NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
स्वच्छ भारत: 9.8 करोड़ सेप्टिक टैंक या गड्ढों की सफाई कौन करेगा?
नियम के अनुसार इसके लिए मशीनें होनी चाहिए लेकिन इस तरह की कोई योजना नहीं है। इसका मतलब है कि सरकार लोगों से दस्ती तरीक़े से मैला ढोने का काम जारी रखना चाहती है।
सुबोध वर्मा
28 Nov 2019
swachchta abhiyan

हाल ही में जारी किए गए एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार मानव मल इकट्ठा होने के लिए ग्रामीण भारत में 96% से अधिक शौचालयों के लिए सेप्टिक टैंक या अन्य प्रकार के गड्ढे बने हुए हैं। [नीचे दिया गया चार्ट देखें] ये रिपोर्ट (# 584) राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है जो सांख्यिकी मंत्रालय के अधीन है। एनएसओ को पहले एनएसएसओ कहा जाता था। चूंकि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) आधिकारिक रूप से दावा करता है कि 10 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालय बनाए गए हैं और वहां लगभग 9.8 करोड़ ऐसे सेप्टिक टैंक और गड्ढे बने हैं।

हालांकि इस बारे में कोई चर्चा नहीं है कि इन टैंकों / गड्ढों को ख़ाली किया जा रहा है या नहीं। वास्तव में इस आवश्यक कार्य के लिए अलग से कोई फंड नहीं रखा गया है। यह मालिक की ज़िम्मेदारी है।

सेप्टिक टैंक को भरने और सफाई की आवश्यकता के लिए कुछ साल लग जाते हैं। खुले गड्ढे तेजी से भरेंगे। भले ही तरल पदार्थ को बाहर निकालने की व्यवस्था है पर बचे मल को निकालने की आवश्यकता होगी। यह केवल दोहरे लीच पिट में होता है कि ये मल रोगजनकों और गंध से मुक्त हो जाएगी लेकिन ये निर्मित शौचालयों का लगभग 10.6% ही बनते हैं। फिर भी, ऐसी प्रणालियों में सूखे मल को हटाने की आवश्यकता होगी।

graph_2.JPG

यह कौन करने जा रहा है? आदर्श रूप में ट्रकों पर मशीनें लगी होती हैं जो मल (यदि तरल रूप में है) को निकाल सकती है और इसे कुछ दूरी पर ले जाकर गिरा सकती हैं। लेकिन ऐसा कोई उपाय अनिवार्य नहीं है और न ही ऐसी मशीनों के लिए कोई धनराशि रखी गई है जिनकी लागत प्रत्येक की 12 लाख रुपये से अधिक हो।

इसका मतलब यह है कि जिन परिवारों को इन शौचालयों पर गर्व है वे या तो टैंक / गड्ढे को साफ करने के लिए एक सफाई करने वाले लोग को बुलाएंगे या फिर एक ठेकेदार को बुलाएंगे जिनके पास इस काम को करने के लिए मशीन है, अगर वे बुलाने में सक्षम हैं।

चूंकि यहां पर हम ग्रामीण भारत के बारे में चर्चा कर रहे हैं इसलिए संभावना है कि नज़दीक के इलाक़ों में किराए पर लेने के लिए ऐसी सुविधाजनक मशीन उपलब्ध होगी जो कम से कम अभी तो मुमकीन नहीं है। दूसरी तरफ, मैनुअल स्कैवेंजिंग सदियों पुरानी प्रथा है और इसके लिए लोगों का एक निर्दिष्ट वर्ग है जिनसे इस ’गंदे’ कार्य को करवाया जाता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये अमानवीय प्रथा आधिकारिक रूप से अवैध है।

इस तरह मालूम होता है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा विकल्प का मार्ग होगा अर्थात, टैंक/गड्ढे में उतर कर एकत्रित मानव मल को बाल्टी से खाली करने के लिए उन्हें बुलाया जाएगा और इसके लिए उन्हें पैसा दिया जाएगा। वे फिर इसे निकालकर कहीं दूसरी जगह ले जाएंगे वह नाला या खाली मैदान या बंजर ज़मीन हो सकता है और इसे वहां फेंक देंगे। कई गहन सर्वेक्षणों ने जारी प्रथा की पुष्टि की है।

