NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
उत्तराखंड : मज़दूरों की हड़ताल से पहाड़ भी गरमाए
राजधानी देहरादून में श्रमिक संगठनों ने अपनी रैलियां निकालीं और फिर गांधी पार्क में जुटे। सत्ता पर काबिज हुक्मरानों तक अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए विभिन्न बैनरों के तले मज़दूर-कर्मचारियों ने अपनी आवाज़ बुलंद की।
वर्षा सिंह
08 Jan 2019
UTTARAKHAND WORKERS STRKE

ट्रेड यूनियनों की हड़ताल का उत्तराखंड में भी असर रहा। राजधानी देहरादून के गांधी पार्क में श्रमिक संगठनों के झंडे लहराये। सत्ता पर काबिज हुक्मरानों तक अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए विभिन्न बैनरों के तले मज़दूर-कर्मचारियों ने अपनी आवाज़ बुलंद की। केंद्र की नीतियों के खिलाफ नारेबाजी की गई। हड़ताल में बड़ी संख्या में बैंक के कर्मचारी भी शामिल रहे। बैंक इम्पलाइज यूनियन, ग्रामीण बैंक, होटल वर्कर्स यूनियन, डाकघर,आयकर, बीमा कंपनी, बिजली विभाग सहित केंद्रीय श्रमिक संगठनों से जुड़े कर्मचारी हड़ताल पर रहे। देहरादून में श्रमिक संगठनों ने अपनी रैलियां निकालीं और फिर गांधी पार्क में जुटे।

उत्तराखंड बैंक एम्प्लॉइज यूनियन के संयोजक जगमोहन मेहंदीरत्ता ने कहा कि मोदी सरकार की कथनी और करनी में फ़र्क है। सरकार जन-धन योजना के ज़रिये बैंकों को दूर-दूर तक पहुंचाने की बात कर रही है। इसके साथ ही बैंकों का विलय करने की बात भी हो रही है। आउटसोर्सिंग से बैंकों को बंद करने की कोशिश की जा रही है। जगमोहन मेहंदीरत्ता ने कहा कि ये बैंक कर्मचारियों के साथ लोगों के लिए भी नुकसानदेह होगा।

उत्तराखंड संयुक्त ट्रेड यूनियन्स समन्वय समिति ने भी हड़ताल को अपना समर्थन दिया। इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड में कर्मचारियों का सबसे अधिक शोषण है।

पिछले 10-15 साल से 21 हजार से अधिक लोग उपनल (उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम) के माध्यम से विभिन्न विभागों में कार्य कर रहे हैं। इन्हें नियमित किये जाने की मांग बहुत दिनों से की जा रही है। नैनीताल हाईकोर्ट ने भी आदेश दिया कि नवंबर 2018 में आदेश दिया था कि उपनलकर्मियों को चरणबद्ध तरीके से एक साल के भीतर नियमित किया जाए। साथ ही उन्हें न्यूनतम वेतनमान जरूर मिले। हीरा सिंह बिष्ट कहते हैं कि सरकार हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीमकोर्ट में अपील करने जा रही है। सरकार का कहना है कि उनके पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं। जबकि जो लोग पिछले 15-20 वर्षों से कार्य कर रहे हैं उन्हें नियमित किये जाने का अधिकार है। वे हमेशा नौकरी खोने के डर में जीते हैं। हीरा सिंह बिष्ट ने रेग्यूलर पदों पर ठेकेदारी प्रथा से भर्ती न करने का मुद्दा उठाया और कहा कि जब पद नियमित है तो नियुक्ति भी नियमित होनी चाहिए।

उत्तराखंड के श्रमिक संगठनों की मांग है कि समान कार्य का समान वेतन दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही न्यूतम 18 हजार रुपये वेतन होना ही चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी अपने फैसले में दो बार कह चुका है कि समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।

इसके साथ ही सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने की मांग भी की गई। 

सरकारी अस्पतालों को पीपीपी मोड में निजी हाथों में सौंपने का भी उत्तराखंड में कर्मचारी संगठनों ने विरोध किया है। देहरादून के दोईवाला अस्पताल को जॉलीग्रांट स्थित हिमालयन अस्पताल को सौंप दिया गया है। इसके साथ ही रामनगर, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी समेत कई जगह अस्पताल को पीपीपी मोड पर देने का फैसला लिया गया है। प्रांतीय चिकित्सा संघ का कहना है कि दुर्गम क्षेत्र के अस्पतालों को पीपीपी मोड में दिया जाता तो भी ये बात समझ में आती। इससे कर्मचारियों में छंटनी का भय है।

इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट कहते हैं कि फायदे वाले देहरादून एयरपोर्ट को भी निजी हाथों में सौंपने की बात हो रही है। निजीकरण के डर से ही बैंक पहले बी नौ बार हड़ताल कर चुके हैं। रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की साजिश की जा रही है। सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण का फैसला किया था। लेकिन पांच लाख से अधिक कर्मचारियों की हड़ताल के चलते उन्हें अपना फैसला वापस लेने पड़ा था। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने दो करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात कही थी। इसके उलट वर्ष 2017 में एक करोड़ सत्तर लाख लोग बेरोजगार हो गए।

सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि वर्ष 2002 में जब पहली एनडी तिवारी की अगुवाई में राज्य की सरकार बनी तो उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए स्टेट इंडिस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड यानी सिडकुल बनाया गया। इसमें पंतनगर विश्वविद्यालय की हजारों एकड़ जमीन दी गई। ऐसे ही हरिद्वार और देहरादून में सिडकुल बनाये गये। सिडकुल में जो भी फैक्ट्रियां बनीं उनमें श्रम कानूनों के पालन की व्यवस्था दिखाई नहीं देती। चार-पांच हजार रुपये पर लोगों को 12-18 घंटे कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है। जो रोजगार है, वो भी ठेके पर है। जिसमें किसी भी समय लोगों को बाहर निकालने का डर बना रहता है।

मैखुरी कहते हैं कि यूनियन फ्री जोन बनाने पर सरकार का बहुत दबाव है। वे यूनियन नहीं बनाने देते। जिससे मजदूरो के अधिकारों की बात नहीं की जा सके। उनका कहना है कि सरकार, प्रशासन, मालिक और गुंडों का एक पूरा समूह कार्य करता है। आशा-आंगनबाड़ी-भोजना माताएं बेहद मामूली पैसों पर कार्य कर रहे हैं। नए रोजगार के अवसर सृजित करने के आसार नहीं हैं। रिटायरमेंट के बाद अफसरों को रोजगार मिल रहा है लेकिन कर्मचारियों को नहीं। इस तरह उत्तराखंड अफसर रोजगार वाला राज्य बन गया है।

न्यूनतम मजदूरी, रिक्त पदों पर भर्ती, आउट सोर्सिंग और ठेकेदारी प्रथा को बंद करना, नई पेंशन योजना को समाप्त करना जैसी मांगों को लेकर ये हड़ताल की गई है। श्रमिकों-कर्मचारियों की इन मांगों को सुनिश्चित करना वैसे तो सरकार की ज़िम्मेदारी में ही शामिल है। सामाजिक सुरक्षा सरकार की ज़िम्मेदारी है। जिसे पूरा करने के लिए आज कर्मचारी वर्ग सड़कों पर उतरा है। किसान आंदोलन ने राज्य की पांच विधानसभा के चुनाव नतीजों पर अपना असर दिखाया। कर्मचारी आंदोलन से सरकार वो सबक याद कर सकती है।

#WorkersStrikeBack
#श्रमिकहड़ताल
workers protest
UTTARAKHAND
Anti Labour Policies

Related Stories

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

उत्तराखंड के ग्राम विकास पर भ्रष्टाचार, सरकारी उदासीनता के बादल

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

उत्तराखंड : ज़रूरी सुविधाओं के अभाव में बंद होते सरकारी स्कूल, RTE क़ानून की आड़ में निजी स्कूलों का बढ़ता कारोबार 

रुड़की : डाडा जलालपुर गाँव में धर्म संसद से पहले महंत दिनेशानंद गिरफ़्तार, धारा 144 लागू

कहिए कि ‘धर्म संसद’ में कोई अप्रिय बयान नहीं दिया जाएगा : न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव से कहा

इको-एन्ज़ाइटी: व्यासी बांध की झील में डूबे लोहारी गांव के लोगों की निराशा और तनाव कौन दूर करेगा

उत्तराखंड : चार धाम में रह रहे 'बाहरी' लोगों का होगा ‘वेरीफिकेशन’

हिमाचल प्रदेश के ऊना में 'धर्म संसद', यति नरसिंहानंद सहित हरिद्वार धर्म संसद के मुख्य आरोपी शामिल 


बाकी खबरें

  • भाषा
    महाराष्ट्र : एएसआई ने औरंगज़ेब के मक़बरे को पांच दिन के लिए बंद किया
    19 May 2022
    महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रवक्ता गजानन काले ने मंगलवार को कहा था कि औरंगजेब के मकबरे की कोई जरूरत नहीं है और उसे ज़मींदोज़ कर दिया जाना चाहिए, ताकि लोग वहां न जाएं। इसके बाद, औरंगाबाद के…
  • मो. इमरान खान
    बिहार पीयूसीएल: ‘मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए हिंदुत्व की ताकतें ज़िम्मेदार’
    19 May 2022
    रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुत्ववादी भीड़ की हरकतों से पता चलता है कि उन्होंने मुसलमानों को निस्सहाय महसूस कराने, उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और उन्हें हिंसक होकर बदला लेने के लिए उकसाने की…
  • वी. श्रीधर
    भारत का गेहूं संकट
    19 May 2022
    गेहूं निर्यात पर मोदी सरकार के ढुलमुल रवैये से सरकार के भीतर संवादहीनता का पता चलता है। किसानों के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने की ज़िद के कारण गेहूं की सार्वजनिक ख़रीद विफल हो गई है।
  • एम. के. भद्रकुमार
    खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन
    19 May 2022
    संयुक्त अरब अमीरात में प्रोटोकॉल की ज़रूरत से परे जाकर हैरिस के प्रतिनिधिमंडल में ऑस्टिन और बर्न्स की मौजूदगी पर मास्को की नज़र होगी। ये लोग रूस को "नापसंद" किये जाने और विश्व मंच पर इसे कमज़ोर किये…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी 
    19 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटो में कोरोना के 2,364 नए मामले सामने आए हैं, और कुल संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 4 करोड़ 31 लाख 29 हज़ार 563 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License