NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सर्वोच्चता संविधान की या आस्था की बाबरी ?
यह मुद्दा अयोध्यावासियों पर ही छोड़ गया होता तो काफी पहले ही वे इसका समाधान कर चुके होते।
इरफान इंजीनियर
18 Nov 2017
babri mazjid

अदालत के बाहर मन्दिर-मस्जिद विवाद सुलझाए जाने की पहल का प्रमुख कारण है कि मुस्लिम समुदाय सर्वाधिक नाजुक हालत में है। हिन्दुत्ववादियों को लगता है कि मुस्लिम मिल कर भी ताकत नहीं बन पाएंगे और बड़े आराम से उन्हें हाशिये पर धकेला जा सकता है। उनकी इच्छा के विरुद्ध कोईभी समाधान हासिल किया जा सकता है। सरकार ने भी अपने फायदों के लिए मुस्लिमों के बीच बिखराव लाने में कसर नहीं छोड़ी है। शिया मुस्लिम दावा कर रहे हैं कि विवादित भूमि शिया वक्फ बोर्ड की है ,मस्जिद एक बार फिर से खबरों में है। श्री श्री रवि शंकर ने पहल करते हुए कोर्ट से बाहर किसी समाधान पर पहुंचने की गरज से सभी पक्षों से बातचीत का सिलसिला आरंभ किया है। बेशक, यह पहल उनकी खुद की तरफ से है। लेकिन श्री श्री के भाजपा नेताओं से संबंध सर्वविदित हैं। जब उनने यमुना नदी के किनारे एक आयोजन किया था, तब नदी पर उनके आयोजन के लिए भारतीय सेना ने पंटून पुल बनाया था। उनके आमंतण्रपर प्रधानमंत्री स्वयं कार्यक्रम का उद्घाटन करने पहुंचे थे। बाद में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने श्री श्री से नदी किनारे खराब हुए पर्यावरण को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए पांच करोड़ रुपये का हर्जाना भरने को कहा तो उनने अनदेखा कर दिया। फिर भी उनके खिलाफकार्रवाई अभी तक नहीं की जा सकी है। रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (आरजे-बीएम) विवाद सुलझाने के अपने मौजूदा प्रयास की कड़ी के तौर पर श्री श्री केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथसिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथविचार-विमर्श कर चुके हैं। संघ परिवार के नेताओं और तमाम प्रमुख हिन्दू संगठनों ने श्री श्री को उनके प्रयास में समर्थन देने की घोषणा कर दी है। भले ही यह प्रयास सरकार के स्तर पर न हो लेकिन यकीन के साथकहा जा सकता है कि इसे केंद्र और उत्तर प्रदेश में आसीन भाजपा नीत सरकारों का आशीर्वाद प्राप्त है। अलबत्ता, इस प्रयास के विफल होने पर दोनों सरकारें बिना हिचक इससे दूरी बना लेंगी। इससे पूर्व मार्च महीने में भाजपा नेता और राज्य सभा में नामित सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मन्दिर-मस्जिद मामले में 30 सितम्बर, 2010 को पारित इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपनी अपील पर जल्द सुनवाई की सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी। हालांकि वह इस मामले में पक्ष नहीं हैं। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए कहा कि भाजपा नेता को इस मामले के सभी पक्षों के साथबातचीत करनी चाहिए। हैरत में डाल देने वाले घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च, 2017 को आरजे-बीएम मामले के सभी पक्षों से परस्पर बातचीत करने और विवाद के किसी सर्वसम्मत समाधान तक पहुंचने को कहा। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने यहां तक कहा कि दोनों पक्ष सहमत हों तो वह स्वयं मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार हैं। लेकिन बाद में जब शीर्ष अदालत को पता चला कि स्वामी मामले में पक्षकार नहीं हैं, तो तत्काल सुनवाई की याचिका को नामंजूर कर दिया गया। मुस्लिम समुदाय की संवेदनशील स्थितियदि आरजे-बीएम एक बार फिर से र्चचा में है, तो यकीनन चुनाव आसपास होने ही चाहिए। सही तो है, चुनाव आने वाले हैं। नवम्बर माह में 22 तारीख से तीन चरणों में उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव होने हैं। करीब तीन करोड़ मतदाता सोलह नगर निगमों, 202 टाउन क्षेत्रों और 438 निगम परिषदों समेत 650 से ज्यादा पदों के लिए