दूसरी तरफ, अगर कोई परिवार ऐसा नहीं करता है तो दूसरा एकमात्र विकल्प शौचालय का इस्तेमाल बंद करना होगा। अन्यथा उनके सेप्टिक टैंक या गड्ढे भर कर बहने लगेंगे।

क्या स्वच्छ भारत मिशन द्वारा लाई गई क्रांति के बारे में गर्व से बात करने वाली सरकार ने यह सब माना है? हां, केवल काग़ज़ पर वे कहते हैं कि समय-समय पर सफाई ज़रूरी है। वास्तव में, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अधीन एक प्रमुख संस्थान केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन (सीपीएचईईओ) द्वारा सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए उन्होंने हाल ही में एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। यह इस बात पर विस्तृत मार्गदर्शन करता है कि यह काम करने वाले के लिए कितने प्रकार के सुरक्षा उपकरण आवश्यक हैं और यह सफाई के लिए सटीक प्रोटोकॉल भी बताता है। लेकिन दूर दराज के गांवों में वास्तव में क्या ऐसा होगा?

अगर गंभीरता से इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो ज़्यादा संभावना है कि सफाई कर्मी इसी तरह काम करते रहेंगे और इसी तरह मरते रहेंगे। सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन (एकेए) के अनुमान के अनुसार मीडिया रिपोर्टों के आधार पर लगभग 2000 मैला ढोने वाले सफाई कर्मी हर साल मरते हैं। इसमें सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मौतों की संख्या की पूरी रिकॉर्ड नहीं है। अब, कई नए सेप्टिक टैंक के चलते इन मौतों की संख्या बढ़ सकती हैं और मानव मल को दस्ती तरीक़े से हटाने की अवैध प्रथा नई चीजों को जन्म देगी।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Swachh Bharat: Who Will Clean & Empty Out 9.8 Crore Septic Tanks/Pits?

Open Pits
Open defecation free
ODF
Open Defecation in India
safai karmachari andolan
SKA
Bejwada Wilson
BJP
Narendra modi

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • आज का कार्टून
    ‘तेलंगाना की जनता बदलाव चाहती है’… हिंसा नहीं
    26 May 2022
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना के दौरे पर हैं, यहां पहुंचकर उन्होंने कहा कि तेलंगाना की जनता बदलाव चाहती है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: दलित प्रोफेसर मामले में SC आयोग का आदेश, DU रजिस्ट्रार व दौलत राम के प्राचार्य के ख़िलाफ़ केस दर्ज
    26 May 2022
    दिल्ली पुलिस ने सोमवार को दौलत राम कॉलेज की प्रिंसिपल सविता रॉय तथा दिल्ली यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता के खिलाफ मामला दर्ज किया है। 
  • भरत डोगरा
    भारत को राजमार्ग विस्तार की मानवीय और पारिस्थितिक लागतों का हिसाब लगाना चाहिए
    26 May 2022
    राजमार्ग इलाक़ों को जोड़ते हैं और कनेक्टिविटी को बेहतर बनाते हैं, लेकिन जिस अंधाधुंध तरीके से यह निर्माण कार्य चल रहा है, वह मानवीय, पर्यावरणीय और सामाजिक लागत के हिसाब से इतना ख़तरनाक़ है कि इसे…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा
    26 May 2022
    केरल में दो महीने बाद कोरोना के 700 से ज़्यादा 747 मामले दर्ज़ किए गए हैं,वहीं महाराष्ट्र में भी करीब ढ़ाई महीने बाद कोरोना के 400 से ज़्यादा 470 मामले दर्ज़ किए गए हैं। 
  • लाल बहादुर सिंह
    जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है
    26 May 2022
    जब तक जनता के रोजी-रोटी-स्वास्थ्य-शिक्षा के एजेंडे के साथ एक नई जनपक्षीय अर्थनीति, साम्राज्यवादी वित्तीय पूँजी  से आज़ाद प्रगतिशील आर्थिक राष्ट्रवाद तथा संवैधानिक अधिकारों व सुसंगत सामाजिक न्याय की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License