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भारत
राजनीति
त्रिपुरा: अवसरवाद और उम्मीदों से हारा वाम
एक नापाक गठजोड़ और सीमित अवसरों की वजह से हुई त्रिपुरा में वाम मोर्चे की हारI
सुबोध वर्मा
03 Mar 2018
bjp vs left

अब तक के आये परिणामों से साफ़ हो गया है कि वाम मोर्चे के हाथ से यह छोटा-सा उत्तर-पूर्वी राज्य निकल चुका हैI बीजेपी और क्षेत्रवादी IPFT का गठबंधन 43 सीटों पर जीत/बढ़त हासिल कर सत्ता में आ चुका है, वहीं वाम मोर्चा 16 सीटों पर सिमट गया हैI विधानसभा में 60 सीटें हैं लेकिन 59 पर ही मतदान हुआI

वाम मोर्चे की हार की वजहों में जाने से पहले यह जाँ लेना ज़रूरी है कि इनका वोट प्रतिशत 45 है जबकि बीजेपी-IPFT ने एक-साथ 50 प्रतिशत वोट मिले हैंI पिछले विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे को 52 प्रतिशत वोट मिले थे और तत्कालीन मुख्य विपक्ष कांग्रेस (INPT नामक एक दूसरे आदिवासी संगठन के साथ गठजोड़) को 44 प्रतिशत वोट मिले थेI 

राज्य में सभी वाम विरोधी ताकतें एक-साथ आ गयीं I कांग्रेस और INPT के गठजोड़ को पिछली बार 9.7 लाख वोट मिले थे जबकि इस बार वे लुढ़ककर बस 51,000 वोटों तक ही सीमित रह गयेI उनके गँवाए वोट ही बीजेपी-IPFT गठबंधन को मिले: पिछली बार जब यह दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े थे तो इन दोनों को मिलाकर 43,000 वोट मिले थेI इस बार इन्हें लगभग 10 लाख वोटों का फ़ायदा हुआ हैI

इसलिए आँकड़ों का यह खेल ही वाम मोर्चे के लिए हार साबित हुआI लेकिन यह हार सिर्फ आँकड़ों की ही हार नहींI

1993 से लगातार त्रिपुरा में वाम मोर्चे की सरकार रही हैI यह लगभग एक चौथाई सदी का अरसा रहाI मोर्चे ने इस पिछड़े राज्य को विभिन्न भड़काऊ आदिवासी गुटों के क्षेत्रवादी प्रदर्शनों के दौर में संभालाI IPFT इन्हें जैसे आदिवासी गुटों की विरासत को आगे लिए जा रहा हैI यह वाम मोर्चे की बुद्धिमत्ता का ही नतीजा है कि राज्य क्षेत्रवादी आदिवासी गुटों को हराकर शांतिपूर्ण विकास कर पायाI 

वाम मोर्चे ने एक साफ़, पारदर्शी प्रशासन दिया जिसमें कोई घोटाला नहीं हुआ और सबसे ज़रूरी यहाँ दूसरी राजनितिक पार्टियों की तरह निजी फ़ायदे को तरजीह बिलकुल नहीं दी गयीI पिछले 25 साल से वाम मोर्चे को विभिन्न स्तर के चुनावों में जीत इसलिए हासिल हुई क्योंकि उन्होनें लगातार लोगों के लिए काम किया हैI.

इस सबके बावजूद लोगों की बेहतर ज़िन्दगी से जुड़ी उमीदों जैसे उच्च जीवन शैली, बेहतर आय व रोज़गार, देश के दूसरे राज्यों की ही तरह के सुविधाएँ इत्यादि के सन्दर्भ में राज्य सरकार की शक्तियाँ अभी तक सीमित हैI हालांकि, वाम मोर्चे ने अपनी तरफ से भरसक कोशिश की कि लोगों की जितनी आकांक्षायें पूरी की जा सके की जायें, लेकिन दो कारक रहे जो वाम मोर्चे के लिए नुकसानदायक साबित हुएI

