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अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान
एकजुट प्रदर्शन ने पाकिस्तान में छात्रों की बढ़ती ताक़त का अहसास दिलाया है
एकजुटता प्रदर्शन के लिए वार्षिक स्तर पर निकले जाने वाले जुलूस का आयोजन इस बार 26 नवंबर को किया गया। इसमें छात्र संगठनों पर विश्विद्यालयों में लगे प्रतिबंधों के ख़ात्मे, फ़ीस बढ़ोत्तरी को वापस लेने और शिक्षा बजट में इज़ाफ़े की मांग रखी गई।
पीपल्स डिस्पैच
09 Dec 2021
Solidarity march
लाहौर में हुए मार्च में मौजूद छात्र। फोटो:पीएससी लाहौर

26 नवंबर को पाकिस्तान के कई विश्विद्यालयों से छात्रों ने एकजुटता प्रदर्शन के लिए मार्च निकाला।

2018 से छात्र पाकिस्तान के विश्विद्यालयों में छात्र संगठनों पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की मांग कर रहे हैं। हर साल वार्षिक स्तर पर होने वाली इन रैलियों की शुरुआत वाम विचारधारा वाले छात्र संगठन, जैसे "प्रोग्रेसिव स्टूडेंट कलेक्टिव (पीएससी), रेवोल्यूशनरी स्टूडेंट फ्रंट और प्रोग्रेसिव स्टूडेंट फेडरेशन (पीआरएसएफ) व अन्य संगठनों ने की थी।

आज़ादी के बाद से पाकिस्तान के इतिहास में छात्र राजनीति ने अहम भूमिका अदा की है। लेकिन 1984 में जिया उल हक की तानाशाही में राज्य ने विश्विद्यालयों में छात्र संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया, साथ ही उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने से रोक दिया। यहां तक कि उन्हें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर विमर्श करने से भी रोक दिया गया।

प्रोग्रेसिव स्टूडेंट फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष औनिल मुंतजिर के मुताबिक "अतीत में शासन करने वाले नेता और मौजूदा सरकार के मंत्री भी इस मार्च के साथ छात्र संगठनों को समर्थन दे चुके हैं। इसका मतलब हुआ कि उन्हें छात्र शक्ति और जमीन पर  छात्र हितों के लिए काम करने वालों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं का भय है। लेकिन इस समर्थन के बावजूद मैं देख रहा हूं कि सरकार छात्र संगठनों पर लगाए गए प्रतिबंध को खत्म करने के लिए कुछ नहीं कर रही है।"

खैर, इसके बावजूद पिछले चार सालों में छात्रों के इस एकजुटता जुलूस ने पाकिस्तान के विश्वविद्यालयों को प्रभावित  करने वाले मुद्दे पर वैश्विक ध्यान अपनी तरफ खींचा है।

संघ बनाने के लोकतांत्रिक अधिकार की बहाली उन कई मांगों में से एक है, जो इन छात्रों ने रखी है। दूसरे मुद्दों में फैसले लेने वाली संस्थाओं में छात्र प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, कुछ सरकारी संस्थानों में फीस में हुई हालिया वृद्धि के खिलाफ कार्रवाई और शिक्षा बजट को जीडीपी का कम से कम 5 फीसदी करने की मांग शामिल है।

विश्विद्यालयों में यौन उत्पीडन और बलोच व पश्तून छात्रों के साथ होने वाला भेदभाव, पाकिस्तान के शिक्षा क्षेत्र और विश्वविद्यालय प्रशासन में मौजूद बड़ी समस्याओं को सामने लता है।

इन देशव्यापी जुलूसों को पहली बार 2019 में प्रसिद्धि मिली, जब देश के 50 से ज्यादा जिलों में  छात्रों ने इसमें हिस्सा लिया था। देश भर के कुछ प्रगतिशील छात्र संगठनों ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर स्टूडेंट एक्शन कमेटी (एसएसी) बनाई। इसने सभी के निष्पक्ष और अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए संघर्ष का संकल्प लिया।

वृहद दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य देशों की तरह पाकिस्तान में भी कोरोना में इसके शैक्षणिक ढांचे की सच्चाई सामने आ गई। इससे युवा बुरे तरीके से प्रभावित हुए।

औनिल मुन्तजिर कहते हैं, "छात्रों, खासकर वंचित और सीमांत क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा के लिए इंटरनेट उपलब्ध नहीं है। इसके चलते वहां के छात्रों को बड़े शहरों में आने और हॉस्टल खर्च, इंटरनेट खर्च, ट्यूशन फीस और दूसरे खर्च चुकाने पर मजबूर होना पड़ा। छात्र पूछ रहे हैं कि जब वे ऑनलाइन सेमेस्टर के दौरान यूनिवर्सिटी की सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, तो उनसे पूरी फीस क्यों ली जा रही है।

इन जुलूसों के आयोजन का एक सकारात्मक नतीजा यह निकला कि देश में छात्र राजनीति दोबारा उठ खड़ी हुई।

इन जुलूसों के बड़े आधार ने यह बताया है। मुंतजिर कहते हैं, "हमने जमीयत (एक दक्षिणपंथी संगठन) के सदस्यों को भी भागीदार बनते देखा, जबकि अतीत में वे हमारी आलोचना करते रहे हैं। बल्कि वर्तमान में भी कर रहे हैं। इनको समझ आया है कि पूरे पाकिस्तान में छात्रों के सामने एक जैसी समस्याएं हैं। हमसे विचारधारा में बहुत अलग होने पर भी, हमें लगता है कि छात्रों की समस्याओं पर हमें साझा संघर्ष करने की जरूरत है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

pakistan students union
Progressive Students Collective
Progressive Students Federation
Revolutionary Students Front
Student Solidarity March 2021
Students' struggle in Pakistan
tudent Action Committee

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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License