होने वाले चुनावों में अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। सोलह नगर निगमों में नवनिर्मित अयोध्या नगर निगम और मथुरा-वृंदावन नगर निगम भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 14 नवम्बर को अयोध्या से चुनाव अभियान की शुरुआत भी कर दी है। गुजरात में होने जा रहा विधानसभा चुनाव भी भाजपा के लिए कड़ा रहने वाला है। उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव मुख्यमंत्री योगी के लिए महत्त्वपूर्ण परीक्षा सरीखे होंगे जिन्हें बड़े हिंदुत्ववादी चेहरों में शुमार किया जाता है। इसके साथ ही, इन चुनावों के नतीजे 2019 में होने वाले लोक सभा चुनाव से पूर्व मतदाताओं के रुख को भी भांपा जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि योगी ने दीवाली के अवसर पर अयोध्या में भव्य आयोजन किया था। इस दौरान रिकॉर्ड संख्या में दीए जलाए गए। सरयू नदी के तट पर भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करने की भी उन्होंने घोषणा की। कहना न होगा कि यह सब करदाताओं के पैसों से होगा। कार्यक्रम में नयनाभिराम आरती के आयोजन के साथ ही इंडोनेशिया और थाईलैंड से पहुंचे कलाकारों द्वारा रामलीला का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान एन्सेफेलाइटिस और उपचार योग्य बीमारियों से पीड़ित सैकड़ों बच्चों ने गोरखपुर स्थित बीआरडी अस्पताल में दम तोड़ दिया। गोरखपुर मुख्यमंत्री की कर्मभूमि है। अस्पताल में जर्जर सुविधाओं और ऑक्सीजन आपूत्तर्ि का भुगतान न किए जाने को इन मौतों के कारण के रूप में गिनाया गया। बहरहाल, अदालत के बाहर मन्दिर-मस्जिद विवाद सुलझाए जाने की पहल का प्रमुख कारण है कि मुस्लिम समुदाय सर्वाधिक नाजुक हालत में है। हिन्दुत्ववादियों को लगता है कि मुस्लिम मिल कर भी ताकत नहीं बन पाएंगे और बड़े आराम से उन्हें हाशिये पर धकेला जा सकता है। उनकी इच्छा के विरुद्ध कोईभी समाधान हासिल किया जा सकता है। सरकार ने भी अपने फायदों के लिए मुस्लिमों के बीच बिखराव लाने में कसर नहीं छोड़ी है। शिया मुस्लिम दावा कर रहे हैं कि विवादित भूमि शिया वक्फ बोर्ड की है। मजे की बात है कि शिया वक्फ बोर्ड ने हाल के वर्षो में किसी अदालत में इस मामले में पक्ष बनने के लिए कोईयाचिका तक नहीं डाली है। भाजपा ने हमेशा ही मुस्लिमों के बीच विभिन्न जमातों का अपने हित के लिए इस्तेमाल किया है। पिछले आम चुनाव में राजनाथसिंह ने शिया मुस्लिम नेताओं से भेंट की ताकि मुस्लिम समुदाय को बांटा जा सके। भाजपा जतलाने की कोशिश करती रही है कि शिया, सूफी और मुस्लिम महिलाएं उसके समर्थक हैं। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक बार कहा था कि भाजपा के लिए जरूरी है कि हिन्दुओं को एकजुट करे और मुस्लिमों में फूट डाले। शिया नेताओं का संकेत झपटाशिया नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि वे आरजे-बीएम मुद्दे को सुलझाने के लिए विवादित भूमि पर राममन्दिर का निर्माण करने पर हिन्दुओं के साथ सहमत होना चाहते हैं। इसी संकेत को हिन्दुत्ववादी नेताओं ने झपट लिया। स्थिति यह थी कि मुस्लिमों का एक हिस्सा (हम उन्हें सरकारी मुस्लिम कह सकते हैं?) विवादित स्थल पर राम मन्दिर की तामीर किए जाने की वकालत करने लगा। इन सरकारी मुस्लिमों को सत्ता में ओहदेदार बनाया जा सकता है। कुछ को तो उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड में खपाया भी जा चुका है। बहरहाल, मुस्लिम समुदाय को समाधान के किसी प्रयास से बचना होगा और लोकतंत्रके इदारों द्वारा मुद्दे का हल ढूंढने पर बल देना होगा। हिन्दुत्ववादी लोकतंत्रके संस्थानों पर विास नहीं करते। खासकर न्यायपालिका पर उन्हें विास नहीं है। जिस तरह से बाबरी मस्जिद को शहीद किया गया उससे यह बात साफहो जाती है। अदालत के बाहर किसी समाधान पर पहुंचने की जल्दबाजी से भी साफ होता है कि हिन्दुत्ववादियों की शीर्ष अदालत के फैसले से पहले ही मनमानी करने की