NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गैर-स्टार्टर स्मार्ट सिटी में शहरों में शिमला कोई अपवाद नहीं है
स्मार्ट सिटी परियोजनाएं एक बड़ी विफलता हैं, और यहां तक कि अब सरकार भी इसे महसूस करने लगी है। इसीलिए कभी खूब जोर-शोर से शुरू की गई इस योजना का नए केंद्रीय बजट में शायद ही कोई उल्लेख किया गया है।
टिकेंदर सिंह पंवार
07 Mar 2022
shimla
चित्र सौजन्य: ट्रिब्यून इंडिया 

शिमला: स्मार्ट सिटी प्लान (एससीपी), अपनी शुरुआती अवधारणा से ही, शहरी विकास का एक बेहद अनन्य रूप रहा है, जिसमें दो समस्याएं हैं- सबसे पहला, तो इसके कार्यान्वयन का मॉडल है, जो निर्वाचित परिषद का अधिकार छीन लेता है और इसकी बजाय, एसपीवी (स्पेशल पर्पज व्हीकल), जो नौकरशाहों, यहां तक कि विश्व बैंक के अधिकारियों आदि द्वारा चलाया जाता है, इस तरह के एसपीवी का संचालन करता है। भाजपा इसे शहरी विकास के अपने कार्यक्रम के लिए एक प्रकाशस्तंभ के रूप में दिखाना चाहती थी। स्मार्ट सिटी प्लान के साथ दूसरी समस्या जेएनएनयूआरएम, जिसे यूपीए सरकार द्वारा शुरू किया गया था के एकदम विपरीत है, जहां स्मार्ट शहरों में केंद्र सरकार और राज्य सरकार/नगर निकाय के बीच भागीदारी का अनुपात 90:10 था, अभी यह 50:50 फीसदी है, यानी बराबरी का है। 

लेकिन देश के अधिकतर प्रदेश और शहरी निकाय 50 फीसदी की भागीदारी निभाने के काबिल नहीं हैं। फिर इस मामले में सबसे विचारणीय मुद्दा यह है कि जिस तीव्र विकास को प्रदर्शित करने के लिए केंद्रित विकास की परिकल्पना की गई थी, वह नदारद रही। देश भर से जुटाए गए आंकड़ों से स्पष्ट है कि अभी तक स्मार्ट सिटी की आधी परियोजनाएं भी पूरी नहीं हुई हैं, जबकि यह मिशन अपने अंत के करीब पहुंच गया है। 

स्मार्ट सिटी के प्रस्तावों में दो तत्व शामिल हैं-क्षेत्र आधारित विकास (एबीडी) और पैन-सिटी विकास। एबीडी में महत्त्वपूर्ण पूंजी निवेश की मांग की गई थी: इसमें (अ) पुनर्विकास, (ब) पुनःसंयोजन (retrofitting), (स) हरितक्षेत्र परियोजनाएं शामिल थीं। अधिकांश एससीपी पुनर्विकास के लिए थे और हरितक्षेत्र के लिए 1 फीसदी  भी परियोजनाएं नहीं थीं, शायद अधिक भूमि की जरूरत एवं उनके उत्पादन में लंबा समय लगने की वजह से। पैन सिटी के विकास में कुल योजना की 10 फीसद से अधिक राशि नहीं लगाई गई थी और मुख्य रूप से स्मार्ट बस स्टॉप, स्मार्ट बसें, गतिशीलता, स्मार्ट मीटरिंग आदि चीजों के इंटरनेट के लिए रकम रखी गई थी। 

शिमला स्मार्ट सिटी प्लान 

हिमाचल प्रदेश में जारी इसी विधानसभा सत्र में शहरी विकास मंत्री ने दो स्मार्ट सिटीज, विशेषकर शिमला के बारे में बात की और अपने वक्तव्य में इसके कई तथ्यों को झूठ ठहरा दिया। विपक्ष, जिनमें कांग्रेस मुख्य है और माकपा के एकमात्र विधायक ने शिमला स्मार्ट सिटी योजना के प्रस्तावों को सत्ता निकायों के दरबारियों को लाभ पहुंचाने वाला बताते हुए सरकार का मखौल उड़ाया। 

