NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अच्छा है, ट्रंप ने लोकतांत्रिक समाजवाद के कुछ नमूने उठाये हैं
बुधवार  को अमेरिकी सीनेट ने ''कोरोनावायरस रिलीफ़ बिल'' 90-8 बहुमत के साथ पास किया। ट्रंप अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए लोकतांत्रिक समाजवाद से कुछ चीज़ें उठा रहे हैं।
एम. के. भद्रकुमार
20 Mar 2020
ट्रंप

कोरोनावायरस के संक्रमण से पैदा हुई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों पर ट्रंप प्रशासन और कांग्रेस की प्रतिक्रिया से अमेरिकी राजनीति की छाप समझ में आती है। एक ऐसी आपदा जो लाखों अमेरिकी परिवारों की जिंदगी तबाह कर सकती है, ऐसे दौर में भी बेहद ध्रुवीकृत माहौल में एक ''विभाजनकारी मत'' बनाया जा सकता है।

यह सब एक बेहद उग्र चुनावी कैंपेन के बीच हो रहा है। आगे नवंबर तक यह कैंपेन और भी ज़्यादा विभाजनकारी होता जाएगा और पूरे माहौल को ज़बरदस्त राजनीतिक रंग दे दिया जाएगा। 

बुधवार  को अमेरिकी सीनेट ने ''कोरोनावायरस रिलीफ़ बिल'' 90-8 बहुमत के साथ पास किया। प्रेसिडेट ट्रंप ने इस पर तुरंत दस्तख़त कर दिए और यह कानून बन गया। इसे आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी आपात निधि भी बताया जा रहा है। बिजली की तेजी से पास हुए इस बिल पर हाउस स्पीकर नैननसी पेलोसी और राजकोष सचिव स्टीवन मुंचिन के बीच सावधानी से विमर्श कर मोलभाव किया गया।

अब कोरोनावायरस का परीक्षण मुफ़्त हो गया है, यहां तक कि जिनका बीमा नहीं है, वो लोग भी इसका फायदा उठा सकते हैं। कानून के ज़रिए दो हफ़्ते की वैतनिक और पारिवारिक छुट्टी का प्रावधान और मेडिकैड (Medicaid) और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम पर संघीय खर्च को बढ़ा दिया गया है, साथ में ''बेरोज़गारी बीमा'' फ़ायदों में भी इज़ाफ़ा किया गया है।  

इस बीच एक और समझौते पर बातचीत जारी है। सीनेट ने इस समझौते के कानून बनने तक सत्र चालू रखने का फ़ैसला किया है। इस समझौते में व्हाइट हॉउस सीनेट से एक ट्रिलियन डॉलर की मांग कर रहा है। इस ''राहत और आर्थिक योजना'' से कुछ उद्योगों को बेलऑउट पैकेज दिया जाएगा। करदाताओं को भी पैसा पहुंचाया जाएगा।

व्हाइट हाउस प्रस्ताव में अमेरिकी नागरिकों को व्यक्तिगत पेऑउट के लिए 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर, एयरलाइन इंडस्ट्री बेलऑउट के लिए 50 बिलियन डॉलर, दूसरे औद्योगिक संस्थानों के लिए 150 बिलियन डॉलर और छोटे उद्योगों को लोन देने के लिए 300 बिलियन डॉलर की मांग की गई है।

इस प्रस्ताव में तुरंत धन देने जैसे कुछ ज़बरदस्त प्रावधान भी हैं। इसके तहत अप्रैल और मई में दो हिस्सों में परिवार के आकार और आय के स्तर के आधार पर रकम दी जाएगी। दोनों हिस्सों की रकम की मात्रा एक जैसी होगी।

