NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
राजनीति
तिरछी नज़र : कराची हलवा और जिह्वा का राष्ट्रवाद
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मेरी पसंदीदा मिठाई मुझे ही नहीं भा रही है। मैं गंभीर सोच में पड़ गया। मैंने और मिठाईयाँ खायीं, बर्फी, कलाकंद, जलेबी, रसगुल्ला सभी का स्वाद बरकरार था। मेरी चिंता का अंत नहीं था...
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
22 Dec 2018
सांकेतिक तस्वीर

बचपन से ही मुझे कराची हलवा बहुत ही पसंद है। उसका खिंचाव भरा लिजलिजापन मुझे तब भी पसंद था और आज भी पसंद है। बचपन में मिठाइयां आम तौर पर दीवाली पर ही आती थीं। मिक्स मिठाई में एक दो पीस कराची हलुए के जरूर होते थे।  और उन पर मेरा ही अधिकार होता था। हम तीन भाई-बहनों में यह अलिखित समझौता सा था। पर इस दीवाली पर कुछ ऐसा हुआ जो पिछले पचपन साल में कभी नहीं हुआ था। पहली बार कराची हलुए का पूरा डिब्बा ही आ गया। वह भी पूरा एक किलो का। सारे डिब्बे पर मेरा ही पूरा अधिकार था। अब तक पत्नी ही नहीं, बच्चों को भी पता था कि कराची हलवा मुझे कितना पसंद है। मैंने उत्साह से कराची हलुए का एक टुकड़ा मुँह मे डाला। मुझे कड़वा सा लगा। मैंने दूसरा टुकड़ा भी चखा। वह भी कड़वा लगा। मैंने पत्नी से कहा इस बार कराची हलवा कुछ खराब है। पत्नी ने चखा और कहा, नहीं खराब तो नहीं है, लगता है आपका स्वाद ही कुछ खराब है। तबीयत तो ठीक है। वैसे तो मेरी तबीयत ठीक ही थी फिर भी सोचा हो सकता है थोड़ी बहुत खराब हो, इसलिए कल ही खायेंगे कराची हलवा।

अगले दिन फिर कराची हलवा अलमारी में से निकाला और उसका एक टुकड़ा मुँह में डाला। फिर वही कड़वापन। पास में ही बेटी पढ़ रही थी, मैंने कराची हलवे का डिब्बा उसकी तरफ बढ़ाकर कहा, बेटे, जरा, एक पीस खाकर तो बताओ। उसे आश्चर्य हुआ, कहाँ तो पहले पापा से चुरा कर खाना पड़ता था पर आज पापा खुद ही खिला रहे हैं। उसने खुशी से दो पीस उठा लिये। जैसे ही उसने पहला टुकड़ा मुँह मे रखा, मैंने उत्सुकता से पूछा, कैसा है? वह बोली, बहुत ही स्वादिष्ट, पापा। और उसने अपने हाथ में रखा दूसरा टुकड़ा भी खा लिया।

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मेरी पसंदीदा मिठाई मुझे ही नहीं भा रही है। मैं गंभीर सोच में पड़ गया। मैंने और मिठाईयाँ खायीं, बर्फी, कलाकंद, जलेबी, रसगुल्ला सभी का स्वाद बरकरार था। मेरी चिंता का अंत नहीं था। मैंने इस बात को लेकर अपने पारिवारिक चिकित्सक से भी परामर्श किया। उन्होंने सारी जांच कीं, खून की जांच और एक्स-रे भी करवा दिया। कहीं कुछ नहीं निकला। इससे पहले कि वे MRI करवाते, मैंने उनसे किनारा कर लिया।

अब मैंने अपने मित्रों व जानकारों से इस बारे में जिक्र किया। शायद कभी किसी को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा हो। ऐसी अजीब बीमारी तो कभी किसी ने सुनी तक नहीं थी, भुगतने की बात तो छोड़ो। बात जब निकली तो दूर तलक पहुँची। परिचितों से अपरिचितों तक पहुँची। एक दिन एक परिचित मिलने आये। वैसे तो मैं उनको देखते ही कन्नी काट जाता था पर आज बात कुछ और ही थी। वे मेरी बीमारी के बारे में बात करने आये थे। इसलिए उन्हें झेलना मेरी मजबूरी थी। मेरी बीमारी के बारे में विस्तार से सुन समझ वे मुस्कुरा उठे। बोले "तुम्हारी जिह्वा पर राष्ट्रवाद आ गया है। तुम्हारी जीभ अब राष्ट्र भक्त हो गई है।" मैंने प्रतिवाद किया "क्या मतलब, मेरे तो सभी अंग, दिलो-दिमाग से लेकर हाथ पैर तक, सभी राष्ट्र भक्त हैं।"

