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महामारी के दौर की 6 जटिलताएं
यह 6 जटिलताएं हैं - मानवता पर हमला, छोटे संपत्ति धारकों का विनाश, लैंगिक भेदभाव की वापसी, पूंजीवाद को बचाने के लिए पर्यावरण संकट की दुहाई और चीन पर हमला करने के लिए संकट का इस्तेमाल
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
07 Sep 2020
महामारी के दौर की 6 जटिलताएं
प्लेग के दौरान स्टाफ़र्डशायर रेजिमेंट, हांगकांग, 1894।

मार्च 2020 में सोशल मीडिया पर अफ़वाहों की लहर चल रही थी। वेनिस की वीरान नहरों में हंस और डॉल्फ़िन देखे जा सकते थे। हाथियों का एक समूह युन्नान (चीन) के एक गाँव में मक्के की शराब पीकर चाय के बाग़ान में सोने चला गया। ग्रेट लॉक-डाउन में जब इंसान अपने घरों में छिपे हुए थे, तब ऐसा लग रहा था कि जैसे जानवरों ने दुनिया संभालने की ज़िम्मेदारी ले ली थी। लेकिन न तो वेनिस में हंस और डॉल्फ़िन थे, और न ही हाथी नशे में थे। यह बोरियत से निकली कल्पना थी और फ़ोटोशॉप की चाल।

अप्रैल में विश्व व्यापार संगठन ने अनुमान लगाया था कि वैश्विक व्यापार में लगभग 32% तक की गिरावट आ सकती है; बाज़ार गिरे, और निवेशक सोने जैसे सुरक्षित निवेश ढूँढ़ने लगे। ये अनुमान काफ़ी ज़्यादा था। विश्व व्यापार संगठन ने जून में बताया कि पहली तिमाही में व्यापार में लगभग 3% की गिरावट आई है और दूसरी तिमाही के दौरान इसमें 18.5% की गिरावट आ सकती है। चीन में लॉक-डाउन खुलते ही व्यापार धीरे-धीरे बढ़ने लगा। पूँजीवादी व्यवस्था महामारी का शिकार नहीं बनी, न ही प्रकृति ने अपनी तरफ़ से ज़ोर लगाया। शासक वर्ग ने चिंता दूर करने के लिए उधार लेने का रास्ता अपनाया;  भारी गिरावट के बाद व्यापार गतिविधियाँ फिर से शुरू हो गई हैं। धनी बांडहोल्डर्स ने पेरिस क्लब (आधिकारिक लेनदारों) और लंदन क्लब (निजी लेनदारों) को दक्षिणी गोलार्ध के देशों के ऋण स्थगन या ऋण रद्द करने की अपीलों को अस्वीकार करने के लिए मजबूर किया, ताकि ऋण सेवा की बुनियादी संरचनाएँ बरक़रार रहें। संयुक्त राज्य अमेरिका के युद्ध पोत कैरेबियन, फ़ारस की खाड़ी और दक्षिण चीन सागर में आक्रामक रूप से गश्त करते रहे। दूसरे शब्दों में, साम्राज्यवाद की संरचना पर किसी तरह का कोई असर नहीं पड़ा।

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कोरोनाशॉक और समाजवाद अध्ययन में हमने बुर्जुआ सरकारों और समाजवादी सरकारों वाले देशों द्वारा किए जा रहे महामारी के प्रबंधन में एक स्पष्ट अंतर देखा था। समाजवादी देशों ने प्रबंधन में वैज्ञानिक रवैया अपनाया और सार्वजनिक क्षेत्र के द्वारा रोकथाम व प्रबंधन का काम किया। इसके साथ ही इन देशों में प्रबंधन कार्यों में जन कार्रवाइयों की अहम भूमिका रही। अपने देश में प्रबंधन कार्य के साथ दूसरे देशों में सहायता पहुँचाकर इन देशों ने अंतर्राष्ट्रीयता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन भी किया। इस अध्ययन के लेखक मानोलो डी लॉस सैंटोस और सुबिन डेनिस के अनुसार -इसका अर्थ है कि समाजवादियों द्वारा शासित दुनिया के देशों में बुर्जुआ व्यवस्था के देशों की तुलना में कम तबाही हुई। यही कारण है कि क्यूबा के हेनरी रीव इंटरनेशनल मेडिकल ब्रिगेड के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की माँग करते हुए एक अभियान चलाना अपने-आप में महत्वपूर्ण क़दम है।