देश के अन्य शहरों और कस्बों के समान शिमला ने भी अपने यहां निवेश की केंद्रीय रणनीति के रूप में पुनर्विकास पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन यहां, अन्य शहरों के विपरीत, लोगों की प्राथमिकताओं को समझने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया गया था। और तब यह सोचा गया था कि प्राथमिकता नंबर एक के रूप में पानी होगा (क्योंकि तब शहर में हेपेटाइटिस का प्रकोप फैला हुआ था); इसकी बजाय, लोगों ने मॉबलिटी के पक्ष में मतदान किया। और इस तरह शिमला के लिए योजना की डिजाइन की गई थी। 

अब शिमला एससीपी क्या थी?

यहां मूल बिंदु दिए गए हैं: शिमला स्मार्ट सिटी प्रस्ताव शहर के 1,01,561 (57 फीसदी) नागरिकों से सीधी बातचीत के बाद पहचानी गई प्राथमिकताओं के आधार पर तैयार किया गया था, जो व्यक्तिगत फीडबैक फॉर्म, एसएमएस से दिए गए संदेश, फेसबुक, मायगोव ऑनलाइन पर सक्रियता और वार्ड सभाओं की बैठकों की राय पर आधारित था।

नागरिक भागीदारी की इस प्रक्रिया ने शीर्ष प्राथमिकता वाले निम्नलिखित क्षेत्रों की पहचान की थी : (i) यातायात की भीड़, सार्वजनिक परिवहन, पार्किंग और पैदल आवाजाही (ii) पीने योग्य पानी की आपूर्ति। (iii) ठोस अपशिष्ट और अपशिष्ट जल प्रबंधन। (iv) भवन सुरक्षा, आपदा शमन और नागरिकों की सुरक्षा। (v) खुले और मनोरंजक स्थान। 

निम्नलिखित तालिका से पता चलता है कि कैसे कुल वित्तीय संसाधन काम रहे थे:


जैसा कि तालिका से स्पष्ट है, शिमला को स्मार्ट शहर बनाने का कुल बजट 2,905 करोड़ रुपये का था, जिसमें से लगभग 87 फीसदी एबीडी के लिए था और पैन-सिटी प्रस्तावों के लिए केवल 6.7 फीसदी राशि रखी गई थी। और यहां तक कि एबीडी में, पुनर्विकास और पुनःसंयोजन प्रस्तावों को लगभग बराबर हिस्सा दिया जाना चाहिए था। 

अब इस पैसे को कहां खर्च किया जाना था? आइए इस पर एक नज़र डालते हैं:

यदि शहर की मुख्य सड़क कार्ट रोड को चौड़ा करने के काम का ठेका सत्तारूढ़ पार्टी के पेटी ठेकेदारों को देने का प्रावधान करने की बजाय अधिक से अधिक पैदल परिपथ की तरफ उन्मुख आधारभूत संरचना बनाई जाती जो कि शिमला शहर की शान रहा है। इसकी बजाय, सरकार ने कहीं और पैसा खर्च कर दिया।  (तालिका कार्य, लागत, समय अवधि और इस काम को करने वाली एजेंसी के नाम को दिखाती है।) 

और स्मार्ट बस स्टॉप कहां है?

यह ग्राफ आवागमन में एक और महत्त्वपूर्ण निवेश को दिखाता है, यानी ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता। 

इस काम में 60 महीने से अधिक समय लग गया है, जबकि इसे 36 महीनों में ही पूरा कर लिया जाना था। वास्तविकता यह है कि पिछले पांच वर्षों में एक भी नई लिफ्ट नहीं लगी है और एस्केलेटर भी नहीं बना है। 


आवागमन के क्षेत्र में प्रमुख निवेश सुरंगों के निर्माण में किया जाना चाहिए था। 

उपरोक्त सभी परियोजनाओं में से कोई भी प्रारंभिक चरण तक भी नहीं पहुंचा है जबकि इसे एक बड़ा निवेश माना जाता था जो शहर में बने यातायात संकट को कम करने में मददगार होता। 

