NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
कानून
भारत
आख़िर 28 साल क्यों लगे सिस्टर अभया की हत्या मामले में फ़ैसला आने में?
पिछले लगभग 3 दशकों में यह पूरा मामला कई उतार-चढ़ावों से गुजरा है। मामले की परतें खोलने के लिए पुलिस और सीबीआई की कई बार लंबी-लंबी जांच चली। अदालत ने एक बार पुलिस की जांच को और दो बार सीबीआई की जांच को ख़ारिज कर दिया था।
सोनिया यादव
23 Dec 2020
Sister Abhaya
Image Courtesy: Navabharat

चर्चों पर कई सवाल उठाता सिस्टर अभया मर्डर केस, केरल राज्य में अब तक हुए आपराधिक मामलों के इतिहास का सबसे लंबा चला मुकदमा है। इस मामले में 28 साल बाद सीबीआई की एक विशेष अदालत ने एक पादरी और नन को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है। लेकिन कई दशकों बाद आए कोर्ट के इस फ़ैसले ने एक बार फिर आरोपियों से निपटने के नज़रिए पर सवाल उठाया है।

बता दें कि 28 साल पहले सिस्टर अभया का शव उन्हीं के होस्टल के कुंए में मिला था। मंगलवार, 22 दिसंबर को तिरुवनंतपुरम में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 69 साल के पादरी फादर थॉमस कोट्टूर और 55 साल की नन सिस्टर सेफी को इस मामले में हत्या के साथ, अहम सबूत मिटाने का भी दोषी पाया। फादर कोट्टूर को आपराधिक साजिश करने का भी दोषी क़रार दिया गया।

इस मामले में बुधवार, 23 दिसंबर को सज़ा सुनाई गई जिसमें, जज के सनल कुमार ने दाषियों को उम्रकैद के साथ ही पाँच-पाँच लाख रुपए का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला 28 साल पुराना 27 मार्च 1992 का है। सिस्टर अभया कोट्टायम के पिऊस टेन्थ कॉन्वेंट के होस्टल में रहती थीं। ये होस्टल कनन्या कैथलिक चर्च चलाता था। हत्या के समय सिस्टर अभया 19 साल की प्री-डिग्री स्टूडेंट थीं।

अभया का असली नाम बीना थॉमस था, जो उन्हें उनके माता-पिता ने दिया था। लेकिन जब वो नन बनीं, तो सिस्टर अभया नाम मिला। वह सेंट जोसफ़ कॉन्ग्रीगेशन ऑफ रिलीजियस सिस्टर्स की सदस्य भी थीं।

27 मार्च, 1992 की सुबह सिस्टर अभया परीक्षा की तैयारी के लिए जल्दी उठी थीं। उनकी रूममेट सिस्टर शर्ली ने उन्हें तड़के चार बजे पढ़ने के लिए जगा दिया था। अभया उठीं और ठंडे पानी से मुंह धोने के लिए किचन की तरफ गई लेकिन कमरे में वापस नहीं आईं। आख़िरी बार उनकी रूममेट सिस्टर शर्ली ने उन्हें रूम से जाते हुए देखा था। जिसके बाद अगले दिन उनकी डेड बॉडी कम्पाउंड के कुएं में तैरती मिली थी।

भेद खुलने के डर से मौत के घाट उतार दिया

अभियोजन पक्ष का आरोप था कि जब सिस्टर अभया किचन में पहुंची तो उन्होंने फादर थॉमस कोट्टूर, सिस्टर सेफी और फादर पुट्ट्रीकायल को ‘आपत्तिजनक स्थिति’ में देख लिया था। सिस्टर अभया ये बात किसी को बता न दें और चर्च की बदनामी न हो, इस डर से फादर कोट्टूर ने उनका गला घोंटा और सिस्टर सेफी ने कुल्हाड़ी से उन पर वार किया। बाद में इन तीनों ने मिल कर उन्हें कॉन्वेंट के ही कुएं फेंक दिया।

पिछले लगभग 3 दशकों में यह पूरा मामला कई उतार-चढ़ावों से गुजरा है। मामले की परतें खोलने के लिए पुलिस और सीबीआई की कई बार लंबी-लंबी जांच चली। अदालत ने एक बार पुलिस की जांच को और दो बार सीबीआई की जांच को खारिज कर दिया था। सीबीआई की तीसरी जांच के बाद दो पादरियों और एक सिस्टर की हत्या के आरोप में गिरफ्तारी हुई।

हत्या-आत्महत्या के बीच उलझा केस

केरल पुलिस ने 1993 में इसे आत्महत्या का केस बताकर बंद कर दिया था। उसके बाद सिस्टर अभया के साथ की 67 ननों ने कॉन्वेन्ट की प्रमुख मदर सुपिरियर के नेतृत्व में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरण से मुलाकात कर अपील की कि इसे हत्या मानकर जांच कराई जाए। उनका था कि पहले स्थानीय पुलिस और फिर क्राइम ब्रांच इस मामले की सही तरीके से जांच नहीं कर रही। उन्हें शक़ था कि अभया की हत्या हुई है। 

जिसके बाद केरल हाईकोर्ट के आदेश के बाद साल 1993 में सीबीआई ने इस मामले की तफ्तीश शुरू की और साल के आख़िर तक थॉमस और उनकी टीम इस नतीजे पर पहुंची कि ये आत्महत्या का मामला है।

तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक वर्गीस पी थॉमस जो सीबीआई को मामला सौंपने के वक्त जांच अधिकारी थे। उन्होंने बीबीसी को बताया कि इस मामले में अधिकारी चाहते थे कि इसे आत्महत्या बता कर बंद कर दिया जाए। लेकिन मैंने इसका विरोध किया और नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।

मामला सुसाइड का नहीं बल्कि हत्या का है!

