NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
छात्रों पर निगरानी के चलते ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफ़ॉर्म्स पर उठ रहे सवाल
क्लासरूम के माहौल में रोज़ाना की निगरानी का परीक्षण कर रहा है। स्कूल समुदाय से जुड़े लोग, शिक्षक और प्रशासक कैसे इस निगरानी का परीक्षण या उनकी व्याख्या करते हैं, लेखक इस बात पर भी ग़ौर फ़रमा रहे हैं। बड़े डाटा के दौर में ई-लर्निंग और कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम से पैदा हो रहे डाटा की निगरानी के लिए हो रहे इस्तेमाल पर भी लेख अपनी पैनी नज़र रखता है।
हर्ष वाजपेयी
17 Aug 2020
छात्रों पर निगरानी के चलते ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफ़ॉर्म्स पर उठ रहे सवाल

कोरोना महामारी के चलते छात्रों में डिजिटल पढ़ाई की ओर रुझान बढ़ा है। आखिर अब स्कूलों के पास दूर से निर्देश देने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। सरकार ऐसी योजनाएं ला रही है, जिनसे दूर-दराज़ के इलाक़ों में भी डिजिटल क्लासरूम चलाए जा सकें। तुरंत की ज़रूरतों के देखते हुए, शैक्षणिक संस्थान आसानी से उपयोग करने वाली तकनीक अपना रहे हैं, जबकि उन तकनीकों के साथ ऊपजने वाली प्राइवेसी से जुड़ी समस्याओं को यह संस्थान नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।

SWAYAM (Study Webs of Active Learning for Young Aspiring Minds), दीक्षा, ई-पाठशाला, नेशनर रिपॉजिटरी ऑफ़ ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज़, NIOS और ई-यंत्र जैसे IT इनीशिएटटिव, वर्चुअल लैब्स, ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर फॉर एजुकेशन जैसे कुछ कार्यक्रम इस दिशा में चलाए जा रहे हैं। इन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल सिर्फ़ शिक्षक और छात्रों के बीच व्यवहार तक ही सीमित नहीं है (इसकी रिकॉर्डिंग करना भी प्राइवेसी का उल्लंघन है)। बल्कि इन प्लेटफॉर्म्स से छात्रों का मूल्यांकन, टेस्ट के नतीज़े, उपस्थिति, क्लास में भागीदारी, चैटबॉक्स और दूसरी शैक्षिक गतिविधियों की भी सुविधा मिलती है। 

इन प्लेटफॉर्म्स के पास बहुत बड़े स्तर की डेटा कलेक्श और प्रोसेसिंग की क्षमताएं हैं, जिसकी वजह से यह बेहद असुरक्षित और प्राइवेसी का उल्लंघन करने वाले बन जाते हैं। इसलिए यह प्लेटफॉर्म सरकार और निजी खिलाड़ियों के लिए वह चारा हैं, जिनके ज़रिए वे एक नियंत्रित और शोषित समाज बना सकते हैं, जो डाटा को शरीर का ही हिस्सा मानेगा, क्योंकि वहां बच्चों की गतिविधियों का पूरा "डाटाफिकेशन" किया जाएगा। 

यह माइकल फोकॉउल्ट के पेनोप्टिसिज़्म से काफ़ी कुछ मिलता जुलता है, जहां स्कूल नियंत्रक बच्चों पर नज़र रखते हैं, उन्हें प्रबंधित और नियंत्रित करते हैं। इसके आधार पर स्कूल नियंत्रक बच्चों के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट बना बनाते हैं। इसमें बच्चों की सहभागिता, काम पर लगाए गए समय का आंकड़ा, क्विज के नतीजे होते हैं। आभासी कक्षाओं के ज़रिए शारीरिक और निर्णायत्मक निजता का उल्लंघन होता है। 

निजी जानकारी को बड़े डाटाबेस में इकट्ठा करना और फिर उसका उपयोग करना, जो अकसर बिना सहमति के होता है, उससे डाटा सुरक्षा और प्राइवेसी के लिए बड़ा खतरा खड़ा हो जाता है। यह तब खासतौर पर होता है, जब निजी क्षेत्र के लोग किसी की प्रोफाइलिंग के लिए डाटा प्रोसेस करते हैं, इसके तहत विज्ञापन कर बच्चों को जोड़ा जाता है।

इस बात पर भी अनिश्चित्ता है कि स्कूल नियंत्रक क्लास का वीडियो स्टोर करते हैं और फिर क्या उसे किसी बाहरी क्लाउड आधारित सेवादाता को देते हैं। सहमति की कमी, सुरक्षा प्रावधानों की कमी और बाद में डाटा पर निगरानी से किसी बच्चे की प्राइवेसी, आत्म अभिव्यक्ति और स्वायत्ता का हनन होता है।