मंशा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के नेताओं ने न्यायपालिका में पूरा विास जताया है। वे न्यायपालिका के फैसले को स्वीकार करने को तत्पर हैं। इस कड़ी में वे विवादित भूमि को लेकर अपने पक्ष को सही स्थान पर पेश कर सकेंगे। श्रीश्री रवि शंकर के साथअयोध्या में उमड़ आए लोग इस स्थिति में नहीं हैं कि मामले में कोईठोस तर्क पेश कर सकें। श्री श्री का दरबार आस्थावादियों का है, जो चाहते हैं कि रामजन्ममन्दिर निर्माण के लिए 2.77 एकड़ की समूची विवादित भूमि उन्हें सौंप दी जाए। इस भूमि पर हिन्दू आस्था के आधार पर दावा किया जा रहा है। कुछअन्य हैं, जो चाहते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत 67 एकड़ भूमि उन्हें सौंपी जाए। इसके साथही कुछयह भी कह रहे हैं कि चौरासी कोसी परिक्रमा (84 किमी. या 168 मील) के दायरे में कोईमस्जिद तामीर करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इसका अर्थ यह कि अयोध्या और फैजाबाद का एक बड़ा हिस्सा। श्री श्री के दरबार में पहुंचे मुस्लिम यही र्चचा कर पाएंगे कि क्या मस्जिद 67 एकड़ भूमि या 67 एकड़ जमीन या चौरासी कोसी परिक्रमा के दायरे से बाहर बने। आज हिन्दुत्ववादी किसी बातचीत से फैसले पर पहुंचना चाहते हैं। पहले वे इसके खिलाफ थे। पहले शंकराचार्य और मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने इस दिशा में प्रयास किया था। मुस्लिम नेताओं ने कुछनरमी दिखाई थी। उम्मीद बंधगई थी कि कोईसर्वसम्मत समाधान निकल आएगा। लेकिन संघ परिवार ने अड़ंगा लगा दिया क्योंकि उसे लगा कि वह तो इस प्रयास में कहीं दिखाईही नहीं दे रहा। मीडिया में तमाम बयानबाजियां होने लगीं कि शंकराचार्य तो भगवान शिव के भक्त हैं, न कि भगवान राम के। नतीजतन, शंकराचार्य पीछे हट गए। वह प्रयास सिरे नहीं चढ़ सका। यह मुद्दा अयोध्यावासियों पर ही छोड़ गया होता तो काफी पहले ही वे इसका समाधान कर चुके होते। बहरहाल, मन्दिर या मस्जिद, हमें जरूरत है कि हमारा लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों से उम्मीद करनी चाहिए।

babri masjid
BJP
RSS
Communalism
Shri shri Ravishankar

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • CARTOON
    आज का कार्टून
    प्रधानमंत्री जी... पक्का ये भाषण राजनीतिक नहीं था?
    27 Apr 2022
    मुख्यमंत्रियों संग संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल के दामों पर टैक्स कम करने की बात कही।
  • JAHANGEERPURI
    नाज़मा ख़ान
    जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी
    27 Apr 2022
    अकबरी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था न ही ये विश्वास कि सब ठीक हो जाएगा और न ही ये कि मैं उनको मुआवज़ा दिलाने की हैसियत रखती हूं। मुझे उनकी डबडबाई आँखों से नज़र चुरा कर चले जाना था।
  • बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    27 Apr 2022
    वाहनों में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा देने के उद्देश्य से निर्भया सेफ्टी मॉडल तैयार किया गया है। इस ख़ास मॉडल से सार्वजनिक वाहनों से यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी।
  • श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    प्रभात पटनायक
    श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    27 Apr 2022
    श्रीलंका के संकट की सारी की सारी व्याख्याओं की समस्या यह है कि उनमें, श्रीलंका के संकट को भड़काने में नवउदारवाद की भूमिका को पूरी तरह से अनदेखा ही कर दिया जाता है।
  • israel
    एम के भद्रकुमार
    अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात
    27 Apr 2022
    रविवार को इज़राइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के साथ जो बाइडेन की फोन पर हुई बातचीत के गहरे मायने हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License