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दिल्ली में मज़दूरों ने अपनी मांगों को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के ख़िलाफ़ हड़ताल की
आज यानि 25 नवंबर को देश की राजधानी दिल्ली में सेंट्रल ट्रेड यूनियनों, स्वंतत्र फ़ेडरेशनों एवं कर्मचारी संगठनों के आह्वान कर्मचारियों और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों ने इस हड़ताल में भाग लिया। इसमें नगर निगम, दिल्ली जल बोर्ड और साथ ही औद्योगिक मज़दूर, घरेलू कामगार महिलाएं और विश्विद्यालय के छात्र, शिक्षक, कर्मचारियों ने अपनी मांगों के साथ हड़ताल की और दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जुलूस भी निकाले।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
25 Nov 2021
strike

आज यानि 25 नवंबर को देश की राजधानी दिल्ली में सेंट्रल ट्रेड यूनियनों, स्वंतत्र फ़ेडरेशनों एवं कर्मचारी संगठनों के आह्वान कर्मचारियों और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों ने इस हड़ताल में भाग लिया। इसमें नगर निगम, दिल्ली जल बोर्ड और साथ ही औद्योगिक मज़दूर, घरेलू कामगार महिलाएं और विश्विद्यालय के छात्र, शिक्षक, कर्मचारियों ने अपनी मांगों के साथ हड़ताल की और दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जुलूस भी निकाले।

सुबह से ही मज़दूर नेताओं और यूनियनों ने औद्योगिक क्षेत्र में जाकर मज़दूरों से काम का बहिष्कार करने की अपील की और उसके बाद मज़दूरों ने एकत्रित होकर औद्योगिक क्षेत्रों में रैली भी की। पटपड़गंज और झिलमिल, ओखला, उत्तरी दिल्ली के राजधानी उद्योग नगर, बादली ,वजीरपुर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, नोएडा औद्योगिक क्षेत्र में राज्यव्यापी हड़ताल को लेकर जुलूस निकालते हुए ,चार लेबर कोड रद्द करने, श्रमिकों को 26 हज़ार रुपये न्यूनतम वेतन, ठेका प्रथा बंद करने समेत अन्य कई मांगों को लेकर मज़दूरों ने हड़ताल की।

साहिबाद के साईट चार आद्यौगिक क्षेत्र में सीटू का झंडा लेकर सुबह आठ बजे से ही मज़दूर होली फेथ इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के समाने रास्ता रोकर बैठ गए थे। जबकि होली फेथ में कर्मचारियों ने पूर्ण हड़ताल किया था। उसी भीड़ में शामिल समर सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि, "ये हड़ताल हमारे ऊपर हो रहे सरकारी दमन का प्रतिकार हक़ हक़ूक़ को वापस लेने का बचा अंतिम रास्ता है। ये सरकार देश की मेहनतकश जनता को आर्थिक, सामाजिक और सभी तरह से निचोड़ने में लगी हुई है।"  

गौरतलब है कि हड़ताल में 12 केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने भाग लिया, जिनमें इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), सेल्फ-एंप्यॉलयड वीमेंस एसोसिएशंस (सेवा), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (एआईसीसीटीयू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ), युनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) एमईसी और इंडियन सेंट्रल ट्रेड यूनियन (आईसीटीयू) शामिल हैं।

बता दें कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर अन्य केंद्रीय श्रमिक संगठनों की हड़ताल में भागीदारी रही।

राजेंद्र प्रसाद जो होली फेथ में पिछले तीन दशक से अधिक से मज़दूर हैं, उन्होंने हमें बताया कि "इस कोरोना काल के बाद मालिक महामारी का बहाना बनाकर मज़दूरों के हक़ का पैसा और अधिकार मार रहा है। पहले वेतन महीने के शुरआत में मिल जाता था, परन्तु अब महीने के अंत तक मिलता है। दूसरा, तीन साल पहले जो वेतन समझौता हुआ था, उसे मैनेजमेंट ने अभी तक लागू नहीं किया है, जबकि अब दोबारा समझौते का समय आ गया है।"

ग़ाज़िबाद के मज़दूर नेता और सीटू के जिला अध्यक्ष जी एस तिवारी भी अपने साथियों के साथ मज़दूरों को इस हड़ताल में शामिल होने के लिए समझा रहे थे और कई बार वो कई जगहों पर जबरन भी काम बंदी करा रहे थे। 

तिवारी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि "ये सरकार गरीबी हटाने के बदले गरीबों को ही हटाने में लगी है। इसके लिए वो लगतार मज़दूर किसानों पर हमले कर रही है। एक तरफ जहां वो किसानों के हक़ को छीनने का प्रयास कर, उन्हें रास्ते पर लाना चाहती है। वहीं दूसरी तरफ, वो मज़दूरों के हक़ में बनने कानून को समाप्त कर उन्हें भी पूंजीपतियों का गुलाम बना रही है।" 