किसी बच्चे का निजता का अधिकार

यूनाइडेट नेशंस कंवेशन ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड (UNCRC) के आर्टिकल 16 में स्पष्ट तौर पर बच्चे की निजता के अधिकार को मान्यता दी गई है। भारत ने भी इस कंवेशन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके जरिए किसी बच्चे की अपने परिवार, घर या किसी दूसरी जगह, मनुताबिक ढंग से उसकी निजता के उल्लंघन को प्रतिबंधित किया गया है।

भारत में शैक्षिक प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण की अनुपस्थिति से शैक्षिक संस्थानों और उनके द्वारा उपयोग पर ली गई सेवाओं के बीच अस्पष्टता और जानकारी में विषमता आ गई है। प्लेटफॉर्म के व्यक्तिगत डाटा से व्यवहार के बारे में जागरुकता की कमी भी इससे गहरी होती है। इन प्लेटफॉर्म से व्यक्तिगत डाटा को अवांक्षित खतरा बनता होता है। एकसमान पैमानों को लागू करने में असफल होने से व्यक्तिगत अधिकारों और जिम्मेदारियों को लागू करने में असमानता आ सकती है।

भारतीय न्यायपालिका ने बच्चों की प्राइवेसी पर कोई फ़ैसला अब तक नहीं सुनाया है। लेकिन राइट टू प्राइवेसी का विस्तार से परीक्षण किया गया है। आभासी कक्षाओं के ज़रिए होने वाले सर्विलांस से शारीरिक और निर्णयात्मक निजता का हनन होता है।

जैसा गोबिंद बनाम् मध्यप्रदेश राज्य मामले में बताया गया है, शारीरिक निजता में अकेले छोड़े जाने का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, किसी व्यक्ति की शारीरिक, घरेलू और उसके आस-पास के माहौल का सम्मान भी आता है। वहीं अनुज गर्ग बनाम् होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया मामले में निर्णयात्मक निजता का परीक्षण किया गया है। यह व्यक्तिगत स्वायत्ता से संबंधित है, जिसमें दूसरों द्वारा हस्तक्षेप न होने देने का नकारात्मक अधिकार और अपनी जिंदगी के बारे में फ़ैसला करने, खुद को व्यक्त करने और अपने मनमुताबिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के सकारात्मक अधिकार शामिल हैं। 

किसी डाटा सुरक्षा और उसका सम्मान करने वाली व्यवस्था के तीन स्तंभ- सहमति, पारदर्शिता और जिम्मेदारी, सुरक्षा प्रावधान होते हैं।

ई-लर्निंग में डाटा प्रोटेक्शन

भारत में पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 का एक संशोधित बिल आना चाहिए, जिसमें ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्मस के लिए नीतियां, प्रक्रियाएं और क्रियान्वयन पैमाने बनाए जाएं। बिल के पास होने तक सरकार को ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स पर "इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ डाटा प्रोटेक्शन एंड प्राइवेसी कमीशनर्स रिज़ोल्यूशन" का पालन करना चाहिए।

कानूनी ढांचे में इस बात का साफ़ उल्लेख होना चाहिए कि किस तरह के डाटा का एकत्रीकरण या उसे सार्वजनिक किया जा सकता है। उसके इकट्ठा करने की जगह क्या होगी और उसे कैसे वापस पाया जा सकेगा? डाटा की प्रबंधन स्थितियां क्या होंगी और डाटा से मुख्यत: क्या सहूलियत मिलेंगी? ढांचे से वित्तीय, शारीरिक और तकनीकि सुरक्षा मिलनी चाहिए और इन पर अतिक्रमण की स्थिति में तय प्रक्रिया भी स्पष्ट होनी चाहिए।

डाटा सुरक्षा ढांचे के तीन स्तंभ सहमति, पारदर्शिता और जिम्मेदारी, सुरक्षा प्रावधान हैं।

यह जरूरी होना चाहिए कि बच्चे या उसके पालक की सहमति ली जाए। शैक्षिक प्रशासन, ई-लर्निंग सेवादाता और निर्माणकर्ताओं को यह तय करना चाहिए कि सीधे तौर पर बच्चे या उसके पालक द्वारा सहमति दी जाए, जो बिलकुल स्पष्ट हो।

शैक्षिक संस्थानों को ऑप्ट-ऑउट (बाहर निकलने/छोड़ देने) का विकल्प देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। खासकर वीडियो (लैपटॉप कैमरा) और ऑडियो मॉनिटरिंग (माइक्रोफोन) के मामले में। अगर किसी स्थिति में शैक्षिक रिकॉर्ड को किसी तीसरे पक्ष से साथ साझा किया जाना बहुत जरूरी हो, तो अल्व व्यस्क बच्चों के मामले में स्क्लू प्रशासन को उनके माता-पिता से सहमति हासिल करनी चाहिए।

