खेती सेक्टर को ताकतवर करने और रोजगार पैदा करने के लिए रकम निकालनी चाहिए तो सरकार अपाचे हेलीकॉप्टर खरीद रही है। लोगों को समझना चाहिए कि कश्मीर व अन्य क्षेत्रों में मरने वाले सिपाही किसानों व मजदूरों के बेटे हैं न कि सियासतदानों के।”

पंजाब और कश्मीर पड़ोसी हैं, दोनों क्षेत्रों में काफी पुरानी सांझ है। कश्मीरी पहाड़ों से उतरकर पंजाब के अलग-अलग स्थानों पर बसते रहे हैं। पंजाबी मूल के उर्दू साहित्यकार मंटो, जहीर कश्मीरी के बुर्जुर्गों का सम्बन्ध कश्मीर से था और पंजाबी भी कश्मीर में बसते रहे हैं (खासकर महाराजा रणजीत सिंह के समय)। रणजीत सिंह ने 1819 ई. में कश्मीर को लाहौर दरबार का हिस्सा बनाया था। कश्मीरी पंडितों के धर्म की रक्षा के लिए सिखों के नौंवे गुरु तेग बहादुर ने अपना बलिदान दिया था। पंजाबी के बहुत सारे साहित्यकारों ने कश्मीर के बारे रचनाएं लिखी हैं। भाई वीर सिंह, प्रोफेसर मोहन सिंह की कश्मीर की खूबसूरत वादियों बारे लिखी कविताएं पंजाबियों के मन-मस्तिष्क में बसी हुई हैं। पंजाबी के प्रगतिशील कवि तेरा सिंह चन्न की कविता ‘हे कश्मीरी लोको’ कश्मीरियों पर हो रहे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करती है। 

Jammu and Kashmir
Central Government
punjab government
Punjab supporting kshmiri people's
punjabi university
Article 370
punjab

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

ट्रेड यूनियनों की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, पंजाब, यूपी, बिहार-झारखंड में प्रचार-प्रसार 

केंद्र सरकार को अपना वायदा याद दिलाने के लिए देशभर में सड़कों पर उतरे किसान

सरकार ने CEL को बेचने की कोशिशों पर लगाया ब्रेक, लेकिन कर्मचारियों का संघर्ष जारी

प्रधानमंत्री मोदी की फिरोज़पुर रैली रद्द होने पर राजनीति तेज़, वार और पलटवार

ख़बर भी-नज़र भी: किसानों ने कहा- गो बैक मोदी!

पंजाब : किसानों को सीएम चन्नी ने दिया आश्वासन, आंदोलन पर 24 दिसंबर को फ़ैसला

MSP की कानूनी गारंटी ही यूपी के किसानों के लिए ठोस उपलब्धि हो सकती है


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License