महामारी ने पूँजीवादी व्यवस्था को ख़ासे झटके दिए हैं। इस न्यूज़लेटर में हम छ: जटिलताओं और उससे उत्पन्न परिणामों के बारे में बात करेंगे।

  1. मानवता पर हमला: लॉकडाउन के शुरुआती समय में, दुनिया की रोज़गार-योग्य आबादी में से आधी (33 करोड़ श्रमिकों में से 16 करोड़) की आय में 60% की गिरावट आई। इन श्रमिकों में से लगभग सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिक थे। अफ्रीका और अमेरिका में श्रमिकों के आय में 80% की गिरावट दर्ज की गई। इसके परिणामस्वरूप, कोविड-19 से पहले खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों की संख्या 14 करोड़ 90 लाख से बढ़कर महामारी के दौरान 27 करोड़ हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र का मानना है  कि दुनिया की आधी आबादी भुखमरी से जूझ रही है। यूनिसेफ़ का कहना है कि स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में आ रहे व्यवधानों के कारण वर्ष के अंत तक लगभग 6,000 बच्चे प्रतिदिन ऐसी बीमारियों से मरने लगेंगे जिन्हें आसानी से रोका जा सकता है। अरबों लोग पूँजी संचयन के लिए अनावश्यक अधिशेष आबादी बन चुके हैं। महामारी ने मानवता पर होने वाले हमले को तेज़ कर दिया है। बेरोज़गारी और भुखमरी से जूझ रहे लोगों के लिए प्रत्यक्ष राहत की तत्काल आवश्यकता है। एफ़एओ का कहना है कि एक ट्रिलियन डॉलर की खाद्य सामग्री -20 लाख लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य सामग्री- या तो बर्बाद हो चुकी है या ख़त्म हो गई है। भुखमरी से जूझ रहे लोगों के पास खाने के लिए पैसा नहीं होता, ये वर्ग व्यवस्था की एक सच्चाई है; भुखमरी का मूल कारण यही है।

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लिम युंग-सिक (दक्षिण कोरिया), नौकरी की तलाश, 1953। 

  1. छोटे संपत्ति-धारकों का विनाश: पूँजीवाद कृषि व्यवसाय और औद्योगिक पूँजी के एकाधिकार के द्वारा छोटे किसानों और कारीगरों को ख़त्म कर देता है। महामारी से पहले, छोटे दुकानदार, रेस्तराँ के मालिक और छोटे व्यवसायी विभिन्न कारणों से संरक्षित थे। लेकिन महामारी के दौरान, ये छोटे संपत्ति-धारक प्लेटफ़ॉर्म पूँजीवाद (इंटरनेट प्लेटफ़ॉर्म आधारित) द्वारा समाप्त किए जा रहे हैं, क्योंकि उपभोक्ता को छोटे व्यवसायियों को छोड़कर इंटरनेट से सामान ख़रीदने के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन का कहना है कि थोक और खुदरा क्षेत्र में काम करने वाले 43 करोड़ 60 लाख से अधिक उद्यम 'गंभीर विघटन के बड़े संकट का सामना कर रहे हैं।' प्लेटफ़ॉर्म पूँजीवाद की ओर हस्तांतरण का मतलब है कि ये उद्यम -जो भौगोलिक रूप से अलग-अलग जगह के सैकड़ों-लाखों लोगों को रोज़गार देते हैं- अधिक उत्पादक व कुशल प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों द्वारा समाप्त कर दिए जाएँगे। प्लेटफ़ॉर्म कंपनियाँ कम लोगों को रोज़गार देती हैं और भौगोलिक रूप से एक स्थान पर केंद्रित होती हैं।

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गौरी गिल, शीर्षकहीन  (32), उपस्थिति दर्ज करवाना शृंखला से, 2015। 