डाटा के एकत्रीकरण और उपयोग में जिम्मेदारी तय करने के लिए पारदर्शिता बेहद जरूरी होती है। एल्गोरिद्म, प्रोटोकॉल, डिज़ाइन और डाटा के उपयोग की प्रक्रियाएं बाहरी परीक्षण और जांच के लिए खुली होनी चाहिए। विश्वासयोग्य संस्थाओं द्वारा गहराई से किए गए ऑडिट से भी ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म के पक्षपाती नतीज़ों से बचा जा सकता है। जिस डाटा को इकट्ठा किया गया, उसका इस्तेमाल सिर्फ़ अपने तय उद्देश्य के लिए, जो सहमति लेते हुए बताया गया था, उसके लिए ही किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत डाटा को अनुमानों, व्यक्तिगत प्रोफाइलिंग या विश्लेषण के उद्देश्य से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

पूरे तंत्र में सुरक्षा प्रावधानों को तरज़ीह देकर उन्हें लागू करना चाहिए। छात्रों को ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स का अज्ञात व्यक्ति या किसी दूसरे नाम से इस्तेमाल करने की अनुमति होनी चाहिए। प्लेटफॉर्म को लेक्टर के पहले कैमरा और माइक्रोफोन तक पहुंच के लिए अनुमति मांगनी चाहिए।

लर्निंग नेटवर्क और उपभोक्ता के बीच के डाटा को एनक्रिप्ट किया जाना चाहिए। एनक्रिप्शन तकनीकों के उपयोग की लर्निंग साइट्स के हिसाब से जांच अलग से की जानी चाहिए। रिकॉर्ड गुमने की स्थिति में, ई-लर्निंग सर्विस के संचालक और शैक्षिक संस्थान छात्रों और उनके माता-पिता और दूसरी प्रशासनिक संस्थाओं को जानकारी दें।

सर्विलांस के प्रभाव बहुत परेशान करने वाले होते हैं, क्योंकि इनके ज़रिए बच्चों में अपने क्रियाकलापों के प्रति सजग रहने की भावना को बल मिलता है और उनका असली व्यवहार दबता है, क्योंकि बच्चों को डर होता है कि उन्हें देखने वाले, उनके क्रियाकलापों को गलत समझ सकते हैं। जल्द ही रोजाना रखी जाने वाली नज़र हमारे शरीर के लिए आदत बन जाती है, और इससे स्कूल की रोजाना जिंदगी में निगरानी के सामान्यीकरण को बल मिलता है।

हालांकि प्रज्ञाता (PRAGYATA- डिजिटल शिक्षा और साइबर सुरक्षा के उद्देश्य से सेकंडरी और सीनियर सेकंडरी के छात्रों को दी जाने वाली गाइडलाइन्स) प्राइवेसी और आत्मअभिव्यक्ति के मुद्दे पर जागरुक नज़र आती है, लेकिन बड़े डाटा के दौर में भी इसमें निजता का सम्मान करने वाले तंत्र की कमी दिखती है।

हर्ष बाजपेयी, डरहम लॉ स्कूल, यूनाइटेड किंगडम में पीएचडी के छात्र हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Surveillance on Students Raise Privacy Concerns on Online Education Platforms

National Education Policy
NEP-2020
MHRD

Related Stories

नई शिक्षा नीति से सधेगा काॅरपोरेट हित

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना को क्यों खत्म कर रही है मोदी सरकार?

शिक्षा बजट: डिजिटल डिवाइड से शिक्षा तक पहुँच, उसकी गुणवत्ता दूभर

स्मृति शेष: रोहित वेमूला की “संस्थागत हत्या” के 6 वर्ष बाद क्या कुछ बदला है

डीयू कैंपस खोलने की मांग और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विरोध में छात्र-शिक्षकों का प्रदर्शन

तमिलनाडु में भाजपा के 'कामराजार आची' के वादे से दोहरेपन की बू आती है!

इग्नू के नये ज्योतिष पाठ्यक्रम पर वैज्ञानिकों और बौद्धिकों की प्रतिक्रियायें

बीएचयू: सोते हुए छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई, थाना घेराव के बाद गिरफ़्तार छात्र हुए रिहा

अपनी भाषा में शिक्षा और नौकरी : देश को अब आगे और अनीथा का बलिदान नहीं चाहिए

दिल्ली : विश्वविद्यालयों को खोलने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस ने हिरासत में  लिया


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License