पहले सुशांत सिंह प्रकरण को देश का 'सबसे बड़ा मुद्दा' बनाकर एक सियासी रंगमंच सजाया गया. लोगों के दिमाग से महामारी, बेकारी और देश की बेहाली की तस्वीरें गायब करने का प्रोजेक्ट चला. फिर रिया की गिरफ्तारी हुई. इसी बीच एक 'नयी वीरांगना' कंगना राणावत सियासी मंच पर पेश हुईं. कभी आरक्षण पर बरसी तो कभी मुंबई को PoK बताया और कभी बॉलीवुड को इस्लामी-वर्चस्व से जोड़ा. अब केंद्र का समर्थन पाकर वह शिवसेना-नीत सरकार से निपटने के मूड में हैं. सियासी-बेतुकेपन के एक तीर से किस तरह कई निशाने साधने की कोशिश हो रही है. अगर निशाने पर बॉलीवुड है तो महाराष्ट्र सरकार भी है. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का विश्लेषण