  1. लैंगिक भेदभाव की वापसी: घर पर रहने के आदेशों ने परिवारों के भीतर के श्रम विभाजन को प्रभावित किया है। रिपोर्टों के अनुसार महिलाओं पर घर के कामकाज और बच्चों की देखभाल का बोझ बढ़ा है। इन कामों को हल्का करने के सभी सामाजिक रूप -जैसे कि सार्वजनिक शिक्षा, चाइल्ड केयर केंद्र और बाहर खाना खाने की सुविधाएँ- बंद हैं। शिक्षा के लिए अपनाए गए अकल्पनीय दृष्टिकोण ने डिजिटल विभाजन को पाटने में माँ को सहायक भूमिका निभाने के लिए मजबूर किया है। इस व्यवस्था में बिना शिक्षा के सालों की बर्बादी तो होगी ही साथ ही महिलाओं पर बच्चे पालने के लिए नौकरियाँ छोड़ने का दबाव भी बढ़ेगा। स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र सहित देखभाल अर्थव्यवस्था से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि चाइल्ड केयर की कमी, देखभाल कार्यों के लिए मिलने वाले मामूली वेतन, और श्रमिकों की सुरक्षा में कमी, बड़े पैमाने पर छँटनी और देखभाल अर्थव्यवस्था में स्टाफ़ की कमी के कारण महिला कार्यकर्ताओं पर काम का दबाव बढ़ा है। अंत में, महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा में दर्ज की गई वृद्धि इस ग्रेट लॉक-डाउन का प्रत्यक्ष परिणाम है। इस मुद्दे को हल करने के लिए कोई वास्तविक नीति नहीं अपनाई गई है। यह सब पितृ-सत्तात्मक लिंग आधारित भेदभाव और लैंगिक विभाजनों को पुख़्ता करता है।

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ओएरसोकुंटीवी (कंबोडिया), उल्टा, 2017। 

  1. लोकतंत्र पर हमला: ग्रेट लॉक-डाउन, औपचारिक रूप से बुर्जुआ लोकतंत्र की ओर प्रतिबद्ध सरकारों के लिए जनता के बुनियादी अधिकारों को नष्ट करने का अवसर बन गया है। उदाहरण के लिए, भारत में सरकार ने श्रम सुरक्षा क़ानून ख़त्म कर दिया है और काम के घंटे बढ़ा दिए हैं। ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका में, सबसे ग़रीब श्रमिकों और किसानों को उनके घरों से बेदख़ल करने के ख़बरें आ रही हैं। बोलीविया से थाईलैंड तक, तख़्तापलट बाजिब बताए जा रहे हैं और चुनावों में देरी की जा रही है। कोलंबिया से दक्षिण अफ्रीका तक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याएँ की जा रही हैं और भारत से फ़िलिस्तीन तक सवाल करने वालों की गिरफ़्तारियाँ जारी है। इन सरकारों ने लोकतांत्रिक संस्थानों को पूरी तरह ख़त्म नहीं किया, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को रोकने के लिए उनका इस्तेमाल किया है।

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राक्वेल फ़ॉर्नर  (अर्जेंटीना), अँधेरा, 1943। 

  1. पूँजीवाद को बचाने के लिए पर्यावरणीय संकट का उपयोग: आज जबकि महामारी मनुष्यों और प्रकृति के बीच का संतुलन बिगाड़ने वाले विनाशकारी पूँजीवादी संबंधों पर पुन:विचार करने की आवश्यकता सुझा रही है, तब 'पर्यावरणीय संकट' को  केवल 'जलवायु परिवर्तन' के रूप में कम करके पेश किया जा रहा है, और इससे बचने के लिए 'हरित पूँजीवाद' या 'ग्रीन न्यू डील' जैसे समाधानों की पेशकश की जा रही है। यह ग्रीन न्यू डील निजी ऊर्जा फ़र्मों को कार्बन से नवीकरणीय ईंधन अपनाने में सार्वजनिक धन का उपयोग करने का प्रस्ताव पेश करती है, जबकि ग्रीन टेक्नोलॉजी की बैट्रियाँ और स्क्रीन चलाने के लिए ज़रूरी कोबाल्ट, लीथियम, और अन्य खनिजों के खनन श्रमिकों के लिए इसमें किसी प्रकार की कोई चिंता ज़ाहिर नहीं की गई है। ज़रूरत है कि पर्यावरणीय संकट पर होने वाली चर्चाओं में कृषि सुधार के व्यापक मुद्दे, उत्पादक संपत्तियों को सार्वजनिक क्षेत्र के हवाले करने का मुद्दा, और ऊर्जा परिवर्तन का मुद्दा भी शामिल किया जाए। गणना से पता चलता है कि पूँजीवाद को सामान्य कामकाज के लिए 3% वृद्धि की आवश्यकता होती है, जिसका अर्थ है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार हर 25 साल में दोगुना हो जाना चाहिए। पृथ्वी इस तरह के गुणात्मक विकास को लगातार झेल नहीं सकती। 