ढल्ली में बस स्टैंड का विकास, नए आइएसबीटी पर बस पार्किंग पर कुल लागत = 150.00 करोड़ रुपये थी-(i) इसमें पीपीपी मोड से 75.00 करोड़ रुपये, और (ii) एसपीवी लाभ से 75.00 करोड़ रुपये लगाए जाने थे। 

लेकिन उपर्युक्त में से कोई भी कार्य अभी तक प्रारंभ नहीं हुआ है। 

शहर के विकास का एक और प्रमुख क्षेत्र था-पुनर्विकास। यहां उन परियोजनाओं की सूची दी गई है, जिन्हें एक निश्चित अवधि के भीतर पूरा करना था। 

यह देखना स्तब्धकारी है कि शिमला मास्टर प्लान का मसौदा प्रस्ताव बनाने को छोड़कर ऊपर सूचीबद्ध सभी मदों में कुछ भी काम नहीं हुआ है, जो पर्वतीय आवश्यकताओं के दायरे से बाहर है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि शिमला मास्टर प्लान अहमदाबाद के एक सलाहकार द्वारा मैदानी इलाकों के कॉपी-पेस्ट मॉडल पर तैयार किया गया था। 

इस बीच, आंकड़े और क्षेत्र इसके उदाहरण हैं कि शहर के विकास के पहलू में लगभग कुछ भी नहीं हुआ है। यहां तक कि अगर मॉल से कार्ट रोड तक के पुनर्विकास के क्षेत्र को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा अलग कर दिया गया था, तो एक नए स्थल की पहचान की जानी चाहिए थी, और काम शुरू करना चाहिए था। 

सॉफ्टवेयर और एप्लिकेशन के विकास के लिए, 614 करोड़ रुपये खर्च किए जाने थे। यह राशि अस्पताल और स्वास्थ्य प्रबंधन, स्मार्ट पार्किंग समाधान, यातायात प्रबंधन प्रणाली, सार्वजनिक परिवहन प्रबंधन प्रणाली आदि के लिए रखी गई थी। लेकिन न तो अस्पताल और न ही यातायात प्रबंधन प्रणाली को अपग्रेड किया गया है। 

इसी तरह, शहर में सीसीटीवी के लिए हार्डवेयर खरीदने के लिए 163 करोड़ रुपये की राशि रखी गई थी। लेकिन इस मोर्चे पर भी कोई प्रगति नहीं हुई।

ऐसा क्यों है कि ट्रिपल इंजन सरकार (नगर निगम, राज्य और केंद्र-सभी प्रतिष्ठानों में भाजपा का नेतृत्व है) बुनियादी ढांचे और सॉफ्टवेयर के रूप में विकसित होने वाले न्यूनतम स्तर तक भी नहीं पहुंच पाई है? इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-:

दिसम्बर 2017 में हिमाचल प्रदेश में सरकार बदलने और भाजपा के सत्ता संभालने के साथ, धन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं की गई, जिसे पूरक अनुदान कहा जाता है; और इसके बाद ही कोई केंद्र से नया अनुदान पा सकता है। दूसरे, शिमला नगर निगम की धन जुटाने की क्षमता भी कम हो गई है, और यहां शायद ही कोई 'पूंजीगत उत्पादन' का काम हो रहा था। इसे इस तरह समझें, जब सीपीआइ (एम) ने जून 2017 में नगर निगम की कमान छोड़ी थी तो नगर पालिका का 50 करोड़ रुपये का सरप्लस बजट था। और अब नगरपालिका अपने कर्मचारियों के वेतन और पेंशन की लागत को ही नहीं संभाल पा रही है, तो उससे विकास को आगे बढ़ाने के बारे में क्या बात करना। भाजपा सरकार ने शिमला नगर पालिका को मूलभूत सेवाओं का भार वहन करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं कराया है। 

तीसरा, इसके सभी पार्षद तो नहीं, लेकिन कई निर्वाचित पार्षद छद्म ठेकेदार अधिक हैं और भाजपा इस गठजोड़ में पूरी तरह तरबतर हो गई है। शहर के विकास के बजाय उनकी रुचि यह सुनिश्चित करने के लिए अधिक है कि किस तरह उन्हें प्रतिकर देकर लाभान्वित करें। 

