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तमिलनाडु: चिंताजनक स्थिति पेश कर रहे हैं लैंगिक अनुपात और घरेलू हिंसा पर NFHS के आंकड़े
जन्म के दौरान लड़के-लड़कियों के अनुपात में पिछले पांच सालों में बहुत गिरावट आई है. अब 1000 लड़कों पर सिर्फ़ 878 महिलाएं हैं। जबकि 2015-16 में 1000 लड़कों पर 954 लड़कियों की संख्या मौजूद थी।
श्रुति एमडी
04 Dec 2021
sex ratio

चेन्नई: 25 नवंबर को नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएस-5) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, तमिलनाडु में 2015-16 की तुलना में किशोरियों के गर्भधारण की दर 6.3 फ़ीसदी बढ़ गई है। 

यह सर्वे पूरे भारत में प्रतिनिधिक नमूनों के आधार पर किया जाता है, ताकि शिशु मृत्यु दर, परिवार नियोजन के व्यवहार, माता एवम् शिशु स्वास्थ्य, पोषण, स्वास्थ्य सेवाओं और दूसरी सेवाओं के उपयोग की जानकारी हासिल हो सके। इस सर्वे में तमिलनाडु में मातृ स्वास्थ्य और शिशु सेवाओं में कुछ हैरान कर देने वाले आंकड़े सामने आए हैं।

जैसे सीज़र या सी सेक्शन द्वारा जन्म देने में पिछले पांच साल में तमिलनाडु में 10 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है। साथ ही 6 महीने स 2 साल के बीच के बच्चों में, पर्याप्त भोजन पाने वाले बच्चों की संख्या आधी हो गई है। फिर बड़ी चिंता की बात यह भी है कि पिछले पांच सालों में लिंग दर 954 से घटकर 878 हो गई है। मतलब प्रति हजार लड़कों पर 878 लड़कियों का जन्म हुआ।

इसके साथ ही कुछ स्वास्थ्य मुद्दे भी शहरी क्षेत्रों में असरदायक रहे हैं, जैसे रक्तचाप का सामान्य स्तर से ऊपर रहना, मधुमेह जैसी समस्याएं तमिलनाडु में राष्ट्रीय औसत के ऊपर हैं।

हैरान करने वाली बात यह रही कि एक ऐसे वक़्त में जब बाल यौन शोषण के मामलों में इज़ाफा हुआ है, तब 27,929 परिवारों से इकट्ठा किया गया आंकड़ा बताता है कि 18 से 29 साल के बीच की लड़कियों में, 18 साल की उम्र से पहले यौन हिंसा झेलने वालों की संख्या शून्य है। 

जिन महिलाओं को अपने साथी से हिंसा का सामना करना पड़ा है, उनकी संख्या तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा है। यहां 18 से 49 साल की उम्र के बीच की 38.1 फ़ीसदी महिलाओं को यह झेलना पड़ा है। जबकि केरल में यह आंकड़ा सिर्फ़ 9 फ़ीसदी है। 

न्यूज़क्लिक ने एनएफएचएस-5 के दूसरे चरण में आएं आंकड़ों को इकट्ठा किया है, जिनसे राज्य में महिलाओं, बच्चों और स्वास्थ्य की जानकारी मिलती है। 

मां का स्वास्थ्य

15 से लेकर 19 साल की उम्र की लड़कियां, जो पहले ही मां बन चुकी हैं या सर्वे के दौरान गर्भवती थीं, उनकी संख्या बढ़ना तमिलनाडु में बाल विवाह की कड़वी सच्चाई बताता है। कम उम्र में गर्भवती होने के मामलों में दो तिहाई ग्रामीण इलाकों से सामने आए हैं। 

तमिलनाडु में सीजर ऑपरेशन से होने वाले प्रसव की संख्या तेलंगाना के बाद, दूसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा है। यहां 44.9 फ़ीसदी मामलों में सीजर से प्रसव हुआ, जबकि तेलंगाना में यह संख्या 60 फ़ीसदी है। 

एनएचएफएस-5 में सीज़र प्रसव की संख्या निजी अस्पतालों में 51.3 फ़ीसदी से बढ़कर 63.8 फ़ीसदी हो गई। जनसुविधा केंद्रों में यह संख्या 26.3 फ़ीसदी से बढ़कर 36 फ़ीसदी हो गई। शहरी इलाकों में इस तरह के प्रसव ज़्यादा संख्या में हो रहे हैं। 

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं

पूरा आंक़ड़ा बताता है कि निजी सुविधा केंद्रों की तुलना में सरकारी अस्पतालों में इलाज़ में वृद्धि हुई है। यह महामारी और इससे जुड़े आर्थिक बोझ की वज़ह से भी हो सकता है। सार्वजनिक केंद्रों में वैक्सीन लगवाने में यह चीज सबसे ज़्यादा देखी गई। जहां पांच सालों में यह आंकड़ा 85.1 फ़ीसदी से बढ़कर 89.8 फ़ीसदी हो गया। जबकि निजी अस्पतालों में कुल टीकों की संख्या इस अवधि में 14 फ़ीसदी से गिरकर 10.1 फ़ीसदी पर आ गई। 

