NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
“सर्वोच्च न्यायालय पर सवालिया निशान लगाने के लिए भाजपा अध्यक्ष पर कार्रवाई हो”
कन्नूर में अमित शाह के भाषण का विरोधI
अवकाश प्राप्त प्रशासनिक अधिकारियों एवं राजनयिकों का समूह
08 Nov 2018
Supreme court of India

पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सचिव तिरलोचन सिंह अंतर्राज्यीय परिषद के पूर्व सचिव अमिताभ पाण्डेय, म्यांमार के पूर्व राजदूत एवं विदेश मंत्रालय में विशेष सचिव पी. एम. एस मलिक, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी हर्ष मंदर समेत 50 भूतपूर्व नौकरशाहों एवं राजनयिकों के एक समूह ने एक संयुक्त बयान जारी कर सर्वोच्च न्यायालय पर सवालिया निशान लगाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर कार्रवाई की मांग की है. पेश है उक्त समूह का अनुदित बयान :

हम अखिल भारतीय एवं केन्द्रीय सेवाओं के पूर्व अधिकारियों का एक समूह हैं. हमलोगों ने अपने कार्यकाल के दौरान दशकों तक केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों को अपनी सेवाएं दी हैं. एक समूह के तौर पर, हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि हमारा किसी भी राजनीति दल से कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन हम वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता और भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं. सरकारी सेवा में शामिल होने के समय संविधान के प्रति निष्ठा की जो शपथ हमने ली थी, उसपर हम आज भी कायम हैं.

बीते 27 अक्टूबर 2018 (शनिवार) को केरल के कन्नूर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्र में मुख्य सत्ताधारी दल के अध्यक्ष ने एक – दूसरे से जुड़ी दो टिप्पणियां कीं : कि सर्वोच्च न्यायालय को लागू होने लायक निर्देश जारी करने चाहिए; और कि एक खास आयुवर्ग की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने के उतावलेपन में ‘अय्यप्पा के श्रद्धालुओं’ को गिरफ्तार और उनका दमन करने वाली केरल की राज्य सरकार को गिरा दिया जाएगा.

इन दोनों टिप्पणियों को एक साथ पढ़ने पर यह डरावना अहसास सामने आता है कि केंद्र में मुख्य सत्ताधारी दल का अध्यक्ष देश के सर्वोच्च न्यायालय पर संदेह व्यक्त कर रहा है और उसकी वैधानिकता पर सवालिया निशान लगाते हुए राज्य सरकार को उसके आदेशों को लागू करने से बचने को कह रहा है. और, वह खुलेआम धार्मिक भावनाओं को भड़काकर सडकों पर अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सीधी कार्रवाई के माध्यम से राज्य सरकार को गिराने की धमकी दे रहा है. यही नहीं, वहां केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को बर्खास्त करने का एक अंतर्निहित खतरा भी है.

संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा निहित पूर्ण शक्तियों के तहत भारतीय चुनाव आयोग द्वारा तैयार किये गये चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 में राजनीतिक दलों के कामकाज से संबंधित प्रावधानों को संहिताबद्ध किया गया है.

इस आदेश में राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्रावधान है. इसमें आम चुनावों में उनके प्रदर्शन के आधार पर उनको मान्यता देने का भी प्रावधान है. वर्ष 1989 में, संसद द्वारा भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में एक नयी धरा – 29 A – का समावेश किया गया, जिसमें इस बात का प्रावधान है कि भारतीय चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए एक अतिरिक्त शर्त लगायेगा. उस शर्त के मुताबिक, प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने संविधान / नियमों में यह शपथ शामिल करना होगा कि वह “विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता एवं लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं अटूट निष्ठा रखेगा और देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा.”