आगे उन्होंने कहा, "आज गाज़िबाद में दिल्ली के बराबर ही महंगाई है। फिर भी यहां दिल्ली से आधी न्यूनतम वेतन है। जिसमें मज़दूरों का भरण-पोषण नामुकिन सा हो गया है। हमारी मांग है कि पूरे दिल्ली एनसीआर में एक समान ही न्यूनतम वेतन होना चाहिए।"

इसी तरह एस० एफ० एस ० सोलयूशन साहिबाद में भी कर्मचारियों ने पूर्ण हड़ताल किया था। वहां पर सभी कर्मचारी यूनियन के लोगों और अन्य कर्मचारी भी गेट के बाहर ही धरना लगाकर बैठे थे। सभी सरकार से चारों लेबर कोड वापस लेने और महंगाई पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे।  

राजकुमार गुप्ता, जिनकी उम्र लगभग 50 वर्ष थी और विकलांग हैं, ने कहा कि, "पहले की सरकार विकलांगों को आर्थिक मदद देती थी और उनके कल्याण के लिए योजना चलाती थी, परन्तु जब से मोदी सरकार आई है, उसने हमारी कोई सुध ही नहीं ली है। उन्हें समझना चहिए कि विकलांग को दिव्यांग करने से कुछ नहीं होगा, हमें नाम नहीं, बल्कि आर्थिक सम्मान चाहिए।"

पूर्वी दिल्ली के झिलमिल और पटपड़गंज औद्यौगिक क्षेत्र में भी हड़ताल का असर हुआ। यहां ट्रेड यूनियन ने संयुक्त रूप से हड़ताल कर जुलूस निकला। संयुक्त ट्रेड यूनियन मंच, पूर्वी दिल्ली, के सचिव पुष्पेंद्र सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए दावा किया कि आज इस क्षेत्र की 70 फीसदी फैक्ट्रियां बंद हैं। उन्होंने आगे बताया, "ये हड़ताल दिल्ली सरकार द्वारा राज्य की मेहनतकश आवाम को अनदेखा करने और उनके हक पर डकैती के खिलाफ प्रतिरोध है। दिल्ली में न्यूनतम वेतन 16 हज़ार है, जबकि सरकारी ऑफिस में भी लोग आठ से दस हज़ार मेहनताने पर काम करने को मज़बूर हैं, तो फिर बाकी जगहों की बात ही क्या करें। ये सीधा एक सरकार नियोजित डकैती है।"  

उन्होंने दिल्ली सरकार पर अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा कि, "ये सरकार भी केंद्र की मोदी सरकार की तरह सत्ता के नशे में चूर है, इसलिए वो मज़दूरों के सवालों को लेकर गंभीर नहीं है। देखने वाली बात यह है कि श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया मज़दूरों के हक में लड़ने वाली यूनियन का दलाल कहते हैं, जो बेहद शर्मनाक है।"

जंतर मंतर पर सरकारी कर्मचारी और रेहड़ी पटरी यूनियन का रोष प्रदर्शन

दिल्ली भर में जहां औद्दोगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की हड़ताल हुई, वहीं सरकारी कर्मचारी और रेहड़ी-पटरी वालों ने संसद भवन के पास जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में दिल्ली जल बोर्ड, डीबीसी, नगर निगम, रेहड़ी पटरी के साथ ही घरेलू कामगार यूनियन के कर्मचारी, सदस्यों ने सैकडों की तादाद में शिरकत की।  

दिल्ली जल बोर्ड में लाल झंडा यूनियन के अध्यक्ष देवन्द्र दलाल ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि हमारे यहाँ 20 हज़ार स्थाई और 5 हज़ार ठेका कर्मी हैं। केजरीवाल के सत्ता में आने से पहले केवल 1 हज़ार ठेका मज़दूर थे। ये शर्मनाक है क्योंकि ये ठेका प्रथा खत्म करने आए थे, और अब सिर्फ ठेका पर ही भर्ती कर रहे हैं।

एनडीएमसी में स्कूलों में सफ़ाई कर्मचारी, चौकीदार, चपरासी और बल सेविका के तहत काम करने वाले मज़दूर भी इसमें शामिल हुए और उन्होंने बताया कि हमें सिर्फ तीन महीने काम मिलता है और फिर तीन महीने का ब्रेक दिया जाता है। इस ब्रेक का उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता है। 