लेकिन सार्वजनिक अस्पतालों में प्रति व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला खर्च 2015-16 के 2069 रुपये से बढ़कर 3,316 रुपये हो गया। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसमें गिरावट आई है। पहले यह प्रति व्यक्ति 3,197 रुपये था, अब यह 2,916 रुपये प्रति व्यक्ति हो गया है। 

एक सकारात्मक चीज यह हुई है कि तमिलनाडु में घर पर होने वाला प्रसव शून्य है, जबकि 99.6 फीसदी सांस्थानिक प्रसव है और 0.2 फ़ीसदी ऐसा प्रसव है, जो संस्थानों के बाहर किया जाता है, पर पेशेवर स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा इसे अंजाम दिया जाता है। इस मामले में तमिलनाडु से आगे सिर्फ़ केरल (99.8 फ़ीसदी) ही है। जबकि सांस्थानिक प्रसव का राष्ट्रीय औसत 61.9 फ़ीसदी ही है। 

बच्चों की सेवा-सुविधा में अंतर

अखिल भारतीय स्तर पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की शिकायत बढ़ रही है, तमिलनाडु में भी यह चिंता का विषय है। पिछले पांच साल में 6 से 59 महीने के एनीमिया के शिकार बच्चों की संख्या 50.7 फ़ीसदी से बढ़कर 57.4 फ़ीसदी हो गई। इसी तरह 15 से 49 साल की गर्भवती महिलाओं में, हीमोग्लोबिन का स्तर कम रहने वाली महिलाओं की संख्या 44.4 फ़ीसदी से बढ़कर 48.3 फ़ीसदी पहुंच गई। यह बच्चों में पोषण स्तर के गिरते दर्जे का स्पष्ट प्रतीक है।

6 से 23 महीने के भीतर के बच्चों में, पर्याप्त भोजन पाने वाले बच्चों की संख्या पिछले पांच सालों में 30.7 फ़ीसदी से घटकर सिर्फ़ 16.3 फ़ीसदी रह गई है। जबकि राष्ट्रीय औसत भी आंशिक तौर पर बढ़ी ही है। 

यह चिंताजनक है कि स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच कई तरह से कम हुई है। हालांकि सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि जब हालिया सर्वे करवाया गया था, तब बच्चों में डायरिया की शिकायतें, एनएफएचएस-4 सर्वे की अवधि की तुलना में काफ़ी कम थीं। फिर स्वास्थ्य सुविधाओं और बीमारी के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं मिलने का आंकड़ा भी काफी कम हुआ है। पिछले सर्वे के दौरान यह 73.2 फ़ीसदी था, जबकि इस सर्वे में यह 60.2 फ़ीसदी है। 

शहरी स्वास्थ्य मुद्दे

अब तक जो मातृ एवम् शिशु स्वास्थ्य चिंताएं बताई गई हैं, वे ग्रामीण इलाकों में ज़्यादा हैं। लेकिन शहरी इलाकों में स्वास्थ्य की अपनी समस्याएं हैं। एनएफएचएस-5 के मुताबिक़, 40.4 फ़ीसदी महिलाएं तमिलनाडु में ज़्यादा वजन की समस्या से ग्रस्त थीं। जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 30.9 फ़ीसदी था। पुरुषों में 37 फ़ीसदी मोटापे के शिकार हैं, जबकि पिछले सर्वे में यह आंकड़ा 28.2 फ़ीसदी था। 

आंकड़े बताते हैं कि करीब़ 20.7 फ़ीसदी लोगों में उच्च शुगर है या फिर वे खून की शुगर को नियंत्रित करने के लिए दवाईयां ले रहे हैं। शहरी इलाकों में हाइपरटेंशन भी एक समस्या है। 

इंटरनेट तक पहुंच में भी बड़े पैमाने पर शहर और गांव में अंतर देखा जा सकता है। पुरुषों और महिलाओं में डिजिटल विभाजन बहुत ज़्यादा है। 76.1 फ़ीसदी शहरी पुरुषों ने कहा कि उनकी इंटरनेट तक पहुंच है, जबकि शहरी महिलाओं में यह आंकड़ा 55.8 फ़ीसदी था। ग्रामीण इलाकों में 64.9 फ़ीसदी पुरुषों को इंटरनेट तक पहुंच मिली है, जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा 39.2 फ़ीसदी ही है। 

कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन लगाए जाने के चलते दूसरे चरण में एनएफएचएस-5 का मैदानी काम दो हिस्सों में हुआ था। तमिलनाडु में यह 2020 में 6 जनवरी से 21 मार्च तक और 21 दिसंबर, 2020 से 31 मार्च, 2021 तक हुआ था। महामारी के पहले और बाद में हुए इस सर्वे में स्थितियां बड़े पैमाने पर बदल गई थीं, जो सर्वे में थोड़ी बहुत नज़र आती हैं। 

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Tamil Nadu: NFHS Data on Teenage Pregnancy, Spousal Violence, Sex Ratio is Worrying

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