अब सवाल यह उठता है कि इस शहर को कौन चला रहा है? यह एसएमसी परिषद नहीं है; यह शहरी विकास मंत्री है (जैसा कि वह शिमला शहर का विधायक होता है) वही इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह सुनिश्चित करता है कि उसके दरबारी इससे लाभान्वित हों।

पांचवें, मंत्री और परिषद कभी इस शहर के मालिक नहीं थे; इसलिए शहर के विकास के लिए कोई बड़ी चिंता नहीं थी। भाजपा पार्षद और मंत्री इस बात को लेकर अधिक चिंतित हैं कि अनुबंध का प्रमुख हिस्सा किसे मिलता है। उदाहरण के लिए, पाइपलाइन में कुछ प्रमुख परियोजनाओं, लिफ्ट से छोटा शिमला तक और दूसरा लक्कड़ बाजार तक दो सुरंगों को केवल कुछ सक्रिय जुड़ाव की आवश्यकता थी। इसके लिए न तो पार्षद और न ही सरकार कोई प्रयास कर रही है। 

शिमला मॉडल के बावजूद स्मार्ट सिटी परियोजनाएं एक बड़ी विफलता हैं और शायद केंद्र सरकार ने भी इस तथ्य को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। इसलिए स्मार्ट सिटी परियोजनाओं पर केंद्रीय बजट में शायद ही कोई उल्लेख मिलता है। दरअसल, केंद्र सरकार अब शहरीकरण पर एक नए प्रतिमान पर विचार कर रही है; तो क्या इसका मतलब स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का अंत है? वही जिसे शहरी विकास का प्रकाशस्तंभ या नया प्रतिमान होना चाहिए था, वह क्या उसी तरह की एक और आपदा होगी जिसकी झलक हम काशी में और सेंट्रल विस्टा में पुनर्विकास कार्यों में देखते हैं? 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

Shimla no Exception Among Non-Starter Smart Cities

Smart City Plan
shimla
Shimla Municipal Corporation
CPI(M)
BJP
national green tribunal
Smart City Project
Union Budget 2022
Special Purpose Vehicle

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • karnataka
    शुभम शर्मा
    हिजाब को गलत क्यों मानते हैं हिंदुत्व और पितृसत्ता? 
    28 Feb 2022
    यह विडम्बना ही है कि हिजाब का विरोध हिंदुत्ववादी ताकतों की ओर से होता है, जो खुद हर तरह की सामाजिक रूढ़ियों और संकीर्णता से चिपकी रहती हैं।
  • Chiraigaon
    विजय विनीत
    बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!
    28 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश के बनारस में चिरईगांव के बाग़बानों का जो रंज पांच दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम-अमरूद से लकदक बगीचों में फल खाने। आमदनी दोगुना…
  • pop and putin
    एम. के. भद्रकुमार
    पोप, पुतिन और संकटग्रस्त यूक्रेन
    28 Feb 2022
    भू-राजनीति को लेकर फ़्रांसिस की दिलचस्पी, रूसी विदेश नीति के प्रति उनकी सहानुभूति और पश्चिम की उनकी आलोचना को देखते हुए रूसी दूतावास का उनका यह दौरा एक ग़ैरमामूली प्रतीक बन जाता है।
  • MANIPUR
    शशि शेखर
    मुद्दा: महिला सशक्तिकरण मॉडल की पोल खोलता मणिपुर विधानसभा चुनाव
    28 Feb 2022
    मणिपुर की महिलाएं अपने परिवार के सामाजिक-आर्थिक शक्ति की धुरी रही हैं। खेती-किसानी से ले कर अन्य आर्थिक गतिविधियों तक में वे अपने परिवार के पुरुष सदस्य से कहीं आगे नज़र आती हैं, लेकिन राजनीति में…
  • putin
    एपी
    रूस-यूक्रेन युद्ध; अहम घटनाक्रम: रूसी परमाणु बलों को ‘हाई अलर्ट’ पर रहने का आदेश 
    28 Feb 2022
    एक तरफ पुतिन ने रूसी परमाणु बलों को ‘हाई अलर्ट’ पर रहने का आदेश दिया है, तो वहीं यूक्रेन में युद्ध से अभी तक 352 लोगों की मौत हो चुकी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License