छोटे उद्योगों को रुकावट से निपटने के लिए रियायती दरों पर 300 बिलियन डॉलर दिए जा रहे हैं। इसके तहत 500 कर्मचारियों की सेवा लेने वाले छोटे उद्योगों को अपने कर्मियों को ''लोन पास होने के दिन से अगले आठ हफ़्ते तक वेतन'' देने के लिए पैसा दिया जाएगा। इसका मतलब है कि सरकार 6-8 हफ़्तों के वेतन की 100 फ़ीसदी गारंटी दे रही है। इसकी सीमा प्रति कर्मचारी, प्रति हफ़्ते 1,540 डॉलर रखी गई है।

ट्रंप ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए ओबामा द्वारा 2008 में चलाए गए 700 बिलियन डॉलर के ''ट्रबल्ड एसेट रिलीफ़ प्रोग्राम'' को नीचा दिखाया है। ओबामा के पैकेज में बड़े बैंकों और ऑटो कंपनियों को बेलऑउट पैकेज मिला था। ओबामा ने ''फैनी माए'' और ''फ्रेडी मैक'' जैसी कंपनियों के लिए भी 200 बिलियन डॉलर का प्रावधान किया था। दोनों कंपनियों पर बहुत बड़ा क़र्ज़ था।

हांलाकि यह अलग बात है कि बेल पैकेज से ओबामा प्रशासन ने शानदार फायदा कमाया। वाल स्ट्रीट कंपनियों ने प्रशासन के कर्ज़ को सूद समेत वापस किया था। जनवरी 2020 तक अमेरिका सरकार ओबामा के बेलऑउट पैकेज से 120 बिलियन डॉलर से ज़्यादा की कमाई कर चुकी है।

लेकिन यहां कुछ बड़ी नैतिक जटिलताएं हैं। नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनज़र कुछ गंभीर राजनैतिक स्थितियां भी हैं।

यह भी याद रखा जाना चाहिए कि 2008 के बेलऑउट पैकेज से उलट, ट्रंप के बेलऑउट प्लान में आगे और भी खर्च और गारंटी जुड़ सकती हैं। कोरोनावायरस कितने लंबे वक़्त तक चलेगा, बढ़ा हुआ खर्च इसी बात पर निर्भर करेगा।

ट्रंप की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं (दूसरे राजनीतिज्ञों की तरह उनकी भी होंगी ही) जो भी हों, लेकिन यहां पूंजीवाद द्वारा मानवीय चेहरा दिखाने जैसी दुर्लभ घटना हो रही है।

इस प्रक्रिया में ''स्कैनडिनेवियन प्रवृत्ति'' का सामाजिक लोकतंत्र अमेरिकी धरती पर पहुंच रहा है। विडंबना है कि यह सब ट्रंप के राज में हो रहा है, जिन्हें समाजवाद या उस ''हानिकारक'' विचारधारा से जुड़ी किसी भी चीज से खूब कोफ़्त होती है।

बर्नी सैंडर्स के कैंपेन पर करीब से नज़र बनाए हुए ट्रंप ने महसूस किया है कि लोकतांत्रिक समाजवाद (जैसा सैंडर्स  कहते हैं) अब अमेरिकी लोगों को आकर्षित कर रहा है। ट्रंप के वैचारिक स्थायित्व ने उन्हें इस बात को महसूस करने से नहीं रोका। 

यहां सैडर्स एक विरासत बना रहे हैं, जहां उनके कैंपेन से अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य में समाजवादी विचारों को वैधानिकता मिल रही है। जबकि ट्रंप जैसे उनके प्रबल विरोधी संक्षिप्त काल में इस बदलते परिदृश्य का लाभ उठाने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में जो बिडेन को लेफ़््ट की ओर मुड़ना होगा।

हालांकि इस ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि ट्रंप अमेरिका की पूंजीवादी व्यवस्था को बदलने वाले हैं। वह इससे बहुत दूर हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि ट्रंप लोकतांत्रिक समाजवाद के कुछ तत्वों को फ़ौरी तौर पर सियासी फ़ायदे  के लिए अपना रहे हैं। लेकिन जो ट्रंप कर रहे हैं, उसे भी कम करके नहीं आंका जा सकता।

