NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
#श्रमिकहड़ताल : न्यूनतम मज़दूरी से भी महरूम हैं मज़दूर
देश के अधिकतर हिस्सों में मालिक मज़दूरों को तय न्यूनतम मजदूरी से भी नीचे भुखमरी का वेतन दे रहे हैं, जो सरकार द्वारा सिफारिश किए गए मानदंडों से काफी कम हैं।

सुबोध वर्मा
07 Jan 2019
Translated by महेश कुमार
#श्रमिकहड़ताल

8-9 जनवरी, 2019 को होने वाली दो-दिवसीय हड़ताल की तैयारी के लिए लाखों श्रमिकों को जिस बात ने आंदोलित किया है उनमें से एक प्रमुख मांग बेहतर मजदूरी की है। नीचे दिए गए चार्ट पर एक नज़र डालें, जो प्रमुख राज्यों में अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी को सारांशित करता है और इसकी तुलना चार सस्दयो (दो वयस्कों और दो बच्चों) के परिवार के लिर आवश्यक न्यूनतम के जरूरत के आधार पर करता है। याद रखें ये न्यूनतम मजदूरी कानूनों के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा घोषित की गई हैं जो अधिसूचित ’या‘ सांविधिक’ मजदूरी हैं। अधिकांश श्रमिकों को इससे भी कम मिलता है।आप देख सकते हैं कि, कुछ राज्यों में, यहां तक कि अधिसूचित वेतन जरूरत के न्यूनतम वेतन प्रति माह 18,000 रूपए के आधे से भी कम है। 

ram.png

इस न्यूनतम वेतन को कैसे तय किया गया? विभिन्न खाद्य पदार्थों की खपत, कपड़े, ईंधन, और परिवहन आदि जैसी अन्य आवश्यक चीजों की लागत के आधार पर सबके द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार किया गया एक फॉर्मूला है। इस फॉर्मूले पर बहुत पहले यह मानकर काम किया गया था कि एक वयस्क को जीने के लिए और मध्य श्रेणी का काम करने के लिए कम से कम 2,700 किलो कैलोरी प्रति दिन ऊर्जा के रुप में आवश्यकता होती है, जिसके पास पालने के लिए एक परिवार भी होगा। 7 वें वेतन आयोग की रिपोर्ट (पृष्ठ 62-65 देखें) में इसके बारे में साफ तौर पर पूरी गणना सलीके से दी गई है।

 7 वें वेतन आयोग ने, जोकि एक सरकार द्वारा नियुक्त वैधानिक निकाय है, ने खुद इस बात का अनुमोदन किया और सिफारिश की है कि आज के वक्त में आवश्यक न्यूनतम वेतन 18,000 रूपए प्रति माह होना चाहिये। यह बिना किसी तामझाम के है – क्योंकि इस वेतन में भी अच्छी शिक्षा (जो काफी महंगी है) या अच्छी स्वास्थ्य सेवा (जो और भी अधिक निषेधात्मक है) की देखभाल हासिल करना मुश्किल है, मस्ती,  छुट्टियों या मनोरंजन के बारे में तो भूल ही जाओ।

संक्षेप में, यह 18,000 रुपये सिर्फ असहाय परिवार को जीवित रखने के लिए पर्याप्त है। मज़दूर सिर्फ इतने की ही मांग कर रहे हैं।

1992 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर गौर करते हुए कहा था कि शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि के लिए कम-से-कम 25 प्रतिशत अधिक कैलोरी की जरूरत को इसके साथ जोड़ा जाना चाहिए, 7 वें वेतन आयोग ने इसे अन्य तरीकों से समायोजित किया है। ।

वास्तव में, सेवा क्षेत्र में अधिकांश औद्योगिक श्रमिकों और कर्मचारियों को यह वैधानिक वेतन भी नहीं मिल रहा है। मालिक लोग उन्हें कम वेतन देने के लिए एक हजार रचनात्मक तरीके अपनाते हैं। इसमें ज्यादातर आम तरीके इस प्रकार हैं: लोगों से 8 घंटे से अधिक काम की शिफ्ट में  काम करवाना (यानि, 12 घंटे के लिए) लेकिन उन्हें ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान नहीं करना; कम वेतन देकर मज़दूरों से अधिक मजदूरी पर हस्ताक्षर करवाना; छुट्टियों के मामले में मजदूरी से मनमानी कटौती करना, हमेशा की तरह, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन देना आदि शामिल है।

