NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
तुम हममें ज़िंदा हो रोहित वेमुला...
साथी रोहित! तुमको पता है कि अब देश भर के कैम्पस में माहौल बदल रहा है. जहाँ एक तरफ़ वंचित-शोषित तबके के युवाओं में एक चेतना आई है और वे खुलकर बोल रहे हैं, तो वहीँ सत्ता अब और सूक्ष्म तरीके से हमला कर रही है।

लक्ष्मण यादव
17 Jan 2019
ROHITH VEMULA

आज रोहित वेमुला की तीसरी बरसी है।  पिछले साल इसी मौके पर दिल्ली विश्विद्यालय के शिक्षक लक्ष्मण यादव ने बहुत ही मार्मिक पत्र लिखा  था जो हमारी सत्ता और व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। न्यूज़क्लिक इसे आपके लिए जस का तस प्रस्तुत कर रहा है-

साथी रोहित वेमुला,

सबसे पहले तो तुम्हे क्रांतिकारी सलाम साथी। आज 17 जनवरी है। तुमको गए दो साल हो गए। तुम आज भी बहुत टूटकर याद आते हो। तुम्हारा आखिरी खत अब भी हौसला अफजाई करता है। बहुतों को तुमसे शिकायत हो सकती है कि 'तुम लड़े क्यों नहीं' लेकिन मुझे नहीं है। तुम्हारे खत की बातें तुम्हारे भीतर चल रहे संसार और उसके साथ रोजना होने वाली लड़ाई को जाहिर करती हैं। मुझे तो लगता है तुम योद्धा की तरह लड़े। तुम्हारे खत की पंक्तियों से सीख लेते हुए कहूं तो एक ऐसा योद्धा जिसने महसूस किया है ' एक इंसान की कीमत उसकी फौरी पहचान में और सबसे आसान संभावनाओं में समेट कर रख दी गई है। महज़ एक वोट… महज़ एक संख्या… एक वस्तु… कभी भी इंसान से ऐसे पेश नहीं आया जाता कि उसमें दिमाग भी है, वह सोच सकता है। वह सितारों से बनी हुई एक जगमगाती चीज़ है। हर मामले में, पढ़ाई में, सड़कों पर, सियासत में, मरने और जीने में.’  मुझ जैसा 'चुप्पा' युवा तक अपने कैम्पस में अब ज़ोर से ये नारा लगता है, तो तुम याद आते हो। तुम हममे जिंदा हो।

साथी रोहित! तुमको पता है कि अब देश भर के कैम्पस में माहौल बदल रहा है. जहाँ एक तरफ़ वंचित-शोषित तबके के युवाओं में एक चेतना आई है और वे खुलकर बोल रहे हैं, तो वहीँ सत्ता अब और सूक्ष्म तरीके से हमला कर रही है। महीनों तुम्हारी फ़ेलोशिप बंद करने वाली सरकार अब तो सबकी फ़ेलोशिप बंद करती जा रही है। सीटें आधी कर दी, कैम्पसों में अपने चापलूसों को भर दिया, बोलने वालों की आवाज़ें प्रकारांतर से दबा रही हैं। शोधार्थी को गाइड धमकाता-समझाता है, तो नौकरियों के नाम पर सत्ता एक रीढ़विहीन चापलूस पैदा कर रही है। अब कैम्पसों में आवाज़ उठाना और कठिन हो गया है। तुम्हारे जाने के दो साल बाद भी कैम्पस बदले नहीं, बल्कि और बदतर हो गए हैं। तुम होते, तो तुमको डीयू बुलाता और दिखाता।

साथी रोहित! हम आज भी मानते हैं कि तुम्हारी सांस्थानिक हत्या की गई। तुमको पता नहीं होगा कि तुम देशभर के युवाओं और विश्वविद्यालयों को झकझोर गए। तुम बता गए कि आज़ादी के सत्तर साल बाद भी देश की अकादमिक संस्थाओं में ब्राह्मणवादी, मनुवादी, सामंती, पितृसत्ता का ही कब्ज़ा है। इतना ही नहीं, तुमने जाने कितने द्रोणाचारियों की  नकाब उतार दिया, जो प्रगतिशील लिबास में छिपे थे। आज पिछले एक साल में अपने दिल्ली विश्वविद्यालय में हम जैसे युवा बाकायदा इस कब्ज़े को देख पा रहे हैं, झेल रहे हैं और उसके खिलाफ़ खड़े होने की हिम्मत जुटा रहे हैं। तुमने हिम्मत दी, आज जाने कितने रोहिथ पैदा हो रहे हैं, लड़ रहे हैं। अब सवाल और पूछे जाने लगे हैं, आज के युवा बेचैन हैं...

