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'सुशासन' में हिन्दू-मुसलमान, ब्राह्मण-दलित बच्चों के लिए अलग-अलग कक्षाएं
बिहार का ये विद्यालय अन्य विद्यालयों से बहुत अलग है, यहाँ जातिगत और धार्मिक आधार पर कक्षाओं का वर्गीकरण किया गया है। और यह काफी लंबे समय से चल रहा है।
मुकुंद झा
18 Dec 2018
जी.ए उच्च माध्यमिक (+2) विद्यालय
फोटो साभार : प्रभात खबर

बिहार के वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड का  जी.ए उच्च माध्यमिक (+2) विद्यालय। यह सरकारी विद्यालय है। 1932 से स्थापित। यह स्कूल, राज्य के अन्य सरकारी स्कूलों के मुकाबले सुविधा के मामले में कुछ अलग नहीं है। यहाँ शिक्षक छात्र का अनुपात 80:1 (अस्सी छात्रों पर एक शिक्षक) है जो शिक्षा के अधिकार अधिनयम 30:1 से बहुत ही कम है। लेकिन यह एक मामले में अन्य विद्यालयों से बहुत अलग है, यहाँ जातिगत और धार्मिक आधार पर कक्षाओं का वर्गीकरण किया गया है। और यह काफी लंबे समय से चल रहा है |

यह कोई सामान्य घटना नहीं है। भाजपा और जदयू शासित बिहार राज्य का यह एक सरकारी विद्यालय है। इनकी स्थापना बच्चों के शैक्षिक विकास के साथ शिक्षा के माध्यम से समाज में व्याप्त जातिगत और धार्मिक असामनता के उन्मूलन के लिए  है। लेकिन जब  ये  ही इन असमानताओं और भेदभाव को बढ़ावा दे रहे हैं तो हमें एक बार फिर से सोचने कि जरूरत है।  ऐसी घटना हमारी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है कि हम ऐसी शिक्षा से कैसे समाज का निर्माण कर रहे हैं?

यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पूर्व में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। अभी कुछ महीने पूर्व ही भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम के विद्यालय में कक्षाओ का वर्गीकरण धर्म के आधार पर किया गया था। जब यह मीडिया के सामने आया तब लोगों को पता चला कि जो बच्चे पिछले दिनों तक एक साथ पढ़ते थे, अचानक ही उन्हें उनके नामों के आधार पर अलग-अलग कर दिया गया है। इस पर तब स्कूल की तरफ से सफाई दी गई थी कि “सेक्शन का बदलाव एक मानक प्रक्रिया है। सभी स्कूलों में होता है। यह प्रबंधन का फैसला था कि जो सबसे अच्छा हो किया जाए ताकि शांति बनी रहे, अनुशासन हो और पढ़ने का अच्छा माहौल हो। बच्चों को धर्म का क्या पता, लेकिन वे दूसरी चीज़ों पर लड़ते हैं। कुछ बच्चे शाकाहारी हैं इसलिए अंतर हो जाता है। हमें सभी शिक्षकों और छात्रों के हितों का ध्यान रखना होता है।”

क्या यह सफाई पर्याप्त है? इस लिहाज़ से धर्म ही नहीं, शाकाहारी और मांसाहारी के नाम पर बच्चों को बांट देना चाहिए? ठीक इसी तरह  की बेतुकी  सफाई बिहार के वैशाली के मामले में वहाँ  की प्रधानाचार्या मीना कुमारी द्वारा मीडिया में दी गई है कि हमने बच्चों का वर्गीकरण शिक्षा में सुविधा एवं अलग-अलग योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से हो इसलिए किया है। इसका कोई भी विरोध नहीं कर रहा है। बच्चों के साथ कोई जातिगत भेदभाव नहीं किया जाता है।

मीना जी की इस सफाई से ही कई अन्य सवाल खड़े हो रहे हैं जिनके जबाब उन्हें देने चाहिए। पहला क्या देश में केवल इसी स्कूल में योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है ? जिस कारण इन्हें कक्षाओं का वर्गीकरण जाति और धर्म आधारित करना पड़ा। दूसरा वो कह रही हैं कि इसका कोई विरोध नहीं कर रहा है। इसका अर्थ अगर कोई विरोध न करे तो हर कृत्य उचित है।

यह पूरा प्रकरण साफ तौर पर जाहिर करता है कि ये योजनाओं के किर्यान्वयन का सवाल नहीं है, ये इनकी छोटी और सांप्रदायिक सोच का परिणाम है।

इस पूरे मामले में न्यूज़क्लिक से बात करते हुए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, लालगंज अरविंद कुमार तिवारी ने बताया कि इस मामले की जानकारी मिलने के बाद  वह विद्यालय के निरीक्षण के लिए गए। उन्होंने कहा “प्रथमदृष्टया मामला सत्य प्रतीत होता है। जब वो वहाँ पहुंचे तो बच्चो से तो नहीं मिले लेकिन उन्होंने छात्रों की हाज़िरी वाले रजिस्टर (उपस्थिति पंजिका) देखे जिससे साफ दिख रहा था कि कक्षाओं का वर्गीकरण जाति के आधार पर किया गया है।”

आगे वो कहते हैं कि “इस पूरे मामले की जानकारी  डीईओ को रिपोर्ट भेजी जा रही है। उच्च पदाधिकारियों के आदेश के बाद आगे की कार्रवाई की जायेगी।”

समाचार एजंसियों के अनुसार इस विद्यालय में मुस्लिम और हिंदू छात्रों को विभिन्न वर्गों और कमरों में बैठने के लिए बनाया जाता है। दलितों, ओबीसी और ऊपरी जाति के लिए अलग-अलग कक्षाएं हैं। यह इतना व्यवस्थित है कि दलितों और मुस्लिम छात्रों को शायद ही कभी अन्य कक्षाओं में जाने का कोई मौका मिलता है। स्कूल के बाहर, हालांकि, धर्म और जाति रेखाओं में कटौती करने वाले सभी छात्र एक साथ खेलते हैं, स्कूल में एक साथ आते हैं और अपने साथियों के साथ घर लौटते हैं।

इस पूरे मामले में औपचारिकता पूरा करते हुए शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने एक रटा रटाया बयान मीडिया को दिया जिसमें वो कह रहे हैं कि  “अगर किसी विद्यालय में ऐसी व्यवस्था है तो वह पूर्णत गलत है, जाति और धर्म  के आधार पर बच्चों को वर्गों में बांटा जाना स्वीकार नहीं किया जा सकता है।  इसकी जांच करायी जायेगी, दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। किसी को भी नहीं बख़्शा जाएगा।”

पूरा मामला बेहद ही आपत्तिजनक है। विवाद इसी को लेकर है। और होना भी चाहिए। ये वर्गीकरण  की मानसिकता बता रहा है और ये भी बता रहा है कि हम कैसा शैक्षिक माहौल तैयार कर रहे हैं।

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Religious discrimination
education
Education crises
Nitish Kumar
jdu-bjp

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