उन्होंने शिकायत करते हुए हमें बताया कि उन्हें ये ब्रेक आराम के लिए नहीं, बल्कि श्रम कानूनों से बचने के लिए दिया जाता है, क्योंकि अगर वो लगातार एक ही व्यक्ति को काम पर रखते हैं, तो उन्हें पक्का करना पड़ेगा। इसलिए वो हमें हटा देते हैं। 

सीटू दिल्ली के अध्यक्ष वीरेंद्र गौड़ ने सीधे-सीधे सरकार को "बेशर्म" करार दिया। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "आज देश की जनता महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है। ये सरकार उनकी मदद करने के बजाए उनके अधिकारों पर हमला कर रही है।" 

आगे उन्होंने कहा कि मजदूर किसानों के खिलाफ़ बने कानून सरकार वापिस ले वरना इस सरकार की वापसी तय है।

मजदूर संगठन ऐक्टू के दिल्ली अध्यक्ष संतोष राय, जो खुद हड़ताल में शामिल थे, उन्होंने दोनों केंद्र और दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह हड़ताल दोनों सरकारों की मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ की गई है, जिसमें नौकरियों की सुरक्षा, रोज़गार सृजन और श्रम क़ानूनों में मालिकों के पक्ष में सुधार न करने से संबंधित मांगें रखी गई हैं।

श्रमिकों की प्रमुख मांगों में आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाना, नई और अच्छी नौकरियों को पैदा करना, 7500 आर्थिक सहायता देने, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने के लिए सभी कदमों पर रोक लगाना और विभिन्न मार्गों के माध्यम से शेयरों को बेचना और एकमुश्त निजीकरण पर रोक लगाना, सभी के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज, श्रम कानूनों पर रोक लगाना, ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करना आदि मांगें शामिल हैं। मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने अपने पूरे शासनकाल के दौरान मज़दूरों की मांगों के प्रति कठोर चुप्पी साध रखी है। दूसरे शब्दों में कहे तो, श्रमिकों और सरकार के बीच पूर्ण गतिरोध की स्तिथि बनी हुई है।

सरकार ने श्रम कानूनों में "कठोर बदलाव किए हैं। इन बदलावों के तहत 44 मुख्य केंद्रीय श्रम क़ानूनों को मात्र चार श्रम ‘कोड’ मे बदल दिया गया है। इनमें से सबसे पहला हमला, मज़दूरी पर संहिता (यानी वेज ‘कोड’) लाना है, जिसे पहले से ही लागू कर दिया गया है। यह मज़दूरी अधिनियम 1936, न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम 1948, बोनस अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 की जगह लेगा।

वास्तविक रूप से न्यूनतम मज़दूरी में वास्तविक कटौती हुई है। इसके बावजूद यह ‘भुखमरी का वेतन’ कम से कम 85 प्रतिशत कर्मचारियों को मयस्सर नहीं है, यानी इसकी भी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि यह वेज कोड 10 से कम श्रमिकों या अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले उद्यमों पर लागू नहीं होता है।

कोड का वह भाग जो रोज़गार के नियमों के बारे में बताता है और ड्यूटी से अनुपस्थित होने के लिए जुर्माना तय करता है। कोड के अनुसार "कोई भी कर्मचारी जो पंद्रह वर्ष से कम आयु का है" उस पर जुर्माना नहीं लगाया जाएगा। कई पर्यवेक्षकों को इस बात ने हिला कर रख दिया है कि कैसे एक बच्चे को "कर्मचारी" के रूप में संदर्भित किया गया है, जो एक तरह से बाल श्रम को क़ानूनी रूप से जायज़ बनाता है।

इन नए कानूनों में व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम की शर्तें संहिता 2019 भी मौजूद हैं , जो 13 श्रम क़ानूनों की जगह लेगा। इसमें फ़ैक्ट्री अधिनियम, संविदा श्रम अधिनियम और अन्य क़ानून प्रवासी श्रमिकों के रोज़गार को विनियमित करता है, जैसे कि विशिष्ट क्षेत्रों में काम करने वालों मज़दूर जैसे बंदरगाह और वृक्षारोपण।

 संयुक्त तरड़ यूनियन मंच दिल्ली के संयोजक और सीटू महासचिव अनुराग सक्सेना ने बताया कि आज की हड़ताल को पूरी दिल्ली में व्यापक समर्थन मिला है । ये एक चेतावनी है अगर सरकारों ने हमारी मांगे नही मानी तो देश भर का मजदूर फरवरी के महीने में देशव्यापी हड़ताल करने जा रहा है । जिसकी घोषणा सेंट्रल ट्रेड यूनियन के संयुक्त मंच ने कर दिया है । 

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woker 's protest
CITU
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