इसके एक साल बाद यानी 1994 में सीबीआई फिर से कोर्ट पहुंची। बताया कि जांच में यह तो पता चल गया है कि मामला सुसाइड का नहीं बल्कि हत्या का है। लेकिन उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं है कि किसी को दोषी मानकर जांच आगे बढ़ाई जा सके। कोर्ट ने फिर से रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

1996 आते-आते सीबीआई ने कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर दी कि उन्हें पता नहीं चल पा रहा है कि सिस्टर अभया की हत्या हुई थी, या उन्होंने सुसाइड किया था। कोर्ट ने मामले में सख्ती दिखाई, और सीबीआई की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सीबीआई को फिर से जांच करने के आदेश दिए।

इस तरह, सीबीआई ने तीसरे राउंड की जांच शुरू की। दस साल तक यह जांच चली। इसके बाद 2008 में फादर थॉमस कोट्टोर, फादर जोस पुथुरुक्कयिल और सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया। साल 2009 में इन सभी को केरल हाईकोर्ट से बेल मिल गई। 2018 में फादर जोस पुथुरुक्कयिल को सुबूतों के अभाव में मामले से बरी कर दिया गया।

इस साल हाईकोर्ट की जस्टिस वीजी अरुण की बेंच ने इस मामले में हो रही देरी की ओर ध्यान दिया। उन्होंने निर्देश दिया कि जल्दी मामले का निपटारा किया जाए। इसके बाद ही सीबीआई कोर्ट में केस की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। अब जाकर घटना के 28 साल बाद कोर्ट किसी नतीजे पर पहुंचा है।

न्याय में देर ही अंधेर है!

दुबई में रहने वाले सिस्टर अभया के भाई बीजू थॉमस ने बीबीसी को बताया, "जब मुझे कोर्ट के फ़ैसले के बारे में पता चला तो मुझे समझ नहीं आया कि मैं खुश होऊं या नहीं। एक तरह से मिलीजुली भावनाएं थीं। मैंने उम्मीद नहीं की थी कि कोर्ट इस मामले में आज फ़ैसला देगा।"

"मेरे माता-पिता इस फ़ैसले से बेहद खुश होंगे, वो जन्नत में बैठ कर सब कुछ देख रहे होंगे। चार साल पहले, चार महीनों के वक्त के भीतर मैंने दोनों को खो दिया।"

होटल में काम करने वाले बीजू कहते हैं, "अभया मुझसे दो साल छोटी थी। जब वो 14-15 साल की थी वो रोया करती थी और कहती ती कि उसे नन बनना है। मेरे पिता उस पर नाराज़ होते थे। लेकिन हमारे घर आशीर्वाद देने आने वाले फादर और नन को मिलने वाला सम्मान देखकर वो बेहद प्रभावित थी।"

वो कहते हैं कि जब अभया की मौत हुई, "मेरे माता-पिता को पता था कि ये हत्या का मामला है। लेकिन हम लोग बेहद ग़रीब थे और इस मामले को कोर्ट तक ले जाने में समर्थ नहीं थे। लेकिन ऐक्शन काउंसिल जैसे कई लोग सामने आए और उन्होंने हमारी इस लड़ाई को आगे बढ़ाया।"

बिना किसी नतीज़े तक पहुंचे कई बार केस बंद करने की कोशिशें हुईं!

गौरतलब है कि सिस्टर अभया का मामला एक तरह का ऐतिहासिक मामला है, जिसे बिना किसी नतीजे तक पहुंचे कई बार बंद करने की कई कोशिशें हुई। बार-बार सबूतों के साथ, यहां तक कि नार्को-एनालिसिस की रिकॉर्डिंग के साथ भी छेड़छाड़ करने की कोशिशें हुईं।

इस दौरान केरल के चर्चों पर भी सवाल उठे, क्योंकि जिन पर आरोप लगा वो पादरी बने रहे। चर्च ने उनसे नाता नहीं तोड़ा, न ही उन्हें सस्पेंड किया। चर्च में ननों की सुरक्षा का मुद्दा कई बार सुर्खियों में तो रहा लेकिन खुले तौर पर ऊँचे पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ लोग एकजुट नहीं हो पाए। हालांकि हाईकोर्ट ने इस मामले में गंभीरता दिखाई, जिसके चलते आज दशकों बाद ही सही लेकिन मामले में न्याय हुआ।

Kerala
Sister Abhaya Murder Case
Fater Thomas Kottoor
Sister Sephy
Knanaya Catholic Church
CBI Investigation

Related Stories

केरल : आईएएस अधिकारी की गाड़ी से टकरा कर पत्रकार की मौत

केरल में युवा कांग्रेस ने दलित विधायक के धरना स्थल का किया 'शुद्धिकरण'  

एफ़आरए : आदिवासियों की ज़मीनों पर फ़ैसला कल


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License