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भारत
राजनीति
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में बेरोज़गारी दर पूरे देश में सबसे ज़्यादा 
देश के सर्वाधिक बेरोजगारी दर वाले टॉप-10 शहरों में यूपी के पांच जिले शामिल हैं। 
अमित सिंह
03 Jun 2019
फाइल फोटो

केंद्र की सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल में रोज़गार के आंकड़े जारी किए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में बेरोज़गारी दर 45 साल में सर्वाधिक रही है। सरकारी संस्था नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के 'आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण' में ये आंकड़े सामने आए हैं। 

आम चुनाव से ठीक पहले बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट लीक हो गई थी, तब सरकार ने इस रिपोर्ट को अधूरा बताया था, लेकिन 31 मई को सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में इसकी पुष्टि हो गई। यह सर्वे जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच हुआ था।

इस सर्वे में 10 लाख से अधिक आबादी वाले 45 शहरों को शामिल किया गया था। इसमें उत्तर प्रदेश के कानपुर, गाजियाबाद, वाराणसी, प्रयागराज, मेरठ, लखनऊ और आगरा शामिल हैं। 

इस रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में बेरोजगारी दर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर वाले देश के दस शहरों की सूची में भी उत्तर प्रदेश के पांच जिले शामिल हैं। 

योगी सरकार और प्रयागराज 

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सर्वाधिक सीटें हैं। नरेंद्र मोदी सरकार को दोबारा सत्ता में वापसी के लिए यहां से जीत मिलनी बहुत ही जरूरी थी। जब यह रिपोर्ट लीक हुई थी तो सरकार के तमाम नुमाइंदों द्वारा इसे झुठला दिया गया था। तब नीति आयोग ने रिपोर्ट खारिज करते हुए कहा था कि यह फाइनल डेटा नहीं, बल्कि ड्राफ्ट रिपोर्ट है और सरकार ने नौकरियों पर कोई डेटा जारी नहीं किया है। 

इसके बजाय बीजेपी सरकार ने प्रयागराज में आयोजित अर्धकुंभ पर अपना फोकस दिखाया था। राज्य की योगी सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रख दिया था। इसके अलावा अर्धकुंभ का नाम बदलकर महाकुंभ रख दिया था। लेकिन सिर्फ़ नाम बदलने से हालात नहीं बदलते हैं।

प्रयागराज में आयोजित कुंभ को लेकर योगी सरकार ने तमाम विज्ञापन दिए। ऐसा माहौल बनाया गया कि इस बार व्यवस्था सबसे बेहतर है। हालांकि इसका फायदा भी सरकार को वोट के रूप में मिल गया। प्रयागराज (इलाहाबाद लोकसभा सीट) के साथ सटी ज्यादातर लोकसभा सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है लेकिन इसके साथ ही कुछ दूसरे आकंड़े भी आने शुरू हो गए हैं। 

सबसे पहले एनजीटी ने कहा कि प्रयागराज में कुंभ मेले के बाद जमा कचरे से महामारी फैलने का खतरा है। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से कहा कि वह प्रयागराज में कुंभ मेले के बाद जमा कचरे को हटाने के लिए तुरंत क़दम उठाए। उसके बाद अब एक बार फिर बेराजगारी दर की रिपोर्ट को लेकर प्रयागराज चर्चा में है। 

क्या है रिपोर्ट में?

दैनिक जागरण के मुताबिक देश में सर्वाधिक 8.9 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ प्रयागराज पहले नंबर पर है जबकि 8.5 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ मेरठ दूसरे नंबर पर है। इसके बाद पुणे का स्थान हैं, जहां 7.5 प्रतिशत बेरोजगारी दर है। 

इसी तरह महाराष्ट्र का पिंपरी शहर चौथे, राजस्थान का कोटा पांचवें, कानपुर सातवें, गाजियाबाद आठवें, धनबाद और लखनऊ नौवें और पटना दसवें स्थान पर है। यानी टॉप 10 शहरों में यूपी के पांच शहर शामिल हैं।

दूसरी ओर सबसे कम बेरोजगारी दर महाराष्ट्र के पालघर जिले के वसई-विरार और गुजरात के राजकोट में है। अगर हम बात दिल्ली एनसीआर की करें तो सबसे कम बेरोजगारी दर फरीदाबाद में हैं। 

बाकी शहरों का क्या हाल?

एनएसएसओ की 45 शहरों की सूची में उत्तर प्रदेश के सिर्फ दो शहर वाराणसी और आगरा ही ऐसे हैं जहां बेरोजगारी दर अपेक्षाकृत कम है। वाराणसी में बेरोजगारी दर 3.6 प्रतिशत और आगरा में 2.1 प्रतिशत है। इस सूची में मध्य प्रदेश के तीन शहर-ग्वालियर, भोपाल और इंदौर शामिल हैं। हालांकि, इन तीनों शहरों में बेरोजगारी दर काफी कम है।

इसी तरह झारखंड के रांची में भी बेरोजगारी दर काफी कम है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सबसे कम बेरोजगारी दर फरीदाबाद में 3.3 प्रतिशत है जबकि दिल्ली में यह 3.9 प्रतिशत और गाजियाबाद में 6.3 प्रतिशत है। 

देश में सबसे कम बेरोजगारी दर 0.1 प्रतिशत महाराष्ट्र के वसई-विरार शहर में है। वसई-विरार के अलावा देश में सिर्फ तीन शहर- राजकोट(0.3), मदुरै(0.6) और नासिक (0.9) ऐसे हैं जहां बेरोजगारी दर एक प्रतिशत से कम है। 

अगर पुरुष और महिला बेरोजगारी दर की अलग-अलग बात करें तो 12.9 प्रतिशत पुरुष बेरोजगारी दर के साथ मेरठ पूरे देश में अव्वल है जबकि राजस्थान का कोटा 11.7 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर और 11.3 प्रतिशत के साथ प्रयागराज तीसरे नंबर पर है। 

अब आगे क्या?

आपको बता दें कि यह नोटबंदी के बाद का पहला आधिकारिक सर्वेक्षण है। सरकार पर यही रिपोर्ट दबाने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष सहित दो सदस्यों ने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था। उनका कहना था कि रिपोर्ट को आयोग की मंजूरी मिलने के बाद भी सरकार जारी नहीं कर रही। यह रिपोर्ट दिसंबर 2018 में जारी की जानी थी।

अब जब चुनाव खत्म हो गए हैं और बेरोजगारी की वास्तविक स्थिति सबसे सामने आ गई है तो भारत के नौजवानों के लिए नौकरियां पैदा करना इस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होनी चाहिए। 

युवाओं के लिए जिस तेजी से रोजगार बढ़ने चाहिए वो नहीं बढ़ रहे हैं। 2013-14 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं के लिए हर साल 1-2 करोड़ नई नौकरियां लाएंगे, लेकिन अब आंकड़े बता रहे हैं कि इस हिसाब से नई नौकरियां नहीं सृजित की जा सकी हैं और पुरानी नौकरियां भी ख़त्म हो रही हैं।

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