केंद्र में काबिज मुख्य सत्ताधारी दल ने भी उक्त अतिरिक्त शर्त के अनुरूप अपने संविधान में आवश्यक फेरबदल करके उस शपथ को शामिल किया है. इसके अलावा, यदि कोई मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल आदर्श चुनाव संहिता और भारतीय चुनाव आयोग के वैधानिक निर्देशों के पालन में असफल रहता है, तो आयोग को उसकी मान्यता रद्द या निलंबित करने की शक्ति प्राप्त है.

किसी भी व्यक्ति को न्यायिक इरादे पर संदेह किये बिना किसी न्यायिक निर्णय की आलोचना करने का अधिकार है. दरअसल, अलग – अलग न्यायिक स्तर पर और उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय के अलग – अलग खंडपीठों में न्यायिक निर्णय बदलते हैं.

अगर किसी फैसले से किसी को परेशानी है, तो उनके निवारण की एक उचित प्रक्रिया है. यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के किसी खास खंडपीठ द्वारा दिये गये फैसले पर भी यह प्रक्रिया लागू होती है. ऐसे कई उदहारण भी हैं जब संविधान में निर्धारित मानदंडों के भीतर एक असुविधाजनक न्यायिक निर्णय का सामना करने के लिए कार्यपालिका द्वारा संसद में विधायी हस्तक्षेप किये गये हैं.

किसी व्यक्ति, समूह या राजनीतिक दल को सड़क पर उतरकर हंगामा या केन्द्रीय कार्यपालिका द्वारा प्रतिकूल राजनीतिक कार्रवाई के माध्यम से उचित संवैधानिक प्रक्रिया को ध्वस्त करने की छूट नहीं है.

केंद्र में मुख्य सत्ताधारी दल के अध्यक्ष का उद्धृत सार्वजनिक भाषण एक तरह से संवैधानिक मर्यादाओं का घोर उल्लंघन है. अगर इस पर गौर नहीं किया गया, तो इसका हमारी राष्ट्रीय राजनीति पर दूरगामी और प्रतिकूल असर पड़ सकता है. माननीय प्रधानमंत्री देश के एक अग्रणी राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी लंबी पारी के दौरान संघवाद को मजबूत करने के एक अहम पैरोकार रहे हैं.

प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने केंद्र एवं राज्यों के बीच सहकारी संघवाद के पक्ष में पूरे उत्साह से बोला है. इस लिहाज से, सत्तारूढ़ दल के शक्तिशाली अध्यक्ष के सार्वजानिक भाषण की उद्धृत विषय – वस्तु चिंताजनक है क्योंकि वर्तमान समय में राजनीतिक बहस हर दिन एक नये गर्त में गिरती जा रही है.

हम आदर के साथ यह मांग करते हैं कि :

  1. चुनाव आयोग केंद्र में मुख्य सत्ताधारी दल के अध्यक्ष के उद्धृत सार्वजनिक भाषण का संज्ञान ले और संबंधित राजनीतिक दल से आवश्यक स्पष्टीकरण मांगे. इसके बाद संविधान की पवित्रता को बचाने के लिए उचित एवं आवश्यक कार्रवाई करे.
     
  2. सरकार के मुखिया, माननीय प्रधानमंत्री, अपने पार्टी के अध्यक्ष को सही एवं उचित रूप से समझाएं और पार्टी अध्यक्ष के उद्धृत भाषण से कार्यपालिका के समर्थन को स्पष्ट रूप से अलग रखें.
     
  3. एक सार्वजनिक मंच पर किये गये अपनी घोर अवमानना का माननीय सर्वोच्च नयायालय खुद संज्ञान ले और इस संबंध में आवश्यक कानून कार्रवाई करे.
     
  4. राष्ट्र प्रमुख, महामहिम राष्ट्रपति जी, सभी संबंधित पक्षों को संवैधानिक मर्यादा को बरक़रार रखने और इस किस्म के उल्लंघन को ठीक करने के वास्ते कार्यपालिका को सुधारात्मक कदम उठाने के लिए उपयुक्त सलाह दें.
     
Courtesy: द सिटिज़न,
Original published date:
07 Nov 2018
Supreme Court
Amit Shah

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License