"आपकी वाली छद्म राष्ट्र भक्ति नहीं, हमारी वाली खालिस राष्ट्र भक्ति" वे व्यंग से बोले। "किसी की राष्ट्र भक्ति दिमाग से शुरू होती है, किसी की हाथ पैर से। आपकी जीभ से शुरू हुई है। आपकी जीभ को इसीलिए शत्रु राष्ट्र के एक शहर के नाम पर मिठाई पसंद नहीं आ रही है।"

मैं चिंता में डूब गया। पाकिस्तान तो अबसे अधिक शत्रु राष्ट्र 1965 में था। उन दिनों हम सब बच्चे कागज के हवाई जहाज बना हिंदुस्तानी नैट और पाकिस्तानी अमेरिकी सैबरजैट की लड़ाई लड़ते थे। पर कराची हलुए की मिठास कम न थी। 1971 में तो और भी भीषण युद्ध था और दुश्मनी भी अधिक ही थी। मैंने भी जवानी की दहलीज पर कदम रखा था। खून गर्म था, दुश्मनी भी अधिक थी पर कराची हलवा मीठा ही था। लगता है अब माहौल ही ज्यादा खराब है।

अब मोदी जी और योगी जी माहौल को तो ठीक करना चाहेंगे नहीं। और पाकिस्तान के शहर कराची का नाम बदलना चाहें तो भी बदल सकते नहीं। इसलिए उनसे प्रार्थना है कि वे कराची हलुए का नाम ही बदल दें जिससे उसकी मिठास बरकरार रह सके।

लिखते-लिखते: प्रार्थना है कि इससे पहले कि शाही पनीर बेस्वाद हो जाये, शाही पनीर का नाम भी बदल दिया जाये। मुझे यह भी बहुत पसंद है। सलाह है, शाही पनीर का नाम शाह पनीर या योगी पनीर रख दिया जाये।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

Satire
Political satire
राजनीतिक व्यंग्य
व्यंग्य
साहित्य
Nationalism
Hindu Nationalism

Related Stories

मथुरा: शाही ईदगाह पर कार्यक्रम का ऐलान करने वाले संगठन पीछे हटे, पुलिस ने बढ़ाई सुरक्षा

अति राष्ट्रवाद के भेष में सांप्रदायिकता का बहरूपिया

चाँदनी चौक : अमनपसंद अवाम ने सांप्रदायिक तत्वों के मंसूबे नाकाम किए

तिरछी नज़र : प्रधानमंत्री का एक और एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

"खाऊंगा, और खूब खाऊंगा" और डकार भी नहीं लूंगा !

गाइड बुक : “भारत माता की जय”

कृष्णा सोबती : मध्यवर्गीय नैतिकता की धज्जियां उड़ाने वाली कथाकार

"हमारी मनुष्यता को समृद्ध कर चली गईं कृष्णा सोबती"

तिरछी नज़र : नववर्ष की भविष्य-वाणियां!

कर्ता ने कर्म को...


बाकी खबरें

  • सत्येन्द्र सार्थक
    आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?
    25 Apr 2022
    सरकार द्वारा बर्खास्त कर दी गईं 991 आंगनवाड़ी कर्मियों में शामिल मीनू ने अपने आंदोलन के बारे में बताते हुए कहा- “हम ‘नाक में दम करो’ आंदोलन के तहत आप और भाजपा का घेराव कर रहे हैं और तब तक करेंगे जब…
  • वर्षा सिंह
    इको-एन्ज़ाइटी: व्यासी बांध की झील में डूबे लोहारी गांव के लोगों की निराशा और तनाव कौन दूर करेगा
    25 Apr 2022
    “बांध-बिजली के लिए बनाई गई झील में अपने घरों-खेतों को डूबते देख कर लोग बिल्कुल ही टूट गए। उन्हें गहरा मानसिक आघात लगा। सब परेशान हैं कि अब तक खेत से निकला अनाज खा रहे हैं लेकिन कल कहां से खाएंगे। कुछ…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,541 नए मामले, 30 मरीज़ों की मौत
    25 Apr 2022
    दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच, ओमिक्रॉन के BA.2 वेरिएंट का मामला सामने आने से चिंता और ज़्यादा बढ़ गयी है |
  • सुबोध वर्मा
    गहराते आर्थिक संकट के बीच बढ़ती नफ़रत और हिंसा  
    25 Apr 2022
    बढ़ती धार्मिक कट्टरता और हिंसा लोगों को बढ़ती भयंकर बेरोज़गारी, आसमान छूती क़ीमतों और लड़खड़ाती आय पर सवाल उठाने से गुमराह कर रही है।
  • सुभाष गाताडे
    बुलडोजर पर जनाब बोरिस जॉनसन
    25 Apr 2022
    बुलडोजर दुनिया के इस सबसे बड़े जनतंत्र में सरकार की मनमानी, दादागिरी एवं संविधान द्वारा प्रदत्त तमाम अधिकारों को निष्प्रभावी करके जनता के व्यापक हिस्से पर कहर बरपाने का प्रतीक बन गया है, उस वक्त़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License