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जेव योशिमोटो (जापान), क्षणभंगुर भेंट, 2010। 

  1. चीन पर हमला करने के लिए संकट का उपयोग: चीन के प्रति अमेरिकी सरकार की  गहरी आक्रामकता ने दुनिया के लिए नयी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। 1990 के दशक में व्यापार विवाद के रूप में जो कुछ शुरू हुआ था उसे अब केवल अमेरिका के द्वारा चीन के लिए बनाई जा रही अस्तित्व की चुनौती के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पूरे अमेरिकी शासक वर्ग की ओर से चीन के ख़िलाफ़ यह ख़तरा तर्कहीन कारणों से नहीं, बल्कि पूरी तरह से तर्कसंगत कारणों के लिए खड़ा किया जा रहा है: पहला कारण ये है कि अमेरिका को इस बात का एहसास है कि चीनी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे दुनिया में सबसे बड़ी बनने जा रही है, और दूसरा कारण है कि अमेरिका जानता है कि उसके द्वारा किए जा रहे विभिन्न हाइब्रिड युद्ध चीनी सरकार को विश्व व्यवस्था पर अमेरिका का वर्तमान वर्चस्व ख़त्म करने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अमेरिकी साम्राज्यवाद के पास इस स्थिति से बचने के लिए एकमात्र साधन सशस्त्र बल है। सशस्त्र कार्रवाई, जो कि एक वास्तविक ख़तरा है, की बजाये संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका को कम करने का प्रयास कर रहा है; ऐसा करना बहुत मुश्किल है। लेकिन अमेरिकी शासक वर्ग दीर्घकालिक वर्चस्व बनाये रखने के लिए अल्पकालिक व्यवधान सहन करने के लिए शायद तैयार है। ज़रूरत है कि हम एक नये शीत युद्ध के ख़िलाफ़ खड़े हों और नो कोल्ड वॉर प्लेटफ़ॉर्म द्वारा जारी किए गए बयान पर आधारित आंदोलन में शामिल हों।

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मो यी (चीन), लाल, 1985। 

बुर्जुआ सरकारों की ख़तरनाक अक्षमता के बावजूद, उनकी वैधता अपने-आप समाप्त नहीं होती। वे सत्ता में बने हुए हैं और अपने अधिकारों को और मज़बूत करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

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वरवर राव ।

जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है उनमें भारतीय कम्युनिस्ट कवि वरवर राव भी शामिल हैं, जो बीमारी की हालत में जेल में हैं। 1990 में, उन्होंने अपनी कविता 'एक अलग दिन’ में अपने जैसे एक कम्युनिस्ट की गिरफ़्तारी की कल्पना की थी। इस कविता की पंक्तियाँ इंसानियत को कमज़ोर करने वाली व्यवस्था को अनुचित मानती हैं:

दौलत

इंसानी दुनिया को टुकड़े-टुकड़े कर

रखवालों और अपराधियों में बदल देती है

अमानवीयता का संरक्षक होने की बजाये इस दुनिया में अपराधी होना कहीं बेहतर है।

An assault on humanity
The destruction of the petty proprietor
The restoration of gender hierarchies
The attack on democracy
The use of the environmental crisis to save capitalism
The use of the crisis to attack china

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