साथी रोहित! तुम वैज्ञानिक बनना चाहते थे, तुम लड़ना और बदलना चाहते थे, लेकिन तुम्हारे सपनों की ह्त्या करने वाली सत्ताएँ आज भी ज़िंदा हैं और लगातार वही कर रही हैं, लेकिन अब चीज़ें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। तुमने जाने कितने प्रगतिशील संगठनों तक को अपने बैनर-पोस्टर में आंबेडकर की तस्वीर लगाने को मजबूर कर दिया, तुमने सत्ता चला रही पार्टी को आंबेडकर के सामने ला खड़ा किया, बशर्ते तमाशे जैसा ही सही, लेकिन अब तो आंबेडकर के राजनैतिक क़ातिल तक बेचैन हो गए। जाने कितने युवा आज भी तुम्हारे ख़त को पढ़ते होंगे, बेचैन होते होंगे। तुमने कैम्पस ही नहीं,देशभर के युवाओं को झकझोरा, तो आज कहीं चंद्रशेखर लड़ रहा है, तो कहीं जिग्नेश बोल रहा है। तुम जहाँ कहीं होगे, तो क्या सोच रहे होगे, कभी सपने में आकर मुझे ज़रूर बताना। इसी बहाने मिलते रहना।

एक बार फिर से तुम्हें इंकलाबी सलाम करने का मन है, ज़िन्दा रहना हममें, हम लड़ेंगे साथी, जब तक लड़ने की ज़रूरत बाकी होगी...

 अलविदा दोस्त

तुम्हारा दोस्त, तुम्हारा हमख़्वाब युवा

लक्ष्मण यादव 

(17 जनवरी 2018 )

Rohith Vemula
Rohit Act
Attack on dalits
HCU
BJP
RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • रवि कौशल
    डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी
    24 May 2022
    दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले की शिक्षक समूहों ने तीखी आलोचना करते हुए आरोप लगाया है कि इससे विश्वविद्यालय में भर्ती का संकट और गहरा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल
    24 May 2022
    उत्तर बंगाल के ब्रू बेल्ट में लगभग 10,000 स्टाफ और सब-स्टाफ हैं। हड़ताल के निर्णय से बागान मालिकों में अफरा तफरी मच गयी है। मांग न मानने पर अनिश्चितकालीन हड़ताल का संकेत दिया है।
  • कलिका मेहता
    खेल जगत की गंभीर समस्या है 'सेक्सटॉर्शन'
    24 May 2022
    एक भ्रष्टाचार रोधी अंतरराष्ट्रीय संस्थान के मुताबिक़, "संगठित खेल की प्रवृत्ति सेक्सटॉर्शन की समस्या को बढ़ावा दे सकती है।" खेल जगत में यौन दुर्व्यवहार के चर्चित मामलों ने दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़…
  • आज का कार्टून
    राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 
    24 May 2022
    2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जब राम मंदिर पर फ़ैसला दिया तो लगा कि देश में अब हिंदू मुस्लिम मामलों में कुछ कमी आएगी। लेकिन राम मंदिर बहस की रेलगाड़ी अब मथुरा और काशी के टूर पर पहुँच गई है।
  • ज़ाहिद खान
    "रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख..." : मजरूह सुल्तानपुरी पुण्यतिथि विशेष
    24 May 2022
    मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी का शुरूआती दौर, आज़ादी के आंदोलन का दौर था। उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िये उनके जीवन से जुड़े और शायरी से जुड़ी कुछ अहम बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License