इन चीजों का वैश्विक राजनीति पर भी असर पड़ेगा। ट्रंप कोरोनावायरस से लड़ने के लिए G-20 वैश्विक या अलाना-फलाना (जैसा सऊदी राजकुमार मोहम्मद बिन सुलेमान के नेतृत्व में हो रहा है) रणनीति पर अपना समय बर्बाद नहीं कर रहे हैं। ट्रंप अपने देश के लिए पूरी तरह अमेरिकी रणनीति पर काम कर रहे हैं, ताकि अपनी ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के हिसाब से चीजें की जा सकें। वह चीन के रास्ते पर हैं।

इसका मतलब यह हुआ कि अब G-20 समूह के शिखर सम्मेलन की असली ज़िम्मेदारी भारत और ऑस्ट्रेलिया के कंधों पर है। रियाद ने मंगलवार को नए शिखर सम्मेलन की घोषणा की है।

दूसरे शब्दों में कहें तो बहुलतावाद से ट्रंप की नफ़रत में कोई कमी नहीं आई है। ट्रंप अब भी ''अमेरिका फर्स्ट'' से अपना मोह बरकरार रखे हुए हैं।

इससे कोरोनावायरस के खिलाफ़ वैश्विक जंग में नेतृत्व का झंडा चीन के लिए अपने हाथ में थामने का रास्ता साफ हो गया है।

ट्रंप अमेरिका के उद्योगों और व्यापार को आने वाले आर्थिक उछाल के लिए भी तैयार कर रहे हैं। जब COVID-19 ख़त्म होगा, तो यह आर्थिक उछाल आना तय है। यहां अटलांटिक मैगज़ीन में छपे ट्रंप और समाजवाद पर एक दिलचस्प लेख को पढ़ा जाना चाहिए। इसका शीर्षक है- There Are No Libertarians in an Epidemic।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Trump Samples Democratic Socialism. Hmm, it’s Good.

Donald Trump
Coronavirus
USA
Healthcare in USA

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • Ayodhya
    रवि शंकर दुबे
    अयोध्या : 10 हज़ार से ज़्यादा मंदिर, मगर एक भी ढंग का अस्पताल नहीं
    24 Jan 2022
    दरअसल अयोध्या को जिस तरह से दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है वो सच नहीं है। यहां लोगों के पास ख़ुश होने के लिए मंदिर के अलावा कोई दूसरा ज़रिया नहीं है। अस्पताल से लेकर स्कूल तक सबकी हालत ख़राब है।
  • BHU
    विजय विनीत
    EXCLUSIVE: ‘भूत-विद्या’ के बाद अब ‘हिंदू-स्टडीज़’ कोर्स, फिर सवालों के घेरे में आया बीएचयू
    24 Jan 2022
    किसी भी राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए धर्म की नहीं, विज्ञान और संविधान की जरूरत पड़ती है। बेहतर होता बीएचयू में आधुनिक पद्धति के नए पाठ्यक्रम शुरू किए जाते। हमारा पड़ोसी देश चीन बिजली की मुश्किलों से…
  • cartoon
    आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: एक वीरता पुरस्कार तो ग़रीब जनता का भी बनता है
    24 Jan 2022
    बेरोज़गारी, महंगाई और कोविड आदि की मार सहने के बाद भी भारत की आम जनता ज़िंदा है और मुस्कुरा कर पांच राज्यों में फिर मतदान की लाइन में लगने जा रही है, तो एक वीरता पुरस्कार तो उसका भी बनता है...बनता है…
  • genocide
    पार्थ एस घोष
    घर वापसी से नरसंहार तक भारत का सफ़र
    24 Jan 2022
    भारत में अब मुस्लिम विरोधी उन्माद चरम पर है। 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से इसमें लगातार वृद्धि हुई है।
  • bulli bai
    डॉ. राजू पाण्डेय
    नफ़रत का डिजिटलीकरण
    24 Jan 2022
    सुल्ली डील्स, बुल्ली बाई, क्लबहाउस और अब ट्रैड्स के ज़रिये अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का काम लगातार सोशल मीडिया पर हो रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License