देश भर में जारी मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोकतंत्र की जगह भीड़ तंत्र को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देशित किया है कि वो मॉब लिंचिग से निपटने के लिए अलग से कानून लाए। गोरक्षा के नाम पर होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर नाराज़गी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता। कोर्ट ने राज्यों को सख्त आदेश दिया है कि वो चार हफ्ते में कोर्ट द्वारा दिए निर्देश लागू करे।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ की बेंच ने कहा कि विधिसम्मत शासन बना रहे यह सुनिश्चित करते हुए समाज में कानून-व्यवस्था कायम रखना राज्यों का काम है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘‘भीड़ अपने-आप में कानून नहीं बन सकती।”
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा कि वह भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने और ऐसी घटनाओं के दोषियों को सज़ा देने के लिए नये प्रावधान बनाने पर विचार करे। कोर्ट ने देश में ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने और इन पर गाइडलाइंस तय करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिया है। यह याजिका कोर्ट ने तुषार गांधी (महात्मा गाँधी के पर-पौत्र) और तहसीन पूनावाला (कांग्रेस नेता) की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख 28 अगस्त तय की है।
सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी. एस. नरसिंहा ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि केंद्र सरकार भीड़ द्वरा हिंसा को लेकर सजग और सतर्क है, लेकिन यह समस्या कानून व्यवस्था की है और कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है। केंद्र तब तक इसमें दखल नहीं दे सकता जब तक राज्य खुद इसके लिए गुहार न लगाए।
इसके पहले जुलाई में भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि भीड़ द्वारा हो रही हिंसा, चाहे वह गोरक्षा के नाम पर हो रही हो या किसी और वजह से, को रोकना राज्यों की जिम्मेदारी है। सितंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए राज्यों के प्रत्येक जिलों में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त करने की बात कही थी। इसके बाद जनवरी में कोर्ट ने तीन राज्य सरकारों से पूछा था कि उन्होंने कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं किया, और क्यों न राज्य सरकारों पर अवमाना की कार्यवाही की जाए।
गौरतलब है कि देश भर में अफवाह के आधार पर भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं में लगातार इज़ाफा हो रहा है। बीते साल भर में 27 लोगों को भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया गया। यह अफवाहें सोशल मीडिया विशेषकर व्हाट्सऐप के माध्यम से फैलाई जाती हैं। जहाँ कभी बच्चा चोरी के नाम पर अफवाह फैलाई जाती है, जिसके बाद भीड़ बिना त्थय को जाँचे किसी बेगुनह को अपना निशाना बना लेती है।