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भारत
राजनीति
उत्तर-पूर्व राज्यों में बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति
परंपरागत भोजन की खुराक में बदलाव से बच्चों में खून कमी बढ़ रही है I

विवान एबन
18 Jan 2018
Translated by महेश कुमार
north east

भारत के आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों में बच्चों की देखभाल और स्वास्थ्य के परिणामों में और बाल मृत्यु की दर में एक दिलचस्प रुझान देखने को मिलता है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (एनएफएचएस-4) की हाल ही में प्रकाशित अंतिम रिपोर्ट में सामने आया है। यह सर्वेक्षण 2015-2016 में पूरे देश में आयोजित किया गया था और माँ, बाल स्वास्थ्य और मृत्यु दर, उनका स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग आदि से लेकर कई मापदंडों का विवरण दिया गया है। न्यूज़क्लिक ने विश्लेषण किया कि पूर्वोत्तर भारत की तुलना में कहाँ ठहरता है यह पता लगाने का भी प्रयास है कि माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के मामले में क्षेत्र 'पिछड़ा' है या नहीं और अगर है तो कैसे है।

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शिशु मृत्यु दर को 0 से 12 महीने की उम्र के बच्चों के 1000 प्रति जन्मों की मृत्यु दर के आधार पर परिभाषित किया गया है। पांच वर्ष कि उम्र के तहत मृत्यु दर के तहत बच्चों की 1000 जन्मों पर कितनी मृत्यु हो रही है को नापा जाता है। एनएफएचएस -4 के आंकड़ों के मुताबिक असम को अगर अपवाद के रूप में छोड़ दें तो पूर्वोत्तर में पांच की औसत पर एक शिशु मृत्यु दर दर्ज करता है जो भारतीय औसत की तुलना में काफी कम है। एक कारक जो पांच वर्ष के अंतर्गत मृत्यु दर को प्रभावित कर रहा है, वह उनका रहने का निवास स्थान है। यह शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। जाहिर है यह गरीबी और स्वास्थ्य सेवा दोनों की उपलब्धता के साथ इसका लेना देना है। एक और दिलचस्प विशेषता यह है कि यू -5 की मृत्यु दर स्कूली शिक्षा में वृद्धि के साथ घट जाती है। अपेक्षित रूप से, घरेलू संपदा में अगर वृद्धि हो तो मृत्यु दर घट जाती है।

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जन्म के समय बच्चे का वजन ही उसके स्वास्थ्य का आधार होता है। यह नवजात शिशु के स्वास्थ्य को मापने का एक उपाय है। अगर बेंचमार्क वजन 2.5 किलोग्राम है या उससे ऊपर है तो बच्चे को स्वस्थ माना जाता है। यह मां के स्वास्थ्य को मापने का भी एक उपाय है कि माँ स्वास्थ्य है या नहीं। नवजात शिशुओं का वजन केवल तभी किया जाता है जब वे संस्थागत सुविधाओं में पैदा होते हैं – जैसे अस्पतालों या अन्य स्वास्थ्य केंद्र (सरकारी)– जहाँ ये आंकड़े राज्यव्यापी रिकॉर्ड, राज्यव्यापी संस्थागत प्रसव पर दर्ज किये जाते हैं।

पूर्वोत्तर में कुल जन्म-भार भारतीय औसत से अधिक है। इसमें असम भी शामिल है, हालांकि शिशु मृत्यु दर और साथ ही पांच वर्ष के अंतर्गत मृत्यु दर के अनुसार असम भारतीय औसत से अधिक है।

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संस्थागत प्रसव नवजात शिशुओं के साथ-साथ प्रसवोत्तर स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच का भी संकेत देते हैं। मिजोरम, सिक्किम और त्रिपुरा को छोड़कर, अन्य राज्यों में संस्थागत प्रसव का हिस्सा भारतीय औसत से कम था। असम में पांच वर्ष के भीतर मृत्यु दर के मुकाबले स्वास्थ्य सुविधा में प्रसव का प्रतिशत भी कम है, इसका जवाब शिशु मृत्यु दर से पता चल सकता हैं। दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में असम की तुलना में कम संस्थागत प्रसव के मामले हैं  और पांच वर्ष के बच्चों के अंतर्गत शिशु मृत्यु दर भी कम है।

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मिजोरम और सिक्किम में स्किल हेल्थकेयर ने परिणाम के मुताबिक़ यहाँ भारतीय औसत की तुलना में प्रसव का  प्रतिशत उंचा है, लेकिन कोई भी राज्य जन्म पूर्व देखभाल के मामले में औसत से ज्यादा नहीं था। हालांकि, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में भारतीय औसत की तुलना में प्रसवपूर्व देखभाल का स्तर ऊँचा है। हेल्थकेयर प्रदाताओं द्वारा प्रदान की गई प्रसवकालीन देखभाल के निचले स्तर की व्याख्या इस तथ्य में हो सकती है कि नवजात शिशु के पारंपरिक रूपों को अब भी स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों द्वारा ही प्रदान जाता है और उन्हें प्राइवेट सुविधाएं ही पसंद है।

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कुल मिलाकर, भारतीय औसत की तुलना में पूर्वोत्तर के बच्चों में (खून में कमी) एनीमिया का कम प्रभाव होता है।

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एनएफएचएस -4 बताता है कि वयस्कों में, एनीमिया पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच अधिक है। पूर्वोत्तर भी इस प्रवृत्ति से पीड़ित है। भारतीय औसत की तुलना में मेघालय और त्रिपुरा में महिलाओं के बीच (खून कि कमी) एनेमिया का स्तर उंचा है। भारतीय औसत की तुलना में असम, मेघालय और त्रिपुरा में पुरुषों में एनीमिया का प्रसार अधिक हुआ। पूर्वोत्तर राज्यों के रूप में आर्थिक कारकों की तुलना में बच्चों और वयस्कों दोनों में एनीमिया का प्रसार सामाजिक कारकों से अधिक जुड़ा हो सकता है, क्योंकि उनका वन उत्पाद स्थानीय आहार का हिस्सा है। यह संभव है कि बीटल और पोषण के अन्य पारंपरिक स्रोतों के रूप में भोजन की दिशा में बदलते नजरिए से पौष्टिक भोजन की खपत कम हो गयी है। ऐसा सिक्किम में देखा जा सकता है जहां वयस्कों की तुलना में बच्चों में एनीमिया का प्रसार अधिक होता है। यह संभव है कि घर में पकाये हुए भोजन के मुकाबले भोजन के प्रति बदलते व्यवहार से मीडिया के प्रभाव और विज्ञापन के माध्यम से 'संसाधित' खाद्य पदार्थों को बढ़ावा मिला हो।

North East
malnutrition in children
बच्चों में खून की कमी

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