अधिसूचित वेतन से बचने के सबसे बड़े आम तरीकों में से एक ठेके पर काम करवाना है। इस जघन्य प्रणाली को मोदी सरकार द्वारा “निश्चित अवधि के रोजगार” के नाम पर संस्थागत रूप दिया गया है। एक ठेकेदार को कंपनी द्वारा श्रमिकों/कर्मचारियों को मजदूरी पर रखने के लिए भुगतान किया जाता है और उसे मजदूरों की मजदूरी का भुगतान किया जाता है। वह बदले में मजदूरों को बहुत कम भुगतान मिलता है। ऐसे मजदूरों को न केवल कम मजदूरी मिलती है, बल्कि वे विभिन्न अन्य कानूनी लाभों जैसे कि अवकाश न लेने की स्थिति में मिलने वाले भुगतान और बोनस आदि से वंचित हो जाते हैं।

लब्बोलुआब यह है कि मजदूरों को बहुत कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जबकि मालिक लोग इस मेहनत के लिए पूरा भुगतान न करके अत्यधिक लाभ अर्जित करते है।

यह असंभव है कि आप इस शोषण की चक्की के पत्थरों के बीच न पीसे। हर जगह व्यवस्था एक जैसी है। और, क्योंकि उद्योग का विस्तार सामान्य नहीं है, इसलिए नौकरी के नए अवसर भी नहीं हैं। इस बीच, कृषि संकट के चलते नौकरियों की तलाश में अधिक से अधिक लोग मज़दूरी की तलाश में भटक रहे है। फैक्ट्री के गेट के बाहर बेरोजगारों की फौज खड़ी है और यह स्थिति मज़दूरी को ओर नीचे गिराती है, जो मजदूरों को सर झुका कर काम करने के लिए मज़बूर करता है और उन्हे असुरक्षित बनाता है।

नरेंद्र मोदी शासन के तहत, इस मुद्दे पर पिछले साढ़े चार साल में दो देशव्यापी हड़तालें हुयी हैं, इसके अलावा दर्जनों जुलूस, धरने, क्षेत्रीय आंदोलन, राज्य व्यापी विरोध प्रदर्शन, जेल भरो आंदोलन और क्या-क्या नहीं हुआ है। फिर भी "सबका साथ, सबका विकास" की सरकार इस बढ़ते गुस्से से अभी भी अछूता महसूस कर रही है, कब तक?

आम चुनाव के चंद महीनों पहले आने वाली यह हड़ताल, मज़दूरों का मौजूदा सत्ताधारी पार्टी को अंतिम धक्का होगा-और भविष्य की किसी भी सरकार के लिए एक चेतावनी भी होगी।

 

 

 

 

workers protest
Workers Strike

Related Stories

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

दिल्ली: बर्ख़ास्त किए गए आंगनवाड़ी कर्मियों की बहाली के लिए सीटू की यूनियन ने किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल को मिला कलाकारों का समर्थन, इप्टा ने दिखाया सरकारी 'मकड़जाल'

स्कीम वर्कर्स संसद मार्च: लड़ाई मूलभूत अधिकारों के लिए है

मध्य प्रदेश : आशा ऊषा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन से पहले पुलिस ने किया यूनियन नेताओं को गिरफ़्तार

झारखंड: हेमंत सरकार की वादाख़िलाफ़ी के विरोध में, भूख हड़ताल पर पोषण सखी

दिल्ली: सीटू के नेतृत्व वाली आंगनवाड़ी वर्कर्स यूनियन ने आप सरकार पर बातचीत के लिए दबाव बनाया


बाकी खबरें

  • aaj ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    धर्म के नाम पर काशी-मथुरा का शुद्ध सियासी-प्रपंच और कानून का कोण
    19 May 2022
    ज्ञानवापी विवाद के बाद मथुरा को भी गरमाने की कोशिश शुरू हो गयी है. क्या यह धर्म भावना है? क्या यह धार्मिक मांग है या शुद्ध राजनीतिक अभियान है? सन् 1991 के धर्मस्थल विशेष प्रोविजन कानून के रहते क्या…
  • hemant soren
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार
    18 May 2022
    एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश…
  • सोनिया यादव
    असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
    18 May 2022
    असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?
    18 May 2022
    मुंडका, अनाज मंडी, करोल बाग़ और दिल्ली के तमाम इलाकों में बनी ग़ैरकानूनी फ़ैक्टरियों में काम कर रहे मज़दूर एक दिन अचानक लगी आग का शिकार हो जाते हैं और उनकी जान चली जाती है। न्यूज़क्लिक के इस वीडियो में…
  • inflation
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?
    18 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार के पास महंगाई रोकने का कोई ज़रिया नहीं है जो देश को धार्मिक बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License