एक, इस राज्य की विशेष भौगोलिक स्थिति, बाकि देश से कटा हुआ, ज़्यादातर जंगलों से घिरा, तीन तरफ से बांग्लादेश की सीमा से मिलता और किसी भी तरह की ख़ास प्राकृतिक संपदा से मरहूमI इस सबका मतलब है कि यह मूलतः कृषि पर आधारित है और यहाँ औद्योगिक विकास के अवसर भी कम ही हैंI वाम मोर्चे के नेतृत्त्व में कृषि उत्पादन में काफी इज़ाफा हुआ लेकिन जैसा कि सब ही जानते हैं कि कृषि पर बढ़ते लागत मूल्य और घटती आय तारी हैI वाम मोर्चे की सरकार इस स्थिति को सीमित रूप से ही नियंत्रित कर सकती थीI इसलिए पहले से बेहतर होने के बावजूद खेती से होने वाली आय कम ही बनी रहीI और ज़्यादा आय की लोगों की उम्मीदें बहुत ऊँची थींI  

कृषि के विकल्प के तौर पर कुछ नहीं किया जा सकाता क्योंकि इस राज्य में कम संसाधनों और बाकि देश से दूरी की वजह से यहाँ औद्योगिकीकरण और विकास के अवसर कम ही हैंI इसीलिए कृषि से कम आय और औद्योगिक रोज़गार के न होने से त्रिपुरा एक अजीब स्थिति में फँसा रहाI

यह स्थिति बेहतर हो सकती थी अगर केंद्र सरकार जो कि राज्य की आय का 80% हिस्सा देती और नियंत्रित करती है, राज्य को ख़ास सुविधाएँ मुहैया करवातीI लेकिन, मनरेगा जैसी राहत पहुँचाने वाली योजनायें ही यहाँ मौजूद थींI वाम मोर्चे ने लगातार औद्योगिक और ढाँचागत विकास के लिए लड़ाई जारी रखी लेकिन किसी की केंद्र सरकार ने इस दिशा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाईI

इसका नतीजा यह रहा कि लोगों में में यह धारणा बनी कि वाम मोर्चा अर्थव्यवस्था को उसके निम्न स्तर से उबार नहीं पा रहा हैI कई लोगों ने यह भी समझाने कि कोशिश कि यह दरअसल एक बेहतर सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के लिए वाम मोर्चे की लड़ाई का ही एक हिस्सा थाI लेकिन लोगों असहमति को हमेशा ही भुनाया जा सकता हैI बीजेपी का जुमलों भरा प्रचार (जो अवसरवादी वायदों और घटिया पैंतरों के अलावा कुछ भी नहीं) त्रिपुरा के वोटरों के एक तबके को तो फुसलाने में कामयाब हुआ ही हैI यह चुनावों को प्रभावित करने में सफल रहाI

त्रिपुरा में वाम मोर्चे की हार से वहाँ के लोगों को बेहतर रोज़गार या बेहतर ज़िन्दगी नहीं मिलेगीI बीजेपी की अन्य राज्यों की सरकारों और केंद्र सरकार के काम से तो यही साबित होता है कि यहाँ लोगों की परेशानियाँ निश्चित तौर से बढ़ेंगीI बेरोज़गारी बढ़ेगी और निजी फ़ायदे को बढ़ावा मिलेगा साथ ही राज्य द्वारा दी जाने वाली मदद में कटौती की जाएगी, यह मदद त्रिपुरा जैसे राज्य के लिए बेहद ज़रूरी हैI

इसके साथ ही और शायद ज़्यादा ख़तरनाक यह है कि बीजेपी ने एक ऐसे संगठन से गठबंधन किया है जिसका इतिहास हिंसा का रहा है, इससे राज्य की शांति को गहरा ख़तरा हो गया हैI त्रिपुरा अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाना वाला राज्य है जिसमें बीजेपी सांप्रदायिकता और जातिवाद का ज़हर घोलने लगी हैI

तो, आने वाले दिनों में राज्य अपने पुराने हिंसा के दिनों में वापस लौटने के खतरे को झेल रहा हैI लेकिन आज तो बीजेपी ने ही राज्य में सत्ता हासिल कर ली हैI


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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License